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कृषि 4.0: पार्श्वस्थ कृषि क्रांति

  • 25 Sep 2024
  • 35 min read

यह संपादकीय “Agriculture 4.0: How urban farming is shaping the future of food security in smart cities” पर आधारित है, जो 23/09/2024 को हिंदू बिजनेस लाइन में प्रकाशित हुआ था। यह लेख IoT, वर्टिकल फार्मिंग एवं मोबाइल ऐप जैसी स्मार्ट तकनीकों के माध्यम से शहरी और ग्रामीण खेती को रूपांतरित करने में कृषि 4.0 की भूमिका को प्रकट करता है। यह नवाचार खाद्य सुरक्षा को संवर्द्धित करता है, संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करता है और किसानों की आय को बढ़ाता है, जो भारत संवहनीय कृषि में अग्रणी बनाता है।

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि 4.0, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, हरित क्रांति, eNAM, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, भारत कृषि का डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, पीएम-किसान योजना, भारतनेट परियोजना, किसान उत्पादक संगठन 

मेन्स के लिये:

कृषि 4.0 के लाभ, भारत में कृषि 4.0 के कार्यान्वयन में प्रमुख बाधाएँ

कृषि 4.0 शहरी खाद्य उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रहा है, शहरों में स्थानीय, संवहनीय खाद्य स्रोतों की बढ़ती मांग के साथ उन्नत तकनीकों को समेकित कर रहा है। यह अभिनव दृष्टिकोण शहरी स्थानों को संपन्न कृषि केंद्रों में परिवर्तित कर देता है, जिसमें इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), वर्टिकल फार्मिंग और हाइड्रोपोनिक्स जैसे स्मार्ट तकनीकों का उपयोग किया जाता है। 

भारतीय परिदृश्य में, कृषि 4.0 केवल उच्च तकनीक वाले शहरी खेतों के विषय में नहीं है, यह देश भर के किसानों को सूचित निर्णय लेने, संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करने और व्युत्पन्न में वृद्धि के लिये उपकरणों के साथ सशक्त बनाने के बारे में है। यद्यपि भारत का लक्ष्य किसानों की आय को दोगुना करना और अपने 1.4 बिलियन लोगों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है, इसलिये कृषि 4.0 की प्रथाओं को अंगीकृत करने से कृषि क्षेत्र में रूपांतरण की संभावना है, जिससे यह युवा पीढ़ी के लिये अधिक आकर्षक बन जाएगा और भारत को संवहनीय खाद्य उत्पादन में वैश्विक अधिनायक के रूप में स्थापित करेगा।

कृषि 4.0 क्या है?

  • परिचय: कृषि 4.0, जिसे स्मार्ट खेती या डिजिटल खेती के रूप में भी जाना जाता है, कृषि पद्धतियों में चौथी बड़ी क्रांति का प्रतिनिधित्व करता है, जो खाद्य उत्पादन और संसाधन प्रबंधन को अनुकूलित करने के लिये अत्याधुनिक तकनीकों का लाभ उठाता है।
    • यह नवोन्मेषी दृष्टिकोण उन्नत डिजिटल प्रौद्योगिकियों जैसे कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), मशीन लर्निंग, बिग डेटा एनालिटिक्स, रोबोटिक्स और सटीक कृषि तकनीकों को पारंपरिक कृषि प्रथाओं में एकीकृत करता है।
  • अन्य प्रमुख कृषि क्रांतियाँ:
    • कृषि 1.0: आखेट-संग्रहण से स्थायी कृषि की ओर प्रारंभिक संक्रमण, लगभग 10,000 ईसा पूर्व से शुरू हुआ, जो पौधों और जानवरों के  पालतू बनाने द्वारा चिह्नित था।
    • कृषि 2.0: कृषि में औद्योगिक क्रांति ( 18वीं-19वीं शताब्दी), जो मशीनीकरण, उन्नत फसल चक्र तथा रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग द्वारा चिह्नित था।
    • कृषि 3.0: हरित क्रांति (20वीं सदी के मध्य), जिसमें उच्च उपज वाली फसल किस्में, विस्तारित सिंचाई तथा खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये कृत्रिम उर्वरकों और कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग सम्मिलित था।
      • कृषि 3.0 के दौरान रोपण, कटाई और सिंचाई जैसे कार्यों के मशीनीकरण ने रोबोटिक्स के उपयोग सहित कृषि स्वचालन में भविष्य की प्रगति के लिये आधार निर्मित किया।

कृषि 4.0 के क्या लाभ हैं?

  • फसल की पैदावार और उत्पादकता में वृद्धि: कृषि 4.0 प्रौद्योगिकियाँ सटीक कृषि तकनीकों के माध्यम से फसल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि करती हैं।
    • उदाहरण के लिये, IoT संवेदक और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग किसानों को वास्तविक समय की मृदा और पादप की स्थिति के आधार पर जल, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे निविष्टियों को अनुकूलित करने में सक्षम बनाता है।
    • भारत में परिशुद्ध कृषि तकनीक अंगीकृत करने से कुछ फसलों की उपज में 30% तक की वृद्धि हुई है।
    • माइक्रोसॉफ्ट और ICRISAT के बीच साझेदारी है, जिसने कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित बुवाई ऐप विकसित किया, जिसने आंध्र प्रदेश में मूंगफली की पैदावार में 30% की वृद्धि की
  • संसाधन दक्षता और संवहनीयता: कृषि 4.0 संसाधन उपयोग को अनुकूलित करके संवहनीय कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देता है।
    • पारंपरिक तरीकों की तुलना में जल की खपत को 50% तक कम कर सकती हैं।
    • भारत के जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में, IoT संवेदक के साथ द्रप्स सिंचाई ने उल्लेखनीय परिणाम प्रदर्शित किये हैं।
    • तमिलनाडु परिशुद्ध कृषि परियोजना ने 40-50% जल बचत प्रदर्शित की।
      • इसके अतिरिक्त, मृदा स्वास्थ्य डेटा और फसल आवश्यकताओं के आधार पर उर्वरकों के प्रमितित उपयोग से उर्वरक के उपयोग में 15-20% की कमी आई है।
  • जलवायु समुत्थानशीलता और जोखिम न्यूनीकरण: कृषि 4.0 का अभिन्न अंग उन्नत मौसम पूर्वानुमान और पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने और जोखिमों को कम करने में सहायता करती हैं।
    • उदाहरण के लिये, CRIDA का 'मेघदूत' ऐप भारतीय किसानों को स्थान, फसल और पशुधन-विशिष्ट मौसम-आधारित कृषि-परामर्श प्रदान करता है ।
    • यह प्रौद्योगिकी किसानों को रोपण, कटाई और कीट नियंत्रण के बारे में सूचित निर्णयन में सहायता करने में महत्त्वपूर्ण रही है, जिससे चरम मौसम की घटनाओं के कारण होने वाली फसल की हानि को कम किया जा सका है।
  • आपूर्ति शृंखला अनुकूलन और बाजार अभिगम्यता: कृषि 4.0 प्रौद्योगिकियाँ कृषि आपूर्ति शृंखलाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रही हैं, जो फसलोपरांत हानि को कम कर रही हैं और किसानों के लिये बाज़ार अभिगम्यता में सुधार कर रही हैं।
    • उदाहरण के लिये, ब्लॉकचेन-आधारित आपूर्ति शृंखला समाधान, अनुरेखन क्षमता और पारदर्शिता को संवर्द्धित करते हैं, उपभोक्ताओं के बीच विश्वास का निर्माण करते हैं और किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्ति में सक्षम बनाते हैं।
    • भारत में, eNAM (इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाज़ार) मंच, जो देश भर में किसानों को खरीदारों से जोड़ने के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकी का लाभ उठाता है, में 1.69 करोड़ से अधिक किसान नामांकित हैं।
  • डेटा-संचालित निर्णयन और पूर्वानुमानित विश्लेषण: कृषि में बड़े डेटा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का एकीकरण पूर्वानुमानित विश्लेषण को सक्षम बनाता है, जिससे किसानों और नीति निर्माताओं को सूचित निर्णयन में सहायता मिलती है।
    • उदाहरण के लिये, मशीन लर्निंग एल्गोरिदम के साथ संयुक्त उपग्रह इमेज़री से फसल कटाई से महीनों पहले 90% से अधिक सटीकता के साथ फसल की पैदावार का अनुमान लगाया जा सकता है
    • भारत में, फसल परियोजना (अंतरिक्ष, कृषि-मौसम विज्ञान और भूमि आधारित प्रेक्षणों का उपयोग करके कृषि उत्पादन का पूर्वानुमान) प्रमुख फसलों के लिये कटाई-पूर्व अनुमान प्रदान करने के लिये ऐसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करती है, जिससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना निर्माण में सहायता मिलती है।
  • कृषि ज्ञान का लोकतंत्रीकरण: कृषि 4.0 मोबाइल ऐप्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित चैटबॉट्स के माध्यम से छोटे किसानों के लिये विशेषज्ञ कृषि ज्ञान को अधिक सुलभ बना रहा है।
    • भारत में, किसान सुविधा और इफको किसान जैसे मंच लाखों किसानों तक पहुँच चुके हैं और उन्हें फसल प्रबंधन, कीट नियंत्रण और बाज़ार मूल्यों पर व्यक्तिगत परामर्श प्रदान कर रहे हैं।
    • एग्रीटेक स्टार्टअप देहात का राजस्व किसानों को कृषि निविष्टियों की बिक्री से 80% से अधिक बढ़ने की संभावना है।

कृषि 4.0 से संबंधित प्रमुख केस स्टडीज: 

  • प्रमोद गौतम: पूर्व ऑटोमोबाइल इंजीनियर प्रमोद ने वर्ष 2006 में अपनी 26 एकड़ जमीन पर खेती करना शुरू किया 
    • फसलों और श्रम से संबंधित शुरुआती चुनौतियों का सामना करते हुए, उन्होंने आधुनिक कृषि उपकरणों को अंगीकृत किया और बागवानी की ओर प्रवृत्त हो गए। आज, प्रमोद एक सफल दाल मिल और बागवानी व्यवसाय का संचालन करते हैं, जिससे सालाना 1 करोड़ रुपये का कारोबार होता है।
  • सचिन काले: यांत्रिक अभियंता से किसान बने सचिन ने वर्ष 2013 में एक अभिनव स्वच्छ ऊर्जा फार्म स्थापित करने के लिये अपनी उच्च वेतन वाली नौकरी छोड़ दी। 
    • वर्तमान में वह अपनी स्वयं की कंपनी संचालित करते हैं, जो 137 से अधिक किसानों को अनुबंध खेती में सहायता कर रही है और 2 करोड़ रुपये का कारोबार कर रही है।
  • हरीश धनदेव: हरीश ने राजस्थान में एलोवेरा की खेती करने के लिये सरकारी नौकरी छोड़ दी। डिजिटल प्लेटफॉर्म और बाज़ार अनुसंधान का इस्तेमाल करके उन्होंने अपने कारोबार को 100 एकड़ तक विस्तृत किया और अब सालाना 1.5 से 2 करोड़ रुपये कमा रहे हैं।
  • विश्वनाथ बोबडे: महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त बीड के एक किसान विश्वनाथ ने बहु-शस्यन और द्रप्स सिंचाई जैसी कुशल खेती तकनीकों के ज़रिये एक एकड़ से 7 लाख रुपए कमाए। 
  • राजीव बिट्टू: एक चार्टर्ड अकाउंटेंट, जो खेती की ओर प्रवृत्त हुए तथा द्रप्स सिंचाई और मल्चिंग जैसी आधुनिक तकनीकों को प्रयुक्त किया। पट्टे पर ली गई भूमि पर विविध फसल की कार्यनीति के माध्यम से  वह सालाना 15-16 लाख रुपए की कमाई करते है।
  • ये केस स्टडीज इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि किस प्रकार नवाचार, प्रौद्योगिकी और स्मार्ट खेती के तरीके भारत में कृषि को परिवर्तित कर रहे हैं, जो कि कृषि 4.0 के सिद्धांतों के अनुरूप है।

भारत में कृषि 4.0 के कार्यान्वयन में प्रमुख बाधाएँ क्या हैं?

  • सीमित डिजिटल अवसंरचना और संयोजकता: तीव्र सुधारों के बावजूद, भारत का ग्रामीण डिजिटल अवसंरचना कृषि 4.0 को अंगीकृत करने में एक महत्त्वपूर्ण बाधा है।
    • ऐसा अनुमान है कि भारत के लगभग 5.97 लाख गाँवों में से लगभग 25,067 गाँवों में मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी का अभाव है।
    • डिजिटल इंडिया पहल ने प्रगति की है, परंतु अंतिम छोर तक संयोजकता की चुनौती अभी भी बनी हुई है।
    • यह डिजिटल विभाजन IoT उपकरणों का परिनियोजन और परिशुद्ध कृषि के लिये महत्त्वपूर्ण वास्तविक समय डेटा पारेषण में बाधा डालता है।
    • बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में , जहाँ संयोजकता विशेष रूप से खराब है, किसानों को बुनियादी डिजिटल कृषि सेवाओं तक पहुँचने के लिये भी संघर्ष करना पड़ता है, जिससे कृषि 4.0 प्रौद्योगिकियों का संभावित प्रभाव सीमित हो जाता है।
  • लघु एवं खंडित भू-जोत: भारत के कृषि परिदृश्य पर लघु एवं सीमांत किसानों का प्रभुत्व है, जिनके पास औसत भूमि का आकार मात्र 1.08 हेक्टेयर है।
    • इस विखंडन के कारण बड़े पैमाने पर तकनीकी समाधानों को लागत प्रभावी ढंग से कार्यान्वित  करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
    • GPS-निर्देशित ट्रैक्टर या ड्रोन जैसे सटीक कृषि उपकरण व्यक्तिगत छोटे किसानों के लिये आर्थिक रूप से अव्यवहारिक हो जाते हैं।
    • यह विखंडन न केवल प्रौद्योगिकी अंगीकरण के प्रति एकड़ लागत में वृद्धि करता है, बल्कि बड़े पैमाने पर डेटा संग्रह और विश्लेषण को भी जटिल बनाता है, जिससे बड़े डेटा-संचालित कृषि समाधानों की प्रभावशीलता कम हो जाती है।
  • सीमित वित्तीय संसाधन और ऋण अभिगम्यता: कृषि 4.0 प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक उच्च प्रारंभिक निवेश कई भारतीय किसानों के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा है।
    • राष्ट्रीय वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार, ग्रामीण परिवारों की वार्षिक आय ₹ 96,708 थी।
    • किसान क्रेडिट कार्ड जैसी योजनाओं से ऋण की उपलब्धता में सुधार हुआ है, फिर भी उच्च तकनीक वाले कृषि समाधानों को अंगीकरण अभी भी न्यून है।
  • जागरूकता और डिजिटल साक्षरता का अभाव: अधिकांश भारतीय किसानों में कृषि 4.0 प्रौद्योगिकियों और उन्हें प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिये आवश्यक डिजिटल साक्षरता के विषय में जागरूकता का अभाव है।
    • वर्ष 2023 तक केवल 30% भारतीय किसानों ने अपनी कृषि पद्धतियों में किसी न किसी रूप में डिजिटल प्रौद्योगिकी को अंगीकृत किया है।
    • ग्रामीण भारत में डिजिटल साक्षरता दर केवल 25% है।
    • ज्ञान का यह अंतर बुनियादी डिजिटल कृषि सेवाओं के अंगीकरण में भी बाधा प्रस्तुत करता है।
  • अपर्याप्त डेटा अवसंरचना और मानक: मानकीकृत, उच्च गुणवत्ता वाले कृषि डेटा की कमी भारत में कृषि 4.0 के लिये एक बड़ी बाधा है।
    • जबकि इस तरह की पहल मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना से बृहत् मात्रा में डेटा उत्पन्न हुआ है, इस डेटा का एकीकरण और प्रभावी उपयोग अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ हैं।
    • एकीकृत कृषि डेटा प्लेटफॉर्म की अनुपस्थिति, परिशुद्ध कृषि के लिये महत्त्वपूर्ण कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग मॉडल के विकास में बाधा डालती है।
  • पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: भारत के विविध कृषि-जलवायु क्षेत्र और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ कृषि 4.0 के एकसमान कार्यान्वयन के लिये विशिष्ट चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हैं।
    • पंजाब या हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में अच्छी तरह से कार्य करने वाली प्रौद्योगिकियाँ मध्य भारत के वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त नहीं हो सकती हैं।
    • उदाहरण के लिये, परिशुद्ध सिंचाई प्रौद्योगिकियाँ कुछ क्षेत्रों में 50% तक जल की बचत कर सकती हैं, वर्षा आधारित क्षेत्रों में उनकी प्रयोज्यता सीमित है, जो भारत के निवल बोए गए क्षेत्र का 51% है।
    • इसी प्रकार, कृषि-तकनीक स्टार्टअप की सफलता प्रायः अधिक विकसित कृषि क्षेत्रों में केंद्रित होती है, जिससे प्रगतिशील और हाशिये पर स्थित कृषक समुदायों के बीच प्रौद्योगिकी अंगीकरण में अंतर उत्पन्न होता है।

कृषि के डिजिटलीकरण से संबंधित सरकार की हालिया पहल क्या हैं?

  • भारत डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र (IDEA) : एक ऐसा ढाँचा जिसे कृषि-केंद्रित नवीन समाधानों को सक्षम करने के लिये संघीय किसानों का डेटाबेस निर्मित करने के लिये अभिकल्पित किया गया है। यह किसानों की आय में वृद्धि करने और क्षेत्रीय दक्षता को संवर्द्धित करने हेतु प्रभावी योजना के लिये योजना डेटाबेस को एकीकृत करता है।
  • कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP-A) : कृषि को आधुनिक बनाने के लिये AI, ML, रोबोटिक्स, ड्रोन, डेटा एनालिटिक्स और ब्लॉकचेन जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने वाली राज्य परियोजनाओं को समर्थन देती है।
  • कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (SMAM): कस्टम हायरिंग केंद्रों, उच्च तकनीक उपकरण केंद्रों और क्षमता निर्माण के माध्यम से छोटे तथा सीमांत किसानों को कृषि मशीनीकरण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • e-NAM: कृषि उपज बाज़ार समितियों (APMC) को जोड़ने वाला एक अखिल भारतीय डिजिटल ट्रेडिंग पोर्टल, जो कृषि वस्तुओं के लिये एकीकृत बाज़ार का निर्माण करता है, जिससे किसानों, व्यापारियों और FPO को लाभ मिलता है।
  • पीएम-किसान योजना: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के माध्यम से किसानों के बैंक खातों में सीधे धनराशि अंतरित की जाती है। किसान पीएम-किसान मोबाइल ऐप के माध्यम से स्वयं पंजीकरण कर सकते हैं और जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
  • एगमार्कनेट: एक G2C ई-गवर्नेंस पोर्टल जो कृषि बाज़ारों में वस्तुओं के दैनिक मूल्यों और आवक सहित कृषि विपणन से संबंधित जानकारी प्रदान करता है।
  • कृषि अवसंरचना कोष (AIF): यह निधि फसलोपरांत प्रबंधन और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के लिये  वित्तीय सहायता प्रदान करती है, ब्याज अनुदान और ऋण गारंटी प्रदान करती है।
  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन (HORTNET): वित्तीय सहायता के लिये वेब-सक्षम प्रणाली की पेशकश करके बागवानी में ई-गवर्नेंस को प्रोत्साहित करता है, जिससे प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।
  • मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता पर राष्ट्रीय परियोजना: किसानों को पोषक तत्वों की कमी का अन्वेषण करने और उर्वरक पद्धतियों में सुधार करने के लिये डिजिटल पोर्टल के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करती है।
  • किसान सुविधा मोबाइल ऐप: यह ऐप मौसम, बाज़ार मूल्य, पादप संरक्षण, इनपुट डीलरों आदि के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रसारित करता है, जिससे किसानों को सूचित निर्णयन में सहायता मिलती है।

भारत में कृषि 4.0 को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के लिये कौन-सी कार्यनीति अपनाई जा सकती है?

  • डिजिटल अवसंरचना के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सार्वजनिक-निजी भागीदारी का लाभ उठाकर ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना के विकास में तीव्रता लाई जा सकती है।
    • भारतनेट परियोजना अंतिम-मील कनेक्टिविटी में निजी दूरसंचार ऑपरेटरों को सम्मिलित करके इस कार्य को तीव्र किया जा सकता है तथा इसे CSC (कॉमन सर्विस सेंटर) से जोड़ा जा सकता है।
    • इस मॉडल का विस्तार करने से ग्रामीण इंटरनेट कनेक्टिविटी में काफी सुधार हो सकता है।
    • ये साझेदारियाँ गाँव के केंद्रों में वाई-फाई हॉटस्पॉट बनाने और कृषि उपयोग के लिये सब्सिडी वाले डेटा प्लान उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं, जिससे किसानों के लिये डिजिटल कृषि सेवाएँ अधिक सुलभ हो सकेंगी।
  • प्रौद्योगिकी अंगीकरण हेतु किसान उत्पादक संगठन (FPO): किसान उत्पादक संगठनों को संवर्द्धित और प्रोत्साहित करने से छोटी भूमि जोतों से उत्पन्न चुनौतियों पर काबू पाया जा सकता है।
    • वर्ष 2024 तक 10,000 नए FPO बनाने का सरकार का लक्ष्य कृषि 4.0 प्रौद्योगिकियों को बड़े पैमाने पर कार्यान्वित करने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है।
      • केंद्रीय बजट 2024-25 में सरकार ने FPO के लिये आवंटन को लगभग 30% बढ़ाकर वर्ष 2023-24 के लिये ₹450 करोड़ से वर्ष 2024-25 के लिये ₹581.67 करोड़ करने का प्रस्ताव किया है
    • महाराष्ट्र में सह्याद्रि फार्म्स जैसे FPO की सफलता, जिसने छोटे किसानों को परिशुद्ध कृषि तकनीक अपनाने में सहायता की है, इस दृष्टिकोण की क्षमता को प्रदर्शित करती है।
  • अनुकूलित वित्तीय उत्पाद और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम: कृषि 4.0 प्रौद्योगिकी अंगीकृत करने के लिये अनुकूलित वित्तीय उत्पादों का विकास, डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों के साथ मिलकर, वित्तीय और ज्ञान दोनों अंतरालों को संबोधित कर सकता है।
    • बैंक और फिनटेक कंपनियाँ कृषि-तकनीक समाधानों के लिये कम ब्याज दर वाले ऋण या भुगतान-प्रति-उपयोग मॉडल की पेशकश कर सकती हैं।
    • डिजिटल कृषि पर विशेष ध्यान देने के साथ प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) जैसे कार्यक्रमों का विस्तार करने से किसानों की इन प्रौद्योगिकियों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमता बढ़ सकती है।
  • कृषि डेटा और ओपन डेटा प्लेटफॉर्म का मानकीकरण: कृषि डेटा संग्रहण, भंडारण और साझाकरण के लिये एक मानकीकृत ढाँचा स्थापित करना कृषि 4.0 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • कृषि डेटा के लिये एकीकृत, ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म निर्मित करने के लिये भारत डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र (IDEA) ढाँचे को तीव्रता से अग्रेषित किया जा सकता है।
    • डेटा सत्यनिष्ठता और अनुरेखन क्षमता के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी को कार्यान्वित करना, जैसा कि द्वारा प्रदर्शित किया गया है कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया का ब्लॉकचेन-आधारित मार्केटप्लेस पायलट, कृषि डेटा पारिस्थितिकी तंत्र में विश्वास और पारदर्शिता बढ़ा सकता है।
  • कृषि-तकनीक नवाचारों के लिये विनियामक सैंडबॉक्स: कृषि प्रौद्योगिकियों के लिये विनियामक सैंडबॉक्स के निर्माण से सुरक्षा और प्रभावकारिता सुनिश्चित करते हुए नवाचार को संवर्द्धित किया जा सकता है।
    • यह दृष्टिकोण पूर्ण पैमाने पर कार्यान्वयन से पहले वास्तविक स्थितियों में नई प्रौद्योगिकियों के नियंत्रित परीक्षण की अनुमति देता है।
    • उदाहरण के लिये, कृषि के लिये ड्रोन विनियमों के हाल के उदारीकरण को परिशुद्ध कृषि में उन्नत ड्रोन अनुप्रयोगों के परीक्षण के लिये निर्दिष्ट क्षेत्र के निर्माण तक विस्तारित किया जा सकता है।
    • फिनटेक के लिये भारत के विनियामक सैंडबॉक्स की सफलता एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकती है, जिससे कृषि-तकनीक स्टार्टअप को नियंत्रित वातावरण में अपने नवाचारों का परीक्षण करने की अनुमति मिल सकती है।
  • कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) के माध्यम से स्थानीयकृत कृषि-तकनीक समाधान: स्थानीयकृत कृषि-तकनीक समाधान विकसित करने और प्रसारित करने के लिये कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) के नेटवर्क का लाभ उठाकर विविध कृषि-जलवायु स्थितियों की चुनौती का समाधान किया जा सकता है।
    • KVK विशिष्ट स्थानीय आवश्यकताओं के लिये कृषि 4.0 प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन और अनुकूलन के लिये केंद्र के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • कृषि शिक्षा में कृषि 4.0 का एकीकरण: अद्यतन कृषि शिक्षा पाठ्यक्रम को कृषि 4.0 प्रौद्योगिकियों को सम्मिलित करने से नवाचार और अनुकूलन को बढ़ावा देने के लिये दक्ष कार्यबल तैयार हो सकता है।
    • यह लक्ष्य, मौजूदा कृषि डिग्री कार्यक्रमों में सटीक कृषि, खेती में IoT और कृषि डेटा विश्लेषण पर पाठ्यक्रमों को एकीकृत करके प्राप्त किया जा सकता है।
    • माइक्रोसॉफ्ट और ICAR के बीच साझेदारी जैसी प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ सहयोग से कृषि शिक्षा में उद्योग विशेषज्ञता लाई जा सकती है, जिससे प्रौद्योगिकी-प्रेमी कृषि पेशेवरों की अगली पीढ़ी तैयार हो सकेगी।

निष्कर्ष:

कृषि 4.0 उत्पादकता, संवहनीयता और समुत्थानशीलता को संवर्द्धित करते हुए उन्नत तकनीकों को एकीकृत करके भारतीय कृषि को परिवर्तित कर रहा है। यद्यपि, सीमित डिजिटल आधारिक संरचना, छोटी जोत और वित्तीय बाधाओं जैसी चुनौतियों का समाधान महत्त्वपूर्ण है। कार्यनीतिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी और स्थानीय समाधानों के साथ, कृषि 4.0 भारत के कृषि परिदृश्य में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है,जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है और किसानों को सशक्त बना सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत में खाद्य सुरक्षा और संवाहनीय कृषि की चुनौतियों से निपटने में कृषि 4.0 की क्षमता का परीक्षण कीजिये। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये उभरती प्रौद्योगिकियों को पारंपरिक कृषि पद्धतियों के साथ कैसे एकीकृत किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये :

  1. भारत में 'जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)' दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (CCAFS) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।
  2. CCAFS परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (CGIAR) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय फ्रांस में है।
  3. भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्द्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT), CGIAR के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)

कार्यक्रम/परियोजना                                                 मंत्रालय

  1. सूखा-प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम                                -    कृषि मंत्रालय
  2. मरुस्थल विकास कार्यक्रम                               -   पर्यावरण एवं वन मंत्रालय
  3. वर्षापूरित क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय जलसंभर विकास परियोजना -  ग्रामीण विकास मंत्रालय

उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं

उत्तर: (d)


प्रश्न: भारत में, निम्नलिखित में से किन्हें कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है? (2020)

  1. सभी फसलों के कृषि उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना
  2. प्राथमिक कृषि साख समितियों का कम्प्यूटरीकरण
  3. सामाजिक पूँजी विकास
  4. कृषकों को निशुल्क बिजली की आपूर्ति
  5. बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि ऋणों की माफी
  6. सरकारों द्वारा शीतगार सुविधाओं को स्थापित करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3, 4 और 5
(c) केवल 2, 3 और 6
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न: भारतीय कृषि की प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनज़र, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। (2016)

प्रश्न: भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकारों की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है ? (2017)

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