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भारत-विश्व

भारत और नेपाल

  • 22 May 2018
  • 17 min read

संदर्भ

पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल यात्रा पर थे। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद यह उनकी तीसरी नेपाल यात्रा थी। माहौल और परिणाम दोनों के संदर्भों में उनकी तीनों यात्राएँ प्रत्येक यात्रा से काफी अलग रही हैं। हर बार, हर अलग-अलग उद्देश्य और परिणाम का प्रमुख कारण राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है, जो एक केंद्रीकृत राजतंत्र से संघीय गणराज्य में नेपाली घरेलू राजनीति के परिवर्तन और भारत-नेपाल संबंधों की जटिल प्रकृति को दर्शाती है।

  • जैसा कि आप सभी जानते हैं कि नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली 6 से 8 अप्रैल, 2018 के दौरान नई दिल्ली के दौरे पर थे। ऐसे में इस यात्रा के महज एक महीने (11-12 मई) के भीतर प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल यात्रा न केवल बेहतर पड़ोसी संबंधों को स्पष्ट करती है, बल्कि हाल के वर्षों में दोनों देशों के संबंधों में आई खटास को कम करने की दिशा में कारगर साबित होगी।

भारत के संदर्भ में नेपाल का क्या महत्त्व है?

  • वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद “पहले पडोस की नीति” के मद्देनज़र नेपाल उनके सबसे पहले विदेशी गंतव्यों में से एक था (अगस्त 2014)। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पिछले काफी समय से (आखिरी बार वर्ष 1997 में) नेपाल के संबंध में कोई द्विपक्षीय यात्रा नहीं हुई।
  • इसका प्रमुख कारण नेपाल की राजनीतिक गतिविधियाँ थीं, क्योंकि नेपाल में 1990 से 2005 के मध्य तक माओवादी विद्रोह का दौर रहा। यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नेपाल की यात्रा की थी, लेकिन वह यात्रा द्विपक्षीय नहीं थी, वरन् सार्क देशों का शिखर सम्मेलन था।
  • यही कारण रहा कि भारत और नेपाल के मध्य शांति प्रकिया का दौर शुरू हुआ और 2008 में एक नए संविधान-मसौदा पर कार्य शुरू हुआ। 
  • इस दौरान लगभग प्रत्येक नेपाली प्रधानमंत्री ने भारत का दौरा किया, कुछ तो एक बार से अधिक भी भारत दौरे पर रहे हैं। लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा ऐसी कोई पहल नहीं की गई, भारत के इस रवैये को कुछ इस रूप में प्रस्तुत किया गया कि नेपाल नई दिल्ली की विदेश नीति प्राथमिकताओं में उच्च स्थान पर नहीं है।
  • ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल यात्रा जहाँ एक ओर दोंनों देशों के संबंधों को एक नया मोड़ देगी, वहीँ इस धारणा में भी परिवर्तन होगा कि नेपाल भारत के लिये अहम् है अथवा नहीं। यह नेपाल के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने को लेकर भारत की ‘गहरी प्रतिबद्धता’ को दर्शाता है।

प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल यात्रा

  • अपनी दूसरी नेपाल यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाली संसद को संबोधित किया था, ऐसा बहुत कम बार हुआ है कि किसी विदेशी नेता ने नेपाल की संसद को संबोधित किया हो। इस संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उन सभी पक्षों पर वार किया जो दोनों देशों के संबंधों में आई खाई को पाटने के लिये मरहम का काम करते।
  • प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल की अखंडता के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हुए, 1950 की भारत-नेपाल शांति मैत्री संधि की समीक्षा के संबंध में सहमति भी जताई। साथ ही नेपाली संविधान के निर्माण हेतु आवश्यक सहायता की पेशकश करते हुए एक बिलियन डॉलर का ऋण देने की भी घोषणा की।
  • इसके अतिरिक्त, दोनों देशों द्वारा एक संयुक्त वक्तव्य भी जारी किया गया, जिसमें तय सीमा के साथ कनेक्टिविटी परियोजनाओं [जिनमें HIT - राजमार्ग (Highways), सूचना के तरीके (Information ways) और ट्रांसमिशन तरीके (Transmission ways) शामिल हैं] को हाइलाइट किया गया। 
  • चार महीने से भी कम समय में श्री मोदी फिर से नेपाल की यात्रा पर हैं, भले ही इस बार बहाना एशियाई क्षेत्रीय सहयोग (South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) शिखर सम्मेलन का हो।
  • प्रधानमन्त्री मोदी का यह तीसरा नेपाल दौरा धार्मिक-सांस्कृतिक महत्त्व का अधिक रहा। उन्होंने जनकपुर से अयोध्या तक बस सेवा की शुरुआत और रामायण सर्किट पर्यटन योजना को लेकर ठोस पहल की| आपको बताते चले कि इस बस सेवा का उद्देश्य जनकपुर को रामायण सर्किट से जोड़ना है।

रामायण सर्किट कूटनीति

  • इस परियोजना में देश के ऐसे 15 महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों को शामिल किया गया है, जो किसी-न-किसी रूप में भगवान श्रीराम से जुड़े हुए हैं। इन धार्मिक स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाएगा।
  • रामायण सर्किट परियोजना के तहत, भारत में आने वाले स्थानों में उत्तर प्रदेश (अयोध्या, श्रृंगवेरपुर, चित्रकूट), बिहार (सीतामढ़ी, बक्सर, दरभंगा), पश्चिम बंगाल (नंदीग्राम), ओडिशा (महेंद्रगिरी), छत्तीसगढ़ (जगदलपुर), तेलंगाना (भद्राचलम), तमिलनाडु (रामेश्वरम), कर्नाटक (हंपी), महाराष्ट्र (नासिक, नागपुर), मध्य प्रदेश (चित्रकूट) को शामिल किया गया है।
  • देश की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण के लिये रामायण सर्किट भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय की एक अनूठी एवं महत्त्वपूर्ण पहल (भारत-नेपाल संबंधों के दृष्टिकोण से) है। 

राजनीतिक गतिरोध 

  • अपनी पिछली यात्रा के दौरान जब उन्होंने संविधान-प्रारूपण की दिशा में सर्वसम्मति की भावना की आवश्यकता के बारे में बात की, ताकि नेपाल का संविधान सभी नेपाली नागरिकों की आकाँक्षाओं को पूरा करने का एक साधन बन सके, तो इसकी काफी आलोचना की गई, इतना ही नहीं बल्कि इसे नेपाल के आंतरिक मामलों में भारत के हस्तक्षेप के रूप में भी वर्णित किया गया।
  • इस समस्या की जड़ नेपाल के अव्यवस्थित राजनीति ढाँचे में निहित है। परंपरागत रूप से, पहाड़ी अभिजात वर्ग (बहूँस और चेत्री) जो नेपाल की कुल आबादी का 29% हैं, नेपाल पर शासन करते आए हैं।
  • मधेसियों की आबादी तकरीबन 35% है, लेकिन परंपरागत रूप से यह हाशिये पर है। मधेसी लोग भारत की सीमा से सटे तराई वाले क्षेत्रों में रहते हैं और सीमा पार रहने वाले अपने रिश्तेदारों-जानकारों के साथ निकट संबंध (रोटी-बेटी का रिश्ता) साझा करते हैं। 

राष्ट्रवाद एवं भारतीयवाद विरोधी

  • भारत के साथ संबंध अक्सर नेपाल की घरेलू राजनीति में एक मुद्दा बनकर उभरता रहा है। इसका कारण यह है कि नेपाली राजनेता नेपाली राष्ट्रवाद के आवरण में समस्त देश की राजनीति के मुखिया बनना चाहते हैं, जो स्वाभाविक रूप से भारत-विरोधी प्रवृत्ति को जन्म देता है। 
  • राजतंत्र के दौरान भी एक निर्दयी राष्ट्रवादी के रूप में लोकतांत्रिक समर्थन वाली ताकतों को नष्ट करने का प्रयास किया गया क्योंकि नेपाली कांग्रेस पर भारत के प्रभाव का आरोपण किया गया। हालाँकि, इस संदर्भ में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन सबमें कहीं न कहीं भारत का भी योगदान रहा है।
  • 2013 के चुनाव के बाद, एनसी नेता सुशील कोइराला के साथ एनसी-यूएमएल गठबंधन उभरकर सामने आया, जिन्होंने इस बात पर सहमति प्रकट करते हुए प्रधानमंत्री पद ग्रहण किया कि जब नेपाली संविधान को अपनाया जाएगा, तो वह प्रधानमंत्री पद को यूएमएल नेता श्री ओली को सौंप देंगे।
  • सितंबर 2015 में तराई क्षेत्र के विरोध-प्रदर्शन के बावजूद संविधान को अपना लिया गया। श्री ओली द्वारा सत्ता हथियाने में की गई इस जल्दबाजी के लिये नई दिल्ली द्वारा उन्हें चेताया भी गया, परंतु इसका कोई प्रभावी असर नहीं हुआ। इसके बाद हुआ हिंसक मधेसी आंदोलन इसका सटीक उदाहरण है, जिसमें 45 लोगों की जानें गईं।
  • इस समस्त प्रकरण का असर यह हुआ कि तराई क्षेत्र में जीवन एक स्थिर स्थिति में आ गया। इस स्थिति के लिये श्री ओली ने भारत को ज़िम्मेदार ठहराया। इसका कारण यह था कि भारत द्वारा आर्थिक नाकाबंदी किये जाने पर नेपाल में पेट्रोल, डीजल, तरलीकृत पेट्रोलियम गैस और चिकित्सा आपूर्ति जैसी आवश्यक वस्तुओं की गंभीर कमी पैदा हो गई।
  • इस आरोप के जवाब में भारत ने खराब सुरक्षा माहौल को दोषी ठहराया, जिसके चलते ट्रांसपोर्टरों ने सीमा पार के संबंध में अनिच्छा प्रकट की। भारत ने श्री ओली को मधेसी चिंताओं का हल करने की सलाह दी। स्पष्ट रूप से ऐसी स्थिति में दोनों देशों के मध्य संबंधों में केवल नाकामी ही हाथ लगी।
  • आखिरकार, नेपाल ने एक संवैधानिक संशोधन को स्वीकार किया और सीमा पार माल की आवाजाही सामान्य हो सकी। लेकिन दो देशों के मध्य जिस विश्वास के आधार संबंधों की नींव रखी जाती है, वैसी बात अब इन दोनों देशों के मध्य नहीं रह गई थी। इसके अलावा, नाकाबंदी ने भारत के खिलाफ नाराजगी की लहर भी पैदा की, जिसके चलते इन संबंधों में सुधारने में सामान्य से अधिक मेहनत की आवश्यकता है।

नेपाल में चीन का बढ़ता प्रभाव

  • 2017 में, नए संविधान के तहत सात नव निर्मित प्रांतीय असेंबली और स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं और गाँव परिषद) के लिये चुनाव आयोजित किये गए। इन चुनावों के परिणामस्वरूप श्री ओली को एकबार फिर से नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप चुना गया।
  • स्पष्ट है कि नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। इन सब मुद्दों को ध्यान में रखते हुए चीन भी नेपाल के संदर्भ में काफी रुचि प्रकट कर रहा है। चीन बहुत-सी महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं के साथ इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का निरंतर प्रयास कर रहा है।
  • ऐसे में भारत को नेपाल के प्रति अपनी नीति को और अधिक दूरदर्शी बनाना होगा। जिस तरह से नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, उससे भारत को अपने पड़ोस में रणनीतिक लाभ–हानि पर विचार अवश्य कर लेना चाहिये।
  • नेपाल में चीन के बढ़ते दखल के बाद पिछले कुछ समय से भारत-नेपाल के बीच संबंधों में पहले जैसी गर्मजोशी देखने को नहीं मिल रही। चीन ने इसका पूरा-पूरा लाभ उठाते हुए नेपाल में अपनी स्थिति को और मज़बूत किया है। 
  • चीन के काम करने का तरीका कुछ अलग है। भारत की तरह चीन आर्थिक सहायता नहीं देता, बल्कि नेपाल में ऐसा बुनियादी ढाँचा तैयार करने की परियोजनाओं पर काम कर रहा है, जिन पर भारी खर्च आता है। नेपाल में चीन ने काफी काम किया है और कर भी रहा है। इस कारण नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ा है और भारत का प्रभाव थोड़ा कम हुआ है।

एक नई शुरुआत

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल को आश्वासन देते हुए स्पष्ट किया है कि वह भारत की पड़ोसी प्रथम नीति में सबसे पहले आता है। अपनी बात को बल देते हुए उन्होंने जनकपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों के विकास के लिये 100 करोड़ रुपए के अनुदान की भी घोषणा की। यह राशि नेपाल की केंद्र सरकार और दूसरे प्रांत की सरकार आपसी सामंजस्य से विभिन्न विकास परियोजनाओं पर खर्च करेंगी।
  • इसके साथ-साथ उन्होंने नेपाल और भारत में बौद्ध एवं जैन धर्म से जुड़े क्षेत्रों के संवर्द्धन के लिये दो अन्य सर्किट विकसित करने की भी घोषणा की, जिसके माध्यम से न केवल भारत बल्कि नेपाल में भी युवाओं के लिये रोज़गार के अवसरों का सृजन किया जा सकेगा।
  • प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल को जलमार्गों से जोड़ने का यथासंभव प्रयास करने का भी वायदा किया ताकि नेपाली उत्पादों को विदेशों में निर्यात किया जा सके। यदि ऐसा हो जाता है तो नेपाल को स्थानीय के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार के साथ मिलकर काम करने का अवसर प्राप्त होगा जो आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से भी लाभदायक होगा।
  • उन्होंने भारत और नेपाल के मध्य परंपरा, व्यापार, पर्यटन, प्रौद्योगिकी और परिवहन के क्षेत्रों में सहयोग करने एवं मिलकर काम करने का भी आवाह्न किया।
  • साथ ही राजमार्ग, सूचना प्रौद्योगिकी, रेलवे, ट्रांसवे या इलेक्ट्रिक कनेक्टिविटी, जलमार्ग और विमान मार्ग के माध्यम से एक-दूसरे को और अधिक विकसित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री की इस यात्रा के संबंध में यह कहना गलत नहीं होगा कि यह वास्तविक कम प्रतीकात्मक अधिक है। श्री मोदी ने इसे 'प्रधान तीर्थयात्रा' की यात्रा के रूप में वर्णित किया है। जानकी मंदिर, मुक्तिनाथ और पशुपतिनाथ में प्रार्थना सभाओं के साथ-साथ धार्मिक और सांस्कृतिक समानताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया। जनकपुर और अयोध्या के बीच एक बस सेवा का भी उद्घाटन किया गया। इसके अतिरिक्त 900 मेगावाट की अरुण-III जल विद्युत परियोजना की प्रगति के बारे में चर्चा की गई। समानता, आपसी विश्वास, सम्मान और पारस्परिक लाभ के सिद्धांतों के आधार पर की गई इस नई शुरुआत से दोनों देशों के संबंधों पर एक नया रंग चढ़ने की उम्मीद है।

प्रश्न: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की नेपाल यात्रा के परिपेक्ष्य में भारत-नेपाल संबंधों पर प्रकाश डालिये।

इस मुद्दे पर और अधिक विस्तार में पढ़ने के लिये क्लिक कीजियेः देश-देशांतर/विशेष: चीन से अधिक भारत के लिये ज़रूरी है नेपाल

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