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देश-देशांतर/विशेष: चीन से अधिक भारत के लिये ज़रूरी है नेपाल

  • 14 May 2018
  • 21 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11-12 मई को नेपाल के दो दिवसीय दौरे पर गए थे। उनकी इस यात्रा का उद्देश्य परस्पर विश्वास को और मज़बूत करना था। खडग प्रसाद (के.पी.) शर्मा ओली के नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी की यह पहली और कुल मिलाकर तीसरी नेपाल यात्रा थी।

  • इससे पहले नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने पिछले माह 6 से 8 अप्रैल तक भारत की आधिकारिक यात्रा की थी। 

नेपाल में राजनीतिक स्थायित्व होना ज़रूरी 
नेपाल में चुनाव होने के बाद पहली बार स्थायी सरकार बनी है। के.पी. शर्मा ओली के प्रधानमंत्री बनने के बाद राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद जताई जा रही है। दिसंबर 2017 में नए संविधान के तहत स्थानीय, प्रांतीय और संघीय स्तर पर हुए नेपाल के पहले चुनाव में वामपंथियों की प्रभावशाली जीत के तुरंत बाद भारत ने के.पी. शर्मा ओली की पुरानी (उनके पहले प्रधानमंत्रित्व काल में) आहत भावनाओं को शांत करने के लिये फरवरी 2018 में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को नेपाल भेजा था। प्रत्युत्तर में उन्होंने भी सकारात्मक रुख प्रदर्शित करते हुए अपनी विदेश यात्रा के पहले गंतव्य के रूप में भारत को चुनने की परंपरा का पालन किया।

  • नेपाल में यह अघोषित परंपरा रही है कि वहाँ निर्वाचित होने वाला प्रत्येक प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये भारत का रुख करता है तथा नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के बाद के.पी. शर्मा ओली की यह पहली विदेश यात्रा थी।

संविधान और सत्ता में बदलाव के बाद संबंधों के समीकरण
नए संविधान के गठन के पश्चात् 2017 नेपाल में हुए चुनाव के बाद पहली बार स्थायी सरकार बनी है। वामपंथी दलों के गठबंधन द्वारा के.पी. शर्मा ओली के नेतृत्व में सरकार बनाने के बाद वहाँ राजनीतिक स्थिरता की संभावनाएँ नज़र आने लगी हैं। इस सरकार को नेपाली संसद में दो-तिहाई बहुमत हासिल है। 

  • भारत और चीन के बीच में स्थित होने के कारण दक्षिण एशिया में भारत के लिये नेपाल एक बेहद महत्त्वपूर्ण राष्ट्र है। 
  • नेपाल के लोग अब आत्मनिर्भरता तथा देश का विकास चाहते हैं और इसके लिये उन्हें भारत से सहयोग की आशा है।
  • भू-आबद्ध (Land Locked) देश होने की वज़ह से नेपाल की समुद्र तक सीधी पहुँच नहीं है और वह इसके लिये मुख्यतः भारत पर निर्भर है। 
  • भारत ने नेपाली वस्तुओं के परिवहन के लिये कुल 20 पारगमन बिंदु उपलब्ध कराए हैं और कोलकाता, कांडला तथा मुंबई बंदरगाहों पर भी नेपाल को सुविधाएँ दी गई हैं। 
  • भारत नेपाल का सबसे बड़ा एकल व्यापारिक सहयोगी है। 

दूसरी ओर नेपाल की राजनीतिक उथल-पुथल एवं नए संविधान की रचना में आने वाली नित नई चुनौतियों का प्रभाव न केवल इसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है, बल्कि भारत-नेपाल संबंधों पर भी इसका स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। हालाँकि, इस संबंध में दोनों देशों की सरकारों द्वारा निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं तथापि बदलते क्षेत्रीय संदर्भों में यह सब न तो बहुत आसान है और न ही बहुत कठिन। संभवतः इसका कारण यह है कि हमेशा से ही भारत-नेपाल के मध्य मधुर एवं सहयोगात्मक संबंध रहे है। 

लेकिन यह भी स्पष्ट है कि पिछले कुछ वर्षों से चीन ने अपने आक्रामक निवेश के ज़रिये नेपाल में अपनी मज़बूत पैठ बना ली है। भारत नहीं चाहता कि चीन उसके पड़ोस में आकर उसे चारों तरफ से घेर ले, इसलिये भारत को नेपाल के साथ मधुर संबंध बनाए रखने की आवश्यकता है।

नेपाल के प्रधानमंत्री आए थे भारत यात्रा पर
भारत के प्रधानमंत्री की हालिया नेपाल यात्रा से पहले जब नेपाल के प्रधानमंत्री भारत आए थे, तब दोनों देशों ने बहुआयामी संबंधों के संपूर्ण दायरे की व्यापक समीक्षा की थी तथा समानता, परस्पर विश्वास, सम्मान और लाभ के आधार पर द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की प्रतिबद्धता जताई थी।

  • 12-सूत्री संयुक्त बयान के अलावा भारत के एक सीमावर्ती शहर को काठमांडू से जोड़ने की रेल परियोजना, आंतरिक जलमार्ग कनेक्टिविटी और नेपाल में खेती के विकास जैसे तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए थे। 

नेपाल भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को और अधिक मजबूत बनाने को अत्यधिक महत्त्व देता है और नेपाल सरकार भी द्विपक्षीय संबंधों इस तरह से विकसित करने की इच्छा रखती है जिससे नेपाल आर्थिक बदलाव और विकास के लिये भारत की प्रगति और समृद्धि से लाभान्वित हो सके। भारत भी नेपाल सरकार की प्राथमिकताओं के अनुसार साझेदारी को सुदृढ़ बनाने के लिये प्रतिबद्ध है।

  • दोनों देशों ने नेपाल में द्विपक्षीय परियोजनाओं को शीघ्रता से पूर्ण किये जाने की आवश्यकता और विविध क्षेत्रों में सहयोगी एजेंडे को प्रोत्साहन देने के लिये मौजूदा द्विपक्षीय कार्यप्रणालियों को पुनर्जीवित करने पर भी सहमति जताई थी।

भारत की 'सबका साथ-सबका विकास' की विचारधारा समावेशी विकास और समृद्धि की एक साझा संकल्पना हेतु पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों के लिये एक दिशा-निर्देशक संरचना की तरह काम करती है। उधर नेपाल में राजनीतिक परिवर्तन के बाद वहाँ की सरकार ने 'समृद्ध नेपाल और सुखी नेपाल' के मूलमंत्र के आधार पर आर्थिक बदलाव को प्राथमिकता दी है। 

भारत की चिंता के मुद्दे 

  • परस्पर सुरक्षा को बढ़ाना और आतंकवाद से लड़ने में सहयोग करना भारत की महत्वपूर्ण प्राथमिकता है। 
  • इसके अलावा स्मगलिंग, हथियारों की तस्करी और नकली मुद्रा के अतिरिक्त दोनों देशों की खुली सीमाओं को आतंकवादियों द्वारा रास्ते के रूप में इस्तेमाल किये जाने का मुद्दा प्रमुख है, जिसके लिये भारत चाहता है कि नेपाल प्रभावी कार्रवाई करे। 
  • नेपाल का मैदानी क्षेत्र अक्सर बाढ़ का शिकार होता रहता है जिसका प्रभाव उसके समीप के भारतीय भागों पर भी पड़ता है। स्पष्ट रूप से इस संबंध में गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि भारतीय पक्ष को इस हानि से सुरक्षित रखा जा सके। 
  • बहुत लंबे समय से नेपाल से निकलने वाली कोसी नदी पर नेपाल में बांध बनाने की बात हो रही है, परंतु इस संबंध में अभी तक बातों के अलावा और कुछ नहीं हुआ है। 
  • विदित हो कि कोसी नदी पर कोई विशेष प्रबंधन नहीं होने के कारण बिहार को प्रतिवर्ष इसके दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ता है। 
  • दोनों देशों के मध्य एक लंबे समय से सुस्ता, कालापानी एवं लिपुलेख के ट्राई-जंक्शन के संबंध में भी विवाद की स्थिति बनी हुई है और इसे सुलझाने की दिशा में कोई कार्यवाही नहीं हुई है।
  • इनके अलावा, नेपाल में भारतीय कामगारों को अधिकार देने सहित बहुत से मामले हैं जिनके विषय में दोनों देशों को शीघ्र किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इनको लेकर होने वाली किसी भी तनावपूर्ण स्थिति से बचा जा सके। 

नेपाल पर बढ़ता चीन का प्रभाव 

  • भारत को नेपाल के प्रति अपनी नीति दूरदर्शी बनानी होगी। जिस तरह से नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, उससे भारत को अपने पड़ोस में रणनीतिक लाभ–हानि पर विचार अवश्य कर लेना चाहिये। 
  • नेपाल में चीन के बढ़ते दखल के बाद पिछले कुछ समय से भारत-नेपाल के बीच संबंधों में पहले जैसी गर्मजोशी देखने को नहीं मिल रही। चीन ने इसका पूरा-पूरा लाभ उठाते हुए नेपाल में अपनी स्थिति को और मज़बूत किया है। 
  • चीन के काम करने का तरीका कुछ अलग है। भारत की तरह चीन आर्थिक सहायता नहीं देता, बल्कि नेपाल में ऐसा बुनियादी ढाँचा तैयार करने की परियोजनाओं पर काम कर रहा है, जिन पर भारी खर्च आता है।
  • नेपाल में चीन ने काफी काम किया है और कर भी रहा है। इस कारण नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ा है और भारत का प्रभाव थोड़ा कम हुआ है। 

विदित हो कि 2015 में जब नेपाल की तराई में बसे मधेसी समुदायों ने अपनी कुछ मांगों को न सुने जाने के कारण भारत–नेपाल सीमा पर कई दिनों तक आवाजाही को अवरुद्ध कर दिया था, तब नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके के.पी. शर्मा ओली ने भारत पर नेपाल की सीमा के कुछ महत्त्वपूर्ण रास्तों की नाकाबंदी करने का आरोप लगाते हुए इसे आर्थिक नाकेबंदी कहा था। इसके बाद ही नेपाल और चीन के संबंधों का और विस्तार हुआ था।

भारत-नेपाल संधि में संशोधन का मुद्दा 

  • भारत और नेपाल के मैत्रीपूर्ण संबंध दोनों देशों के साझा ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंधों और जनता के करीबी संबंधों की मज़बूत नींव पर आधारित हैं।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया तथा इससे पहले हुई दोनों देशों के नेताओं की उच्चस्तरीय यात्राओं में 68 साल पुरानी 1950 की भारत-नेपाल शांति-मैत्री संधि की समीक्षा पर सहमति जताई जा चुकी है। 
  • नेपाल के आग्रह पर भारत अन्य इस संधि की समीक्षा, समायोजन व उसे अद्यतन करने पर सहमत हुआ है। 
  • संधि की समीक्षा की मांग हर बार नेपाल की ओर से उठाई जाती है, जिसे इसके तहत कई लाभ प्राप्त होते हैं। 
  • भारत में नेपाल के 60 लाख नागरिक हैं और भारत इस संधि के ऐसे किसी भी पहलू की समीक्षा करने को तैयार है जो नेपाल में चिंता उत्पन्न करता हो।
  • भारत और नेपाल में इस बात पर सहमति है कि मैत्री संधि में वर्तमान वास्तविकताएँ भलीभाँति परिलक्षित होनी चाहिये।
  • मैत्री संधि के वर्तमान प्रावधानों के तहत नेपाल के नागरिकों को भारत में ऐसी सुविधाएँ प्राप्त हैं जो किसी अन्य देश के नागरिक को नहीं मिलती।
  • नेपाली नागरिक भारत में भारतीय नागरिकों के सामान सुविधाएँ और अवसर पाते हैं। 
  • नेपाल भू-आबद्ध (चारों तरफ से दूसरे देशों से घिरा हुआ) देश है, लेकिन इस संधि के चलते उसे अपनी भौगोलिक स्थिति से कोई असुविधा नहीं होती।

1950 की शांति एवं मित्रता संधि भारत-नेपाल संबंधों का मूल सिद्धांत है। इसी वर्ष जनवरी में भारत-नेपाल के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समूह की नई दिल्ली में हुई छठी बैठक में दोनों देशों के बीच 1950 की शांति-मैत्री संधि में परिवर्तन करने पर सहमति हुई थी। 1950 की इस संधि में परिवर्तन करने के लिये इस समूह ने आठ सदस्यों का कार्यबल बनाया है, जो इस बात की जाँच करेगा कि संधि में परिवर्तन किया जाए या इसमें संशोधन किया जाए।

(टीम दृष्टि इनपुट)

खुली सीमा 

  • भारत-नेपाल की खुली सीमा दोनों देशों के संबंधों की विशिष्टता है, जिससे दोनों देशों के लोगों को आवागमन में सुगमता रहती है।
  • दोनों देशों के बीच 1850 किलोमीटर से अधिक लंबी साझा सीमा है, जिससे भारत के पाँच राज्य--सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड जुड़े हैं।
  • भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं है। लगभग 98% प्रतिशत सीमा की पहचान व उसके नक्शे पर सहमति बन चुकी है। 
  • दोनों पक्ष सीमा संबंधी सभी मुद्दों के समाधान की इच्छा जता चुके हैं।

भारत-नेपाल संयुक्त आयोग

  • भारत-नेपाल संयुक्त आयोग विदेश मंत्री स्तरीय शीर्ष द्विपक्षीय निकाय है, जिसका उद्देश्य राजनीति, सुरक्षा, व्यापार व निवेश सहयोग, जल संसाधन एवं बिजली, संपर्क, विकास सहायता तथा शिक्षा व संस्कृति जैसे क्षेत्रों में भारत-नेपाल के संबंधों की समीक्षा करना है।
  • संयुक्त आयोग की पिछली बैठक में भारत और नेपाल के बीच उच्चस्तरीय आदान-प्रदान के बाद लिये गए निर्णयों के कार्यान्वयन का सकारात्मक मूल्यांकन तथा उच्चतम राजनीतिक तंत्रों और महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय तंत्रों की नियमित बैठकों में हुई गहन बातचीत पर मंथन किया गया था।
  • संयुक्त आयोग सभी क्षेत्रों में राजनीतिक आदान-प्रदान और द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा करने का अवसर प्रदान करता है तथा परंपरागत रूप से घनिष्ठ संबंधों को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक राजनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।
  • संयुक्त आयोग की पिछली बैठक में दोनों देशों के बीच हुई महत्त्वपूर्ण प्रगति पर चर्चा की गई, जो व्यापार, पारगमन, आर्थिक, आपसी निवेश, रक्षा और सुरक्षा, सीमा प्रबंधन, बिजली, जल संसाधन, कृषि, सीमा पार से परिवहन सुविधा, शिक्षा, सांस्कृतिक युवाओं के आदान-प्रदान, पर्यटन, रेलवे, बुनियादी ढाँचे के विकास, क्षमता निर्माण एवं मानव संसाधन विकास तथा लोगों और दूसरों के बीच संपर्क जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय पहलों से जुड़े हुए थे। 
  • संयुक्त आयोग नेपाल को दी गई क्रेडिट लाइन के तहत शामिल परियोजनाओं में प्रगति की समीक्षा भी करता है। इसकी पिछली बैठक में दोनों देश तराई में सड़कें, सीमा पार रेल लिंक, एकीकृत जाँच चौकियों का विकास, सीमा पार से संचरण लाइन परियोजनाएँ, जलविद्युत परियोजना, सीमापार से तेल पाइपलाइन और इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने जैसे सभी विकास और अवसंरचना परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी करने के लिये सहमत हुए थे।

(टीम दृष्टि इनपुट)

रामायण सर्किट कूटनीति
नरेंद्र मोदी का नेपाल दौरा धार्मिक-सांस्कृतिक महत्त्व का अधिक रहा तथा उन्होंने जनकपुर से अयोध्या तक बस सेवा की शुरुआत और रामायण सर्किट पर्यटन योजना को लेकर ठोस पहल की| इस बस सेवा का उद्देश्य जनकपुर को रामायण सर्किट से जोड़ना है।  

  • इस परियोजना में देश के ऐसे 15 महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों को शामिल किया गया है, जो किसी-न-किसी रूप में भगवान श्रीराम से जुड़े हैं तथा इन्हें पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाना है।
  • रामायण सर्किट परियोजना के तहत भारत में आने वाले स्थानों में उत्तर प्रदेश (अयोध्या, श्रृंगवेरपुर, चित्रकूट), बिहार (सीतामढ़ी, बक्सर, दरभंगा), पश्चिम बंगाल (नंदीग्राम), ओडिशा (महेंद्रगिरी), छत्तीसगढ़ (जगदलपुर), तेलांगना (भद्राचलम), तमिलनाडु (रामेश्वरम), कर्नाटक (हंपी), महाराष्ट्र (नासिक, नागपुर), मध्य प्रदेश (चित्रकूट) शामिल हैं।
  • उल्लेखनीय है कि देश की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण के लिये रामायण सर्किट भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय की एक पहल है। 

निष्कर्ष: नेपाल के इस दौरे को अपनी सरकार की नेबरहुड फर्स्ट नीति का हिस्सा बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि नेपाल एक नए युग में प्रवेश कर चुका है और भारत हमेशा उसका साथ देगा। सामाजिक संबंधों के अलावा नेपाल के साथ अपनी आर्थिक और विकास संबंधी साझेदारी को भारत पर्याप्त महत्त्व देता है। नेपाल की प्राथमिकताओं को देखते हुए भारत उसके साथ अपने सहयोग को व्यापक बनाने की दिशा में लगातार प्रयासरत रहता है। दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर कोई असहमति नहीं है कि नागरिकों के बीच परस्पर संबंध आर्थिक प्रगति के लिये बेहद ज़रूरी हैं, क्योंकि दोनों देशों के एक-दूसरे के यहाँ अपने-अपने हित हैं। विश्व के अन्य देशों के बीच वैसा मित्रता एवं सहयोग का संबंध नहीं है, जैसा भारत एवं नेपाल के बीच है। दोनों देश न केवल भौगोलिक दृष्टि से जुड़े हैं, बल्कि इतिहास, संस्कृति, सभ्यता और निकटजनों एवं पारिवारिक संबंधों से भी जुड़े हैं। दोनों देशों के बीच सर्वोच्च राजनीतिक स्तर पर नियमित यात्राएँ इस बात को दर्शाती हैं कि इस विशेष साझेदारी को दोनों देश उच्च प्राथमिकता देते हैं। नेपाल की स्थिरता और आर्थिक समृद्धि में भारत का हित है और भारत का यह प्रयास रहता है कि सद्भाव, परस्पर विश्वास एवं लाभ के आधार पर संबंधों को उत्तरोत्तर मज़बूती प्रदान की जाए। 

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