शासन व्यवस्था
विश्व एनजीओ दिवस
- 28 Feb 2022
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:विश्व एनजीओ दिवस, गैर-सरकारी संगठन। मेन्स के लिये:भारतीय लोकतंत्र में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका, एनजीओ से संबंधित मुद्दे, एनजीओ के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ और आगे की राह। |
चर्चा में क्यों?
प्रतिवर्ष 27 फरवरी को पूरी दुनिया में ‘विश्व एनजीओ दिवस’ का आयोजन किया जाता है।
- भारत में 30 लाख से अधिक गैर-सरकारी संगठन (NGOs) मौजूद हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हैं और सामाजिक परिवर्तन लाने में सूत्रधार, उत्प्रेरक या भागीदार की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
विश्व एनजीओ दिवस का इतिहास:
- 17 अप्रैल 2010 को ‘IX बाल्टिक-सी एनजीओ फोरम’ के 12 सदस्य देशों द्वारा औपचारिक रूप से मान्यता दिये जाने के बाद ‘विश्व एनजीओ दिवस’ ने अपना आधिकारिक दर्जा ग्रहण किया।
- वर्ष 2012 में फोरम के अंतिम वक्तव्य संकल्प के माध्यम से इस दिवस को अपनाया।
- हालाँकि इस दिन को आधिकारिक तौर पर वर्ष 2010 में मान्यता दी गई थी, लेकिन वर्ष 2014 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘विश्व एनजीओ दिवस’ मनाया गया था।
- इस दिवस के आयोजन का प्रमुख श्रेय ब्रिटेन के एक सामाजिक उद्यमी ‘मार्सिस लायर्स स्काडमैनिस’ को दिया जाता है, जिन्होंने वर्ष 2014 में ‘विश्व एनजीओ दिवस’ का उद्घाटन किया था।
- दुनिया भर में गैर-सरकारी संगठनों के बेहतरीन योगदान के विषय में जागरूकता फैलाने और सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों में सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के अथक प्रयासों का सम्मान करने हेतु इस दिवस की कल्पना की गई थी।
भारतीय लोकतंत्र में ‘गैर-सरकारी संगठनों’ की भूमिका:
- अंतराल को कम करना:
- गैर-सरकारी संगठन सरकार के कार्यक्रमों में कमियों को दूर करने का प्रयास करते हैं और राज्य की परियोजनाओं से प्रायः अछूते रह गए लोगों के वर्गों तक पहुँचते हैं। उदाहरण के लिये प्रवासी कामगारों को कोविड-19 संकट में सहायता प्रदान करना।
- वर्तमान परिदृश्य में, जब भारत अभी भी कोविड-19 का मुकाबला कर रहा है, गैर-लाभकारी संगठन ज़मीनी स्तर पर बेहतर काम कर रहे हैं और संवेदनशील वर्गों को राहत प्रदान करने हेतु सरकार के प्रयासों को पूरा करने के लिये अथक प्रयास कर रहे हैं, साथ ही वे सबसे कमज़ोर समुदायों के लिये टीकाकरण अभियान में भी सक्रिय रूप से संलग्न हैं।
- ये गैर-सरकारी संगठन गतिविधियों में तेज़ी लाने पर भी ध्यान देते हैं जैसे-
- गरीबी उपशमन, जल, पर्यावरण, महिला अधिकार और साक्षरता से संबंधित मुद्दे।
- वे स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आजीविका आदि लगभग सभी क्षेत्र हेतु कार्य करते हैं।
- अधिकार संबंधी भूमिका:
- समाज में कोई भी बदलाव लाने के लिये सामुदायिक-स्तर के संगठन और स्वयं सहायता समूह महत्त्वपूर्ण हैं।
- अतीत में ऐसे ज़मीनी स्तर के संगठनों को बड़ी NGO और अनुसंधान एजेंसियों के साथ सहयोग से सक्षम किया गया है जिनकी विदेशी फंडिंग तक पहुँच है।
- दबाव समूह के रूप में कार्य करना:
- ऐसे राजनीतिक गैर-सरकारी संगठन भी हैं जो सरकार की नीतियों और कार्यों के लिये जनता की राय जुटाते हैं।
- इस तरह के NGO जनता को शिक्षित करने और सार्वजनिक नीति पर दबाव बनाने में सक्षम हैं, वे लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण दबाव समूहों के रूप में कार्य करते हैं।
- सहभागी शासन में भूमिका:
- नागरिक समाज की कई पहलों ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 सहित देश में कुछ पथप्रदर्शक कानूनों जैसे- शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009, वन अधिकार अधिनियम-2006 और सूचना का अधिकार अधिनियम-2005, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), किशोर न्याय, एकीकृत बाल संरक्षण योजना (आईसीपीएस) आदि में योगदान दिया है।
- स्वच्छ भारत अभियान और सर्व शिक्षा अभियान जैसे प्रमुख अभियानों को सफलतापूर्वक लागू करने के लिये गैर-सरकारी संगठनों ने भी सरकार के साथ भागीदारी की है।
- सामाजिक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना:
- सामाजिक अंतर-मध्यस्थता के रूप में समाज में परिवर्तन के वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिये प्रचलित सामाजिक परिवेश के भीतर सामाजिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण को बदलने के आवश्यकता है।
- भारतीय संदर्भ में जहाँ लोग अभी भी अंधविश्वास, आस्था, विश्वास और रीति-रिवाज में फँसे हुए हैं, वहाँ NGO उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं और लोगों में जागरूकता पैदा करते हैं।
- सामाजिक अंतर-मध्यस्थता के रूप में समाज में परिवर्तन के वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिये प्रचलित सामाजिक परिवेश के भीतर सामाजिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण को बदलने के आवश्यकता है।
NGO के समक्ष चुनौतियाँ:
- विश्वसनीयता में कमी:
- पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई संगठनों ने मुहिम शुरू की है जो गरीबों की मदद करने के लिये काम करने का दावा करते हैं।
- एक गैर-सरकारी संगठन होने की आड़ में ये NGO अक्सर दानदाताओं से पैसे लेते हैं और मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों में भी शामिल होते हैं।
- पारदर्शिता की कमी:
- भारत में गैर-सरकारी संगठनों की अनुपातहीन संख्या और इस क्षेत्र में पारदर्शिता एवं जवाबदेही की कमी स्पष्ट रूप से एक ऐसा मुद्दा है जिसमें सुधार की आवश्यकता है।
- इसके अलावा गैर-सरकारी संगठनों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को नज़रअंदाज किया जाता है। पूर्व में कई गैर-सरकारी संगठनों को धन की हेराफेरी में लिप्त पाए जाने के बाद काली सूची में डाल दिया गया था।
- भारत में गैर-सरकारी संगठनों की अनुपातहीन संख्या और इस क्षेत्र में पारदर्शिता एवं जवाबदेही की कमी स्पष्ट रूप से एक ऐसा मुद्दा है जिसमें सुधार की आवश्यकता है।
- धन की कमी:
- कई गैर सरकारी संगठनों को अपने काम के लिये पर्याप्त और सतत् रूप से धन जुटाना मुश्किल लगता है। उपयुक्त दाताओं तक पहुँच प्राप्त करना इस चुनौती का एक प्रमुख घटक है।
- इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए), 2010 के पंजीकरण को रद्द कर दिया था।
- एफसीआरए लाइसेंस के निलंबन का मतलब है कि एनजीओ अब धनदाताओं से वर्तमान में तब तक विदेशी धन प्राप्त नहीं कर सकते हैं, जब तक कि गृह मंत्रालय द्वारा जाँच नहीं की जाती है। विदेशी धन प्राप्त करने हेतु संघों और गैर सरकारी संगठनों के लिये एफसीआरए अनिवार्य है।
- सामरिक योजना का अभाव:
- कई गैर-सरकारी संगठन एक समेकित, रणनीतिक योजना की कमी से ग्रस्त हैं जो कि उनकी गतिविधियों और मिशन को सफलता प्रदान करती है, इसके अभाव में वे वित्तीय सहायता को प्रभावी ढंग से जुटाने और पूंजीकरण करने में असमर्थ हो जाते हैं।
- खराब शासन और नेटवर्किंग:
- कई गैर-सरकारी संगठनों में इस समझ की कमी है कि उनके पास एक बोर्ड क्यों होना चाहिये और इसे कैसे स्थापित किया जाए।
- खराब या अव्यवस्थित नेटवर्किंग एक और बड़ी चुनौती है क्योंकि यह पुनः किये गए प्रयासों, समय का अभाव, परस्पर विरोधी रणनीतियों और अनुभव से सीखने में असमर्थता का कारण बन सकता है।
- कई NGOs मौजूदा तकनीकों का अधिकतम उपयोग नहीं करते हैं जो बेहतर संचार और नेटवर्किंग की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
- सीमित क्षमता:
- NGOs में अक्सर अपने मिशन को लागू करने और पूरा करने हेतु तकनीकी एवं संगठनात्मक क्षमता की कमी होती है, जबकि कुछ ही NGOs क्षमता निर्माण हेतु प्रशिक्षण में निवेश करने के इच्छुक या सक्षम होते हैं।
- क्षमता निर्माण में कमी धन उगाहने की क्षमता, शासन, नेतृत्व और तकनीकी क्षेत्रों को प्रभावित करती है।
- विकास हेतु दृष्टिकोण:
- कई NGOs स्थानीय स्तर पर लोगों और संस्थानों को सशक्त बनाने के बजाय बुनियादी ढांँचे के निर्माण व सेवाएंँ प्रदान करने के माध्यम से विकास हेतु ‘हार्डवेयर दृष्टिकोण’ (Hardware Approach) का समर्थन करते हैं।
आगे की राह
- भारत वर्ष 2030 तक SDGs के लिये प्रतिबद्ध है तथा इसके लिये सतत् विकास के साथ विकास को आगे बनाए रखने हेतु एक दीर्घकालिक रणनीति महत्त्वपूर्ण है।
- हालांँकि यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि दीर्घकालिक रणनीति की सफलता न केवल लघु या मध्यम अवधि की विकास रणनीतियों को लागू करने से सीखे गए अनुभवों पर निर्भर करती है बल्कि विभिन्न क्षेत्रों और सरकार के सहयोग और समन्वय पर भी निर्भर करती है।
- क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण नए कौशल प्रदान करने में मदद कर सकता है। NGOs तब कर्मचारियों को अधिक आसानी से प्रशिक्षित कर सकते हैं और आगे आने वाली चुनौतियों का सामना करने हेतु संगठन के भीतर आवश्यक कौशल विकसित कर सकते हैं।
- भ्रष्ट NGOs को विनियमित करना आवश्यक है, हालांँकि विदेशी योगदान पर अत्यधिक विनियमन जो ज़मीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू करने में सहायक होते हैं NGOs के कामकाज को प्रभावित कर सकते हैं।