वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट्स 2023 | 30 Jan 2023
प्रिलिम्स के लिये:GDP, SDG, यूक्रेन में युद्ध, कोविड, महँगाई। मेन्स के लिये:वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट्स। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने एक नई रिपोर्ट वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट्स 2023 जारी की है, जिसमें कहा गया है कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के वर्ष 2022 में 3% से गिरकर वर्ष 2023 में 1.9% होने की संभावना है।
- कोविड-19 महामारी, यूक्रेन में युद्ध और इसके परिणामस्वरूप खाद्य एवं ऊर्जा संकट, बढ़ती मुद्रास्फीति, ऋण सख्ती, साथ ही जलवायु आपातकाल जैसे गंभीर तथा पारस्परिक रूप से सशक्त संघर्ष।
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- मुद्रास्फीति: 2022 में दुनिया की औसत मुद्रास्फीति दर 9% थी, जिसके कारण कई विकसित और विकासशील देशों में बजट से संबंधित बाधाएँ उत्पन्न हुईं।
- मंदी: मौजूदा मंदी ने कोविड-19 संकट से निपटने हेतु आर्थिक सुधार की गति को धीमा कर दिया है, जिससे वर्ष 2023 में मंदी की संभावनाओं के साथ कई देशों को खतरा है।
- अधिकांश विकासशील देशों ने वर्ष 2022 में रोज़गार में धीमी प्रगति देखी है।
- महामारी के प्रारंभिक चरण के दौरान महिलाओं के रोज़गार में अनुपातहीन नुकसान की स्थिति अभी तक पूरी तरह से सामान्य नहीं हुई है।
- वैश्विक उत्पादन में मामूली वृद्धि: युद्ध की स्थिति में बदलाव और आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान के कारण वैश्विक उत्पादन वृद्धि वर्ष 2024 में 2.7% तक हो सकती है।
- चीन की आर्थिक वृद्धि में वर्ष 2023 में 4.8% और 2024 में 4.5% बढ़ोत्तरी का अनुमान है।
- अमेरिका द्वारा इस वर्ष 0.4% और वर्ष 2024 में 1.7% की आर्थिक वृद्धि दर्ज किये जाने का अनुमान है।
- रूसी निर्यात: वर्ष 2022 में रूस के निर्यात में वृद्धि हुई क्योंकि चीन, भारत और तुर्किये के साथ व्यापार में वृद्धि हुई।
- दक्षिण एशियाई परिदृश्य: दक्षिण एशिया में उच्च खाद्य और ऊर्जा की कीमतों, मौद्रिक संकट तथा राजकोषीय कमी के कारण आर्थिक परिदृश्य अस्थिर है।
- औसत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि जो वर्ष 2022 में 5.6% रही वर्ष 2023 में 4.8% रहने का अनुमान है।
- वर्ष 2022 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) से वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले देशों अर्थात् बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी अर्थव्यवस्थाओं के लिये संभावनाएँ चुनौतीपूर्ण हैं।
भारतीय परिदृश्य:
- विकास दर: भारत में विकास दर 5.8% रहने की उम्मीद है, हालाँकि यह वर्ष 2022 में अनुमानित 6.4% से थोड़ा कम है, क्योंकि उच्च ब्याज दर और वैश्विक मंदी निवेश तथा निर्यात पर दबाव डालती है।
- भारत में खाद्य और ऊर्जा संबंधी सब्सिडी ने आर्थिक संकट को दूर रखा।
- वर्ष 2024 में भारत 6.7% की दर से विकास करेगा, जो विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है।
- मुद्रास्फीति: वर्ष 2022 के लिये वार्षिक मुद्रास्फीति दर 7.1% रही। वर्ष 2023 में भारत की मुद्रास्फीति दर घटकर 5.5% होने की उम्मीद है क्योंकि वैश्विक उत्पादों की कीमतें मध्यम रहने और मुद्रा मूल्यह्रास की गति धीमी रहने से आयातित मुद्रास्फीति कम हो जाती है।
- बेरोज़गारी: वर्ष 2022 में बेरोज़गारी दर शहरी और ग्रामीण रोज़गार में वृद्धि के कारण महामारी पूर्व स्तर तक गिर गई, जो कि एक मज़बूत घरेलू मांग का संकेत है।
- हालाँकि युवा रोज़गार महामारी पूर्व के स्तर से नीचे रहा, विशेषकर युवा महिलाओं के मामले में।
सुझाव:
- मैक्रोइकोनॉमिक नीतियों का अंशांकन (Calibration): उत्पादन और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के बीच संतुलन बनाने के लिये मैक्रोइकोनॉमिक नीतियाँ पूर्ण रूप से सही होनी चाहिये।
- इसके लिये प्रमुख केंद्रीय बैंकों के बीच अधिक प्रभावी समन्वय की आवश्यकता होगी, जो मुद्रास्फीति संबंधी अपेक्षाओं को प्रबंधित और नियंत्रित करने के लिये सुस्पष्ट नीतियों द्वारा समर्थित हो।
- इन्फ्लेशन एक्स्पेक्टेशन की डी-एंकरिंग: मौजूदा ढाँचे में सुधार काफी लाभदायक हो सकता है, केंद्रीय बैंकों को भी विश्वसनीयता के नुकसान से बचने और इन्फ्लेशन एक्स्पेक्टेशन की डी-एंकरिंग के लिये एक सुविचारित एवं व्यापक प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता होगी।
- सार्वजनिक व्यय को पुनः प्राथमिकता देना: सरकारों को प्रत्यक्ष नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से कमज़ोर समूहों की सहायता के लिये सार्वजनिक व्यय को पुनः आवंटित करने और प्राथमिकता देने की आवश्यकता होगी।
- इसके लिये सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मज़बूत करने और लक्षित एवं अस्थायी सब्सिडी, नकद हस्तांतरण तथा उपयोगिता बिलों पर छूट के माध्यम से निरंतर समर्थन सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी।
- SDG वित्तपोषण को बढ़ाना: आपातकालीन वित्तीय सहायता तक पहुँच बढ़ाने और SDG वित्तपोषण को बढ़ाने के लिये मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की तत्काल आवश्यकता है:
- लक्षित और अस्थायी सब्सिडी, नकद हस्तांतरण और उपयोगिता बिल छूट के माध्यम से निरंतर सहायता प्रदान करके सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मज़बूत करना, जिसे उपभोक्ता करों या सीमा शुल्क में कटौती कर पूरा किया जा सकता है।