जैव विविधता और पर्यावरण
विश्व डुगोंग दिवस
- 28 May 2020
- 6 min read
प्रीलिम्स के लिये:डुगोंग या समुद्री गाय मेन्स के लिये:वन्य जीव संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
प्रतिवर्ष 28 मई को 'विश्व डुगोंग दिवस' मनाया जाता है। डुगोंग; जिसे समुद्री गाय के रूप में जाना जाता है, को भारतीय जल क्षेत्र में संरक्षण प्रयासों की कमी के कारण संकट का सामना करना पड़ रहा है।
प्रमुख बिंदु:
- डुगोंग को वर्तमान में समुद्री कछुए (Sea Turtles), समुद्री घोड़े (Sea Horse), समुद्री खीरे (Cucumbers) के समान संकट का सामना करना पड रहा है।
- डुगोंग को भारत में ‘वन्य (जीवन) संरक्षण अधिनियम’ (Wild Life Protection Act)- 1972 की अनुसूची (I) के तहत संरक्षित किया गया है।
डुगोंग का भारत में वितरण:
- वर्ष 2013 में 'भारतीय प्राणी सर्वेक्षण' (Zoological Survey of India- ZSI) द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय तटीय क्षेत्र में केवल 250 डुगोंग बचे थे।
- भारत में ये केवल मन्नार की खाड़ी, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह तथा कच्छ की खाड़ी क्षेत्र में पाए जाते हैं।
- डुगोंग एकमात्र शाकाहारी स्तनधारी है जो अपने जीवन के लिये पूरी तरह समुद्र पर निर्भर रहता है। यह कुल 37 देशों; जिनमें उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय तटीय और द्वीपीय देश शामिल हैं, में पाया जाता है।
- डुगोंग, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। यदि डुगोंग की संख्या में कमी होती है तो संपूर्ण खाद्य श्रृंखलाएँ इससे प्रभावित होंगी।
डुगोंग के समक्ष चुनौतियाँ:
- डुगोंग स्तनधारी समुद्री प्रजाति है। मादा डुगोंग एक शिशु को 12-14 महीने के गर्भ धारण के बाद जन्म देती है तथा प्रत्येक शिशु के मध्य 3-7 वर्षों का न्यूनतम अंतराल होता है। अर्थात् इसकी संख्या में बहुत धीमी गति से वृद्धि होती है।
- डुगोंग अपने भोजन के लिये मुख्यत: समुद्री घास पर पर निर्भर रहता है तथा एक दिन में 40 किलोग्राम तक समुद्री घास खा लेता है। समुद्री वाहनों के कारण समुद्री घास में लगातार कमी हो रही है, जो डुगोंग की घटती संख्या के पीछे सबसे प्रमुख कारण है।
- तमिलनाडु, गुजरात और अंडमान में मछुआरों द्वारा डुगोंग का मांस 1,000 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जाता था तथा लोगों का मानना था कि इस मांस का सेवन करने से शरीर का तापमान संतुलित रहता है।
- वर्तमान में निम्नलिखित मानव गतिविधियों के कारण डुगोंग को संकट का सामना करना पड रहा है:
- आवास का विनाश;
- व्यापक जल प्रदूषण;
- बड़े पैमाने पर मत्स्यन गतिविधियाँ;
- जहाज़ों की आवाजाही;
- अवैध शिकार में लगातार वृद्धि का होना;
- अनियोजित पर्यटन।
संरक्षण के प्रयास:
- 'भारतीय वन्यजीव संस्थान' (Wildlife Institute of India- WII) के जागरूकता अभियान के बाद से डुगोंग के शिकार में कमी देखी गई है।
- WII द्वारा तमिलनाडु, गुजरात और अंडमान के समुद्र तटीय गाँवों में स्थानीय मछुआरों के बीच डुगोंग संरक्षण के लिये जागरूकता शिविरों का आयोजन किया जाता है।
- 15-22 फरवरी, 2020 तक गुजरात की राजधानी गांधीनगर में ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण’ (Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS) की शीर्ष निर्णय निर्मात्री निकाय ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़’ (Conference of the Parties- COP) के 13वें सत्र का आयोजन किया गया।
- भारत सरकार वर्ष 1983 से CMS का हस्ताक्षरकर्त्ता देश है। भारत ने साइबेरियन क्रेन (वर्ष 1998), मरीन टर्टल ( वर्ष 2007), डुगोंग (वर्ष 2008) और रैप्टर (वर्ष 2016) के संरक्षण और प्रबंधन पर CMS के साथ गैर- बाध्यकारी कानूनी समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये हैं।
आगे की राह:
- ऑस्ट्रेलिया में उचित संरक्षण के कारण डुगोंग की संख्या 85,000 से अधिक हो गई है। अत: केवल उचित संरक्षण उपायों के माध्यम से ही डुगोंग को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।