कृषि
विश्व मधुमक्खी दिवस
- 23 May 2023
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:विश्व मधुमक्खी दिवस, संयुक्त राष्ट्र महासभा, राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड, पश्चिमी घाट, भारतीय काली मधुमक्खी, मीठी क्रांति मेन्स के लिये:मधुमक्खियों का महत्त्व, मधुमक्खियों से संबंधित खतरे और चुनौतियाँ, भारत में मधुमक्खी पालन की स्थिति, मीठी क्रांति |
चर्चा में क्यों?
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (MoA&FW) ने 20 मई, 2023 को मध्य प्रदेश के बालाघाट में विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (National Beekeeping & Honey Mission- NBHM) के माध्यम से देश भर में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देना एवं लोकप्रिय बनाना है।
- वर्ष 2023 की थीम “परागण-अनुकूल कृषि उत्पादन में शामिल मधुमक्खी (Bee engaged in pollinator-friendly agricultural production)” है।
विश्व मधुमक्खी दिवस और इसका महत्त्व:
- परिचय:
- विश्व मधुमक्खी दिवस एक वार्षिक कार्यक्रम है जो 20 मई को पर्यावरण, खाद्य सुरक्षा और जैवविविधता हेतु मधुमक्खियों एवं अन्य परागणकों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये मनाया जाता है।
- स्लोवेनिया के आधुनिक मधुमक्खी पालन के अग्रदूत एंटोन जानसा के जन्मदिन के उपलक्ष्य में इस तारीख को चुना गया था।
- स्लोवेनिया के एक प्रस्ताव और 115 देशों के समर्थन के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2017 में विश्व मधुमक्खी दिवस घोषित किया।
नोट: पोलिनेटर/परागणक ऐसे एजेंट होते हैं जो परागण की प्रक्रिया में सहायता करते हैं। परागण एक फूल के नर प्रजनन अंगों (एन्थर्स) से उसी या एक अलग फूल के मादा प्रजनन अंगों (स्टिग्मा) में पराग कणों का स्थानांतरण है, जिससे निषेचन एवं बीजों का उत्पादन होता है।
मधुमक्खियों की प्रासंगिकता:
- परागण में सहायक:
- मधुमक्खियाँ कई पौधों और जंतुओं के अस्तित्त्व के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये विश्व की लगभग एक-तिहाई फसलों और 90% वन्य पुष्पीय पौधों को परागित करती हैं।
- ये शहद, मोम, प्रोपोलिस और अन्य मूल्यवान उत्पादों का भी उत्पादन करती हैं जिनके पोषणीय, औषधीय और आर्थिक लाभ हैं।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक:
- मधुमक्खियाँ पौधों को तेज़ी से एवं स्वस्थ रूप से बढ़ने में मदद करती हैं, जिससे उनके कार्बन ग्रहण और भंडारण क्षमता में वृद्धि होती है। मधुमक्खियाँ रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों की आवश्यकता को भी कम करती हैं, जो कि वातावरण में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करते हैं।
- ये पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य की संकेतक भी हैं, क्योंकि ये पर्यावरणीय परिवर्तनों, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, आवास हानि तथा कीटनाशकों के प्रति प्रतिक्रिया देती हैं।
- मधुमक्खियाँ पौधों को तेज़ी से एवं स्वस्थ रूप से बढ़ने में मदद करती हैं, जिससे उनके कार्बन ग्रहण और भंडारण क्षमता में वृद्धि होती है। मधुमक्खियाँ रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों की आवश्यकता को भी कम करती हैं, जो कि वातावरण में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करते हैं।
- फसल उत्पादकता की वृद्धि में सहायक:
- ये विभिन्न फसलों जैसे फलों, सब्जियों, तिलहन, दालों आदि में परागण के द्वारा इनकी उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक होती हैं।
- यह अनुमान लगाया गया है कि मधुमक्खी परागण से फसल की पैदावार औसतन 20-30% तक बढ़ सकती है।
- रोज़गार के अवसरों को सृजित करने में सहायक:
- यह शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पाद जैसे मोम, प्रोपोलिस आदि का उत्पादन करके ग्रामीण परिवारों के लिये आय और रोज़गार के अवसर सृजित करने में सहायक है।
- शहद एक उच्च मूल्य वाला उत्पाद है जिसकी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में अत्यधिक मांग है। यह उपभोक्ताओं के लिये पोषण तथा स्वास्थ्य का स्रोत भी है।
- यह महिलाओं और युवाओं को मधुमक्खी पालन गतिविधियों में उद्यमियों या स्वयं सहायता समूहों के रूप में शामिल करके उनके सशक्तीकरण में भी मदद कर सकता है।
- यह शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पाद जैसे मोम, प्रोपोलिस आदि का उत्पादन करके ग्रामीण परिवारों के लिये आय और रोज़गार के अवसर सृजित करने में सहायक है।
- खतरे और चुनौतियाँ:
- शहरीकरण, कृषि और वनों की कटाई के कारण प्राकृतिक आवासों का नुकसान और विखंडन।
- सघन और मोनोकल्चर खेती के तरीके जो फूलों की विविधता को कम करते हैं और मधुमक्खियों को कीटनाशकों और शाकनाशियों के संपर्क में लाते हैं।
- रोग, कीट और आक्रामक प्रजातियाँ जो मधुमक्खी के स्वास्थ्य और उत्पादकता को प्रभावित करती हैं।
- जलवायु परिवर्तन जो फूलों के मौसम, वितरण और पौधों की उपलब्धता को बदल देता है।
- किसानों और उपभोक्ताओं के बीच मधुमक्खी पालन के लिये जागरूकता, ज्ञान और समर्थन की कमी।
भारत में मधुमक्खी पालन की स्थिति:
- उत्पादन सांख्यिकी:
- भारत विश्व में 1.2 लाख मीट्रिक टन के अनुमानित वार्षिक उत्पादन के साथ शहद के सबसे बड़े उत्पादकों और उपभोक्ताओं में से एक है। भारत में मधुमक्खी पालन की एक समृद्ध परंपरा और संस्कृति है, जो प्राचीन काल से चली आ रही है।
- वर्तमान में, लगभग 12,699 मधुमक्खी पालक और 19.34 लाख मधुमक्खियों की कॉलोनियाँ राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के साथ पंजीकृत हैं और भारत लगभग 1,33,200 मीट्रिक टन शहद (वर्ष 2021-22 अनुमान) का उत्पादन कर रहा है।
- नवंबर 2022 में 200 से अधिक वर्षों के अंतराल के बाद पश्चिमी घाटों में भारतीय काली मधुमक्खी (एपिस करिंजोडियन) नामक स्थानिक मधुमक्खी की एक नई प्रजाति की खोज की गई।
- निर्यात:
- भारत विश्व के प्रमुख शहद निर्यातक देशों में से एक है और उसने वर्ष 2021-22 के दौरान 74,413 मीट्रिक टन शहद का निर्यात किया है।
- भारत में शहद उत्पादन का 50 प्रतिशत से अधिक अन्य देशों को निर्यात किया जा रहा है।
- भारत लगभग 83 देशों को शहद निर्यात करता है। भारतीय शहद के प्रमुख बाज़ार अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, कनाडा आदि हैं।
- शहद उत्पादक राज्य :
- राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) के अनुसार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और कर्नाटक वर्ष 2021-22 में शीर्ष दस शहद उत्पादक राज्य थे।
राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (NBHM) क्या है?
- राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के माध्यम से लागू किया गया NBHM छोटे और सीमांत किसानों के बीच वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- इसमें कटाई के बाद के प्रबंधन, अनुसंधान और विकास के समर्थन से संबंधित बुनियादी ढाँचे के विकास को शामिल किया गया है और इसका उद्देश्य "मीठी क्रांति" के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
- यह योजना आत्मनिर्भर भारत पहल के अनुरूप है और किसानों की आय तथा कृषि उत्पादकता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
आगे की राह
- किसानों को जागरूक करना: बड़े पैमाने पर मीडिया अभियान, प्रदर्शनों, क्षेत्र का दौरा आदि के माध्यम से मधुमक्खी पालन के लाभों के बारे में किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता है।
- साथ ही प्रोत्साहन, पुरस्कार आदि के माध्यम से किसानों को मधुमक्खी पालन को अपनी फसल प्रणाली के अभिन्न अंग के रूप में अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
- आपूर्ति शृंखला को मजबूत बनाना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी, सहकारी समितियों आदि के माध्यम से इनपुट्स आपूर्ति शृंखला जैसे- मधुमक्खी कालोनियों, छत्तों आदि को मज़बूत करने की आवश्यकता है। मानकीकरण और प्रमाणीकरण तंत्र जैसे BIS मानक आदि के माध्यम से इनपुट का गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करना। सब्सिडी या वाउचर आदि के माध्यम से किसानों को वहन करने योग्य इनपुट प्रदान करना।
- बाज़ारों के मध्य जुड़ाव: राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (National Agriculture Market- e-NAM), कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural & Processed Food Products Export Development Authority- APEDA) आदि जैसे प्लेटफाॅर्मों के माध्यम से शहद या अन्य मधुमक्खी उत्पादों के लिये बाज़ार जुड़ाव को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- साथ ही प्रसंस्करण इकाइयों जैसे हनी पार्क आदि के माध्यम से शहद या अन्य मधुमक्खी उत्पादों के मूल्यवर्द्धन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. जीवों के निम्नलिखित प्रकारों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से परागणकारी है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. बागवानी फार्मों के उत्पादन, उनकी उत्पादकता एवं आय की वृद्धि में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एन.एच.एम.) की भूमिका का आकलन कीजिये। यह किसानों की आय बढ़ाने में कहाँ तक सफल हुआ है? (2018) |