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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन पर पूर्ण प्रतिबंध: भारत पर प्रभाव

  • 27 Jun 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

भारत का आयात और निर्यात

मेन्स के लिये

चीन के सामान के बहिष्कार का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से ही देश में चीन विरोधी स्वर तेज़ हो रहे हैं और देश में चीन के सामानों का बहिष्कार करने की मांग भी बढ़ती जा रही है।

प्रमुख बिंदु

  • हालाँकि इस घटनाक्रम से विभिन्न उद्योग निकायों के बीच भय की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जो कि चीन के निर्यात पर प्रतिबंध लग जाने से भारतीय उद्योगों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।
  • फार्मास्युटिकल्स से लेकर दूरसंचार और ऑटोमोबाइल से जुड़े उद्योग संघों का विचार है कि चीन के खिलाफ कोई भी कार्यवाही करना तब तक भारत के हित में नही होगा जब तक भारत के घरेलू उद्योग की क्षमता का सही ढंग से विकास नहीं किया जाता है। 
  • विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इससे पूर्व चीन के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही की जाती है तो यह भारत के निर्यात समेत भारत की अर्थव्यवस्था के लिये काफी नुकसानदायक साबित होगा।

चीन के आयात पर भारत की निर्भरता

  • उल्लेखनीय है कि भारत के शीर्ष आयातों विशेषकर मध्यवर्ती उत्पादों और कच्चे माल में चीन का काफी बड़ा हिस्सा मौजूद है।
  • चीन, भारत में इलेक्ट्रिकल मशीनरी, उपकरण और उनके हिस्सों, परमाणु रिएक्टरों, जैविक एवं अकार्बनिक रसायनों और वाहनों एवं उनके हिस्सों आदि का शीर्ष निर्यातक रहा है। 
  • आँकड़े बताते हैं कि भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में चीन का कुल 45 प्रतिशत हिस्सा है। 
  • भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अनुसार, भारत द्वारा विश्व से खरीदी जाने वाली लगभग एक-तिहाई मशीनरी और लगभग 40 प्रतिशत कार्बनिक रसायन चीन से ही आता है।
  • इनमें से कई उत्पाद भारतीय निर्माताओं द्वारा तैयार माल के उत्पादन में उपयोग किए जाते हैं, इस प्रकार चीन भारत की विनिर्माण आपूर्ति श्रृंखला में पूरी तरह से एकीकृत है।
    • उदाहरण के लिये भारत में बनने वाले कुछ मोबाइल फोन के कुछ हिस्से ऐसे भी हैं, जिन्हें लगभग 90 प्रतिशत चीन से आयात किया जाता है।
  • इसके अलावा निर्यात बाज़ार के रूप में भी चीन भारत का एक प्रमुख भागीदार है।
  • 15.5 बिलियन डॉलर के साथ चीन भारतीय निर्यात का तीसरा सबसे बड़ा गंतव्य है, वहीं इसका दूसरा पहलू यह है कि भारत चीन के कुल निर्यात का केवल 2 प्रतिशत का ही भागीदार है।

चीन पर प्रतिबंध का भारत पर प्रभाव

  • फार्मास्यूटिकल्स, दूरसंचार और ऑटोमोबाइल उद्योगों से संबंधित सभी उद्योग संघों ने चीन के आयात के पूर्ण बहिष्कार पर चिंता ज़ाहिर की है। भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (FIEO) के के अनुसार, कच्चे माल पर अत्यधिक निर्भरता के कारण देश में चीन के सामान पर ‘पूर्ण प्रतिबंध संभव नहीं है।
  • उदाहरण के लिये भारतीय दवा निर्माताओं द्वारा कई आवश्यक दवाओं के निर्माण के लिये लगभग 3.6 बिलियन डॉलर की सामग्री का आयात किया जाता है, जिसमें से लगभग 68 प्रतिशत हिस्सा चीन का है।
    • ध्यातव्य है कि यदि भारत सरकार द्वारा फार्मास्यूटिकल्स आयात पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो भारतीय बाज़ारों में दवाओं की काफी कमी आ सकती है।

क्या हैं विकल्प?

  • विशेषज्ञों का मानना है कि चीन में बने अंतिम उत्पादों का बहिष्कार करने अथवा न करने का निर्णय व्यक्ति विशेष पर छोड़ा दिया जाना चाहिये, जबकि चीन से आयात किये जाने वाले सस्ते कच्चे माल पर शुल्क बढ़ाना स्पष्ट तौर पर एक अवसर के रूप में देखा जा सकता है।
  • इससे भारत को अल्पावधि में महत्त्वपूर्ण सामग्री प्राप्त करने में मदद मिलेगी और इस अवधि में भारत वैकल्पिक व्यापार भागीदार भी खोज सकेगा।
  • CII के अनुसार, अमेरिका, वियतनाम, जापान, मैक्सिको और कुछ यूरोपीय देशों को महत्त्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, वाहनों और दवा घटकों के लिये वैकल्पिक आयात के रूप में देखा जा सकता है।
  • हालाँकि इन वैकल्पिक स्रोतों से कच्चे माल की लागत अधिक होगी और भारतीय उपभोक्ताओं को वस्तु के लिये अधिक मूल्य देना पड़ेगा।
  • FIEO के अनुसार, भारत को चीन और हॉन्गकॉन्ग के साथ अपने व्यापार की निर्भरता कम करने के लिये एक विस्तृत योजना लागू करनी होगी।
  • भारत सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ की शुरुआत की है, आवश्यक है कि भारत के घरेलू उद्योगों को भी एक विकल्प के रूप में देखा जाए और उनके विकास के लिये यथासंभव प्रयास किये जाएँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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