आर्द्रभूमि: समस्त विश्व और भारत के लिये महत्त्वपूर्ण क्यों? | 04 Feb 2020
प्रीलिम्स के लिये:विश्व आर्द्र्भूमि दिवस मेन्स के लिये:आर्द्र्भूमियों का महत्त्व तथा भारत में आर्द्र्भूमियों की स्थिति |
संदर्भ
2 फरवरी, 2020 को विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetlands Day) मनाया गया। वर्ष 1971 में इसी दिन आर्द्रभूमियों पर रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention on Wetlands) को (रामसर, ईरान में) अपनाया गया था। हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने घोषणा की है कि रामसर कन्वेंशन ने भारत से 10 आर्द्रभूमियों को ‘अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व’ के स्थलों के रूप में घोषित किया गया है, जिसके बाद देश में रामसर स्थलों की कुल संख्या 37 हो गई हैं।
आर्द्रभूमियों पर अधिक ध्यान क्यों दिया जा रहा है?
- रामसर कन्वेंशन के तहत आर्द्रभूमि की परिभाषा में दलदली भूमि, बाढ़ के मैदान, नदियाँ और झीलें, मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियाँ और अन्य समुद्री क्षेत्र शामिल हैं जो कम ज्वार पर 6 मीटर से अधिक गहरे नहीं हैं, साथ ही मानव निर्मित आर्द्रभूमियों जैसे अपशिष्ट-जल उपचार वाले तालाब और जलाशय भी इसमें शामिल हैं।
- IPBES (Intergovernmental Science-Policy Platform on Biodiversity and Ecosystem Services), वैश्विक मूल्यांकन ने आर्द्रभूमि को सबसे अधिक खतरे वाले पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में चिह्नित किया है।
- यूनेस्को के अनुसार, यह दुनिया की 40% वनस्पतियों और वन्यजीवों को प्रभावित करता है जो आर्द्रभूमियों में निवास या प्रजनन करते हैं।
- भूमि आधारित कार्बन का तीस प्रतिशत पीटलैंड में संग्रहीत है; एक अरब लोग अपनी आजीविका के लिये आर्द्रभूमि पर निर्भर हैं; आर्द्रभूमियाँ आवश्यक सेवाओं में सालाना 47 ट्रिलियन डॉलर का योगदान करती हैं।
- इस वर्ष आर्द्रभूमि दिवस की थीम ‘वेटलैंड्स और जैव-विविधता’ (Wetlands and Biodiversity) है।
भारत में आर्द्रभूमि स्थिति
- आर्द्रभूमियों को आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम (Wetlands (Conservation and Management) Rules,) , 2017 के तहत विनियमित किया जाता है। सेंट्रल वेटलैंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (Central Wetland Regulatory Authority) के लिये प्रदत्त नियमों का 2010 संस्करण; 2017 के नियमों ने इसे राज्य-स्तरीय निकायों के साथ परिवर्तित कर एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि समिति (National Wetland Committee) बनाई, जो एक सलाहकारी निकाय के रूप में कार्य करती है। नए नियमों ने ‘आर्द्रभूमि’ की परिभाषा से कुछ वस्तुओं को हटा दिया, जिनमें बैकवाटर, लैगून, क्रीक और एश्च्युरी शामिल हैं।
- भारत में कुल आर्द्रभूमि 1,067,939 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई हैं, जो भारत के लगभग 1.6 करोड़ हेक्टेयर या 4.5% क्षेत्र को कवर करती हैं।
- फरवरी 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने 2010 के नियमों (के नियम 4) के तहत इनमें से 2,01,503 हेक्टेयर क्षेत्र को संरक्षण प्रदान किया है और अधिकारियों को इन स्थलों को अधिसूचित करने का आदेश दिया। 2017 के नियम लागू होने के 180 दिन बाद (25 सितंबर, 2017) तक आर्द्रभूमियों को 25 मार्च, 2019 तक अधिसूचित किया जाना था। हालाँकि अभी तक एक भी आर्द्रभूमि को अधिसूचित नहीं किया गया है। इसरो की सैटेलाइट इमेजरी (ISRO’s satellite imagery) के ज़रिये 2.25 हेक्टेयर में फैले 2,01,503 वेटलैंड्स की पहचान की गई है।
- अक्तूबर 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने आर्द्रभूमियों के गायब होने पर चिंता व्यक्त की, यदि कोई आर्द्रभूमि नहीं बचेगी, तो यह कृषि और कई अन्य चीजों को भी प्रभावित करेगा। यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
रामसर स्थल घोषित किये जाने का क्या अर्थ है?
- हाल ही में रामसर कन्वेंशन के तहत शामिल किये गए भारतीय स्थलों को ‘अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि’ के रूप में अधिसूचित किया गया है। इन स्थलों को न केवल उन देशों के लिये महत्त्वपूर्ण माना गया है, जहाँ वे स्थित हैं, बल्कि समग्र मानवता के लिये महत्त्वपूर्ण माना गया है।
नवघोषित 10 आर्द्रभूमि स्थल
- घोषित नए 10 आर्द्रभूमि स्थलों में शामिल हैं- नंदुर मदमहेश्वर (Nandur Madhameshwar), महाराष्ट्र केशोपुर-मियाँ (Keshopur-Mian), पंजाब ब्यास कंज़र्वेशन रिज़र्व (Beas Conservation Reserve), पंजाब नांगल (Nangal), पंजाब नवाबगंज (Nawabganj), उत्तर प्रदेश पार्वती आगरा (Parvati Agara), उत्तर प्रदेश समन (Saman), उत्तर प्रदेश समसपुर (Samaspur), उत्तर प्रदेश सांडी (Sandi) आर्द्रभूमि, उत्तर प्रदेश सरसई नवार (Sarsai Nawar), उत्तर प्रदेश।