काज़ीरंगा नेशनल पार्क और असम की बाढ़ | 18 Jul 2020
प्रीलिम्स के लियेकाज़ीरंगा नेशनल पार्क की अवस्थिति मेन्स के लियेकाज़ीरंगा के पारिस्थितिकी तंत्र में बाढ़ की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
वर्तमान में असम एक भयंकर बाढ़ का सामना कर रहा है, जिससे राज्य में भारी पैमाने पर नुकसान हुआ है। आँकड़ों के अनुसार, इस दौरान अब तक कुल 73 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और राज्य के लगभग 40 लाख लोग इससे प्रभावित हुए हैं। अनुमान के अनुसार, वर्तमान में काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व का लगभग 85 फीसदी हिस्सा जलमग्न है।
प्रमुख बिंदु
- असम की इस भयावह बाढ़ से काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व में कुल 125 जानवरों को सुरक्षित बचाया जा चुका है, जबकि इस दौरान कुल 86 जानवरों की मृत्यु हो गई है, जिसमें गैंडे, हिरन और जंगली सूअर आदि शामिल हैं।
- हालाँकि कई विशेषज्ञ असम में आने वाली वार्षिक बाढ़ को काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व के अस्तित्त्व के लिये आवश्यक मानते हैं।
काज़ीरंगा के पारिस्थितिकी तंत्र में बाढ़ की भूमिका
- गौरतलब है कि असम पारंपरिक रूप से एक बाढ़ प्रवण (Flood Prone) क्षेत्र है, और ब्रह्मपुत्र नदी तथा कार्बी आंगलोंग (Karbi Anglong) पहाड़ियों के बीच स्थित काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व भी इसका अपवाद नहीं है।
- विशेषज्ञों के बीच यह आम सहमति है कि काज़ीरंगा और उसके पारिस्थितिकी तंत्र के लिये बाढ़ काफी महत्त्वपूर्ण है।
- ध्यातव्य है कि काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व का पारिस्थितिकी तंत्र एक नदी आधारित पारिस्थितिकी तंत्र है, न कि ठोस भू-भाग आधारित पारिस्थितिकी तंत्र, जिसके कारण यह पानी के बिना जीवित नहीं रह सकता है।
- बाढ़ की पुनःपूर्ति (Replenish) वाली प्रकृति काज़ीरंगा के जल निकायों को फिर से भरने और इसके परिदृश्य को बनाए रखने में मदद करती है, जो कि आर्द्रभूमि (Wetlands), घास के मैदान और अर्द्ध-सदाबहार जंगलों का मिश्रण है।
- गौरतलब है कि बाढ़ का पानी मछलियों के प्रजनन में भी काफी महत्त्वपूर्ण होता है। इन्ही मछलियों को पानी ब्रह्मपुत्र नदी की ओर ले जाता है, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि काजीरंगा, ब्रह्मपुत्र नदी को मछलियों की आपूर्ति भी करता है।
- बाढ़ का पानी इस क्षेत्र में अवांछित पौधों जैसे-जलकुंभी (Water Hyacinth) आदि से छुटकारा पाने में भी मदद करता है।
- काजीरंगा नेशनल पार्क के वन क्षेत्र में भारतीय गैंडों (Indian Rhinoceros) की सबसे अधिक आबादी निवास करती है, ऐसे में इस क्षेत्र में घास के मैदानों को बनाए रखना काफी महत्त्वपूर्ण है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इस क्षेत्र में बाढ़ न आए तो यह एक वुडलैंड (Woodland) बन जाएगा।
- इसके अतिरिक्त कई विशेषज्ञ क्षेत्र में आने वाली इन बाढ़ों को प्राकृतिक चयन का एक तरीका भी मानते हैं, अक्सर जानवरों की एक बड़ी संख्या विशेष तौर पर वृद्ध और कमज़ोर जानवर बाढ़ का सामना नहीं कर पाते और उनकी मृत्यु हो जाती है, जबकि ताकतवर और युवा जानवर ही बाढ़ से बच पाते हैं।
काज़ीरंगा: समस्या के रूप में बाढ़
- काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व में कार्यरत विशेषज्ञों के अनुसार, पहले इस तरह की भयानक बाढ़ 10 वर्षों में एक बार आती थी, जबकि अब इस तरह की बाढ़ प्रत्येक 2 वर्ष में एक बार आ जाती है, जिससे इस क्षेत्र को व्यापक पैमाने पर नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।
- अनुमान के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन और निर्वनीकरण जैसे कारकों के कारण इस क्षेत्र में बाढ़ तेज़ी से विनाशकारी होती जाएगी।
- वर्ष 2018 को छोड़कर, वर्ष 2016 से वर्ष 2020 के बीच आई सभी बाढ़ें विनाशकारी और भयानक प्रकृति की थीं, अर्थात इनमें काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा जलमग्न हो गया था, इन बाढ़ों के कारण सैकड़ों जानवरों की मृत्यु हो गई थी और हज़ारों जानवर घायल हो गए थे।
- यद्यपि पशु प्राकृतिक रूप से स्वयं को बाढ़ के अनुकूल ढाल लेते हैं, किंतु जब पानी एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाता है, तो जानवरों को कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों में सुरक्षित स्थान की ओर जाना पड़ता है।
- गौरतलब है कि पहले काज़ीरंगा नेशनल पार्क से कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों पर जाना काफी आसान था, किंतु अब इस कार्य के लिये जानवरों को राष्ट्रीय राजमार्ग 37 (NH-37) को पार करना पड़ता है, जिसके कारण कई बार जानवर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।
- जानकारों के अनुसार, इस क्षेत्र में कुल 9 वन्यजीव गलियारे भी हैं, किंतु वे सदैव भारी यातायात के कारण बंद रहते हैं।
- नतीजतन, पार्क से बाहर निकलने वाले जानवरों की या तो राष्ट्रीय राजमार्ग पर तेज रफ्तार वाहनों के कारण मृत्यु हो जाती है या फिर शिकारी उनकी भेद्यता का लाभ उठाकर उन्हें मार देते हैं।
- हालाँकि बीते कुछ वर्षों में सतर्क निगरानी के कारण जानवरों की मृत्यु की संख्या में कमी आई है।
आस-पास के गाँवों पर बाढ़ का प्रभाव
- अनुमान के अनुसार, असम की बाढ़ से काज़ीरंगा नेशनल पार्क के दक्षिणी छोर पर स्थित लगभग 75 में से 25 गाँव मौजूदा बाढ़ से काफी अधिक प्रभावित हुए हैं।
- अक्सर बाढ़ के कारण जानवर अपना रास्ता भटकर मानवीय क्षेत्र में पहुँच जाते हैं, जिसके कारण पशु-मानव संघर्ष में वृद्धि होती है।
काज़ीरंगा में बाढ़ से निपटने के उपाय
- अक्सर बाढ़ आने से लगभग एक माह पूर्व ही बाढ़ से निपटने की तैयारी शुरू हो जाती है, राज्य के अधिकारी केंद्रीय जल आयोग से प्राप्त अपडेट का ट्रैक रखते हैं और अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र सहायक नदियों के जल स्तर की निगरानी करते हैं।
- बाढ़ आने की स्थिति में इस क्षेत्र का प्रशासन, पार्क प्राधिकरण, गैर-सरकारी संगठन (NGOs) और स्थानीय समुदाय बाढ़ से निपटने की स्थिति में मिलकर कार्य करते हैं।
- इसके अलावा बाढ़ के दौरान किसी भी प्रकार के रोग के प्रकोप से बचने के लिये प्रत्येक वर्ष टीकाकरण अभियान भी आयोजित किया जाता है।
- इस क्षेत्र में समय-समय पर शिकार करने और वन्यजीवों को नुकसान पहुँचाने के संबंध में जागरुकता पैदा करने के लिये शिविरों का आयोजन किया जाता है।
- साथ ही इस क्षेत्र में जब बाढ़ आती है तो राष्ट्रीय राजमार्ग-37 पर धारा 144 लागू कर दी जाती है और गतिसीमा (Speed Limits) जैसे नियम लागू कर दिये जाते हैं।
आगे की राह
- विशेषज्ञ मानते हैं कि इस क्षेत्र में जानवरों की रक्षा के लिये पशु गलियारों को सुरक्षित करने और कार्बी आंगलोंग (Karbi Anglong) पहाड़ियों में आवागमन के लिये एक सुरक्षित मार्ग बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
- अप्रैल 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने पार्क की दक्षिणी सीमा और काज़ीरंगा नेशनल पार्क से बहने वाली सभी नदियों के आस-पास सभी प्रकार के खनन और संबंधित गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था।