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जैव विविधता और पर्यावरण

वाष्पशील कार्बनिक यौगिक और इलेक्ट्रिक वाहन

  • 11 Feb 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वाष्पशील कार्बनिक अणु, नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान (NEMMP) और फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इन इंडिया (FAME इंडिया), नेशनल एम्बिएंट एयर-क्वालिटी स्टैंडर्ड।

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़ी चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च’ द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि भारत अगले 8 वर्षों में सभी दोपहिया और तिपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों तथा सभी डीज़ल संचालित वाहनों को संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) ईंधन वाले वाहनों के साथ प्रतिस्थापित करके वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOC) के उत्सर्जन को 76 प्रतिशत तक कम कर सकता है।

  • वाहनों से उत्सर्जित गैसें ऑटोमोबाइल क्षेत्र के कुल उत्सर्जन का 65-80% हिस्सा होती हैं।
  • विश्व के शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। वर्ष 2019 में लगभग 1.67 मिलियन मौतें वायु प्रदूषण से जुड़ी थीं। भारत को इस वर्ष अपने सकल घरेलू उत्पाद के 1.36% की हानि हुई है।
  • इसलिये इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने से भारत को एक स्वच्छ भविष्य प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

वाष्पशील कार्बनिक यौगिक:

  • VOC पेट्रोल और डीज़ल वाहनों द्वारा जारी कार्बन युक्त रसायन हैं। ये वायु गुणवत्ता और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
    • हालाँकि VOC की उत्पत्ति प्राकृतिक रूप से भी हो सकती है।
    • पौधे परागणकों को आकर्षित करने, कीटों और शिकारियों से अपनी रक्षा करने और पर्यावरणीय तनाव के अनुकूलन के लिये इन रसायनों का उत्सर्जन करते हैं।
  • स्वास्थ्य पर VOC का प्रभाव: VOCs आँखों, नाक और गले में जलन पैदा कर सकते हैं, शरीर के अंगों को नुकसान पहुँचा सकते हैं और कैंसर का कारण बन सकते हैं। 
    • लंबे समय तक VOC के संपर्क में रहना ठीक नहीं है क्योंकि अधिकांश VOC कार्सिनोजेनिक (कैंसर पैदा करने वाले) होते हैं।
    • यह अस्थमा और हृदय रोग जैसी चिकित्सीय स्थितियों से भी जुड़ा हुआ है।
    • ब्लैक कार्बन स्वास्थ्य समस्याओं जैसे श्वसन और हृदय रोग, कैंसर, जन्मजात अक्षमताओं से जुड़ा हुआ है। यह जलवायु परिवर्तन का भी एक कारण है।
  • प्रतिक्रियात्मक समस्या:  VOCs अन्य खतरनाक प्रदूषकों के निर्माण को प्रेरित कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये वे ज़मीनी स्तर पर ओज़ोन बनाने के लिये सूर्य के प्रकाश और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के साथ प्रतिक्रिया करते हैं।
    • VOCs पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5) के निर्माण को भी बढ़ा सकते हैं, यह एक ऐसा प्रदूषक है जो फेफड़ों में गहराई तक पहुँचता है, जिससे फेफड़ों की सामान्य कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
    • वे वायु में मिलकर प्रतिक्रिया करके द्वितीयक कार्बनिक एरोसोल यानी वायु में निलंबित सूक्ष्म कण उत्पन्न करते हैं।
  • VOCs से संबंधित मुद्दे: मानव द्वारा निर्मित वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) चिंता के प्रमुख कारण हैं, फिर भी इन पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
    • बेंजीन, एक रसायन जो कैंसर को प्रेरित करता है, यह राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों में शामिल एकमात्र VOC है।
    • वायु परिवेशी गुणवत्ता मानकों के तहत अन्य प्रदूषकों में PM10, PM2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओज़ोन, अमोनिया, सीसा, निकल और बेंजोपाइरीन शामिल हैं।

इलेक्ट्रिक वाहन:

  • इलेक्ट्रिक वाहन आंतरिक दहन इंजन के बजाय इलेक्ट्रिक मोटर से संचालित होते हैं और इनमें ईंधन टैंक के बजाय बैटरी लगी होती है।
  • सामान्य तौर पर इलेक्ट्रिक वाहनों की परिचालन लागत कम होती है, क्योंकि इनकी संचालन प्रक्रिया सरल होती है और ये पर्यावरण के लिये भी अनुकूल होते हैं।
  • भारत में इलेक्ट्रिक वाहन के लिये ईंधन की लागत लगभग 80 पैसे प्रति किलोमीटर है। इसकी तुलना में आज भारतीय शहरों में 100 रुपए प्रति लीटर से अधिक के पेट्रोल मूल्य के साथ पेट्रोल-संचालित वाहनों पर 7-8 रुपए प्रति किलोमीटर का खर्च आता है।

Electric-vehicles

संबद्ध चुनौतियाँ:

  • इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन के लिये एक स्थिर नीति का अभाव: इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन एक पूंजी गहन क्षेत्र है, जहाँ समानता और लाभ प्राप्ति के लिये एक दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है। इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन से संबंधित सरकारी नीतियों की अनिश्चितता इस उद्योग में निवेश को हतोत्साहित करती है।
  • तकनीकी चुनौतियाँ: भारत बैटरी, सेमीकंडक्टर्स, कंट्रोलर जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन में प्रौद्योगिकीय रूप से पिछड़ा हुआ है, जो कि EV उद्योग के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं।   
    • भारत में लिथियम और कोबाल्ट का कोई ज्ञात भंडार नहीं है जो बैटरी उत्पादन के लिये आवश्यक है।
  • संबद्ध अवसंरचना समर्थन का अभाव: AC बनाम DC चार्जिंग स्टेशनों पर स्पष्टता की कमी, ग्रिड स्थिरता और रेंज संबंधी चिंता (यह डर कि बैटरी जल्द ही खत्म हो जाएगी) अन्य कारक हैं जो EV उद्योग के विकास में बाधा डालते हैं।
  • कुशल श्रमिकों की कमी: इलेक्ट्रिक वाहनों की सर्विसिंग लागत अधिक होती है जिसके लिये उच्च स्तर के कौशल की आवश्यकता होती है। भारत में ऐसे कौशल विकास के लिये समर्पित प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का अभाव है।

इलेक्ट्रिक वाहनों पर केंद्र सरकार की पहलें:

  • सरकार ने वर्ष 2030 तक कारों और दोपहिया वाहनों की बिक्री में 30% इलेक्ट्रिक वाहनों को शामिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • एक स्थायी EV पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने हेतु ‘राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना’ (NEMMP) और ‘हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक वाहनों के तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण (फेम इंडिया) जैसी पहलें शुरू की गई हैं।
    • NEMMP को देश में हाइब्रिड और EVs को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय ईंधन सुरक्षा हासिल करने के उद्देश्य से वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था। वर्ष 2020 से प्रतिवर्ष हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक वाहनों की 6-7 मिलियन बिक्री का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है।
    • फेम इंडिया को वर्ष 2015 में हाइब्रिड/ईवी संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण का समर्थन करने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था। इस योजना में 4 फोकस क्षेत्र शामिल हैं- प्रौद्योगिकी विकास, मांग निर्माण, पायलट परियोजनाएँ और चार्जिंग अवसंरचना।
  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS), भारी उद्योग विभाग, ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया जैसे संगठन इलेक्ट्रिक वाहन और इनसे संबंधित आपूर्ति उपकरणों (EVSEs) तथा चार्जिंग अवसंरचना के डिज़ाइन व विनिर्माण मानकों को तैयार कर रहे हैं, ताकि देश में EVs के उत्पादन को सुगम बनाया जा सके।

आगे की राह

  • EVs में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ाना: भारतीय बाज़ार को स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के लिये प्रोत्साहन की आवश्यकता है, जो भारत के लिये रणनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से अनुकूल हैं।
    • चूंँकि कीमतों को कम करने के लिये स्थानीय अनुसंधान और विकास में निवेश आवश्यक है, इसलिये स्थानीय विश्वविद्यालयों व मौजूदा औद्योगिक केंद्रों का अधिकाधिक लाभ उठाया जा सकता है।
    • भारत को यूके जैसे देशों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिये और इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास में मिलकर तालमेल बिठाना चाहिये।
  • जनता को संवेदनशील बनाना: पुराने मानदंडों के विपरीत एक नया उपभोक्ता व्यवहार स्थापित करना हमेशा एक चुनौती होती है। इस प्रकार भारतीय बाज़ार में कई मिथकों को दूर करने और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने हेतु अधिक संवेदीकरण एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
  • व्यवहार्य बिजली मूल्य का निर्धारण: बिजली की मौजूदा कीमतों को देखते हुए घरेलू चार्जिंग भी एक मुद्दा हो सकता है यदि बिजली उत्पादन कोयले पर चलने वाले थर्मल पावर प्लांट से हो।
    • इस प्रकार इलेक्ट्रिक कारों के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिये बिजली उत्पादन परिदृश्य में बदलाव की आवश्यकता है।
    • इस संदर्भ में भारत वर्ष 2025 तक सबसे बड़े सौर ऊर्जा भंडारण बाजारों में से एक बनने की राह पर अग्रसर है।
    • सौर ऊर्जा से चलने वाले ग्रिड समाधानों का एक संयोजन है जिसे ग्रिड के सरलीकरण , सामान्य सुधार के साथ संचालित किया जाता है, इलेक्ट्रिक वाहनों को हरित विकल्प में परिवर्तित करने के लिये पर्याप्त चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर सुनिश्चित करेगा।
  • क्लोज़्ड-लूप मोबिलिटी इकोसिस्टम का निर्माण: इलेक्ट्रिक सप्लाई चेन के लिये मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को सब्सिडी देने से निश्चित रूप से भारत में ईवी डेवलपमेंट में सुधार होगा।
    • चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ मज़बूत सप्लाई चेन की स्थापना की भी ज़रूरत होगी।
    • इसके अलावा बैटरियों के पुनर्चक्रण हेतु आवश्यक क्लोज़्ड-लूप निर्मित करने के लिये विद्युतीकरण में प्रयुक्त बैटरियों से धातुओं को पुनर्प्राप्त करने की आवश्यकता होगी तथा इलेक्ट्रिक कारों में किये गए बदलाव पर्यावरण के अनुकूल होने चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

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