निर्वाचन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग | 30 Mar 2024
प्रिलिम्स:जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GAI), आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI) डीपफेक, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF’s), आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI)। मेन्स:निर्वाचन के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग की चिंताएँ, जेनरेटिव कृत्रिम बुद्धिमत्ता- लाभ, खतरे और आगे का राह। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GAI) से आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI) की ओर बढ़ने के साथ, निर्वाचन पर इसके संभावित प्रभाव को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है। निर्वाचन पर इसका प्रभाव, जिसका उदाहरण भारत के आगामी चुनावों से मिलता है, जो इसके संभावित प्रभाव को संबोधित करने की अनिवार्यता को रेखांकित करता है।
- आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस कार्यों और डोमेन की एक विस्तृत शृंखला में मानव बुद्धि के समान ज्ञान को समझने, सीखने तथा लागू करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता की काल्पनिक क्षमता को संदर्भित करता है।
- आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस का लक्ष्य मनुष्यों की संज्ञानात्मक क्षमताओं, जैसे तर्क, समस्या-समाधान, धारणा और प्राकृतिक भाषा को समझना, को दोहराना है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता निर्वाचन परिदृश्य से कैसे जुड़ी है?
- अभियान रणनीति और लक्ष्यीकरण:
- राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपने अभियान संदेशों को अनुकूलित करने तथा विशिष्ट मतदाता समूहों को अधिक प्रभावी ढंग से लक्षित करने के लिये जनसांख्यिकी, सोशल मीडिया गतिविधि एवं पूर्व मतदान व्यवहार सहित मतदाताओं के बारे में अधिक डेटा का विश्लेषण करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता एल्गोरिदम का उपयोग कर सकते हैं।
- पूर्वानुमानित विश्लेषण:
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित पूर्वानुमानित विश्लेषण मतदान डेटा, आर्थिक संकेतक और सोशल मीडिया से लोगों के रुख का विश्लेषण जैसे विभिन्न कारकों का विश्लेषण करके निर्वाचन परिणामों की पूर्वानुमान लगा सकता है।
- इससे दलों को रणनीतिक रूप से संसाधन आवंटित करने और प्रमुख चुनाव क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिल सकती है।
- मतदाता सहभागिता:
- AI चैटबॉट व वर्चुअल असिस्टेंट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मतदाताओं के साथ जुड़ सकते हैं, सवालों के जवाब दे सकते हैं, उम्मीदवारों तथा नीतियों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं तथा यहाँ तक कि मतदाता मतदान को प्रोत्साहित भी कर सकते हैं।
- इससे मतदाताओं की भागीदारी और चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी बढ़ सकती है।
- सुरक्षा और अखंडता:
- मतदाता दमन, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम के साथ छेड़छाड़ और दुष्प्रचार के प्रसार सहित चुनावी धोखाधड़ी का पता लगाने तथा रोकने के लिये AI-संचालित उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है। डेटा में पैटर्न और विसंगतियों का विश्लेषण करके AI एल्गोरिदम चुनावी प्रक्रिया की अखंडता सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं।
- विनियमन और निरीक्षण:
- सरकारें और चुनाव अधिकारी राजनीतिक विज्ञापनों की निगरानी तथा विनियमन करने, अभियान वित्त कानूनों के उल्लंघन की पहचान करने एवं चुनावी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये AI का उपयोग कर सकते हैं। AI-संचालित उपकरण चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेही लागू करने में मदद कर सकते हैं।
- वर्ष 2021 में बिहार चुनाव आयोग ने पंचायत चुनावों के दौरान गिनती बूथों से CCTV फुटेज का विश्लेषण करने के लिये ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन (OCR) के साथ वीडियो एनालिटिक्स का उपयोग करने हेतु AI फर्म स्टैक के साथ समझौता किया।
- इस प्रणाली ने बिहार चुनाव आयोग को पूर्ण पारदर्शिता हासिल करने और हेरफेर की किसी भी संभावना को खत्म करने में सक्षम बनाया।
- सरकारें और चुनाव अधिकारी राजनीतिक विज्ञापनों की निगरानी तथा विनियमन करने, अभियान वित्त कानूनों के उल्लंघन की पहचान करने एवं चुनावी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये AI का उपयोग कर सकते हैं। AI-संचालित उपकरण चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेही लागू करने में मदद कर सकते हैं।
चुनावी उद्देश्यों हेतु AI को तैनात करने की चिंताएँ क्या हैं?
- चुनावी व्यवहार में हेरफेर:
- AI मॉडल, विशेष रूप से जेनेरेटिव AI तथा AGI का उपयोग दुष्प्रचार फैलाने, डीप फेक इलेक्शन एवं अत्यधिक व्यक्तिगत प्रचार के साथ मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये किया जा सकता है, जिससे भ्रम पैदा हो सकता है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हेरफेर हो सकता है।
- AI का उपयोग करके विरोधियों की छवि खराब करने के लिये उनके डीपफेक वीडियो बनाए जा सकते हैं।
- शब्द "डीप फेक इलेक्शन" का तात्पर्य AI सॉफ्टवेयर के उपयोग से है जो विश्वसनीय नकली वीडियो, ऑडियो और अन्य सामग्री तैयार करता है जो मतदाताओं को धोखा दे सकता है तथा उनके निर्णयों को प्रभावित कर सकता है।
- यह घटना चुनावों की अखंडता के लिये गंभीर खतरा पैदा करती है और चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास को कम करती है।
- इस तरह के हेरफेर के संभावित खतरों को उजागर करने वाला एक प्रमुख उदाहरण कैम्ब्रिज एनालिटिका घोटाला है।
- कैंब्रिज एनालिटिका, जो अब बंद हो चुकी राजनीतिक परामर्श कंपनी है, ने वर्ष 2016 के संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव तथा वैश्विक स्तर पर अन्य अभियानों के दौरान लक्षित राजनीतिक विज्ञापन बनाने और मतदाता व्यवहार को प्रभावित करने के लिये फेसबुक डेटा का कुख्यात शोषण किया।
- संदेश और प्रचार:
- AI टूल को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिये प्रशिक्षित किया जा सकता है जिसका उपयोग उम्मीदवार अपने अभियान में माइक्रोटार्गेटिंग हेतु कर सकते हैं।
- माइक्रोटार्गेटिंग एक विपणन रणनीति है जो हाल के तकनीकी विकास का उपयोग करती है और विस्तृत जनसांख्यिकीय, मनोवैज्ञानिक, व्यवहारिक या अन्य डेटा के आधार पर बड़े दर्शकों के विशिष्ट खंडों तक पहुँचती है।
- AI का उपयोग स्थानीय बोली और मतदाता आधार की जनसांख्यिकी के आधार पर राजनीतिक अभियानों को अनुकूलित करने के लिये भी किया जा सकता है।
- AI टूल को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिये प्रशिक्षित किया जा सकता है जिसका उपयोग उम्मीदवार अपने अभियान में माइक्रोटार्गेटिंग हेतु कर सकते हैं।
- दुष्प्रचार फैलाना:
- विश्व आर्थिक मंच (WEF) का वैश्विक जोखिम धारणा सर्वेक्षण में शीर्ष 10 जोखिमों में गलत सूचना और दुष्प्रचार को स्थान दिया गया है, जिसमें बड़े पैमाने पर एआई मॉडल के उपयोग में आसान इंटरफेस हैं, जो परिष्कृत वॉयस क्लोनिंग से नकली वेबसाइटों तक झूठी जानकारी तथा "सिंथेटिक" सामग्री में उछाल को सक्षम करते हैं।
- AI का उपयोग बड़े पैमाने पर वैयक्तिकृत प्रचार के साथ मतदाताओं को लुभाने के लिये किया जा सकता है, जिससे कैंब्रिज एनालिटिका घोटाला दिखाई दे सकता है, क्योंकि AI मॉडल की प्रेरक क्षमता बॉट्स और स्वचालित सोशल मीडिया खातों से कहीं बेहतर होगी जो अब दुष्प्रचार के लिये आधारभूत उपकरण हैं।
- फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियों के द्वारा अपनी तथ्य-जाँच तथा चुनाव अखंडता टीमों में उल्लेखनीय रूप से कटौती करने से जोखिम बढ़ गया है।
- विश्व आर्थिक मंच (WEF) का वैश्विक जोखिम धारणा सर्वेक्षण में शीर्ष 10 जोखिमों में गलत सूचना और दुष्प्रचार को स्थान दिया गया है, जिसमें बड़े पैमाने पर एआई मॉडल के उपयोग में आसान इंटरफेस हैं, जो परिष्कृत वॉयस क्लोनिंग से नकली वेबसाइटों तक झूठी जानकारी तथा "सिंथेटिक" सामग्री में उछाल को सक्षम करते हैं।
- अशुद्धियाँ और अविश्वसनीयता:
- AGI समेत AI मॉडल अचूक नहीं हैं और अशुद्धियाँ तथा विसंगतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
- व्यक्तियों और व्यक्तित्वों को गलत तरीके से, गलती से या अन्यथा चित्रित करने के लिये भारत सहित विश्व भर में Google AI मॉडल पर सार्वजनिक आक्रोश है। ये 'रन-अवे' AI के खतरों को अच्छी तरह दर्शाते हैं।
- विसंगतियाँ और निर्भरता कई AI मॉडलों पर हावी रहती हैं तथा समाज के लिये अंतर्निहित खतरे उत्पन्न करती हैं। जैसे-जैसे इसकी क्षमता और उपयोग ज्यामितीय अनुपात में बढ़ता है, खतरे का स्तर बढ़ना तय है।
- नैतिक चिंताएँ:
- चुनावों में AI का उपयोग गोपनीयता, पारदर्शिता और निष्पक्षता के बारे में नैतिक प्रश्न उठाता है।
- AI एल्गोरिदम अनजाने में प्रशिक्षण डेटा में मौजूद पूर्वाग्रहों को कायम रख सकता है, जिससे मतदाताओं के कुछ समूहों के खिलाफ अनुचित व्यवहार या भेदभाव हो सकता है।
- इसके अलावा, AI निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी चुनावी परिणामों में जनता के विश्वास और भरोसे को कम कर सकती है।
- बेहतर संसाधन वाली पार्टियाँ कम संसाधन वाले छोटे और क्षेत्रीय दलों की तुलना में AI का बेहतर उपयोग कर सकती हैं, जो चुनावों में समान अवसर को बाधित कर सकता है।
- नियामक चुनौतियाँ:
- तकनीकी प्रगति की तीव्र गति और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की वैश्विक प्रकृति के कारण चुनावी अभियानों में AI के उपयोग को विनियमित करना महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
- सरकारें और चुनाव अधिकारी विकसित AI तकनीकों के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये संघर्ष कर रहे हैं तथा AI-संचालित चुनावी गतिविधियों को प्रभावी ढंग से विनियमित करने के लिये आवश्यक विशेषज्ञता की कमी हो सकती है।
- यदि डीपफेक का उपयोग करके फर्जी खबरें फैलाई जाती हैं तो प्राथमिक कानून जो संभावित रूप से ट्रिगर हो सकते हैं, वे हैं, भारत दंड संहिता, 1860 (या उचित समय में भारतीय न्याय संहिता, 2023) सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000; और सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021।
- हालाँकि ऐसा कोई विशिष्ट कानून मौजूद नहीं है जो केवल AI और डीपफेक तकनीक से निपटता हो तथा इसे बनाने वाले व्यक्ति को लक्षित करता हो।
चुनावों पर AI के प्रभाव से किस प्रकार निपटें?
- AI के दुरुपयोग से निपटने करने के लिये MCC जैसे दिशा-निर्देश जारी करना:
- गलत सूचना का खतरा लंबे समय से मौजूद है और AI तकनीक के आगमन ने फर्ज़ी खबरों के प्रसार को बढ़ावा दिया है।
- लोकसभा चुनाव वर्ष 2024 के संदर्भ में, AI-जनित गलत सूचना का एक संभावित समाधान भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देश होंगे।
- ऐसे नियमों को लागू करने की आवश्यकता है जिनके लिये राजनीतिक उद्देश्यों हेतु AI एल्गोरिदम के उपयोग में पारदर्शिता की आवश्यकता है।
- इसमें राजनीतिक विज्ञापनों के लिये धन के स्रोतों का खुलासा करना और प्लेटफॉर्मों को यह बताना शामिल है कि एल्गोरिदम उपयोगकर्त्ताओं द्वारा देखी जाने वाली सामग्री को किस प्रकार निर्धारित करते हैं।
- गलत सूचना का खतरा लंबे समय से मौजूद है और AI तकनीक के आगमन ने फर्ज़ी खबरों के प्रसार को बढ़ावा दिया है।
- शिक्षा और मीडिया साक्षरता:
- नागरिकों को यह सिखाने के लिये शैक्षिक कार्यक्रमों में निवेश कने की आवश्यकता है कि ऑनलाइन जानकारी का आलोचनात्मक मूल्यांकन किस प्रकार किया जाए और दुष्प्रचार व फर्जी सूचनाओं की पहचान किस प्रकार की जाए।
- मतदाताओं को सूचना के विश्वसनीय और अविश्वसनीय स्रोतों के बीच अंतर करने में मदद करने के लिये मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना चाहिये।
- उन्नत तथ्य-जाँच:
- चुनावों के दौरान फर्जी खबरों, डीप फेक और अन्य प्रकार की गलत सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिये एक त्वरित प्रतिक्रिया टीम की स्थापना करना महत्त्वपूर्ण है।
- हालाँकि यह अपरिहार्य है कि फर्जी वीडियो और गलत सूचनाएँ सामने आएँगी, लेकिन इससे पहले कि वे आगे बढ़ें और व्यापक रूप से प्रसारित हो जाएँ, मुख्यरूप से उनसे शीघ्र अतिशीघ्र निपटने की आवश्यकता है।
- ऑनलाइन प्रसारित होने वाली जानकारी की सटीकता को सत्यापित करने के लिये स्वतंत्र संगठनों और पत्रकारों को संसाधन प्रदान करके तथ्य-जाँच प्रयासों को मज़बूत करना चाहिये।
- भ्रामक सामग्री का अभिनिर्धारण करने और चिह्नित करने के लिये AI-संचालित उपकरण विकसित करना चाहिये।
- चुनावों के दौरान फर्जी खबरों, डीप फेक और अन्य प्रकार की गलत सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिये एक त्वरित प्रतिक्रिया टीम की स्थापना करना महत्त्वपूर्ण है।
- प्रति-आख्यान और डिबंकिंग अभियान:
- जन जागरूकता अभियान चलाए जाएँ जो गलत सूचनाओं को खारिज कर सकें और सटीक जवाबी आख्यान प्रदान करें।
- प्रचलित गलत सूचनाओं की पहचान करने और प्रति-संदेशों को प्रभावी ढंग से लक्षित करने के लिये AI का उपयोग करना।
- नैतिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता विकास:
- पूर्वाग्रह को कम करने, गोपनीयता की रक्षा करने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने जैसे नैतिक विचारों को ध्यान में रखते हुए कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहित करें।
- राजनीतिक संदर्भों में AI के ज़िम्मेदार उपयोग के लिये मानक और दिशा-निर्देश स्थापित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- AI-संचालित दुष्प्रचार अभियानों से उत्पन्न वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये सरकारों, तकनीकी कंपनियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में चुनाव हस्तक्षेप से निपटने के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके प्रयासों का समन्वय आवश्यक है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?
निष्कर्ष
- चुनावों के अतिरिक्त, भारत, जो तकनीकी रूप से सबसे अधिक कुशल देशों में से एक है, को कृत्रिम बुद्धिमत्ता को एक नवीन अवधारणा के रूप में देखना जारी रखना चाहिये।
- हालाँकि AI सहायक भूमिका निभाता है किंतु राष्ट्र और उसके नेताओं को इससे संबंधित व्यवधान की जानकारी होनी चाहिये।
- यह AGI के लिये विशेष रूप से सच है और उन्हें उचित सावधानी के साथ कार्य करना चाहिये। डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं में भारत का नेतृत्व लाभकारी और हानिकारक दोनों हो सकता है क्योंकि AGI कई लाभ प्रदान करता है किंतु कुछ दशाओं में यह हानिकारक भी हो सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारत के प्रमुख शहरों में IT उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ क्या हैं? (2022) |