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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

यूएस का CAATSA और रूस का S-400

  • 29 Oct 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

CAATSA, S-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली, टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम, क्वाड, भू-स्थानिक खुफिया के लिये बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता, सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा, लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट, संचार संगतता तथा सुरक्षा समझौता

मेन्स के लिये:

भारत पर CAATSA के तहत लागू प्रतिबंध एवं भारत-अमेरिका एवं भारत -रूस संबंधों पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी विधि निर्माताओं ने भारत को ‘काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सेंक्शंस एक्ट’ (CAATSA) से प्रतिबंधों में छूट प्रदान करने के लिये अपना समर्थन देना जारी रखा है।

  • अक्तूबर 2018 में भारत ने अमेरिका की आपत्तियों और CAATSA के तहत प्रतिबंधों की धमकी के बावजूद S-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली के लिये रूस के साथ 5.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये। भारत द्वारा नवंबर 2021 में रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की डिलीवरी प्राप्त करने की संभावना है।

प्रमुख बिंदु:

  • CAATSA:
    • अमेरिका का नियम: यह वर्ष 2017 में अधिनियमित एक अमेरिकी संघीय कानून है। यह अधिनियम अमेरिकी राष्ट्रपति को रूसी रक्षा और खुफिया क्षेत्रों के साथ "महत्त्वपूर्ण लेनदेन" में संलग्न व्यक्तियों पर 12 सूचीबद्ध प्रतिबंधों में से कम-से-कम पाँच को लगाने का अधिकार देता है।
      • इसका उद्देश्य रूसी सरकार को राजस्व प्राप्त करने से रोकना है।
    • प्रतिबंधों के प्रकार: CAATSA में 12 प्रकार के प्रतिबंध हैं। केवल दो ऐसे प्रतिबंध हैं जो भारत-रूस संबंधों या भारत-अमेरिका संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं।
      • बैंकिंग लेन-देन का निषेध: इनमें से पहला जिसका भारत-रूस संबंधों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है, "बैंकिंग लेन-देन का निषेध" है।
        • इसका मतलब यह होगा कि भारत के लिये एस-400 सिस्टम की खरीद हेतु रूस को अमेरिकी डॉलर में भुगतान करने में कठिनाई होगी।
      • निर्यात मंज़ूरी: निर्यात मंज़ूरी का भारत-अमेरिका संबंधों पर अधिक प्रभाव पड़ेगा।
        • यह निर्यात प्रतिबंध है जिसमें भारत-अमेरिका सामरिक और रक्षा साझेदारी को पूरी तरह से पटरी से उतारने की क्षमता है, क्योंकि यह अमेरिका द्वारा नियंत्रित किसी भी वस्तु के लाइसेंस और निर्यात को अस्वीकार कर देगा।
    • छूट मानदंड: अमेरिकी राष्ट्रपति को वर्ष 2018 में ‘केस-बाइ-केस’ आधार पर CAATSA प्रतिबंधों को माफ करने का अधिकार दिया गया।
  • रूस की S-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली:
    • यह रूस द्वारा डिज़ाइन किया गया एक मोबाइल, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (SAM) है।
    • यह दुनिया में सबसे खतरनाक परिचालन हेतु तैनात ‘मॉडर्न लॉन्ग-रेंज एसएएम’ (MLR SAM) है, जिसे अमेरिका द्वारा विकसित टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस’ सिस्टम (THAAD) से काफी आगे माना जाता है।
    • यह एक मल्टीफंक्शन रडार, ऑटोनॉमस डिटेक्शन एंड टारगेटिंग सिस्टम, एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम, लॉन्चर और कमांड एंड कंट्रोल सेंटर को एकीकृत करता है।
      • यह सतही रक्षा के लिये तीन तरह की मिसाइल दागने में सक्षम है।
    • यह प्रणाली 30 किमी. तक की ऊँचाई पर 400 किमी. की सीमा के भीतर विमान, मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) और बैलिस्टिक तथा क्रूज़ मिसाइलों सहित सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है।
    • यह प्रणाली 100 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है और उनमें से छह पर एक साथ निशाना लगा सकती है।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • भारत के दृष्टिकोण से चीन भी रूस से रक्षा उपकरण खरीद रहा है। वर्ष 2015 में चीन ने रूस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसकी डिलीवरी जनवरी 2018 में शुरू हुई थी।
      • चीन द्वारा S-400 प्रणाली के अधिग्रहण को इस क्षेत्र में "गेम चेंजर" के रूप में देखा गया है। हालाँकि भारत के खिलाफ इसकी प्रभावशीलता सीमित है।
    • इसका अधिग्रहण दो मोर्चों के युद्ध में हमलों का मुकाबला करने के लिये महत्त्वपूर्ण है, यहाँ तक कि इसमें उच्च स्तरीय एफ-35 यूएस लड़ाकू विमान भी शामिल है।

भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग

  • दोनों देशों ने 2005 में 'भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों के लिये नए ढाँचे' पर हस्ताक्षर किये, जिसे 2015 में 10 वर्षों हेतु अद्यतन किया गया।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2016 में भारत को एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में मान्यता दी।
    • यह पदनाम भारत को अमेरिका से अमेरिका के निकटतम सहयोगियों और भागीदारों के समान अधिक उन्नत और संवेदनशील प्रौद्योगिकियों को खरीदने की अनुमति देता है।
  • भारत और अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण रक्षा समझौते किये और क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) के चार देशों के गठबंधन को भी औपचारिक रूप दिया।
  • चार मूलभूत रक्षा समझौते:
    • भू-स्थानिक खुफिया के लिये बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता (BECA)।
    • सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (GSOMIA)।
    • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA)।
    • संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA)।
  • भारत में अमेरिकी सैन्य उपकरण: भारतीय वायुसेना के C-17 भारी-भारोत्तोलक, अपाचे हेलीकॉप्टर और C-130J विशेष अभियान विमान, भारतीय नौसेना के P-8I निगरानी विमान और भारतीय सेना के M-777 अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर।
  • रक्षा अभ्यास:
    • मालाबार अभ्यास (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का चतुर्भुज नौसैनिक अभ्यास), युद्ध अभ्यास (सेना); कोप इंडिया (वायु सेना); वज्र प्रहार (विशेष बल)।

India-US

आगे की राह 

  • रूस ने हमेशा भारत को एक संतुलनकर्त्ता के रूप में देखा है, इसलिये रूस ने भारत को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में शामिल करने और रूस-भारत-चीन (आरआईसी) समूह के गठन की सुविधा प्रदान की।
    • भारत आज एक अनूठी स्थिति में है जहाँ सभी बड़ी शक्तियों के साथ उसके अनुकूल संबंध हैं और उसे शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था के निर्माण में मदद करने के लिये इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिये।
  • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के साथ घातक झड़पों के बीच भारत के लिये रक्षा खरीद महत्त्वपूर्ण हो गई है। इसके अलावा रूस भारत का हर परिस्थिति में रक्षा साझेदार है।
    • हालाँकि भारत को रूस और अमेरिका दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता है, ताकि उसके राष्ट्रीय हित से समझौता न हो।
  • भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने की आवश्यकता है, जो चीन और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी की दिशा में किसी भी कदम को संतुलित कर सके।

स्रोत: द हिंदू

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