मेघालय में अस्थिरता | 18 Aug 2021

प्रिलिम्स के लिये

खासी समुदाय, पूर्वोत्तर की भौगोलिक अवसंरचना

मेन्स के लिये

पूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोह: पृष्ठभूमि, कारण और प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘हन्नीवट्रेप नेशनल लिब्रेशन काउंसिल’ (HNLC) का एक पूर्व आतंकवादी पुलिस मुठभेड़ में मारा गया, जिससे मेघालय में सुरक्षा संकट और अस्थिरता की स्थिति पैदा हो गई है।

  • इस मुठभेड़ को पूर्वी खासी हिल्स और पूर्वी जयंतिया हिल्स की पुलिस टीम द्वारा अंजाम दिया गया।

Meghalaya

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • मेघालय, बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करता है और यहाँ पड़ोसी देश के साथ-साथ भारत के अन्य हिस्सों जैसे- बंगाल, पंजाब और बिहार के प्रवासी मौजूद हैं।
  • इस प्रवास ने स्वदेशी और स्थानीय समुदायों के बीच गंभीर चिंता को जन्म दिया तथा ‘बाहरी लोगों’ की आमद के कारण इन समुदायों के बीच ‘अपनी मातृभूमि में अल्पसंख्यक’ बनने का डर उत्पन्न हो गया।
  • इन्हीं ‘बाहरी-विरोधी भावनाओं’ की परिणति थी, जिसके कारण वर्ष 1992 में मेघालय के पहले उग्रवादी समूह ‘हन्नीवट्रेप अचिक नेशनल लिब्रेशन काउंसिल’ (HALP) का गठन हुआ।
    • हन्नीवट्रेप ने खासी और जयंतिया समुदायों का प्रतिनिधित्व किया, जबकि अचिक ने गारो समुदाय का प्रतिनिधित्व किया।
  • ‘हन्नीवट्रेप अचिक नेशनल लिब्रेशन काउंसिल’ का बाद में विभाजन हो गया और ‘हन्नीवट्रेप नेशनल लिब्रेशन काउंसिल’ अस्तित्व में आया, जो खासी और जयंतिया समुदायों का प्रतिनिधित्व करता था और ‘अचिक मातग्रिक लिबरेशन आर्मी’ जो गारो समुदाय का प्रतिनिधित्व करती थी।
    • ‘अचिक मातग्रिक लिबरेशन आर्मी’ को बाद में ‘अचिक नेशनल वालंटियर्स काउंसिल’ (ANVC) में बदल दिया गया।
  • HNLC ने केवल खासी समुदायों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया, जबकि ‘अचिक मातग्रिक लिबरेशन आर्मी’ ने गारो समुदाय के लिये एक अलग राज्य की मांग की।

मेघालय में उग्रवाद की वर्तमान स्थिति:

  • वर्ष 2004 में ANVC ने सरकार के साथ एक विस्तारित युद्धविराम समझौता कर लिया था, जबकि HNLC सरकार के साथ सशर्त शांति वार्ता करने की कोशिश कर रहा है।
  • पिछले कई वर्षों में, मेघालय में उग्रवाद में गिरावट देखी गई है।

अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोह

  • नगालैंड: नगा विद्रोह
  • मिज़ोरम: मिज़ो आंदोलन
  • असम विद्रोह: वर्ष 1979 में अवैध प्रवासियों के निर्वासन के लिये ‘यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम’ (ULFA) का गठन किया गया था।
  • मणिपुर: मणिपुर के स्थानीय लोगों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से वर्ष 1964 में ‘यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट’ का गठन किया गया था।
  • अरुणाचल प्रदेश: अरुणाचल प्रदेश में स्वदेशी विद्रोह आंदोलन का एकमात्र मामला ‘अरुणाचल ड्रैगन फोर्स’ (ADF) का उदय था, जिसे वर्ष 2001 में ‘ईस्ट इंडिया लिबरेशन फ्रंट’ (EALF) के रूप में पुनर्गठित किया गया था।
  • मौतें:
    •  पूर्वोत्तर में नागरिकों और सुरक्षा बलों दोनों की ही बहुत बड़ी संख्या में मौतें हुई हैं।
  • भारत की पूर्वोत्तर आर्थिक नीतियों में बाधा:
    • तेल समृद्ध असम में आतंकवादियों द्वारा समय-समय पर तेल और गैस पाइपलाइनों को लक्ष्य बनाया जाता  है, उनका यह आरोप है कि भारत इस राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है।
    • उग्रवादियों के हमलों के बाद राष्ट्रीय परियोजनाएंँ या तो ठप हो जाती हैं या धीमी गति से आगे बढ़ी हैं। पर्यटन, जो बेहद खुबसूरत पूर्वोत्तर राज्यों में फल-फूल सकता था, क्षेत्र में अस्थिरता के कारण इसे काफी नुकसान हुआ है।
  • भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी में बाधा: 
    • आतंकवाद ने पूर्वोत्तर राज्यों की अर्थव्यवस्था को पड़ोसी दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से जोड़ने की संभावना को भी रोक दिया है
  • शिक्षा में बाधा:
    • शिक्षा क्षेत्र भी उग्रवाद से प्रभावित हुआ है। त्रिपुरा के आंतरिक क्षेत्रों में कई स्कूल बंद कर दिये गए हैं क्योंकि शिक्षक आतंकवादी हमलों के डर के कारण उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में जाने से बचते हैं।

विद्रोह का मुकाबला करने हेतु उपाय:

  • सैन्य अभियान और विशेष अधिनियम:
    • 1990 के दशक में असम में ULFA उग्रवादीयों के खिलाफ दो सैन्य अभियान, ऑपरेशन राइनो और बजरंग शुरू किये गए थे। 
    • AFSPA (सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम) के तहत सशस्त्र बलों को आपातकालीन स्थितियों से निपटने हेतु विशेष शक्तियांँ प्रदान की गई थीं। यह पूरे असम, नगालैंड, अधिकांश मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में लागू है।
  • शांति वार्ता:
    • आज इस क्षेत्र के लगभग सभी प्रमुख विद्रोही समूहों मैइतेई विद्रोहियों को छोड़कर संघ और/या राज्य सरकारों के साथ युद्धविराम या सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (Suspension of Operation- SoO) समझौतों में शामिल हो गए हैं ।
    • वे शांति वार्ता में लगे हुए हैं और कुछ ने तो अपने सशस्त्र कैडरों को भी भंग कर दिया है।
  • इनर लाइन परमिट (ILP):
    • मिज़ोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के स्थायी लोगों की मूल पहचान को बनाए रखने के लिये इन राज्यों में बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है, बाहरी लोगों को  ILP के बिना राज्य में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER):
    • यह क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिये पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास योजनाओं और परियोजनाओं के निष्पादन और निगरानी से संबंधित मामलों हेतु ज़िम्मेदार है।

खासी समुदाय

  • खासी उत्तर-पूर्वी भारत में मेघालय का एक स्वदेशी जातीय समूह है। इसकी एक विशिष्ट संस्कृति है और यह मेघालय की सबसे बड़ी जनजाति है।
    • संपत्ति का उत्तराधिकार और आदिवासी कार्यालय का उत्तराधिकार दोनों ही महिलाओं के माध्यम से चलते हैं। खासी आदिवासी परिवार की सबसे छोटी बेटी परिवार में काफी महत्त्व रखती है।
  • खासी ऑस्ट्रोएशियाटिक स्टॉक (Austroasiatic Stock) की मोन-खमेर (Mon-Khmer) भाषा बोलते हैं।
  • वे कई कुलों में विभाजित हैं। गीला चावल (धान) उनके निर्वाह हेतु मुख्य भोजन है जिसकी खेती घाटी के तल में और पहाड़ियों पर बने छत के बगीचों में की जाती है।

गारो समुदाय

  • गारो, जो खुद को आचिक (A·chiks) कहते हैं, मेघालय की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है।
  • गारो की एक मज़बूत परंपरा है क्योंकि वे तिब्बत से आए हैं। उनकी कई बोलियाँ और सांस्कृतिक समूह हैं। उनमें से प्रत्येक मूल रूप से गारो हिल्स के एक विशेष क्षेत्र और बाहरी मैदानी भूमि पर बस गए।
  • हालाँकि आधुनिक गारो समुदाय की संस्कृति ईसाई धर्म से काफी प्रभावित रही है। इसमें सभी बच्चों को माता-पिता द्वारा समान देखभाल, अधिकार और महत्व दिया जाता है।
  • गारो विवाह दो महत्त्वपूर्ण कानूनों द्वारा नियंत्रित होता है जैसे- बहिर्विवाह और आकिम (A·Kim) एक ही कबीले से संबंधित हैं, एक ही कबीले के बीच विवाह की अनुमति नहीं है। 

आगे की राह

  • मुख्य भूमि के साथ क्षेत्र के बेहतर एकीकरण के लिये सरकार को संचार और कनेक्टिविटी, बुनियादी ढाँचे में सुधार करना चाहिये।
  • उग्रवादियों के हमले के त्वरित निपटान के लिये सख्त कानून और तेज़ आपराधिक न्याय प्रणाली लागू की जानी चाहिये।
  • सरकार को बेहतर सामरिक प्रतिक्रिया और देश के बाकी हिस्सों के साथ अधिक-से-अधिक वार्ताओं के माध्यम से सांस्कृतिक एवं सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये केंद्रीय बलों व राज्य बलों के बीच अधिक समन्वय को बढ़ावा देना चाहिये ताकि समग्र समावेशी विकास सुनिश्चित हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस