श्रीलंका के खिलाफ UNHRC का नया प्रस्ताव | 26 Feb 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रीलंका ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के सदस्य राज्यों से इस द्वीपीय राष्ट्र में मानवाधिकार को लेकर जवाबदेही और सामंजस्य पर आगामी प्रस्ताव को खारिज करने की अपील है।
- श्रीलंका अपने 26 वर्षीय गृहयुद्ध (1983-2009) के पीड़ितों को न्याय दिलाने एवं मानवाधिकारों का हनन करने वालों को पकड़ने के लिये नए प्रस्ताव का सामना कर रहा है।
- यह युद्ध मुख्य रूप से सिंहली प्रभुत्व वाली श्रीलंकाई सरकार और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) विद्रोही समूह के बीच एक संघर्ष था, जिसके बाद तमिल अल्पसंख्यकों के लिये एक अलग राज्य की स्थापना की उम्मीद की गई थी।
- श्रीलंकाई सेना और तमिल विद्रोहियों पर युद्ध के दौरान अत्याचार करने का आरोप लगाया गया, इस युद्ध में कम-से-कम 1,00,000 लोग मारे गए थे।
प्रमुख बिंदु:
- नया मसौदा प्रस्ताव/शून्य मसौदा:
- इसमें UNHRC रिपोर्ट के कुछ तत्त्व शामिल हैं, जिनमें साक्ष्य को संरक्षित करने में मानवाधिकार आयोग की क्षमता को मज़बूत करना, भविष्य की जवाबदेही प्रक्रियाओं के लिये रणनीति तैयार करना और सदस्य राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाली न्यायिक कार्यवाही का समर्थन करना शामिल है।
- UNHRC की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका की सरकार ने ऐसे समानांतर सैन्य बलों और आयोगों का निर्माण किया जो नागरिक कार्यों के अतिक्रमण के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण संस्थागत शक्ति संतुलन का अतिक्रमण करते थे। इससे लोकतांत्रिक लाभों, न्यायपालिका और अन्य प्रमुख संस्थानों की स्वतंत्रता को खतरा था।
- यह पिछले 30/1 प्रस्ताव से संबंधित आवश्यकताओं को लागू करने के लिये श्रीलंकाई सरकार को प्रोत्साहित करने के बारे में भी बात करता है।
- प्रस्ताव 30/1:
- यह प्रस्ताव इस बात की मांग करता है कि श्रीलंका एक विश्वसनीय न्यायिक प्रक्रिया स्थापित करे, जिसमें अधिकारों के हनन के लिये राष्ट्रमंडल और अन्य विदेशी न्यायाधीशों, रक्षा वकीलों, अधिकृत अभियोजकों और जाँचकर्त्ताओं की भागीदारी हो।
- हाल ही में श्रीलंका ने कहा कि प्रस्ताव 30/1 देश के खिलाफ था। इस प्रस्ताव ने उन प्रतिबद्धताओं की चर्चा की है जो श्रीलंकाई संविधान के अनुरूप नहीं थीं।
- प्रस्ताव 30/1:
- यह उच्चायुक्त कार्यालय को राष्ट्रीय सुलह और जवाबदेही तंत्र पर प्रगति की निगरानी करने के लिये प्रेरित करता है और मार्च में नई अद्यतित स्थिति के साथ सितंबर 2022 में पूरी रिपोर्ट जारी करने का प्रावधान करता है।
- इसमें UNHRC रिपोर्ट के कुछ तत्त्व शामिल हैं, जिनमें साक्ष्य को संरक्षित करने में मानवाधिकार आयोग की क्षमता को मज़बूत करना, भविष्य की जवाबदेही प्रक्रियाओं के लिये रणनीति तैयार करना और सदस्य राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाली न्यायिक कार्यवाही का समर्थन करना शामिल है।
- UNHRC का पक्ष:
- वर्तमान श्रीलंका सरकार जवाबदेही को रोकने के लिये पिछले अपराधों की जाँच में बाधा डाल रही थी, जिससे सत्य, न्याय और मुआवज़े की लड़ाई लड़ रहे परिवारों पर ‘विनाशकारी प्रभाव’ पड़ रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) के सदस्य राज्यों को आने वाले दिनों में और अधिक उल्लंघनों के शुरुआती चेतावनी संकेतों पर ध्यान देना चाहिये और उनके खिलाफ "अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई" करनी चाहिये, जैसे कि परिसंपत्ति मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले अपराधियों पर प्रतिबंध लगाना और उनकी संपत्ति ज़ब्त करना।
- राज्यों को श्रीलंका में सभी पक्षों द्वारा किये गए अंतर्राष्ट्रीय अपराधों की सार्वभौमिक अधिकार क्षेत्र के स्वीकृत सिद्धांतों के तहत अपने राष्ट्रीय न्यायालयों में जाँच करानी चाहिये।
- श्रीलंका के खिलाफ पिछले प्रस्तावों पर भारत का रुख:
- भारत ने वर्ष 2012 में श्रीलंका के खिलाफ मतदान किया था।
- वर्ष 2014 में भारत इससे दूर रहा।
आगे की राह:
- राज्य ही ऐतिहासिक समस्याओं के मूल में है, चाहे वह दमनकारी सैन्यीकरण हो, हितों की मज़बूती हो या कोलंबो में सत्ता का केंद्रीकरण। राज्य में सुधारों के लिये अंतर्राष्ट्रीय मंचों के बजाय अपने नागरिकों द्वारा उत्पन्न की गईं प्रत्यक्ष चुनौतियों का सामना करने की आवश्यकता है।
- चीन-श्रीलंका संबंध, श्रीलंकाई नृजातीय मुद्दा और UNHRC प्रस्ताव ने भारत तथा श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। भारत को श्रीलंका के साथ संबंध सुधारने के लिये अपने पारंपरिक और सांस्कृतिक
- संबंधों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। एक-दूसरे की चिंताओं और हितों की आपसी समझ से दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर हो सकते हैं।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस