हिंद महासागर में अंतर्जलीय संरचनाएँ | 10 Aug 2024

प्रिलिम्स के लिये:

गहन समुद्र, राहत, संरचनाएँ और प्रकार, मौर्य साम्राज्य। 

मेन्स के लिये:

समुद्र तल पर विभिन्न अंतर्जलीय संरचनाएँ/उच्चावच

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हिंद महासागर में तीन उच्चावच संरचनाओं का नाम अशोक, चंद्रगुप्त और कल्पतरु रखा गया, जो समुद्री विज्ञान में भारत के बढ़ते प्रभाव एवं हिंद महासागर की खोज व समझ के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

  • यह नामकरण भारत द्वारा प्रस्तावित किया गया था और अंतर्राष्ट्रीय हाइड्रोग्राफिक संगठन (IHO) और यूनेस्को के अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग (IOC) द्वारा अनुमोदित किया गया था

अंतर्राष्ट्रीय हाइड्रोग्राफिक संगठन (IHO)

  • यह वर्ष 1921 में स्थापित एक अंतर-सरकारी परामर्शदात्री और तकनीकी निकाय है, जिसका उद्देश्य नौ-वहन सुरक्षा को बढ़ाना और समुद्री पर्यावरण की रक्षा करना है।
  • भारत IHO का सदस्य है।
  • उद्देश्य:
    • राष्ट्रीय हाइड्रोग्राफिक कार्यालयों की गतिविधियों का समन्वय करना।
    • समुद्री चार्ट और दस्तावेज़ों में यथासंभव उच्चतम एकरूपता प्राप्त करना।
    • हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने और उनका उपयोग करने हेतु विश्वसनीय और कुशल तरीकों को अपनाने को बढ़ावा देना।
    • हाइड्रोग्राफी के विज्ञान और वर्णनात्मक समुद्र विज्ञान में उपयोग की जाने वाली तकनीकों को आगे बढ़ाना।

यूनेस्को का अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग (IOC)

  • यह समुद्री विज्ञान, क्षमता विकास, महासागर अवलोकन और सेवाओं, महासागर विज्ञान, सुनामी चेतावनी एवं महासागर साक्षरता में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • इसके 150 सदस्य देश हैं और भारत वर्ष 1946 से इसका सदस्य है।
  • IOC का कार्य आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिये विज्ञान एवं इसके अनुप्रयोगों की उन्नति को बढ़ावा देने के यूनेस्को के मिशन में योगदान देता है।
  • IOC सतत् विकास के लिये महासागर विज्ञान के संयुक्त राष्ट्र दशक 2021-2030 का समन्वय कर रहा है, जिसे ‘महासागर दशक’ के रूप में भी जाना जाता है।

अंतर्जलीय संरचनाओं के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • पृष्ठभूमि और महत्त्व: इन अंतर्जलीय संरचनाओं की खोज भारतीय दक्षिणी महासागर अनुसंधान कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसे वर्ष 2004 में शुरू किया गया था, जिसमें राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR) नोडल एजेंसी है।
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य जैव-भू-रसायन, जैव विविधता और हाइड्रो-डायनामिक्स सहित विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना है।
  • कुल संरचनाएँ:
    • हाल ही में हिंद महासागर में जोड़ी गई संरचनाओं सहित सात संरचनाओं का नाम अब मुख्य रूप से भारतीय वैज्ञानिकों के नाम पर या भारत द्वारा प्रस्तावित नामों के आधार पर रखा गया है।
    • पूर्व नामित संरचनाएँ:
      • रमन रिज/कटक (वर्ष 1992 में स्वीकृत): इसकी खोज वर्ष 1951 में एक अमेरिकी तेल पोत द्वारा की गई थी। इसका नाम भौतिक विज्ञानी और नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी.वी. रमन के नाम पर रखा गया था।
      • पणिक्कर सी-माउंट (वर्ष 1993 में स्वीकृत): इस समुद्री टीले की खोज वर्ष 1992 में भारत के शोध पोत सागर कन्या द्वारा की गई थी। इसका नाम प्रसिद्ध समुद्र विज्ञानी एन.के. पणिक्कर के नाम पर रखा गया है।
      • सागर कन्या सी-माउंट (वर्ष 1991 में स्वीकृत): वर्ष 1986 में इसकी खोज हेतु  सफल 22वें क्रूज़ के लिये, इस समुद्री टीले का नाम शोध पोत सागर कन्या के नाम पर ही रखा गया था।
      • डी.एन. वाडिया निमग्न द्वीप: इसका नाम भू-विज्ञानी डी.एन. वाडिया के नाम पर वर्ष 1993 में रखा गया था, जब वर्ष 1992 में सागर कन्या द्वारा अंतर्जल में ज्वालामुखी पर्वत (निमग्न द्वीप/Guyot) की खोज की गई थी।
    • हाल ही में नामित संरचनाएँ:
      • अशोक सी-माउंट: इसकी खोज वर्ष 2012 में हुई थी। यह लगभग 180 वर्ग किमी. में विस्तृत एक अंडाकार संरचना है और इसकी पहचान रूसी पोत अकादमिक निकोले स्त्राखोव का प्रयोग करके की गई थी।
      • कल्पतरु कटक: इसकी खोज वर्ष 2012 में हुई थी। यह लंबी कटक 430 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैली हुई है जो सागरीय जैव विविधता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
        • विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह पर्वतमाला विभिन्न प्रजातियों के लिये आवास, आश्रय और भोजन स्रोत उपलब्ध कराकर समुद्री जीवन हेतु आवश्यक सहायता प्रदान करती रही होगी।
      • चंद्रगुप्त रिज: यह कटक 675 वर्ग किलोमीटर में फैली एक लंबी संरचना है। इसकी पहचान वर्ष 2020 में भारतीय शोध पोत MGS सागर द्वारा की गई थी।

अशोक और चंद्रगुप्त कौन थे ?

  • चंद्रगुप्त मौर्य (350-295 ईसा पूर्व):
    • वह मगध के सम्राट और मौर्य वंश के संस्थापक थे, जिसने मगध में केंद्रित एक महत्त्वपूर्ण साम्राज्य की स्थापना की।
    • उन्होंने नंदों के पतन और कमज़ोरी का लाभ उठाकर चाणक्य (कौटिल्य) की सहायता से नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद को पराजित किया और स्वयं को सम्राट घोषित किया।
    • अंत में उन्होंने अपना सिंहासन त्याग दिया और जैन शिक्षक भद्रबाहु के शिष्य बन गए।
  • अशोक: वह मौर्य वंश के तीसरे शासक थे (चंद्रगुप्त मौर्य और बिंदुसार के बाद) और उन्होंने लगभग 269 ईसा पूर्व शासन किया था।
    • अशोक की धम्म नीति और बौद्ध धर्म के प्रसार के प्रयास उसके शासन के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। 
    • उन्होंने प्रियदासी और देवानामपिय की उपाधियाँ अपनाईं, जो उनके स्तंभ तथा शिलालेखों में देखी जा सकती हैं।

नोट: 

  • कल्पतरु एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "इच्छा-पूर्ति करने वाला वृक्ष।" हिंदू पौराणिक कथाओं में इसे प्रायः एक दिव्य वृक्ष के रूप में जाना जाता है जो इसका आशीर्वाद मांगने वालों की इच्छाएँ और अभिलाषाएँ पूरी करता है। यह अवधारणा प्रचुरता, समृद्धि और सपनों की पूर्ति का प्रतीक है।

महासागर तल पर विभिन्न अंतर्जलीय संरचनाएँ/उच्चावच क्या हैं?

  • परिचय: 
    • महासागर तल या समुद्र तल जल का वह निचला भाग है जो पृथ्वी की सतह के 70% से अधिक हिस्से को कवर करता है और इसमें फॉस्फोरस, सोना, चांदी, तांबा, जस्ता व निकल जैसे तत्त्व शामिल हैं। 
    • महासागरीय उच्चावच निर्माण के प्राथमिक कारण विवर्तनिकी प्लेटों, अपरदन, निक्षेपण व ज्वालामुखी प्रक्रियाओं के बीच होने वाली अन्योन्य क्रियाएँ हैं।
  • महासागर तल के क्षेत्र:
    • महाद्वीपीय मग्नतट:

      • महासागर तल का सबसे उथला और चौड़ा हिस्सा।
      • यह तट से महाद्वीप के किनारे तक फैला हुआ है, जिसकी महाद्वीपीय ढलान में तीक्ष्ण प्रवणता होती है।
      • यह समुद्री जीवन और मछली, तेल व गैस जैसे संसाधनों से समृद्ध है।
    • महाद्वीपीय ढाल:
      • महाद्वीपीय मग्नतट को वितलीय मैदान से जोड़ने वाली तीव्र ढाल 
      • गहन खड्ड और घाटियों से कटी हुई भू-संरचना जिनका निर्माण अंतर्जलीय भूस्खलन तथा अवसादी नदियों द्वारा हुआ है।
      • यह कुछ गहन समुद्री जीवों जैसे ऑक्टोपस, स्क्विड और एंगलरफिश का निवास स्थान है।
    • महाद्वीपीय उत्थान:
      • यह महाद्वीपीय सामग्री के मोटे अनुक्रमों से निर्मित हुआ है जो महाद्वीपीय ढाल और वितलीय मैदान के बीच जमा होता है। 
      • यह तलछट के नीचे की ओर प्रवाह, जल के नीचे की धाराओं द्वारा ले जाए गए कणों के जमा होने साथ ही ऊपर से निर्जीव व सजीव दोनों कणों के जमा होने जैसी प्रक्रियाओं से ऊपर उठ सकता है।
    • वितलीय मैदान:
      • महासागर तल का सबसे समतल भाग।
      • यह महासागर बेसिन के अधिकांश भाग को कवर करता है और समुद्र तल से 4,000 से 6,000 मीटर नीचे स्थित है।
      • यह महीन अवसादों की एक मोटी परत से ढका हुआ है जो महासागरीय धाराओं द्वारा लाया जाता है और समुद्र तल पर एकत्र हो जाता है।
      • यह पृथ्वी पर सबसे विचित्र और रहस्यमय जीवों जैसे कि विशाल ट्यूब वर्म, बायोल्यूमिनसेंट मीन और वैम्पायर स्क्विड का निवास स्थान है।
    • महासागरीय गर्त या खाइयाँ:
      • ये महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं। 
      • ये गर्त अपेक्षाकृत खड़े किनारों वाले संकीर्ण बेसिन होते हैं।
      • अपने चारों ओर की महासागरीय तली की अपेक्षा ये 3 से 5 किमी. तक गहरे होते हैं। 
      • ये महाद्वीपीय ढाल के आधार तथा द्वीपीय चापों के पास स्थित होते हैं एवं सक्रिय ज्वालामुखी तथा प्रबल भूकंप वाले क्षेत्र होते हैं। 
      • यही कारण है कि ये प्लेटों के संचलन के अध्ययन के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। 
      • अभी तक लगभग 57 गर्तों को खोजा गया है, जिनमें से 32 प्रशांत महासागर में, 19 अटलांटिक महासागर में एवं 6 हिंद महासागर में हैं।
  • उच्चावच की लघु आकृतियाँ :
    • जलमग्न खड्ड: ये महाद्वीपीय किनारों पर पाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण भू-वैज्ञानिक संरचनाएँ हैं, जो ऊपरी महाद्वीपीय मग्नतट और वितलीय मैदान के बीच संपर्क का कार्य करती हैं।  ये गहरे खड्ड होते हैं। जिनमें से कुछ की तुलना कोलोरेडो नदी की ग्रैण्ड कैनियन से की जा सकती है।
      • ये गहरे, संकरे खड्ड हैं जिनमें ऊर्ध्वाधर पार्श्व भित्तियाँ तथा भू-घाटियों के समान तीव्र ढलानें होती हैं।
    • मध्य महासागरीय कटक: ये अपसारी प्लेट सीमाओं के साथ पाए जाते हैं, जहाँ टेक्टोनिक/विवर्तनिक प्लेटें पृथक् हो जाती हैं और इनके बीच का अंतराल मैग्मा से भर जाता है, जो ठोस होकर नई महासागरीय पर्पटी का निर्माण करता है।
      • ये महासागरीय कटक पर्वतों की दो शृंखलाओं से बने होते हैं, जो एक विशाल अवनमन द्वारा अलग किये गए होते हैं। इन पर्वत शृंखलाओं के शिखर की ऊँचाई 2,500 मीटर तक हो सकती है तथा इनमें से कुछ समुद्र की सतह तक भी पहुँच सकती हैं। 
    • समुद्री टीले और जलमग्न द्वीप: समुद्री टीले ज्वालामुखी उद्गार द्वारा निर्मित जलमग्न पर्वत हैं जो प्रायः प्लेट सीमाओं के पास समुद्र तली से सैकड़ों या हज़ारों फीट ऊपर की ओर उठे रहते हैं। उदाहरण के लिये एम्पेरर सीमाउंट, जो प्रशांत महासागर में हवाई द्वीप का विस्तार है।
      • जलमग्न द्वीप चपटे शिखर वाले समुद्री टीले हैं, जिनके बनने की अवस्थाएँ क्रमिक अवतलन के साक्ष्यों द्वारा प्रदर्शित होती हैं। अकेले प्रशांत महासागर में अनुमानतः 10,000 से अधिक समुद्री टीले एवंजलमग्न द्वीप स्थित हैं।
    • प्रवाल द्वीप: यह प्रवाल भित्तियों या द्वीपों की एक वलयाकार संरचना है जो लैगून/गहरे अवनमन को चरों ओर से घेरता है, सामान्यतः समुद्री पर्वत विकसित होते हैं।
      • ये संरचनाएँ उष्णकटिबंधीय महासागरों में निम्न द्वीपों से बनी हैं, जिनमें चट्टान एक केंद्रीय गर्त, जिसमें विभिन्न प्रकार के जल अर्थात् अलवण जल या लवण जल हो सकते हैं, के चारों ओर स्थित है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. महासागरीय तल पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के महासागरीय उच्चावच के अभिलक्षण क्या हैं?