ब्रिटेन का हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर झुकाव | 29 Apr 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ब्रिटिश सरकार ने कहा कि यूके कैरियर स्ट्राइक ग्रुप को “दुनिया भर के मध्य स्थापित करने के लिये भारत, जापान, कोरिया गणराज्य और सिंगापुर की यात्राएँ करनी होंगी।”
- यूरोपीय संघ ने घोषणा की थी कि वह लोकतांत्रिक शासन के आधार पर क्षेत्र की स्थिरता, सुरक्षा, समृद्धि और सतत् विकास में योगदान देने के उद्देश्य से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी रणनीतिक दृष्टि, उपस्थिति और कार्यों को मज़बूत करेगा।
प्रमुख बिंदु:
यूके कैरियर स्ट्राइक ग्रुप (CSG) के बारे में:
- कैरियर स्ट्राइक ग्रुप (CSG):
- कैरियर स्ट्राइक ग्रुप अक्सर मंच के बजाय एक विशिष्ट मिशन के लिये बनाए जाते हैं।
- कैरियर आम तौर पर एक बड़े संरचना का हिस्सा होता है, जिसमें आमतौर पर विध्वंसक, फ्रिगेट और पनडुब्बी के साथ ही लॉजिस्टिक-सपोर्ट जहाज़ भी शामिल होते हैं।
- कैरियर का प्रारंभिक स्वरूप आक्रामक वायु शक्ति प्रदान करना है, जबकि अन्य पोत व्यापक रक्षा और समर्थन की भूमिका प्रदान करते हैं और आक्रामक रूप (जैसे कि मिसाइल प्रणाली प्रक्षेपण) में भी भाग ले सकते हैं।
- यूके कैरियर स्ट्राइक ग्रुप (CSG):
- इसका नेतृत्त्व विमानवाहक पोत एचएमएस क्वीन एलिजाबेथ द्वारा किया जाएगा।
- यह उत्तरी अटलांटिक से हिंद-प्रशांत तक एक वैश्विक तैनाती होगी ।
- यह 40 से अधिक देशों में 70 से अधिक कार्यो के लिये 28-सप्ताह की तैनाती में 26,000 समुद्री मील की दूरी तय करेगा।
- ब्रिटेन की विदेश नीति में हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण के तहत ब्रिटेन का कैरियर स्ट्राइक ग्रुप भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर के साथ संयुक्त संचालन करेगा।
- इंडो-पैसिफिक में यूके CSG की तैनाती:
- आगामी तैनाती क्षेत्र में पहले से ही गहरी रक्षा साझेदारी को बढ़ावा देगी, जहाँ यूके एक अधिक स्थायी क्षेत्रीय रक्षा और सुरक्षा उपस्थिति के लिये प्रतिबद्ध है।
भारत-ब्रिटेन संबंध:
- राजनीतिक सहयोग:
- वर्ष 2004 में दोनों देशों के बीच सामरिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर किया।
- ब्रिटेन ने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिये अपने समर्थन की पुष्टि की है।
- आर्थिक सहयोग:
- हाल ही में यूरोपीय संघ के साथ भागीदारी के तहत भारत के कुशल श्रम, तकनीकी सहायता और प्रचलित बाज़ार ने ब्रिटेन के लिये बहुत सारे मार्ग प्रशस्त किये है।
- विश्व पटल पर भारत भी अब 5G की ओर कदम बढ़ा रहा है। दूरसंचार क्षेत्र में चीन के स्थायित्व को कम करने के लिये ब्रिटेन को भारत की मदद की आवश्यकता होगी।
- जी 20 देशों में ब्रिटेन भारत में सबसे बड़े निवेशकों में से एक है।
- रक्षा अभ्यास:
- वायु सेना का अभ्यास 'इंद्रधनुष '।
- नौसेना अभ्यास कोंकण।
- सैन्य अभ्यास: अजेय वारियर
इंडो-पैसिफिक: द न्यू पॉइंट ऑफ कन्वर्जेंस:
- यूके भारत के साथ हिंद-प्रशांत में अपने सामरिक महत्त्व का विस्तार करते हुए इस क्षेत्र में शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में प्रमुखता प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहा है, दोनों देशों की आकांक्षाएँ और भविष्य दोनों परस्पर जुड़े हुए प्रतीत होते हैं।
- दृष्टिकोण का एक क्षेत्र सैन्य गतिविधियों या अभ्यास को बढ़ाने के लिये होना चाहिये।
- हालाँकि सेवा-विशिष्ट संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास मौजूद हैं, यूके सैन्य अभ्यास की विशेषताएँ अमेरिका और भारत के अभ्यास से अलग है।
- आधारभूत समझौतों की कमी एक सीमित कारक के रूप में भी काम कर सकती है। जबकि संयुक्त प्रशिक्षण पर एक समझौता ज्ञापन विकसित किया जा रहा है जिसमें एक सैन्य रसद समझौते पर जल्द ही हस्ताक्षर होने की उम्मीद है।
- यह भारत और यूके को एक-दूसरे के पर सक्रिय पहुँच प्रदान करेगा और लॉजिस्टिक समर्थन प्राप्त करने के लिये भुगतान प्रक्रियाओं को औपचारिक रूप देगा, जैसे सर्विसिंग और पुनः ईंधन भरना।
- ब्रिटेन, केन्या, ब्रुनेई, बहरीन, ओमान, सिंगापुर, और ब्रिटिश हिंद महासागरीय क्षेत्र में अपने बेस स्थापित करेगा। इस तरह का बुनियादी ढाँचा पहले से ही होने से न केवल इस क्षेत्र में अपनी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि अपने सहयोगियों के लिये भी मूल्यवान होगा।
- भारत इन अड्डो तक पहुँच के लिये हिंद महासागर में अपना स्थायित्व बढ़ाएगा।
- जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ काम करना, एक-दूसरे की संपत्ति की ताकत का लाभ उठाकर समुद्री डोमेन जागरूकता और खुफिया साझा करने के क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग की बहुत गुंजाइश है।
- इस संबंध में, भारत, ऑस्ट्रेलिया और यूके के साथ रक्षा खुफिया साझेदारी को बढ़ाने की जापान की पहल एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
आगे की राह
- भारत-यूके के बीच बढ़ते रक्षा संबंध अब केवल रक्षा उत्पादन, क्रेता-विक्रेता होने तक सीमित नहीं रहेगा।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में निकट समुद्री सहयोग और एक संयुक्त दृष्टिकोण के माध्यम से क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने की दिशा में अहम कदम है साथ ही दोनों देशों के पास कार्रवाई के लिये वास्तविक व्यापक रणनीतिक साझेदारी बनाने की क्षमता है।