जैव विविधता और पर्यावरण
दक्षिण भारत में वायु प्रदूषण में वृद्धि
- 27 Nov 2020
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम मेन्स के लिये:प्रदूषण में हो रही वृद्धि की चुनौतियाँ और इसके नियंत्रण हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, दक्षिणी और पूर्वी भारत में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि की दर सिंधु-गंगा के मैदान (IGP) से कहीं अधिक है।
- इस अध्ययन में पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों के प्रदूषण स्तर में शहरी क्षेत्रों के समान वृद्धि देखने को मिली है।
प्रमुख बिंदु:
अध्ययन के संदर्भ में:
- इस अध्ययन को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और आईआईटी-दिल्ली द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया गया था तथा इसके तहत वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2011 तक के आँकड़ों की समीक्षा की गई।
- विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप आने वाले वर्षों में प्रदूषण में गिरावट की संभावना की जा रही है, हालाँकि वर्तमान में वर्ष 2020 के आँकड़ों को एकत्र करने और उनकी समीक्षा की प्रक्रिया अभी भी जारी है।
- उपग्रह डेटा के आधार पर किया गया यह अध्ययन, वायु प्रदूषण की स्थानिक रूप से समीक्षा के लिये किया गया अपनी तरह का पहला प्रयास है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार के लिये राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत भविष्य की नीतियों के निर्माण हेतु प्रदूषण की स्थानिक मैपिंग महत्त्वपूर्ण होगी।
अध्ययन के परिणाम:
- इस अध्ययन के अनुसार, पूर्वी और दक्षिणी भारत में PM2.5 की वृद्धि की दर प्रति वर्ष इस अवधि के दौरान 1.6% से अधिक रही, जबकि IGP में यह प्रतिवर्ष 1.2% से कम ही रही।
- PM 2.5 ऐसे प्रदूषक कण होते हैं जिनका आकार आमतौर पर 2.5 माइक्रोमीटर या इससे छोटा होता है, ये सूक्ष्म कण श्वास के साथ मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
- यह पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और जलवायु को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख प्रदूषक है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2019 में 1 लाख से अधिक की आबादी वाले देश के 436 शहर/कस्बों के 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg / m3) के ‘राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक’ (NAAQS) को पार कर लिया था।
- देश में जनसंख्या-भारित 20-वर्ष का औसत PM2.5, 57.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पाया गया है, जिसमें वर्ष 2000-09 की तुलना में वर्ष 2010-19 के बीच अधिक वृद्धि देखी गई है।
- वर्ष 2019 तक, भारत में 99.5% ज़िले विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (10 μg/m3) को पूरा नहीं कर सके थे।
राज्यवार आँकड़े:
- जम्मू और कश्मीर (J & K), लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड को छोड़कर देश के अन्य सभी राज्यों में परिवेशी PM2.5 राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक के राष्ट्रीय औसत 40 μg/m3 को पार कर जाता है।
- IGP, जिसकी आबादी 70 करोड़ से अधिक है और पश्चिमी शुष्क क्षेत्र में PM2.5 का स्तर वार्षिक NAAQS से दोगुना पाया गया।
- पूर्वी भारत में वायु प्रदूषण में सबसे अधिक वृद्धि ओडिशा और छत्तीसगढ़ में दर्ज की गई है, इसके प्रमुख कारणों में इस क्षेत्र में हो रही खनन गतिविधियाँ और तापीय कोयला बिजली संयंत्रों से होने वाले प्रदूषण आदि शामिल हैं।
- दक्षिण भारत में, बेंगलुरु या हैदराबाद जैसे शहरों के आसपास उच्च शहरीकरण के कारण इस क्षेत्र में उत्सर्जन वृद्धि हुई है।
- पूर्वी और प्रायद्वीपीय भारत में प्रतिकूल मौसम, उत्सर्जन में वृद्धि के कारण पीएम 2.5 में भी वृद्धि हुई है।
निहितार्थ:
- हालाँकि IGP क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर निरपेक्ष रूप से सबसे अधिक है, परंतु दक्षिणी भारत और पूर्वी भारत के कुछ क्षेत्रों में वायु प्रदूषण में वृद्धि की दर IGP की तुलना में अधिक है।
- यदि प्रदूषण नियंत्रण को लेकर केवल IGP पर ही ध्यान केंद्रित रहता है और दक्षिणी तथा पूर्वी भारत में बढ़ते प्रदूषण स्तर पर समय रहते कार्रवाई नहीं की जाती है, तो अगले 10 वर्षों में इन क्षेत्रों में भी वही समस्या देखने को मिलेगी जो वर्तमान में उत्तरी भारत में है।
शहरी-ग्रामीण विभाजन:
- इस अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण शहरी विभाजन से परे PM 2.5 के स्तर में समान रूप से वृद्धि देखी गई है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2001 से वर्ष 2015 के बीच राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में PM 2.5 के स्तर में 10.9% की वृद्धि देखी गई, परंतु इसी अवधि के दौरान ग्रामीण भारत में भी PM 2.5 के स्तर में 11.9% की वृद्धि देखी गई।
- ग्रामीण भारत में वायु प्रदूषण में हो रही स्थिर वृद्धि का एक कारण घरेलू उपयोग के लिये ठोस ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता है, जो कि भारत में परिवेशी PM 2.5 की वृद्धि के लिये सबसे अधिक उत्तरदायी है।
- इससे स्पष्ट होता है कि खराब वायु गुणवत्ता अब भारत में एक शहरी केंद्रित समस्या नहीं रह गई है।
- देश में वायु प्रदूषण नीतियों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की समस्या की चर्चा कम ही की जाती है और वर्तमान में भी ये नीतियाँ शहरों पर ही केंद्रित रहती हैं।
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) जैसी योजनाओं के माध्यम से प्रदूषण के स्तर में काफी गिरावट आने का अनुमान है, परंतु इसकी प्रगति की निगरानी हेतु एक विश्वसनीय तंत्र का अभाव एक बड़ी चुनौती है।
- चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू स्रोत परिवेशी PM2.5 की वृद्धि में 50% से अधिक का योगदान देते हैं, ऐसे में PMUY के सफल कार्यान्वयन के माध्यम से इस वृद्धि को रोकने के साथ इसकी दिशा को भी बदला जा सकता है।