भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति 2023-24
- 30 Dec 2024
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, अनर्जक परिसंपत्तियाँ, पूंजी पर्याप्तता अनुपात, शहरी सहकारी बैंक, डार्क पैटर्न, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था पर अरक्षित ऋणों का प्रभाव, वित्तीय स्थिरता और मुद्रास्फीति प्रबंधन, ऋण चूक तथा NPA के आर्थिक परिणाम |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अरक्षित ऋण और निजी ऋण पर बढ़ती निर्भरता पर चिंता व्यक्त करते हुए अपनी वार्षिक रिपोर्ट भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति तथा प्रगति वर्ष 2023-24 में अधिक सतर्कता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- सकल अनर्जक परिसंपत्तियों (GNPA) में लगातार गिरावट और बैंकों की अविरत लाभप्रदता के बावजूद, केंद्रीय बैंक ने वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में उभरते जोखिमों का निवारण किये जाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
RBI के रिपोर्ट संबंधी मुख्य तथ्य क्या हैं?
- NPA में गिरावट: GNPA मार्च 2024 में 13 वर्ष के निम्नतम स्तर 2.7% पर पहुँच गया, जो सितंबर वर्ष 2024 तक और गिरकर 2.5% हो गया।
- सितंबर वर्ष 2024 में खुदरा ऋण खंड का GNPA अनुपात सबसे कम, 1.2% था, जबकि कृषि ऋण में सबसे अधिक GNPA अनुपात 6.2% था।
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शिक्षा ऋणों के लिये GNPA अनुपात में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जो मार्च 2023 में 5.8% से घटकर सितंबर वर्ष 2024 तक 2.7% हो गया, हालाँकि यह खुदरा क्षेत्रों में सबसे अधिक है।
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लाभप्रदता: बैंकों की लाभप्रदता में वृद्धि जारी रही जिसमें परिसंपत्तियों पर प्रतिलाभ (RoA) 1.4% (2024-25 की पहली छमाही) और इक्विटी पर प्रतिलाभ (RoE) वित्त वर्ष 24 में 14.6% रहा, जो लगातार छह वर्षों से लाभ में वृद्धि को दर्शाता है।
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NBFC क्षेत्र में बेहतर परिसंपत्ति गुणवत्ता और सुदृढ़ पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CRAR) के साथ दोहरे अंक की ऋण वृद्धि हुई।
- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) की समेकित बैलेंस शीट में ऋण और जमा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई तथा शहरी सहकारी बैंकों (UCB) की परिसंपत्ति गुणवत्ता, पूंजी बफर एवं लाभप्रदता में सुधार हुआ।
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- अरक्षित ऋणों की बढ़ती हिस्सेदारी: SCB के कुल ऋण में अरक्षित ऋणों की हिस्सेदारी मार्च 2023 में बढ़कर 25.5% हो गई, जो मार्च 2024 में नगण्य गिरावट के साथ 25.3% हो गई।
- इसकी प्रतिक्रिया में RBI ने नवंबर 2024 में कड़े मानदंड प्रस्तुत करने के साथ जोखिम भार बढ़ाया और जोखिम सीमा (किसी उधारकर्त्ता या समूह को अधिकतम उधार) निर्धारित की।
- RBI ने टॉप-अप ऋणों (जिन्हें प्रायः न्यूनतम जाँच-पड़ताल एवं दिशा-निर्देशों के प्रति कमज़ोर अनुपालन के साथ स्वीकृत किया जाता है) पर भी चिंता व्यक्त की।
- वर्ष 2023 में RBI ने मूल्यह्रास वाली चल संपत्तियों के आधार पर आवंटित टॉप-अप ऋणों को असुरक्षित ऋण के रूप में संदर्भित किया जाना अनिवार्य कर दिया।
- डार्क पैटर्न का उदय: इस रिपोर्ट में डार्क पैटर्न पर चिंता व्यक्त की गई। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने ऐसी प्रथाओं को विनियमित करने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं तथा RBI द्वारा विनियमित संस्थाओं (RE) के बीच डार्क पैटर्न की व्यापकता का मूल्यांकन किया जा रहा है।
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कर्मचारियों का अधिक पलायन: कर्मचारी पलायन (संगठन छोड़ने वाले कर्मचारी) की दर पिछले तीन वर्षों में 25% तक बढ़ गई है जिससे सेवा में व्यवधान, संस्थागत ज्ञान की हानि एवं उच्च भर्ती लागत जैसे परिचालन जोखिमों के संबंध में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- स्लिपेज अनुपात: वर्ष 2023-24 में स्लिपेज अनुपात में सुधार हुआ है। लगातार तीसरे वर्ष, निजी क्षेत्र के बैंकों (PVB) में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) की तुलना में स्लिपेज अनुपात अधिक रहा है, क्योंकि PVB के NPA में काफी वृद्धि हुई है।
- RBI की सिफारिशें:
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RBI ने बैंकों को कर्मचारियों की संख्या में कमी को कम करने के लिये बेहतर ऑनबोर्डिंग, प्रशिक्षण, मार्गदर्शन, प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ एवं सहायक कार्यस्थल संस्कृति को बढ़ावा देने जैसी रणनीतियाँ अपनाने की सिफारिश की।
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RBI ने बैंकों से ऋण मूल्यांकन प्रक्रियाओं एवं विवेकपूर्ण दिशा-निर्देशों का बेहतर अनुपालन सुनिश्चित करने का आग्रह (विशेष रूप से असुरक्षित ऋणों के संबंध में बढ़ते जोखिमों के मद्देनजर) किया है।
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प्रमुख शब्दावली
- परिसंपत्तियों पर प्रतिफल (RoA): इसका आशय किसी व्यवसाय की कुल परिसंपत्तियों के सापेक्ष लाभप्रदता से है।
- इक्विटी पर रिटर्न (RoE): इसका आशय कुल शेयरधारकों की इक्विटी के सापेक्ष किसी कंपनी के वार्षिक रिटर्न (शुद्ध आय) का मापन है।
- पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CRAR): यह बैंक की घाटे को अवशोषित करने एवं स्थिरता सुनिश्चित करने, जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा करने एवं वित्तीय प्रणाली दक्षता को बढ़ावा देने की क्षमता का मापन है।
- स्लिपेज अनुपात: यह वर्ष के आरंभ में मानक अग्रिमों के हिस्से के रूप में NPA में नई वृद्धि का मापन है।
- डार्क पैटर्न: डार्क पैटर्न अनैतिक उपयोगकर्त्ता इंटरफेस (UI)/उपयोगकर्त्ता अनुभव (UX) युक्तियाँ हैं, जिसके तहत उपयोगकर्त्ताओं को धोखा देकर उन्हें ऐसे कार्य हेतु प्रेरित किया जाता है जिन्हें वे नहीं करना चाहते हैं, जिससे कंपनी को लाभ होता है।
- इन प्रथाओं से उपयोगकर्त्ता नियंत्रण एवं पारदर्शिता सीमित होती हैं जैसे- छिपी हुई लागतें, जटिल रद्दीकरण विकल्प, भ्रामक विज्ञापन या निशुल्क परीक्षण के बाद स्वतः शुल्क लेना।
- उदाहरण: छद्म विज्ञापन और लेन-देन हेतु अकाउंट ओपनिंग का दबाव।
भारत की अर्थव्यवस्था पर बढ़ते असुरक्षित ऋणों का क्या प्रभाव है?
- उच्च डिफाॅल्ट दर और वित्तीय दबाव: जैसे-जैसे अधिक असुरक्षित ऋण जारी किये जाते हैं, डिफाॅल्ट का जोखिम बढ़ता है, जिससे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में वृद्धि होती है और बैंकों तथा NBFC पर वित्तीय दबाव बढ़ता है।
- मुद्रास्फीति दबाव: बढ़ते डिफॉल्ट और उच्च ब्याज दरों के कारण प्रयोज्य आय कम हो जाती है, विवेकाधीन व्यय पर अंकुश लगता है, मुद्रास्फीति बढ़ती है तथा आर्थिक विकास धीमा हो जाता है।
- उपभोक्ताओं पर प्रभाव: उपभोक्ताओं के लिये, असुरक्षित ऋण की उपलब्धता ऋण तक आसान पहुँच प्रदान कर सकती है।
- हालाँकि इससे तात्पर्य उच्च ब्याज दरें और संभावित ऋण जाल भी है यदि इसे ज़िम्मेदारी से प्रबंधित नहीं किया गया।
- ग्रामीण और शहरी प्रभाव: उच्च लागत वाले ऋणों में वृद्धि के कारण ग्रामीण और शहरी दोनों उपभोक्ताओं को वित्तीय अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उपभोक्ता विश्वास में कमी आ रही है।
आगे की राह
- ऋण प्रथाओं को मज़बूत बनाना: उधारकर्त्ता जोखिम का आकलन करने और विफलता को कम करने के लिये प्रौद्योगिकी तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करके ऋण मूल्यांकन प्रक्रियाओं को मज़बूत बनाना।
- उपभोक्ता संरक्षण को बढ़ावा देना: वित्तीय साक्षरता, ऋण उत्पादों में पारदर्शिता और ऋण देने में डार्क पैटर्न के सख्त विनियमन पर ध्यान केंद्रित करना।
- मुद्रास्फीति के दबावों का प्रबंधन करना: मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और प्रयोज्य आय की रक्षा करने के लिये आर्थिक विकास के साथ ब्याज दरों को संतुलित करना।
- परिसंपत्ति गुणवत्ता को मज़बूत करना: ऋण पोर्टफोलियो की सक्रिय निगरानी करना, मज़बूत पूंजी बफर बनाना और जोखिम को कम करने के लिये दबाव परीक्षण करना।
- विनियामक निरीक्षण में सुधार: वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिये विवेकपूर्ण ऋण प्रथाओं और नियमित लेखा-परीक्षणों का कठोर प्रवर्तन सुनिश्चित करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और व्यापक अर्थव्यवस्था पर बढ़ते असुरक्षित ऋणों के प्रभाव पर चर्चा कीजिये। भारतीय रिज़र्व बैंक इन उभरते जोखिमों का समाधान कैसे कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. वित्तीय संस्थाओं व बीमा कंपनियों द्वारा की गई उत्पाद विविधता के फलस्वरूप उत्पादों व सेवाओं में उत्पन्न परस्पर व्यापन ने सेबी (SEBI) व इरडा (IRDA) नामक दोनों नियामक अभिकरणों के विलय के प्रकरण को प्रबल बनाया है। औचित्य सिद्ध कीजिये। (2013) |