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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ट्रांस फैटी एसिड

  • 04 Jan 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) ने खाद्य सुरक्षा और मानक (बिक्री पर निषेध और प्रतिबंध) विनियम, 2011 में संशोधन करते हुए तेल और वसा में ट्रांस फैटी एसिड (TFA) की मात्रा वर्तमान अनुमन्य मात्रा 5% से वर्ष 2021 के लिये 3% और 2022 तक 2% बढ़ा दी है।

  • ये विनियमन विभिन्न खाद्य उत्पादों, सामग्रियों और उनके सम्मिश्रणों की बिक्री से जुड़ी निषेधाज्ञाओं एवं प्रतिबंधों से संबंधित हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • संशोधित विनियमन खाद्य रिफाइंड तेलों, वनस्पति (आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत तेलों), मार्ज़रीन (कृत्रिम मक्खन), बेकरी खस्ताकारों (मक्खन आदि जो मैदे वाली खस्ता वस्तुओं के बनाने में प्रयोग किये जाते हैं) तथा भोजन पकाने के अन्य माध्यमों जैसे- वेजिटेबल फैट स्प्रेड एवं मिक्स्ड फैट स्प्रेड आदि पर लागू होते हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैटी एसिड के सेवन से विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष लगभग 5.4 लाख मौतें होती हैं।
  • FSSAI के ये नियम महामारी के ऐसे समय में आए हैं जब गैर-संचारी रोगों (NCD) के बोझ में वृद्धि हुई है।
    • ट्रांस-फैट के सेवन से हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
    • NCD के कारण होने वाली अधिकाँश मौतें हृदय रोगों के कारण होती हैं।
  • इससे पहले वर्ष 2011 में भारत ने पहली बार एक विनियमन पारित किया जिसके तहत तेल और वसा में TFA की सीमा 10% निर्धारित की गई थी। वर्ष 2015 में इस सीमा को घटाकर 5% कर दिया गया।

ट्रांस फैट:

  • कृत्रिम TFA तब बनते हैं जब शुद्ध घी/मक्खन के समान फैट/वसा के उत्पादन में तेल के साथ  हाइड्रोजन की प्रतिक्रिया कराई जाती है।
  • ट्रांस फैटी एसिड अथवा ट्रांस फैट, सबसे हानिकारक प्रकार के फैट/वसा हैं जो मानव शरीर पर किसी भी अन्य आहार घटक की तुलना में अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
  • यद्यपि इन वसाओं को बड़े पैमाने पर कृत्रिम रूप से उत्पादित किया जाता है, ये बहुत ही कम मात्रा में प्राकृतिक रूप में भी पाए जा सकते हैं। इस प्रकार हमारे आहार में, ये कृत्रिम TFA और/या प्राकृतिक TFA के रूप में मौजूद हो सकते हैं।
  • हमारे आहार में कृत्रिम TFAs के प्रमुख स्रोत आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत वनस्पति तेल (PHVO)/ वनस्पति/मार्ज़रीन हैं जबकि प्राकृतिक TFAs मीट और डेयरी उत्पादों में (बहुत ही कम मात्रा में) पाए जाते हैं।
  • उपयोग:
    • TFA युक्त तेलों को लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकता है ये भोजन को वांछित आकार और स्वरुप प्रदान करते हैं तथा आसानी से 'शुद्ध घी' के विकल्प के रूप में प्रयोग किये जा सकते हैं। तुलनात्मक रूप से इनकी लागत बहुत ही कम होती है एवं इस प्रकार ये लाभ/बचत में वृद्धि करते हैं।
  • हानिकारक प्रभाव:
    • TFAs के सेवन से संतृप्त वसा की तुलना में हृदय रोगों का खतरा अधिक होता है। संतृप्त वसा कुल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाती है जबकि TFA न केवल कुल कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि करते हैं बल्कि ह्रदय रोगों से बचाने में मदद करने वाले अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL) को भी कम करते हैं।
    • यह मोटापा, टाइप 2 मधुमेह, चयापचय सिंड्रोम, इंसुलिन प्रतिरोध, बांझपन, कुछ विशेष प्रकार के कैंसर आदि की वृद्धि में सहायक है और भ्रूण के विकास को भी प्रभावित करता है जिसके परिणामस्वरूप पैदा होने वाले बच्चे को नुकसान पहुँच सकता है।
    • मेटाबोलिक सिंड्रोम में उच्च रक्तचाप, उच्च रक्त शर्करा, कमर के आस-पास अतिरिक्त फैट/चर्बी और कोलेस्ट्रॉल का  असामान्य स्तर शामिल हैं। सिंड्रोम से व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।

TFA सेवन को कम करने के प्रयास:

    • FSSAI ने TFA मुक्त उत्पादों को बढ़ावा देने हेतु स्वैच्छिक लेबलिंग के लिये "ट्रांस फैट फ्री" लोगो लॉन्च किया। लेबल का उपयोग बेकरी, स्थानीय खाद्य आउटलेट्स एवं दुकानों द्वारा किया जा सकता है जिसमें TFA  0.2 प्रति 100 ग्राम/मिली. से अधिक नहीं होता है।
    • FSSAI ने वर्ष 2022 तक खाद्य आपूर्ति में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट को खत्म करने के लिये एक नया सामूहिक मीडिया अभियान "हार्ट अटैक रिवाइंड" शुरू किया।
    • "हार्ट अटैक रिवाइंड" जुलाई, 2018 में लॉन्च किये गए "ईट राइट" नामक अभियान का अनुवर्ती है।
      • खाद्य तेल उद्योगों ने वर्ष 2022 तक नमक, चीनी, संतृप्त वसा और ट्रांस फैट सामग्री के स्तर को 2% तक कम करने का संकल्प लिया है।
      • 'स्वस्थ भारत यात्रा’ नागरिकों को खाद्य सुरक्षा, खाद्य मिलावट और स्वस्थ आहारों से संबद्ध मुद्दों से जोड़ने के लिये "ईट राईट" अभियान के तहत शुरू किया गया एक पैन-इंडिया साइक्लोथॉन है।राष्ट्रीय स्तर पर:
  • वैश्विक स्तर पर:
    • WHO ने वैश्विक स्तर पर वर्ष 2023 तक औद्योगिक रूप से उत्पादित खाद्य तेलों में ट्रांस-फैट के उन्मूलन हेतु वर्ष 2018 में REPLACE नामक एक अभियान शुरू किया।

स्रोत: द हिंदू

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