महामारी का अर्थशास्त्र | 25 Apr 2020
प्रीलिम्स के लियेCOVID-19, राजकोषीय घाटा, प्रत्यक्ष मुद्रीकरण मेन्स के लियेCOVID-19 से निपटने हेतु किये गए प्रयास, प्रत्यक्ष मुद्रीकरण की सीमाएँ |
चर्चा में क्यों?
- कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण लोगों की आय के स्तर में गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप खपत के स्तर में भी गिरावट आई है।
प्रमुख बिंदु
- जिस प्रकार देश में कोरोनावायरस का प्रकोप बढ़ रहा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि पहले से ही धीमी गति से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था आगामी समय में पूर्ण रूप से मंदी की चपेट में आ सकती है।
- विभिन्न संस्थाओं द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार, चालू वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि अपेक्षाकृत काफी धीमी रह सकती है, वहीं विश्व के कुछ देश तो संकुचन की ओर भी जा सकते हैं।
गिरावट का कारण
- अन्य शब्दों में कहें तो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं (जैसे- वाहन और एयर कंडीशनर) तथा सेवाओं (जैसे- पर्यटन और परिवहन) की समग्र मांग में गिरावट आई है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था की समग्र मांग में गिरावट का प्रभाव अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि दर पर पड़ा है।
- हालाँकि देश की समग्र मांग में गिरावट कोरोनावायरस महामारी से पूर्व भी देखी जा रही थी, बीते वर्ष अक्तूबर में अपनी मौद्रिक नीति रिपोर्ट में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने निजी खपत में हो रही गिरावट के रुझान पर चिंता व्यक्त की थी। इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक आम लोगों द्वारा की जाने वाली मांग पर ही टिकी हुई है।
- ऐसे में प्रश्न उठता है कि मांग को बढ़ावा देने के लिये क्या किया जा सकता है? अधिक मांग के लिये लोगों को अधिक पैसे की आवश्यकता होगी, किंतु भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही वित्तीय संकट से जूझ रही है।
अर्थव्यवस्था को बचाने हेतु किये गए प्रयास
- कोरोनावायरस जनित मंदी की आशंका को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) अर्थव्यवस्था की वित्तीय प्रणाली में तरलता को बढ़ावा देने की भरपूर कोशिश कर रहा है। RBI ने वित्तीय बाज़ार से सरकारी बॉन्ड (Government Bonds) खरीद कर वित्तीय बाज़ार को तरलता प्रदान की है।
- हालाँकि जोखिम-से-प्रभावित होने के कारण अधिकांश बैंक नए ऋण प्रदान करने को तैयार नहीं हैं और नए ऋण प्रदान किये बिना अर्थव्यवस्था में तरलता को बढ़ावा देना काफी मुश्किल कार्य है।
- भारतीय समाज के संवेदनशील और गरीब वर्ग को सहायता प्रदान करने और भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये केंद्र सरकार ने भी 1.70 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की है।
- इसके अतिरिक्त विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा भी अपने स्तर पर काफी प्रयास किये जा रहे हैं।
चुनौतियाँ
- सरकार के वित्तीय साधन पहले से ही काफी दबाव का सामना कर रहे हैं और सरकार का राजकोषीय घाटा अनुमेय सीमा को पार चुका है।
- सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिये कितनी उधारी की ज़रूरत होगी।
- इस प्रकार यदि सरकार को किसी प्रकार का राहत पैकेज प्रदान करना है, तो उसे एक बड़ी राशि उधार लेनी होगी, जिससे सरकार का राजकोषीय घाटा और अधिक बढ़ जाएगा।
- मौज़ूदा परिस्थितियों में देश की सभी आर्थिक और गैर-आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई हैं और सरकार को कर एवं गैर-कर राजस्व प्राप्त नहीं हो रहा है, जिससे सरकार के लिये स्वास्थ्य एवं कल्याण पर अधिक खर्च करना चुनौतीपूर्ण बन गया है।
- इसके अलावा यदि सरकार बाज़ार से उधार लेना भी चाहे तो आवश्यक है कि बाज़ार में भी उतना पैसा होना चाहिये, किंतु मौजूदा आँकड़े दर्शाते हैं कि घरेलू परिवारों की बचत काफी कम है और उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे सरकार की ऋण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
- विदित हो की विदेशी निवेशक भी अमेरिका जैसी सुरक्षित अर्थव्यवस्था में निवेश कर रहे हैं और ऐसे अनिश्चितता के समय में ऋण देने को तैयार नहीं हैं।
- इस प्रकार बाज़ार में इतना धन नहीं है कि वह सरकार की ऋण संबंधी अवश्यकताओं को पूरा सके।
- विश्लेषकों के अनुसार, आने वाले समय में परिस्थितियाँ और भी खराब हो सकती हैं और अर्थव्यवस्था के सामान्य होने की प्रक्रिया काफी धीमी और कठिनाई से भरी हो सकती है।
‘प्रत्यक्ष’ मुद्रीकरण- एक उपाय के रूप में
- कई विश्लेषक मौजूदा परिस्थितियों को ध्यान रखते हुए सरकारी घाटे के ‘प्रत्यक्ष’ मुद्रीकरण (Direct Monetisation) को एक बेहतर उपाय के रूप में देखा रहे हैं।
- उदाहरण के लिये एक ऐसे परिदृश्य की कल्पना करें जिसमें सरकार वित्तीय प्रणाली को नज़रअंदाज़ करते हुए प्रत्यक्ष तौर पर RBI के साथ व्यवहार करती है और उसे सरकारी बाण्ड्स (Government Bonds) के बदले में नई मुद्रा छापने के लिये कहती है।
- नई मुद्रा छापने के एवज़ में RBI को सरकारी बाण्ड्स प्राप्त होते हैं जो कि RBI की परिसंपत्ति हैं, क्योंकि ऐसे बाण्ड्स निर्दिष्ट तिथि पर निर्दिष्ट राशि का भुगतान करने के लिये सरकार के दायित्त्व का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- अब सरकार के पास खर्च करने के लिये आवश्यक नकदी होगी और सरकार विभिन्न उपायों जैसे- गरीबों के लिये प्रत्यक्ष हस्तांतरण, अस्पतालों का निर्माण और छोटे एवं मध्यम उद्यमों के श्रमिकों को मज़दूरी सब्सिडी प्रदान करने आदि के माध्यम से अर्थव्यवस्था में तनाव को कम कर सकेगी।
- इस प्रकार सरकार के राजकोषीय घाटे को कम करने के लिये नई मुद्रा को छापना ‘प्रत्यक्ष’ मुद्रीकरण है, यह ‘अप्रत्यक्ष’ मुद्रीकरण से काफी अलग होता है, इसमें RBI ‘ओपन मार्केट ऑपरेशन्स’ (Open Market Operations-OMOs) के माध्यम से अर्थव्यवस्था को तरलता प्रदान करने का प्रयास करता है।
यूनाइटेड किंगडम (UK) में ‘प्रत्यक्ष' मुद्रीकरण
- 9 अप्रैल, 2020 को UK में, बैंक ऑफ इंग्लैंड (Bank of England) ने UK सरकार को प्रत्यक्ष मुद्रीकरण की सुविधा प्रदान की थी, किंतु बैंक ऑफ इंग्लैंड के मौज़ूदा गवर्नर एंड्रयू बेली (Andrew Bailey) ने अंतिम क्षण तक इस कदम का विरोध किया था।
‘प्रत्यक्ष' मुद्रीकरण की सीमाएँ
- राजकोषीय घाटे के ‘प्रत्यक्ष’ मुद्रीकरण की अवधारणा आर्थिक जगत में एक अत्यंत विवादास्पद विषय है। हाल ही में RBI के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने सरकार को ‘प्रत्यक्ष' मुद्रीकरण के प्रति आगाह किया था।
- सामान्यतः यह उपकरण सरकार को उस समय समग्र मांग में बढ़ोतरी करने का अवसर प्रदान करता है जब निजी मांग में गिरावट आई है, जैसा कि मौजूदा स्थिति में हो रहा है, किंतु यदि सरकार इस उपकरण के प्रयोग को सही समय पर बंद नहीं करती तो यह एक और बड़े संकट को उत्पन्न कर सकता है।
- इस नए पैसे का प्रयोग कर सरकार आम लोगों की आय में बढ़ोतरी का प्रयास करती है और अर्थव्यवस्था में निजी मांग को बढ़ावा देती है। और इस प्रकार अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलता है।
- ध्यातव्य है कि मुद्रास्फीति में वृद्धि एक सीमा तक सही है, क्योंकि यह व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करती है, किंतु यदि सरकार समय पर ‘प्रत्यक्ष' मुद्रीकरण को नहीं रोकती है तो अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति पैदा हो सकती है।
- उच्च मुद्रास्फीति और उच्च सरकारी ऋण अर्थव्यवस्था में व्यापक स्तर पर अस्थिरता उत्पन्न कर सकते हैं।
आगे की राह
- कोरोनावायरस महामारी के कारण भारत समेत संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था संकट का सामना कर रही है। विभिन्न आर्थिक संकेत दर्शाते हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इस महामारी का दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।
- ऐसे समय में आवश्यक है कि भारत में विभिन्न विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों को मिलाकर एक समूह का गठन किया जाए जो इस विषय पर विचार-विमर्श करें कि महामारी और महामारी के पश्चात् किन उपायों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी में जाने से बचाया जा सकता है।
- साथ ही हमें विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संस्थानों के साथ मिलकर भी कार्य करना होगा।