अधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा शर्तें) अध्यादेश, 2021 | 08 Apr 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति ने अधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा शर्तें) अध्यादेश [Tribunal Reforms (Rationalisation and Conditions of Service) Ordinance], 2021 जारी किया। इस अध्यादेश द्वारा मौजूदा अपीलीय अधिकरणों के कार्यों को दूसरे न्यायिक निकायों (उच्च न्यायालय) को हस्तांतरित कर दिया गया है।
- इस अध्यादेश द्वारा वित्त अधिनियम (Finance Act), 2017 में संशोधन किया गया है ताकि खोज-सह-चयन (Search-Cum-Selection) समितियों के संयोजन और उनके सदस्यों के कार्यकाल की अवधि से संबंधित प्रावधानों को इसमें शामिल किया जा सके।
वित्त अधिनियम, 2017
यह अधिनियम केंद्र सरकार को सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण जैसे 19 अधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से संबंधित नियमों को अधिसूचित करने का अधिकार देता है।
प्रमुख बिंदु
खोज-सह-चयन समितियाँ:
- केंद्र सरकार द्वारा अधिकरणों के अध्यक्ष और सदस्यों को एक खोज-सह-चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाएगा।
- इस समिति में निम्नलिखित सदस्य होंगे:
- भारत का मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय का अन्य न्यायाधीश जो कि समिति का अध्यक्ष (निर्णायक/कास्टिंग वोट के साथ) भी होगा।
- केंद्र सरकार द्वारा नामित दो सचिव।
- वर्तमान या निवर्तमान अध्यक्ष या सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्ति मुख्य न्यायाधीश।
- जिस मंत्रालय के अंतर्गत अधिकरण का गठन किया गया है, उसका सचिव (बिना वोटिंग अधिकार के)।
कार्यकाल:
- अधिकरणों के अध्यक्ष का कार्यकाल चार वर्ष या उसकी आयु 70 वर्ष होने तक (इसमें से जो भी पहले हो) होगा।
- अधिकरण के अन्य सदस्यों का कार्यकाल चार वर्ष या उनकी आयु 67 वर्ष होने तक (इनमें से जो भी पहले हो) होगा।
इस अध्यादेश में निम्नलिखित कानून के अंतर्गत स्थापित अधिकरणों को वित्त अधिनियम के दायरे से बाहर किया गया है:
- सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952
- ट्रेड मार्क्स एक्ट, 1999
- कॉपीराइट एक्ट, 1957
- सीमा शुल्क अधिनियम, 1962
- पेटेंट एक्ट, 1970
- एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया एक्ट, 1994
- राष्ट्रीय राजमार्ग नियंत्रण (भूमि और यातायात) अधिनियम, 2002
- माल के भौगोलिक संकेत (रजिस्ट्रेशन और संरक्षण) अधिनियम, 1999
अधिकरणों के अधिकार क्षेत्र से बाहर करने के कारण:
- कमज़ोर अधिनिर्णय और विलंब:
- अधिकरणों के अधिनिर्णय की गुणवत्ता ज़्यादातर मामलों में खराब रही है, इसके साथ ही अंतिम निर्णय आने में देरी होती है क्योंकि सरकार इनमें सक्षम व्यक्तियों को नियुक्त नहीं कर पाती है। इन सब कारणों से न्याय पाना/मुकदमा लड़ना महँगा हो गया है।
- इन पर आरोप:
- इन अधिकरणों की कार्यपालिका से स्वतंत्रता जैसे- गंभीर सवालों पर अधिवक्ता बार एसोसिएशनों द्वारा वर्ष 1985 से ही लगातार आरोप लगाया जा रहा है।
- संबंधित चिंता:
- उच्च न्यायालयों के पास आने वाले मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है।
अधिकरण
अधिकरण की विषय में:
- यह एक अर्द्ध-न्यायिक संस्था (Quasi-Judicial Institution) है जिसे प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों को हल करने के लिये स्थापित किया जाता है।
- यह विवादों के अधिनिर्णयन, संघर्षरत पक्षों के बीच अधिकारों के निर्धारण, प्रशासनिक निर्णयन, किसी विद्यमान प्रशासनिक निर्णय की समीक्षा जैसे विभिन्न कार्यों का निष्पादन करती है।
- 'ट्रिब्यूनल' (Tribunal) शब्द की व्युत्पत्ति 'ट्रिब्यून' (Tribunes) शब्द से हुई है जो रोमन राजशाही और गणराज्य के अंतर्गत कुलीन मजिस्ट्रेटों की मनमानी कार्रवाई से नागरिकों की सुरक्षा करने के लिये एक आधिकारिक पद था।
- सामान्य रूप से ट्रिब्यूनल का आशय ऐसे व्यक्ति या संस्था से है जिसके पास दावों व विवादों पर निर्णयन, अधिनिर्णयन या निर्धारण का प्राधिकार होता है, भले इसके नामकरण में ट्रिब्यूनल शब्द शामिल हो या नहीं।
संवैधानिक प्रावधान:
- अधिकरण संबंधी प्रावधान मूल संविधान में नहीं थे।
- इन्हें भारतीय संविधान में स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा शामिल किया गया।
- इस संशोधन के माध्यम से संविधान में अधिकरण से संबंधित एक नया भाग XIV-A और दो अनुच्छेद जोड़े गए:
- अनुच्छेद 323A:
- यह अनुच्छेद प्रशासनिक अधिकरण (Administrative Tribunal) से संबंधित है। ये अधिकरण अर्द्ध-न्यायिक होते हैं जो सार्वजनिक सेवा में काम कर रहे व्यक्तियों की भर्ती और सेवा शर्तों से संबंधित विवादों को हल करते हैं।
- अनुच्छेद 323B:
- यह अनुच्छेद अन्य विषयों जैसे कि कराधान, विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात, भूमि सुधार, खाद्य, संसद तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव आदि के लिये अधिकरणों की स्थापना से संबंधित है।