शासन व्यवस्था
प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) विधेयक, 2022
- 27 Aug 2022
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:CCI,प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002, राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT)। मेन्स के लये:बाज़ार की गतिशीलता में परिवर्तन के कारण प्रतिस्पर्द्धा आयोग का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 में संशोधन करने वाला विधेयक लोकसभा में पेश किया गया।
संशोधन की आवश्यकता:
- नयी पीढ़ी का बाज़ार:
- तकनीकी प्रगति, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और कीमत एवं अन्य कारकों के बढ़ते महत्त्व के कारण बाज़ार की गतिशीलता तेज़ी से बदली है, बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा को बनाए रखने और बढ़ावा देने के लिये ये संशोधन अपरिहार्य हो गए थे।
- अधिग्रहण का मद्दा:
- अधिनियम की धारा 5 के अनुसार विलय, अधिग्रहण या समामेलन में शामिल पक्षों को केवल परिसंपत्ति या कारोबार के आधार पर संयोजन की गतिविधि के विषय में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग सूचित करने की आवश्यकता है।
- गन जंपिंग:
- ऐसी स्थिति में दो या दो से अधिक संयुक्त पक्ष अनुमोदन से पूर्व अधिसूचित लेन-देन बंद कर देते हैं अथवा आयोग के संज्ञान में लाए बगैर लेन-देन की प्रक्रिया का समापन करते हैं।
- हब-एंड-स्पोक कार्टेल:
- हब-एंड-स्पोक व्यवस्था एक प्रकार का व्यापारिक गुट है जिसमें ऊर्ध्वाधर रूप से संबंधित हितधारक एक हब के रूप में कार्य करते हैं और आपूर्तिकर्त्ताओं या खुदरा विक्रेताओं पर क्षैतिज प्रतिबंध लगाते हैं।
- वर्तमान में प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों पर प्रतिबंध केवल समान व्यापार वाली संस्थाओं को शामिल करता है जो प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी गतिविधियों में संलग्न हैं।
- यह वितरकों और आपूर्तिकर्त्ताओं द्वारा ऊर्ध्वाधर शृंखला के विभिन्न स्तरों पर संचालित हब-एंड-स्पोक कार्टेल की उपेक्षा करता है।
- हब-एंड-स्पोक व्यवस्था एक प्रकार का व्यापारिक गुट है जिसमें ऊर्ध्वाधर रूप से संबंधित हितधारक एक हब के रूप में कार्य करते हैं और आपूर्तिकर्त्ताओं या खुदरा विक्रेताओं पर क्षैतिज प्रतिबंध लगाते हैं।
प्रस्तावित संशोधन:
- सौदे के मूल्य की अवसीमा:
- नए विधेयक में सौदे के मूल्य की अवसीमा का प्रावधान भी प्रस्तावित है।
- इसके अलावा 2,000 करोड़ रुपए से अधिक के सौदे मूल्य वाले किसी भी लेन-देन के विषय में आयोग को सूचित करना अनिवार्य होगा यदि दोनों पक्षों में से किसी का भारत में पर्याप्त व्यावसायिक संचालन है।
- नए विधेयक में सौदे के मूल्य की अवसीमा का प्रावधान भी प्रस्तावित है।
- पर्याप्त व्यवसाय संचालन:
- आयोग किसी उद्यम के भारत में पर्याप्त व्यावसायिक संचालन हेतु आकलन और आवश्यकताओं को निर्धारित करने के लिये विनियम तैयार करेगा।
- यह आयोग के समीक्षा तंत्र को सशक्त करेगा, विशेष रूप से डिज़िटल और बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में, जिनमें से अधिकांश की पहले रिपोर्टिंग नहीं की गई थी, क्योंकि ये परिसंपत्ति या कारोबार मूल्य क्षेत्राधिकार की सीमा को पूरा नहीं करते थे।
- आयोग किसी उद्यम के भारत में पर्याप्त व्यावसायिक संचालन हेतु आकलन और आवश्यकताओं को निर्धारित करने के लिये विनियम तैयार करेगा।
- संयोजन की गति को तीव्र करना:
- किसी भी व्यावसायिक संस्था के लिये जो एक संयोजन निष्पादित करना चाहता है, उन्हें इस विषय में आयोग को सूचित करना होगा।
- पहले आयोग को संयोजन को मंजूरी प्रदान करने के लिये 210 कार्य दिवस की समय-सीमा निर्धारित थी, जिसके बाद यह स्वतः स्वीकृत हो जाता था।
- नए संशोधन ने समय सीमा को 210 कार्य दिवसों से घटाकर केवल 150 कार्य दिवसों और 30 दिनों की विस्तार अवधि को निर्धारित कर दिया है।
- यह संयोजनों की मंजूरी में तेज़ी लाएगा और आयोग के साथ संयोजन-पूर्व परामर्श के महत्त्व को बढ़ावा देगा।
- नए संशोधन ने समय सीमा को 210 कार्य दिवसों से घटाकर केवल 150 कार्य दिवसों और 30 दिनों की विस्तार अवधि को निर्धारित कर दिया है।
- गन जंपिंग:
- पहले गन-जंपिंग के लिये जुर्माना संपत्ति या कारोबार का कुल 1% था जिसे अब सौदे के मूल्य का 1% किये जाने का प्रस्ताव है।
- खुले बाज़ार में खरीदारी की छूट:
- यह आयोग को अग्रिम रूप से सूचित करने की आवश्यकता से खुले बाज़ार की खरीद और शेयर बाज़ार के लेन-देन में छूट देने का प्रस्ताव करता है।
- हब-एंड-स्पोक कार्टेल:
- संशोधन उन संस्थाओं को चिह्नित के लिये 'प्रतीस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों' के दायरे को विस्तृत करता है जो कार्टेलाइजेशन को बढ़ावा देते हैं, भले ही वे समान व्यापार प्रथाओं में शामिल न हों।
- मामलों का निपटान और प्रतिबद्धताएँ:
- नया संशोधन ऊर्ध्वाधर समझौतों और प्रभुत्व के दुरुपयोग से संबंधित मामलों के निपटान और प्रतिबद्धताओं के लिये एक रूप-रेखा का प्रस्ताव करता है।
- ऊर्ध्वाधर समझौतों और प्रभुत्व के दुरुपयोग के मामले में, महानिदेशक (DG) द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले दोनों पक्ष प्रतिबद्धता के लिये आवेदन कर सकती हैं।
- संशोधन के अनुसार, मामले में सभी हितधारकों का पक्ष सुनने के बाद प्रतिबद्धता या निपटान के संबंध में आयोग का निर्णय अपील योग्य नहीं होगा।
- ऊर्ध्वाधर समझौतों और प्रभुत्व के दुरुपयोग के मामले में, महानिदेशक (DG) द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले दोनों पक्ष प्रतिबद्धता के लिये आवेदन कर सकती हैं।
- नया संशोधन ऊर्ध्वाधर समझौतों और प्रभुत्व के दुरुपयोग से संबंधित मामलों के निपटान और प्रतिबद्धताओं के लिये एक रूप-रेखा का प्रस्ताव करता है।
- अन्य प्रमुख संशोधन:
- उदारता का प्रावधान:
- यह आयोग को आवेदक को दंड की अतिरिक्त छूट देने की अनुमति देता है जो एक असंबंधित बाज़ार में दूसरे कार्टेल की उपस्थिति का खुलासा करता है, बशर्ते सूचना आयोग को कार्टेल के अस्तित्व के बारे में प्रथम दृष्टया राय बनाने में सक्षम बनाती हो।
- महानिदेशक की नियुक्ति:
- केंद्र सरकार के बजाय आयोग द्वारा महानिदेशक की नियुक्ति आयोग को अधिक नियंत्रण प्रदान करती है।
- यह आयोग को अधिक नियंत्रण देता है।
- केंद्र सरकार के बजाय आयोग द्वारा महानिदेशक की नियुक्ति आयोग को अधिक नियंत्रण प्रदान करती है।
- जुर्माने के संबंध में दिशानिर्देश:
- आयोग विभिन्न प्रतिस्पर्द्धा उल्लंघनों के लिये दंड की संख्या के संबंध में दिशानिर्देश जारी करेगा।
- आयोग के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) द्वारा अपील पर सुनवाई के लिये पार्टी को जुर्माना राशि का 25% जमा करना होगा।
- आयोग के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) द्वारा अपील पर सुनवाई के लिये पार्टी को जुर्माना राशि का 25% जमा करना होगा।
- आयोग विभिन्न प्रतिस्पर्द्धा उल्लंघनों के लिये दंड की संख्या के संबंध में दिशानिर्देश जारी करेगा।
- उदारता का प्रावधान:
आगे की राह
- नए परिवर्तनों के साथ आयोग को नए युग के बाज़ार के कुछ पहलुओं का प्रबंधन करने एवं इसके संचालन को और अधिक मज़बूत बनाने में सक्षम होना चाहिये।
- प्रस्तावित परिवर्तन निस्संदेह आवश्यक हैं, हालाँकि ये आयोग द्वारा बाद में अधिसूचित नियमों पर अत्यधिक निर्भर हैं।
- इसके अलावा सरकार को यह समझना चाहिये कि बाज़ार की गतिशीलता लगातार बदल रही है, इसलिये कानूनों को नियमित रूप से अद्यतन करने की आवश्यकता है।
भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग
- परिचय:
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCi) की स्थापना मार्च, 2009 में भारत सरकार द्वारा प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत अधिनियम के प्रशासन, कार्यान्वयन और प्रवर्तन के लिये की गई थी।
- यह मुख्य रूप से बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं के तीन मुद्दों का अनुसरण करता है:
- प्रतिस्पर्द्धा विरोधी समझौते।
- प्रभुत्व का दुरुपयोग।
- संयोजन।
- यह मुख्य रूप से बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं के तीन मुद्दों का अनुसरण करता है:
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCi) की स्थापना मार्च, 2009 में भारत सरकार द्वारा प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत अधिनियम के प्रशासन, कार्यान्वयन और प्रवर्तन के लिये की गई थी।
- उद्देश्य:
- प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्रथाओं को समाप्त करना।
- प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और बनाए रखना।
- उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना।
- भारत के बाज़ारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
- निम्नलिखित के माध्यम से मज़बूत प्रतिस्पर्द्धा माहौल स्थापित करना:
- उपभोक्ताओं, उद्योग, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों सहित सभी हितधारकों के साथ सक्रिय जुड़ाव।
- संरचना:
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, आयोग में एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- आयोग अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो वैधानिक अधिकारियों को सलाह देता है और अन्य मामलों से भी निपटता है।
- अध्यक्ष और अन्य सदस्य पूर्णकालिक सदस्य होंगे।
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, आयोग में एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रश्न. अर्द्ध-न्यायिक निकाय क्या हैं? उपयुक्त उदाहरण की सहायता से देश के शासन में उनकी भूमिका स्पष्ट कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2016) |