भारतीय अर्थव्यवस्था
सामाजिक-आर्थिक मोर्चे पर भारत और बांग्लादेश
- 16 Oct 2020
- 13 min read
प्रिलिम्स के लियेअंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक, वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, मानव विकास सूचकांक मेन्स के लियेसमाजिक-आर्थिक मोर्चे पर भारत और बांग्लादेश की तुलना |
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुमानानुसार, कोरोना वायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित भारतीय अर्थव्यवस्था में इस वर्ष तकरीबन 10.3 प्रतिशत संकुचन हो सकता है।
- हालाँकि अर्थव्यवस्था में संकुचन की अपेक्षा यह तथ्य नीति निर्माताओं के लिये चिंताजनक है कि वर्ष 2020 में एक औसत बांग्लादेशी नागरिक की प्रति व्यक्ति आय एक औसत भारतीय नागरिक की औसत प्रति व्यक्ति आय से अधिक होगी।
क्या बताते हैं आँकड़े?
- विश्व बैंक द्वारा हाल ही में जारी किया गया ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ बताता है कि इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था में महामारी के प्रभाव के कारण तकरीबन 10.3 प्रतिशत की कमी हो सकती है, जबकि इससे पूर्व जून माह में जारी अपनी रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कहा था कि इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था में केवल 4.5 प्रतिशत का ही संकुचन होगा।
- हालिया ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था में तकरीबन 4.4 प्रतिशत के संकुचन का अनुमान है, जबकि इससे पूर्व जून माह में यह मात्र 0.8 प्रतिशत था।
- ध्यातव्य है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भी वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 9.5 प्रतिशत के संकुचन का अनुमान लगाया है।
- भारत-बांग्लादेश की तुलना
- रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष भारत की प्रति व्यक्ति GDP 1,876.53 डॉलर रह सकती है, जो कि बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति (GDP 1,887.97 डॉलर) से कम है। वहीं वर्ष 2020 में चीन की प्रति व्यक्ति GDP 10,839.43 डॉलर रहने का अनुमान है।
- हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के ही आँकड़े बताते हैं कि बीते पाँच वर्ष के दौरान भारत की प्रति व्यक्ति GDP बांग्लादेश की तुलना में औसतन 24 प्रतिशत अधिक रही है।
- भारत के अन्य पड़ोसियों में नेपाल और श्रीलंका की प्रति GDP क्रमशः 1,115.56 डॉलर और 3,69.4.89 डॉलर अनुमानित है।
कारण
- आम तौर पर दो देशों की तुलना करने के लिये GDP वृद्धि दर अथवा संपूर्ण GDP जैसे मानक प्रयोग किये जाते हैं। दोनों देशों (भारत-बांग्लादेश) के आज़ाद होने के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रयास सदैव बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था से बेहतर रहा है।
- आँकड़ों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था आज़ादी के बाद से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के आकार से औसतन 10 गुना अधिक रही है, और प्रतिवर्ष उसमें बढ़ोतरी हो रही है।
- इसके बावजूद भी इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था प्रति व्यक्ति GDP के मामले में बांग्लादेश से पीछे हो गई है, इसके मुख्यतः तीन कारण हो सकते हैं-
- सर्वप्रथम तो यह कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था वर्ष 2004 के बाद से ही काफी तेज़ गति से विकास कर रही है, हालाँकि इसके बावजूद भी भारत और बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में तुलनात्मक रुप से कोई विशिष्ट परिवर्तन नहीं आया है, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास गति बांग्लादेश से भी तेज़ रही है, किंतु वर्ष 2017 से इस स्थिति में परिवर्तन आने लगा और इस वर्ष भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ी से गिरावट आई, किंतु बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि जारी रही, जिसका परिणाम इस रूप में सामने आया है।
- दूसरा कारण यह कि बीते 15 वर्ष में जहाँ एक ओर भारत की आबादी 21 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, वहीं बांग्लादेश की आबादी में 18 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है और किसी देश की प्रति व्यक्ति GDP को उस देश आबादी काफी अधिक प्रभावित करती है। यही कारण है कि दोनों देशों के बीच महामारी की शुरुआत से पूर्व ही प्रति व्यक्ति GDP का अंतर काफी कम हो गया था।
- इस घटना का तीसरा और सबसे महत्त्वपूर्ण कारक कोरोना वायरस महामारी और दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर उसके सापेक्ष प्रभाव को माना जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के ही आँकड़ों के अनुसार, जहाँ एक ओर महामारी के प्रभाव के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में 10.3 प्रतिशत का संकुचन होगा, वहीं बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में 3.8 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी होगी।
- सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि भारत महामारी के कारण सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है, वहीं बांग्लादेश महामारी के दौरान आर्थिक मोर्चे पर सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक है।
पहले भी हुआ है यह
- वर्ष 1991 में जब भारत एक गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा था और भारतीय अर्थव्यवस्था में केवल 1 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही थी तब भी बांग्लादेश प्रति व्यक्ति GDP के मामले में भारत से आगे निकल गया था, हालाँकि इसके बाद भारत ने पुनः अपनी बढ़त प्राप्त कर ली थी।
- कुछ इस प्रकार की स्थिति एक बार फिर देखने को मिल सकती है, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2021-2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज़ी से विकास होगा और भारत प्रति व्यक्ति GDP के मामले में पुनः आगे निकल जाएगा।
- हालाँकि बांग्लादेश की कम जनसंख्या वृद्धि दर और अधिक आर्थिक विकास के कारण प्रति व्यक्ति GDP के मामले में दोनों देशों के बीच का अंतर काफी अस्थिर रह सकता है।
बांग्लादेश की आर्थिक वृद्धि के कारण?
- ज्ञात हो कि पाकिस्तान के साथ अपनी स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में बांग्लादेश ने काफी धीमी गति से विकास किया था। हालाँकि पाकिस्तान से अलग होने के कारण बांग्लादेश को अपनी राजनीतिक और आर्थिक नीतियों को पुनः परिभाषित करने का अवसर मिला, जिसका फायदा उठाते हुए बांग्लादेश ने अपने नियम-कानूनों को और अधिक विकास अनुकूल बनाया।
- उदाहरण के लिये उस समय बांग्लादेश के श्रमबल में महिलाओं की भूमिका अनवरत बढ़ रही थी, जिसे देखते हुए बांग्लादेश ने अपने श्रम कानूनों को महिलाओं के अनुकूल बनाया, जिसका परिणाम यह हुए कि महिला श्रम बल ने बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग को वैश्विक बाज़ार में एक महत्त्वपूर्ण बढ़त दिला दी।
- बांग्लादेश ने अपनी अर्थव्यवस्था को एक ऐसे स्वरूप में बदलने का प्रयास किया जहाँ आर्थिक विकास औद्योगिक क्षेत्र और सेवा क्षेत्र पर निर्भर था।
- ये दोनों ही क्षेत्र रोज़गार का सृजन करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं और साथ ही इनमें कृषि क्षेत्र की तुलना में पारिश्रमिक भी अधिक होता है।
- वहीं दूसरी ओर भारत अपने औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये संघर्ष कर रहा था और अभी भी अधिकांश जनसंख्या कृषि क्षेत्र पर निर्भर थी।
- बीते दो दशक में बांग्लादेश के आर्थिक विकास का एक अन्य कारण यह भी है कि इसने स्वास्थ्य, स्वच्छता, वित्तीय समावेशन और महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसे कई सामाजिक और राजनीतिक मामलों में काफी सुधार किया है।
- उदाहरण के लिये बांग्लादेश में असुरक्षित पेयजल और स्वच्छता की कमी के कारण मातृत्त्व मृत्यु दर में होने वाली बढ़ोतरी भारत की तुलना में काफी कम है।
- वित्तीय समावेशन की बात करें तो विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, जहाँ बांग्लादेश की एक छोटी से आबादी के पास ही बैंक खाते हैं, वहीं यहाँ भारत की तुलना में निष्क्रिय खातों की संख्या काफी कम है।
- लैंगिक समानता के मामले भी बांग्लादेश भारत से काफी आगे है, वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक 2020 में भारत 154 देशों में 112वें स्थान पर है, जबकि इसी सूचकांक में बांग्लादेश 50वें स्थान पर है।
बांग्लादेशी अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ
- बीते 15 वर्ष में वैश्विक पटल पर बांग्लादेश की स्थिति में काफी बदलाव आया है, इसने आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान को पीछे छोड़ दिया है और अपने देश में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित की है। हालाँकि बांग्लादेश की प्रगति अभी भी अनिश्चितओं से भरी पड़ी है और कई मोर्चों पर संघर्ष कर रही है।
- उदाहरण के लिये, बांग्लादेश में गरीबी की दर भारत की तुलना में काफी अधिक है। विश्व बैंक के अनुसार, ‘अल्पावधि में बांग्लादेश की गरीबी में वृद्धि होने का अनुमान है, जिसका सबसे अधिक प्रभाव वहाँ के दैनिक और स्व-नियोजित श्रमिकों पर देखने को मिलेगा।
- इसके अलावा यह बुनियादी शिक्षा के मामले में भी भारत से काफी पीछे है, जो कि मानव विकास सूचकांक (HDI) में इसकी कम रैंकिंग से स्पष्ट है।
- बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग, जो कि विकास की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है, अपने लचीले श्रम कानूनों के लिये काफी प्रसिद्ध है और खराब स्वास्थ्य परिस्थितियों के कारण श्रमिकों के स्वास्थ्य पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
- कई जानकार बांग्लादेश के आर्थिक विकास के लिये यहाँ की राजनीति को एक बड़ा खतरा मानते हैं, यहाँ के प्रमुख राजनीतिक दलों पर नियमित रूप से हिंसा और उत्पीड़न के आरोप लगते रहते हैं, और आम लोगों के जीवन में कदम-कदम पर भ्रष्टाचार है।
- इसके अलावा कट्टरपंथी धार्मिक विचार भी बांग्लादेश के आर्थिक और समाजिक विकास को काफी प्रभावित कर रहा है।
आगे की राह
- यद्यपि प्रति व्यक्ति GDP के मामले में बांग्लादेश की बढ़त एक अल्पकालिक घटना हो सकती है, किंतु भारत को अपने बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक नवाचार पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। इस संबंध में बांग्लादेश की नीतियों से भी सीख ली जा सकती है।