भारतीय राजनीति
IPC की धारा 124A पर 22वाँ विधि आयोग
- 05 Jun 2023
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प्रिलिम्स के लिये:राजद्रोह कानून, धारा 124A, विधि आयोग, गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA), राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम मेन्स के लिये:22वें विधि आयोग की सिफारिशें, राजद्रोह कानून का महत्त्व और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
विधि आयोग की 22वीं रिपोर्ट राजद्रोह से संबंधित IPC की धारा 124A को बनाए रखने की सिफारिश करती है, लेकिन दुरुपयोग को रोकने के लिये संशोधन और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का प्रस्ताव रखती है।
विधि आयोग की सिफारिशें:
- पृष्ठभूमि:
- गृह मंत्रालय ने विधि आयोग से धारा 124A के उपयोग की जाँच करने और वर्ष 2016 में एक पत्र के माध्यम से संशोधन प्रस्तावित करने का अनुरोध किया था।
- विधि आयोग की रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) जैसे कानूनों का अस्तित्व धारा 124A में उल्लिखित अपराध के सभी पहलुओं को कवर नहीं करता है।
- सिफारिशें:
- धारा 124A को बनाए रखना:
- आयोग का तर्क है कि धारा 124A को पूरी तरह से अन्य देशों के कार्यों के आधार पर निरस्त करना भारत की अनूठी वास्तविकताओं की अनदेखी करेगा।
- यह इस बात पर बल देता है कि किसी कानून की औपनिवेशिक उत्पत्ति स्वत: ही उसके निरसन की गारंटी नहीं देती है।
- रिपोर्ट बताती है कि भारतीय कानून व्यवस्था पूरी तरह से औपनिवेशिक प्रभाव रखती है।
- संशोधन और सुरक्षा:
- आयोग धारा 124A में एक प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय शामिल करता है, जिसमें राजद्रोह के लिये प्राथमिकी दर्ज करने से पहले इंस्पेक्टर रैंक के एक पुलिस अधिकारी द्वारा प्रारंभिक जाँच की आवश्यकता होती है।
- अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति ज़रूरी होगी।
- यह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 196 (3) के समान प्रावधान को धारा 124A के उपयोग के खिलाफ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के लिये समान संहिता की धारा 154 के परंतुक के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव करती है।
- आयोग यह निर्दिष्ट करने के लिये धारा 124A में संशोधन करने का सुझाव देता है कि यह व्यक्तियों को "हिंसा भड़काने या सार्वजनिक अव्यवस्था उत्पन्न करने की प्रवृत्ति के साथ" दंडित करता है।
- सज़ा को बढ़ाना:
- रिपोर्ट में राजद्रोह के लिये जेल की सज़ा को अधिकतम 7 वर्ष या आजीवन कारावास तक बढ़ाने का प्रस्ताव है।
- वर्तमान में अपराध में तीन वर्ष तक की सज़ा या आजीवन कारावास है।
- धारा 124A को बनाए रखना:
राजद्रोह कानून को बनाए रखने का औचित्य:
- रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि दुरुपयोग के आरोप स्वतः ही धारा 124A के निरसन को उचित नहीं ठहराते हैं।
- यह उन उदाहरणों पर प्रकाश डालता है जहाँ व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता और निहित स्वार्थों के लिये विभिन्न कानूनों का दुरुपयोग किया गया है।
- राजद्रोह कानून को पूरी तरह से निरस्त करने से देश की सुरक्षा और अखंडता के लिये गंभीर प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं जिससे विध्वंसक शक्तियाँ स्थिति का फायदा उठा सकती हैं।
राजद्रोह कानून:
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में राजद्रोह कानून लागू किये गए थे जब सांसदों का मानना था कि सरकार के केवल अच्छे विचारों को बनाए रखना चाहिये क्योंकि बुरे विचार सरकार और राजशाही के लिये हानिकारक थे।
- यह कानून मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार-राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले द्वारा तैयार किया गया था लेकिन वर्ष 1860 में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) के लागू होने पर इसे अस्पष्ट रूप से छोड़ दिया गया था।
- धारा 124A को वर्ष 1870 में सर जेम्स स्टीफन द्वारा पेश किये गए एक संशोधन द्वारा तब जोड़ा गया था जब अपराध से निपटान के लिये एक विशिष्ट धारा की आवश्यकता महसूस हुई।
- वर्तमान में राजद्रोह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत एक अपराध है।
- IPC की धारा 124A:
- धारा 124A देशद्रोह को ऐसे कृत्य रूप में परिभाषित करती है जो "बोले या लिखे गए शब्दों या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रस्तुति द्वारा, भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, असंतोष (Disaffection) उत्पन्न करेगा या करने का प्रयत्न करेगा।”
- प्रावधान के अनुसार, असंतोष (Disaffection) शब्द में निष्ठाहीनता और शत्रुता की सभी भावनाएँ शामिल हैं। हालाँकि घृणा, अवमानना या असंतोष उत्पन्न करने का प्रयास किये बिना की गई टिप्पणी इस धारा के तहत अपराध नहीं होगी।
- राजद्रोह के अपराध के लिये सज़ा:
- राजद्रोह गैर-जमानती अपराध है। राजद्रोह के अपराध में तीन वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
- इस कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी प्राप्त करने से रोका जा सकता है।
- आरोपित व्यक्ति के पासपोर्ट को जब्त कर लिया जाता है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे न्यायालय में पेश होना अनिवार्य होता है।
राजद्रोह कानून से संबंधित विभिन्न तर्क:
पक्ष में तर्क:
- उचित प्रतिबंध:
- भारत का संविधान उचित प्रतिबंधों (अनुच्छेद 19 (2) के तहत) को निर्धारित करता है जो कि इस अधिकार (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) पर हमेशा लगाया जा सकता है ताकि इसके ज़िम्मेदार अभ्यास को सुनिश्चित किया जा सके और यह आश्वस्त किया जा सके कि यह सभी नागरिकों के लिये समान रूप से उपलब्ध है।
- एकता और अखंडता बनाए रखना:
- राजद्रोह कानून सरकार को राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों से निपटने में मदद करता है।
- राज्य की स्थिरता बनाए रखना:
- यह निर्वाचित सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से उखाड़ फेंकने के प्रयासों से बचाने में मदद करता है।
- कानून द्वारा स्थापित सरकार का निरंतर अस्तित्व राज्य की स्थिरता की एक अनिवार्य शर्त है।
राजद्रोह कानून को बनाए रखने के खिलाफ तर्क:
- औपनिवेशिक काल के अवशेष:
- औपनिवेशिक प्रशासकों ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों को बंद करने के लिये देशद्रोह का इस्तेमाल किया।
- स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों जैसे- लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह आदि को ब्रिटिश शासन के तहत उनके "देशद्रोही" भाषणों, लेखन और गतिविधियों के लिये दोषी ठहराया गया था।
- इस प्रकार राजद्रोह कानून का धड़ल्ले से इस्तेमाल औपनिवेशिक युग की याद दिलाता है।
- देशद्रोह के मामलों पर NCRB की रिपोर्ट:
- NCRB की भारत में अपराध रिपोर्ट के नवीनतम संस्करण से पता चला है कि वर्ष 2021 में देश भर में 76 राजद्रोह के मामले दर्ज किये गए थे, जो कि वर्ष 2020 में पंजीकृत 73 में मामूली वृद्धि थी।
- देशद्रोह कानून (IPC की धारा 124A) के तहत दायर मामलों में सज़ा की दर अब सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मामले का विषय है, पिछले कुछ वर्षों में 3% और 33% के बीच उतार-चढ़ाव आया है और अदालत में ऐसे मामलों की लंबितता वर्ष 2020 में 95% के उच्च स्तर पर पहुँच गई है।
- संविधान सभा का स्टैंड:
- संविधान सभा देशद्रोह को संविधान में शामिल करने पर सहमत नहीं हुई। सदस्यों ने महसूस किया कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करेगा।
- उन्होंने तर्क दिया कि राजद्रोह कानून को विरोध करने के लोगों के वैध और संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार को दबाने के लिये एक साधन (Weapon) में बदल दिया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अवहेलना:
- केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले 1962 में सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह के आवेदन को "अव्यवस्था पैदा करने के इरादे या प्रवृत्ति या कानून और व्यवस्था की गड़बड़ी या हिंसा के लिये उकसाने" तक सीमित कर दिया।
- इस प्रकार शिक्षाविदों, वकीलों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं और छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना है।
- लोकतांत्रिक मूल्यों का दमन:
- मुख्य रूप से राजद्रोह कानून के कठोर और गणनात्मक उपयोग के कारण भारत को निर्वाचित निरंकुशता के रूप में वर्णित किया जा रहा है
- मुख्य रूप से राजद्रोह कानून के कठोर और गणनात्मक उपयोग के कारण भारत को निर्वाचित निरंकुशता के रूप में वर्णित किया जा रहा है
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. रॉलेट सत्याग्रह के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |