भारत की कृषि सब्सिडी पर थाईलैंड की चिंता | 06 Mar 2024
प्रिलिम्स के लिये:विश्व व्यापार संगठन, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, शांति खंड, न्यूनतम समर्थन मूल्य, केर्न्स ग्रुप मेन्स के लिये:भारत की कृषि सब्सिडी पर थाईलैंड की चिंता, WTO सुधार, सब्सिडी बॉक्स के मुद्दे, WTO सुधारों पर भारत के सुझाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व व्यापार संगठन में थाईलैंड के राजदूत ने भारत पर सरकारी सब्सिडी द्वारा वित्तपोषित अनुचित रूप से न्यूनतम मूल्य पर चावल निर्यात करने का आरोप लगाया।
- थाईलैंड के अनुसार भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली, जिसके तहत सरकार उत्पादकों से आवश्यक खाद्य पदार्थ खरीदती है और उन्हें कम दरों पर जनता को बेचती है, वह लोगों के लिये नहीं बल्कि निर्यात बाज़ार पर "अधिग्रहण" करने के लिये है।
भारत की कृषि सब्सिडी को लेकर थाईलैंड की चिंताएँ क्या हैं?
- व्यापार विकृति और वैश्विक खाद्य मूल्य पर प्रभाव:
- थाईलैंड भारत के सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग कार्यक्रम को अत्यधिक सब्सिडी वाला मानता है, जो वैश्विक खाद्य मूल्यों को विकृत करता है।
- व्यापार विकृति एक ऐसी स्थिति है जहाँ कीमतें और उत्पादन उस स्तर से अधिक या कम होते हैं जो आमतौर पर प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में मौजूद होते हैं।
- सब्सिडी वाले कृषि उत्पादन से अधिक उत्पादन हो सकता है और कीमतें कम हो सकती हैं, जिससे थाईलैंड जैसे गैर-सब्सिडी वाले प्रतिस्पर्द्धियों के लिये वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाएगा।
- थाईलैंड भारत के सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग कार्यक्रम को अत्यधिक सब्सिडी वाला मानता है, जो वैश्विक खाद्य मूल्यों को विकृत करता है।
- WTO विनियमों का उल्लंघन:
- भारत द्वारा चावल सब्सिडी के लिये न्यूनतम सीमा का उल्लंघन WTO नियमों का उल्लंघन है। यह उल्लंघन न केवल प्रतिस्पर्द्धी परिदृश्य को प्रभावित करता है बल्कि कृषि पर WTO के समझौते द्वारा स्थापित निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांतों को भी कमज़ोर करता है।
- WTO के नियम के अनुसार दिया जाने वाला समर्थन न्यूनतम 10% की सीमा के भीतर होना चाहिये। भारत ने WTO को सूचित किया कि सत्र 2019-20 में उसके चावल उत्पादन का मूल्य 46.07 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि उसने अनुमत 10% के मुकाबले 6.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 13.7% की सब्सिडी दी।
- भारत द्वारा चावल सब्सिडी के लिये न्यूनतम सीमा का उल्लंघन WTO नियमों का उल्लंघन है। यह उल्लंघन न केवल प्रतिस्पर्द्धी परिदृश्य को प्रभावित करता है बल्कि कृषि पर WTO के समझौते द्वारा स्थापित निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांतों को भी कमज़ोर करता है।
- कृषि व्यापार उदारीकरण की इच्छा:
- केर्न्स समूह के हिस्से के रूप में, थाईलैंड कृषि व्यापार उदारीकरण का समर्थन करता है।
- समूह वैश्विक कृषि बाज़ारों को विकृत करने वाली व्यापार बाधाओं और सब्सिडी को कम करना चाहता है, जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के दायरे को खत्म करने या कम करने के लिये भारत के विरुद्ध पैरवी करना भी शामिल है।
विकास बॉक्स:
- WTO के तहत कृषि समझौते का अनुच्छेद 6.2, विकासशील देशों को घरेलू सहायता प्रदान करने में अतिरिक्त लचीलेपन की अनुमति देता है।
- इनमें निवेश सब्सिडी शामिल है जो आमतौर पर विकासशील देश के सदस्यों में कृषि के लिये उपलब्ध है, कृषि इनपुट सब्सिडी आमतौर पर विकासशील देश के सदस्यों में कम आय अथवा संसाधन गरीब उत्पादकों के लिये उपलब्ध है और साथ ही यह बढ़ते अवैध नशीले पदार्थों रोकने में फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने हेतु विकासशील देश के उत्पादकों के घरेलू समर्थन को भी शामिल करता है।
WTO सब्सिडी मानदंड से संबंधित भारत की चिंताएँ क्या हैं?
- विकसित देशों के साथ तुलना:
- भारत अमेरिका एवं यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों की तुलना में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी के बीच भारी अंतर पर ज़ोर देता है।
- भारत प्रत्येक किसान को बहुत कम 300 डॉलर की सब्सिडी देता है, लेकिन अमेरिका एवं यूरोपीय संघ प्रति किसान 40,000 अमेरिकी डॉलर तक की सब्सिडी की पेशकश कर सकते हैं।
- यह तुलना विकसित एवं विकासशील देशों के बीच किसानों को प्रदान की जाने वाली सहायता में असमानता को उजागर करती है।
- डी-मिनिमिस लिमिट का उल्लंघन:
- भारत स्वीकार करता है कि उसने सब्सिडी के लिये 10% न्यूनतम सीमा का उल्लंघन किया, जिससे वर्ष 2013 में स्थापित "शांति खंड" शुरू हो गया।
- विकासशील देशों को सब्सिडी स्तरों के उल्लंघन की चुनौती से बचाने के लिये बाली समझौते के तहत वर्ष 2013 में अंतरिम शांति खंड लागू किया गया था।
- हालाँकि भारत ने WTO में सब्सिडी की गणना के तरीके पर प्रश्न उठाते हुए कहा है कि इसकी गणना वर्ष 1986-88 की एक निश्चित और पुरानी कीमत पर की जाती है, जो सब्सिडी को अधिक आकलन करती है।
- भारत, कृषि पर WTO वार्ता में इसे बदलने की मांग कर रहा है।
- स्थायी समाधान की आवश्यकता:
- भारत, विकासशील देशों के एक समूह के साथ खाद्यान्न के लिये सार्वजनिक भंडारण के संबंध में स्थायी समाधान की वकालत करता है।
- इस समाधान का उद्देश्य विकासशील देशों को सब्सिडी स्तरों के उल्लंघन की चुनौतियों का सामना किये बिना कृषि सहायता हेतु अधिक लचीलापन प्रदान करना है।
केर्न्स ग्रुप एवं G-33 ग्रुप क्या हैं?
- केर्न्स ग्रुप:
- स्थापना: वर्ष 1986 में केर्न्स, ऑस्ट्रेलिया में
- सदस्य: 19 कृषि निर्यातक देश, जिनमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, पाकिस्तान एवं न्यूज़ीलैंड आदि शामिल हैं।
- भारत, केर्न्स समूह का सदस्य नहीं है।
- मुद्रा: कृषि व्यापार के उदारीकरण के समर्थक है जिसका अर्थ कि वे आमतौर पर टैरिफ, सब्सिडी एवं अन्य व्यापार बाधाओं को कम करने का समर्थन करते हैं और साथ ही सीमाओं के पार कृषि उत्पादों के मुक्त प्रवाह में बाधा भी डालते हैं। उनका मानना है कि इससे दक्षता एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर सभी देशों को लाभ होगा।
- G-33 ग्रुप:
- गठन: इसका गठन वर्ष 2003 में आयोजित कैनकन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन से पूर्व किया गया।
- सदस्य: मूल रूप से इसमें 33 विकासशील देश शामिल थे किंतु वर्तमान में इसमें जिनमें भारत, चीन और क्यूबा सहित लगभग 48 देश शामिल हैं।
- रुख: यह समूह कृषि व्यापार वार्ता में विकासशील देशों के लिये विशेष प्रावधान का समर्थन करता है।
- उनका तर्क है कि विकासशील देशों को अपने घरेलू कृषि क्षेत्रों की सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अधिक लचीलेपन की आवश्यकता है, भले ही इसके लिये कुछ व्यापार बाधाओं को बनाए रखना पड़े।
- उन्होंने संबद्ध देशों की आजीविका और ग्रामीण विकास पर पूर्ण व्यापार उदारीकरण के संभावित नकारात्मक प्रभावों के संबंध में भी चिंता जताई।
विश्व व्यापार संगठन (WTO) का शांति समझौता क्या है?
- एक अंतरिम उपाय के रूप में विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने दिसंबर 2013 में 'पीस क्लॉज़/शांति समझौता' नामक एक तंत्र पर सहमति जताई और स्थायी समाधान के लिये बातचीत करने का संकल्प लिया।
- शांति उपबंध के तहत विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने विश्व व्यापार संगठन के विवाद समाधान फोरम में विकासशील राष्ट्रों द्वारा निर्धारित सीमा में किसी भी उल्लंघन को चुनौती देने से बचने पर सहमति व्यक्त की।
- यह उपबंध तब तक बना रहेगा जब तक कि खाद्य भंडारण के मुद्दे का स्थायी समाधान नहीं हो जाता।
आगे की राह
- भारत को सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग पर स्थायी समाधान की अपनी मांगों पर ज़ोर देने के लिये WTO के साथ वार्ता जारी रखनी चाहिये। इसमें प्रमुख हितधारकों के साथ द्विपक्षीय चर्चा और WTO की बैठकों तथा वार्ताओं में सक्रिय भागीदारी शामिल हो सकती है।
- भारत अन्य विकासशील देशों के साथ गठबंधन को सुदृढ़ कर सकता है जो कृषि सब्सिडी और समर्थन तंत्र के संबंध में समान चिंता तथा मांग को साझा करते हैं। G-33 ग्रुप जैसे गठबंधन स्थापित कर भारत अपने मुद्दों का प्रासार कर सकता है और WTO वार्ता के अंतर्गत अन्य देशों की सहायता से समूह में सौदेकारी के विकल्प का चयन कर सकता है।
- भारत को नीति मंचों, अनुसंधान संस्थानों और अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफॉर्मों के माध्यम से कृषि सब्सिडी तथा समर्थन तंत्र पर अपने रुख को बढ़ावा देना चाहिये। इसमें खाद्य सुरक्षा के महत्त्व और विकासशील देशों के लिये कृषि सहायता प्रदान करने में अनुकूलनीय होने की आवश्यकता पर प्रकाश डालना शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत ने वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 को किसके दायित्त्वों का पालन करने के लिये अधिनियमित किया? (2018) (a) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन उत्तर: (d) प्रश्न. 'एग्रीमेंट ओन एग्रीकल्चर', 'एग्रीमेंट ओन द एप्लीकेशन ऑफ सेनेटरी एंड फाइटोसेनेटरी मेज़र्स और 'पीस क्लाज़' शब्द प्रायः समाचारों में किसके मामलों के संदर्भ में आते हैं; (2015) (a) खाद्य और कृषि संगठन उत्तर: (c) प्रश्न 3. निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में आपको कभी-कभी समाचारों में 'ऐम्बर बॉक्स, ब्लू बॉक्स और ग्रीन बॉक्स' शब्द देखने को मिलते हैं? (2016) (a) WTO मामला उत्तर: (a) प्रश्न 4. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न 5. ‘व्यापार-संबंधित निवेश उपायों’ (TRIMS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न 1. WTO एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जहाँ लिये गए निर्णय देशों को गहराई से प्रभावित करते हैं। WTO का क्या अधिदेश (मैंडेट) है और उसके निर्णय किस प्रकार बंधनकारी हैं? खाद्य सुरक्षा पर विचार-विमर्श के पिछले चक्र पर भारत के दृढ़-मत का समालोचनापूर्वकविश्लेष्ण कीजिये। (2014) प्रश्न 2. “WTO के अधिक व्यापक लक्ष्य और उद्देश्य वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रबंधन तथा प्रोन्नति करना है। परंतु (संधि) वार्ताओं की दोहा परिधि मृतोंमुखी प्रतीत होती है जिसका कारण विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद है।'' भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस पर चर्चा कीजिये। (2016) प्रश्न 3. यदि 'व्यापार युद्ध' के वर्तमान परिदृश्य में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी. ओ.) को ज़िंदा बने रहना है, तो उसके सुधार के कौन-कौन से प्रमुख क्षेत्र हैं, विशेष रूप से भारत के हित को ध्यान में रखते हुए? (2018) |