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भारतीय विरासत और संस्कृति

मंदिर की खोज: चालुक्य के विस्तार का प्रमाण

  • 06 Mar 2024
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बादामी के चालुक्य, मुदिमानिक्यम गाँव, गंडालोरनरू, आलमपुर में स्थित जोगुलंबा मंदिर, येलेश्वरम के जलमग्न स्थल, चालुक्य काल का वास्तुशिल्प डिज़ाइन, पुलिकेसिन II का एहोल अभिलेख

मेन्स के लिये:

चालुक्य राजवंश से संबंधित मुख्य विशेषताएँ

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया 

चर्चा में क्यों?

पब्लिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्ट्री, आर्कियोलॉजी एंड हेरिटेज (PRIHAH) के पुरातत्त्वविदों ने तेलंगाना के नलगोंडा ज़िले के मुदिमानिक्यम गाँव में एक दुर्लभ अभिलेख सहित बादामी चालुक्य काल के दो प्राचीन मंदिरों के अस्तित्व का पता लगाया है।

हालिया उत्खनन से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • मंदिर: गाँव के अंत में स्थित दोनों मंदिरों का कालक्रम 543 ईस्वी और 750 ईस्वी के बीच का है जो बादामी के चालुक्यों के शासनकाल को संदर्भित करता है।
    • ये मंदिर रेखा नागर प्रारूप में निर्मित बादामी चालुक्य और साथ ही कदंब नागर शैली की विशेषताओं को प्रतिबिंबित करते हुए अद्वितीय स्थापत्य शैली का प्रदर्शन करते हैं।
    • एक मंदिर के गर्भगृह में एक पनवत्तम (शिवलिंग का आधार) के अस्तित्व का पता लगाया गया है।
    • दूसरे मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति पाई गई है।
  • अभिलेख: खोज के दौरान एक अभिलेख भी प्राप्त हुआ जिसे 'गंडालोरनरू' (Gandaloranru) कहा जाता है जिसका कालक्रम 8वीं अथवा 9वीं शताब्दी ईस्वी का है।
  • महत्त्व: पहले, आलमपुर के जोगुलाम्बा मंदिर और येलेश्वरम के जलमग्न स्थलों को बादामी चालुक्य प्रभाव का सबसे दूरवर्ती क्षेत्र माना जाता था।
    • नई खोज से चालुक्य साम्राज्य की ज्ञात सीमाओं का काफी विस्तार हुआ है।

चालुक्य राजवंश से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • परिचय: चालुक्य राजवंश ने 6वीं से 12वीं शताब्दी तक दक्षिणी और मध्य भारत के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर शासन किया।
    • इसमें तीन अलग-अलग राजवंश शामिल थे: बादामी चालुक्य, पूर्वी चालुक्य और पश्चिमी चालुक्य।
    • वातापी (कर्नाटक में आधुनिक बादामी) से उत्पन्न बादामी के चालुक्यों ने 6वीं शताब्दी के प्रारंभ से 8वीं शताब्दी के मध्य तक शासन किया और पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल के दौरान अपने चरम पर पहुँच गए।
    • पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल के बाद, पूर्वी चालुक्य पूर्वी दक्कन में एक स्वतंत्र साम्राज्य के रूप में उभरे, जो 11वीं शताब्दी तक वेंगी (वर्तमान आंध्र प्रदेश में) के आस-पास केंद्रित था।
    • 8वीं शताब्दी में राष्ट्रकूटों के उदय ने पश्चिमी दक्कन में बादामी के चालुक्यों पर प्रभुत्व स्थापित किया।
      • हालाँकि उनकी विरासत को उनके वंशजों, पश्चिमी चालुक्यों द्वारा पुनर्जीवित किया गया था, जिन्होंने 12वीं शताब्दी के अंत तक कल्याणी (कर्नाटक में आधुनिक बसवकल्याण) पर शासन किया था।
  • नींव: पुलिकेशिन प्रथम (लगभग 535-566 ई.) को बादामी के पास एक पहाड़ी को मज़बूत करने एवं चालुक्य राजवंश के प्रभुत्व की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है।
    • बादामी शहर की औपचारिक स्थापना कीर्तिवर्मन (566-597) द्वारा की गई थी, जो चालुक्य शक्ति एवं संस्कृति के केंद्र के रूप में कार्यरत थे।
  • राजव्यवस्था एवं प्रशासन: चालुक्यों ने प्रभावी शासन के लिये अपने क्षेत्र को राजनीतिक इकाइयों में विभाजित करते हुए एक संरचित प्रशासनिक प्रणाली लागू की।
    •  इन प्रभागों में विषयम, राष्ट्रम, नाडु तथा ग्राम शामिल थे।
  • धार्मिक संरक्षण: चालुक्य शैव और वैष्णव दोनों धर्मों के उल्लेखनीय संरक्षक थे।
    • मुख्यधारा के हिंदू धर्म से परे, चालुक्यों ने जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म जैसे अन्य संप्रदायों को भी संरक्षण दिया, जो धार्मिक विविधता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
      • पुलिकेशिन द्वितीय के कवि-साहित्यकार रविकीर्ति एक जैन विद्वान थे।
      • यात्री ह्वेन त्सांग के अनुसार चालुक्य क्षेत्र में कई बौद्ध केंद्र थे जिनमें हीनयान एवं महायान संप्रदाय के 5000 से अधिक अनुयायी रहते थे।
  • स्थापत्य कला: ऐतिहासिक रूप से दक्कन में चालुक्यों ने नरम बलुआ पत्थरों को माध्यम बनाकर मंदिर निर्माण की तकनीक शुरू की थी।
    • उनके मंदिरों को दो भागों में विभाजित किया गया है: उत्खनन से प्राप्त गुफा मंदिर एवं संरचनात्मक मंदिर 
      • बादामी, संरचनात्मक एवं उत्खनन दोनों प्रकार के गुफा मंदिरों के लिये जाना जाता है।
      • पत्तदकल एवं ऐहोल संरचनात्मक मंदिरों के लिये भी लोकप्रिय हैं।
  • साहित्य:चालुक्य शासकों ने शास्त्रीय साहित्य एवं भाषा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए आधिकारिक शिलालेखों के लिये संस्कृत का उपयोग किया।
    • संस्कृत की प्रमुखता के बावजूद, चालुक्यों ने कन्नड़ जैसी क्षेत्रीय भाषाओं के महत्त्व को भी स्वीकार किया और साथ ही उन्हें लोगों की भाषा के रूप में मान्यता दी।
  • चित्रकला: चालुक्यों ने चित्रकला में वाकाटक शैली को अपनाया। बादामी में विष्णु को समर्पित एक गुफा मंदिर में चित्र पाए गए हैं।

पुलिकेसिन-II का ऐहोल शिलालेख: 

  • कर्नाटक के एहोल में मेगुडी मंदिर में स्थित, एहोल शिलालेख चालुक्य इतिहास और उपलब्धियों में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
    • एहोल को भारतीय मंदिर वास्तुकला का उद्गम स्थल माना जाता है।
  • प्रसिद्ध कवि रविकृति द्वारा तैयार किया गया, यह शिलालेख चालुक्य राजवंश, विशेष रूप से राजा पुलकेशिन-II को एक गीतात्मक श्रद्धांजलि है, जिसे सत्य (सत्यश्रय) के अवतार के रूप में सराहा जाता है।
  • शिलालेख में विरोधियों पर चालुक्य वंश की विजय का वर्णन है, जिसमें हर्षवर्द्धन की प्रसिद्ध हार भी शामिल है।

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