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भारतीय विरासत और संस्कृति

तेल उम्म आमेर और असम के चराइदेव मोइदम को यूनेस्को द्वारा मान्यता

  • 29 Jul 2024
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

असम के चराइदेव मोइदम, विश्व धरोहर समिति, UNESCO विश्व धरोहर स्थल सूची, गाज़ा पट्टी 

मेन्स के लिये:

भारतीय धरोहर स्थल, पुरातत्त्व स्थलों का संरक्षण

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व धरोहर समिति ने तेल उम्म आमेर, जिसे मोनेस्ट्री ऑफ सेंट हिलारियन के रूप में भी जाना जाता है, को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की विश्व धरोहर स्थल सूची तथा खतरे में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया।

  • इसके अतिरिक्त, असम के चराइदेव मोइदम को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में जोड़ा गया, जो भारत का 43वाँ विश्व धरोहर स्थल है।

तेल उम्म आमेर के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: गाज़ा पट्टी में स्थित तेल उम्म आमेर, चौथी शताब्दी ई.पू. का एक प्राचीन ईसाई मठ है। हिलारियन द ग्रेट (291-371 ई.) द्वारा स्थापित, इसे मिडिल ईस्ट में सबसे प्राचीन और सबसे बड़े मठवासी/मोनास्टिक समुदायों में से एक माना जाता है।
  • पुरातात्त्विक महत्त्व: इस स्थल में पाँच क्रमिक चर्च, स्नान परिसर और अभयारण्य परिसर, ज्यामितीय मोज़ाइक एवं एक विशाल तहखाना सहित व्यापक खंडहर हैं। इसे अपने स्थापना काल से लेकर उमय्यद काल (661-750ई.) तक धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र माना जाता रहा है।
  • हाल ही में हुई क्षति: गाज़ा पट्टी में चल रहे संघर्ष से तेल उम्म आमेर सहित सांस्कृतिक स्थलों को काफी नुकसान पहुँचाया है।
    • विश्व धरोहर समिति द्वारा इसे विश्व धरोहर सूची और खतरे में पड़ी विश्व धरोहरों की सूची में शामिल करने का निर्णय संघर्ष के बीच इस ऐतिहासिक स्मारक को संरक्षित करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • विश्व धरोहर स्थिति का तेल उम्म आमेर पर प्रभाव:
    • विश्व धरोहर सूची में सूचीबद्ध होने से अंतर्राष्ट्रीय मान्यता और संरक्षण कर्त्तव्य प्राप्त होते हैं। यदि किसी स्थल को "खतरे में" घोषित किया जाता है, तो उसे संरक्षण प्रयासों के लिये अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी और वित्तीय सहायता में वृद्धि प्राप्त हो सकती है। 
    • दिसंबर 2023 में, यूनेस्को ने वर्ष 1954 के हेग कन्वेंशन के तहत तेल उम्म आमेर को अनंतिम उन्नत संरक्षण प्रदान किया, जो सशस्त्र संघर्ष के दौरान जानबूझकर किये जाने वाले नुकसान से उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान करता है।,

नोट: 

  • खतरे में विश्व धरोहर की सूची अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को विश्व धरोहर सूची में शामिल किसी संपत्ति की विशेषताओं पर खतरों के बारे में सूचित करती है और सुधारात्मक कार्रवाई को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखती है।
  • इसमें सशस्त्र संघर्ष, प्राकृतिक आपदाएँ, प्रदूषण, अवैध शिकार, शहरीकरण और पर्यटन विकास जैसे खतरों का सामना करने वाली साइटें शामिल हैं।
    • सूची में प्रविष्टि आसन्न खतरों या संपत्ति के विश्व धरोहर मूल्यों पर संभावित नकारात्मक प्रभावों के कारण हो सकती है।
  • वर्ष 2019 में बाकू में अपने 43वें सत्र के दौरान, विश्व धरोहर समिति ने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी संपत्ति को खतरे में विश्व धरोहर के रूप में सूचीबद्ध करने का उद्देश्य राज्य पक्ष को संपत्ति (धरोहर) के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान करने में मदद करने के लिये वैश्विक समर्थन जुटाना है।
    • इसमें संपत्ति के संरक्षण की वांछित स्थिति को प्राप्त करने हेतु सुधारात्मक उपायों की योजना विकसित करने के लिये विश्व धरोहर केंद्र और सलाहकार निकायों के साथ काम करना शामिल है।

असम के चराईदेव मोइदम के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • असम में चराईदेव मोइदम ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं क्योंकि ये अहोम राजवंश के समाधि स्थल हैं, जिनकी स्थापना 1253 ई. में किंग सुकफा ने की थी।
    • इन पार्थिव टीलों को मोइदम के नाम से जाना जाता है, इनका इस्तेमाल राजघरानों और कुलीन वर्ग के शवों को दफनाने के लिये किया जाता था, जो अहोम वंश की अनूठी अंत्येष्टि प्रथाओं को दर्शाता है।
  • प्राचीन मिस्र के लोगों से मिलते-जुलते मोइदम चराईदेव मोइदम को ‘असम के पिरामिड’ का उपनाम देते हैं, जो अब लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण हैं, लेकिन जिनमें कई जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। 
  • अहोम, जिन्होंने छह शताब्दियों तक असम पर शासन किया, दाह संस्कार के बजाय दफनाने की प्रथा का अनुसरण करते थे और मोइदम की भव्यता प्रायः दफन व्यक्तियों की स्थिति को दर्शाती थी।
  • चाओलुंग सुकफा बर्मा से ब्रह्मपुत्र घाटी में चले गए, चराईदेव में पहली रियासत की स्थापना की। अहोम ने पुरानी राजनीतिक व्यवस्था का दमन किया और अपनी पारंपरिक मान्यताओं को बनाए रखते हुए हिंदू धर्म एवं असमिया भाषा को अपनाया।
    • सुकफा ने विभिन्न समुदायों और जनजातियों को सफलतापूर्वक आत्मसात किया, जिससे उन्हें 'बोर असोम' या 'ग्रेटर असम' के वास्तुकार की उपाधि मिली।
  • असम में विशेष रूप से अहोम सेनापति लचित बोड़फुकन की 400वीं जयंती जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से अहोम राजवंश की विरासत को कायम रखा जाता है। असम में प्रत्येक वर्ष 2 दिसंबर को सुकफा और उनके शासन की स्मृति में 'असोम दिवस' मनाया जाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये, विशेष रूप से टेल उम्म आमेर और चराइदेव मोइदम के हाल ही में शामिल किये जाने के संदर्भ में।

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