भारत में निगरानी कानून और गोपनीयता | 23 Jul 2021
प्रिलिम्स के लिये:पेगासस, टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 मेन्स के लिये:भारत में निगरानी कानून और गोपनीयता से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक वैश्विक सहयोगी खोजी प्रयास से पता चला है कि पेगासस (Pegasus) नामक परिष्कृत स्पाइवेयर का उपयोग करके लक्षित निगरानी के लिये भारत में कम-से-कम 300 व्यक्तियों की संभावित रूप से पहचान की गई थी। हालाँकि सरकार ने दावा किया है कि भारत में सभी इंटरसेप्शन/अवरोध कानूनी रूप से होते हैं।
- भारत में संचार निगरानी मुख्य रूप से दो कानूनों- टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत होती है।
- जहाँ टेलीग्राफ अधिनियम कॉल्स के अवरोधन से संबंधित है, वहीं सूचना प्रौद्योगिकी को सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक संचार की निगरानी से निपटने के लिये अधिनियमित किया गया था।
प्रमुख बिंदु:
टेलीग्राफ अधिनियम:
- इस कानून की धारा 5(2) के तहत सरकार केवल कुछ स्थितियों में ही कॉल को इंटरसेप्ट कर सकती है:
- जहाँ भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित की बात हो।
- राज्य की सुरक्षा के हित में।
- विदेशी राज्यों या सार्वजनिक व्यवस्था के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध।
- किसी अपराध को करने के लिये उकसाने से रोकना।
नोट:
ये वही प्रतिबंध हैं जो संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए गए हैं।
- हालाँकि ये प्रतिबंध तभी लगाए जा सकते हैं, जब सार्वजनिक आपात की स्थिति हो या सार्वजनिक सुरक्षा के हित का मामला हो।
- इसके अलावा निगरानी के लिये किसी व्यक्ति के चयन का आधार और सूचना एकत्र करने की सीमा को लिखित रूप में दर्ज किया जाता है।
- यह वैध इंटरसेप्शन पत्रकारों के खिलाफ नहीं हो सकता।
- भारत में प्रकाशन के इरादे से केंद्र सरकार या राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त संवाददाताओं के प्रेस संदेश, बशर्ते कि उनके प्रसारण को इस उपधारा के तहत प्रतिबंधित नहीं किया गया हो।
- सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप: पब्लिक यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम भारत संघ’ (1996) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने टेलीग्राफ अधिनियम के प्रावधानों में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की कमी की ओर इशारा करते हुए निम्नलिखित टिप्पणियाँ की थीं-
- टैपिंग किसी व्यक्ति की निजता पर गंभीर आक्रमण है।
- इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रत्येक सरकार अपने खुफिया संगठन के माध्यम से कुछ हद तक निगरानी अभियान चलाती है, लेकिन साथ ही नागरिकों की निजता के अधिकार की रक्षा की जानी भी आवश्यक है।
- इंटरसेप्शन के लिये स्वीकृति: सर्वोच्च न्यायालय की उपयुक्त टिप्पणियों ने वर्ष 2007 में टेलीग्राफ नियम में नियम 419A को पेश करने और बाद में वर्ष 2009 में आईटी अधिनियम में बदलाव करने का आधार प्रस्तुत किया था।
- नियम 419A में कहा गया है कि गृह मंत्रालय में भारत सरकार का सचिव (संयुक्त सचिव के पद से नीचे का नहीं) केंद्र के मामले में इंटरसेप्शन का आदेश पारित कर सकता है और इसी तरह के प्रावधान राज्य स्तर पर भी मौजूद हैं।
आईटी अधिनियम, 2000
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 और सूचना प्रौद्योगिकी (प्रक्रिया और सुरक्षा के लिये अवरोधन, निगरानी एवं सूचना के डिक्रिप्शन) नियम, 2009 को इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करने हेतु अधिनियमित किया गया था।
- हालाँकि आईटी अधिनियम की धारा 69 का दायरा टेलीग्राफ अधिनियम की तुलना में बहुत व्यापक व अस्पष्ट है, क्योंकि इसके तहत इलेक्ट्रॉनिक निगरानी शुरू करने की एकमात्र शर्त ‘अपराध की जाँच’ करना है।
- ये प्रावधान समस्याग्रस्त हैं और सरकार को इंटरसेप्शन एवं निगरानी गतिविधियों के संबंध में पूरी तरह से अस्पष्टता प्रदान करते हैं।
निगरानी से संबंधित मुद्दे:
- कानूनी खामियाँ: सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के अनुसार, विधिक अंतराल निगरानी की अनुमति देता है तथा गोपनीयता को प्रभावित करता है। उदाहरण :
- इंटरसेप्शन (Interception) के प्रकार जैसे मुद्दों पर अस्पष्टता, सूचना के विवरण का स्तर जिसे इंटरसेप्ट किया जा सकता है और सेवा प्रदाताओं से सहायता के परिणामस्वरूप कानून को दरकिनार करने में तथा राज्य द्वारा निगरानी में सहायता करती है।
- मौलिक अधिकारों का प्रभावित होना : एक निगरानी प्रणाली की मौजूदगी निजता के अधिकार (केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामला 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित) तथा संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत वाक् स्वतंत्रता एवं वैयक्तिक स्वतंत्रता के अभ्यास को प्रभावित करती है।
- अधिनायकवादी शासन: निगरानी, सरकारी कामकाज में सत्तावाद के प्रसार को बढ़ावा देती है क्योंकि यह कार्यपालिका को नागरिकों पर अधिक शक्ति का प्रयोग करने और उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करने की अनुमति देती है।
- प्रेस की स्वतंत्रता को खतरा: पेगासस (Pegasus) के उपयोग पर वर्तमान खुलासे से पता चलता है कि कई पत्रकारों पर भी निगरानी रखी गई थी। इससे प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
आगे की राह
- भारतीय निगरानी व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है, जिसमें निगरानी की नैतिकता को शामिल किया जाना चाहिये और निगरानी के नैतिक पहलुओं पर विचार करना चाहिये।
- इस संदर्भ में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (PDP) विधेयक, 2019 के अधिनियमित होने से पहले एक समग्र बहस की आवश्यकता है।
- ताकि मौलिक अधिकारों की आधारशिला के खिलाफ कानून का परीक्षण किया जा सके और डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास एवं देश की सुरक्षा को संतुलित किया जा सके।