भारतीय राजनीति
दल बदल विरोधी कानून
- 14 Nov 2019
- 4 min read
प्रीलिम्स के लिये:
अनुसूची 10,दल-बदल विरोधी कानून, संविधान का 91 वाँ संशोधन
मेन्स के लिये:
दल बदल कानून से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अपने एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक के विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 10वीं अनुसूची (दल बदल विरोधी क़ानून) के तहत अयोग्य घोषित किये गए 17 विधायकों की अयोग्यता के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन उनके उपचुनाव लड़ने पे लगी रोक को हटा दिया।
प्रमुख बिंदु
- न्यायालय के अनुसार, 'न तो संविधान और न ही वैधानिक योजना के तहत ( जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 या दल बदल विरोधी कानून) यह उल्लेख किया गया है कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य ठहराए गए विधायक फिर से चुनाव नहीं लड़ सकते।
- न्यायालय ने अपने निर्णय में संविधान के 91वें संशोधन का उल्लेख किया।
- वर्ष 2003 में संविधान का 91वाँ संशोधन किया गया।
- संशोधन के अनुसार, दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित किए गए सदस्य को संविधान के अनुच्छेद 75 (1 B), 164 (1 B) और 361 (B) एक मंत्री के रूप में नियुक्त होने से या उसके राजनीतिक लाभ के पद को धारण करने से प्रतिबंधित करता है।
- प्रतिबंध की यह अवधि उसके अयोग्य घोषित किये जाने से नियुक्ति की अवधि समाप्त होने के पहले या विधायिका द्वारा पुनः निर्वाचित किये जाने(दोनों में जो भी पहले हो) तक रहती है।
- किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्लू मामले (1993) में, उच्चतम न्यायालय ने घोषणा की विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम नहीं होगा।
- विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय दुर्भावना, दुराग्रह, संवैधानिक जनादेश और प्राकृतिक न्याय पाए जाने की स्थिति में न्यायिक पुनरावलोकन किया जा सकता है।
- निर्णय के अंतर्गत चुने गए विधायको को इस्तीफा देने का पूरा अधिकार है। इसके साथ साथ उद्देश्य के आधार पर अध्यक्ष को भी इस्तीफा नामंजूर करने की शक्ति प्राप्त है।
- संविधान के अनुच्छेद 190 (3) के तहत, अध्यक्ष को इस्तीफा स्वीकार करने से पहले उसकी स्वैच्छिक और वास्तविक प्रकृति का पता लगाना होगा।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2019 में, कर्नाटक विधानसभा में सत्ता पक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर विचार किया जाना था।
- इस प्रक्रिया के दौरान कुछ विधायकों ने अपने संबंधित दलों से इस्तीफा दे दिया। हालाँकि, कुछ दिनों के भीतर होने वाले विश्वास मत के तहत तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने उनका इस्तीफा नहीं लिया।
- सत्ता पक्ष द्वारा फ्लोर टेस्ट (Floor Test) के दौरान जैसे ही विश्वास मत हासिल किया गया, अध्यक्ष ने उन इस्तीफा देने वाले सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया।