भारतीय राजनीति
प्रवर्तन निदेशालय प्रमुख के कार्यकाल विस्तार पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- 13 Jul 2023
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प्रिलिम्स के लिये:विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA), 1999; धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002; सर्वोच्च न्यायालय; प्रवर्तन निदेशालय; केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003; दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946; परमादेश (Mandamus), धन शोधन मेन्स के लिये:प्रवर्तन निदेशालय (ED) की संरचना और कार्य |
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशक को निर्धारित कट-ऑफ तिथि से परे दिये गए दो कार्यकाल विस्तार को "कानूनी रूप से वैध नहीं" घोषित किया है।
- यद्यपि न्यायालय ने निदेशक को 31 जुलाई तक पद पर बने रहने की अनुमति दी, लेकिन इससे उनका समग्र कार्यकाल कम हो गया।
मामले की पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति:
- वर्तमान निदेशक को नवंबर 2018 में दो वर्ष की अवधि के लिये नियुक्त किया गया था। नवंबर 2020 में उनका कार्यकाल तीन वर्ष के लिये बढ़ा दिया गया था, जिसे बाद में याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी।
- वर्ष 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन एक विशिष्ट परमादेश जारी किया था जिसमें आगे के विस्तार पर रोक लगाई गई थी।
- बाद में सरकार ने स्वयं को तीन वर्षीय कार्यकाल विस्तार की शक्तियाँ प्रदान करने के लिये केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 में संशोधन किया।
- संशोधनों को यह तर्क देते हुए चुनौती दी गई थी कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पिछले निर्देश का खंडन किया है जिसमें CBI प्रमुख (विनीत नारायण केस) जैसे शीर्ष अधिकारियों के लिये निश्चित कार्यकाल की वकालत की गई थी।
- अदालत ने फैसला सुनाया कि संशोधन संवैधानिक थे, लेकिन ED के निदेशक को दिये गए विशिष्ट विस्तार को अमान्य घोषित कर दिया, क्योंकि उन्होंने पहले के परमादेश का उल्लंघन किया था।
नोट: ED निदेशक की नियुक्ति CVC अधिनियम, 2003 की धारा 25 के तहत की जाती है। केंद्र सरकार एक चयन समिति की सिफारिश पर ED के निदेशक की नियुक्ति करती है। समिति में CVC अध्यक्ष, सतर्कता आयुक्त, गृह मंत्रालय, कार्मिक मंत्रालय और केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय के सचिव शामिल हैं।
परमादेश:
- परमादेश किसी सार्वजनिक निकाय, न्यायाधिकरण, निगम या निचली अदालत द्वारा जारी एक रिट या आदेश को संदर्भित करता है, जो उन्हें एक विशिष्ट कानूनी कर्तव्य निभाने का निर्देश देता है जिसे पूरा करने के लिये वे बाध्य हैं।
- यह लैटिन शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है "हम आदेश देते हैं"।
- भारत में इसका उपयोग नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिये किया जाता है जब राज्य या उसकी संस्थाओं द्वारा उनका उल्लंघन किया जाता है। इसका उपयोग प्राधिकारियों द्वारा शक्ति या विवेक के दुरुपयोग को रोकने के लिये भी किया जाता है।
- यह भारत में केवल सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों द्वारा क्रमशः संविधान के अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के अंर्तगत ही जारी किया जाता है।
प्रवर्तन निदेशालय (ED):
- परिचय:
- ED एक बहु-विषयक संगठन है जिसे मनी लॉन्ड्रिंग के अपराधों के साथ विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन की जाँच करने का अधिकार है।
- यह भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत संचालित होता है।
- स्थापना:
- वर्ष 1956 में विनिमय नियंत्रण कानूनों के उल्लंघन से निपटने के लिये आर्थिक मामलों के विभाग में एक 'प्रवर्तन इकाई' का गठन किया गया था।
- वर्ष 1957 में इस यूनिट का नाम बदलकर 'प्रवर्तन निदेशालय' कर दिया गया।
- वर्ष 1960 में इस निदेशालय के प्रशासनिक नियंत्रण का कार्यभार आर्थिक मामलों के विभाग से राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार को सौंप दिया गया था।
- प्रवर्तन निदेशालय के कानून:
- प्रवर्तन निदेशालय निम्नलिखित कानून लागू करता है:
- विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (Foreign Exchange Management Act- FEMA)
- धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act- PMLA)
- भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (Fugitive Economic Offenders Act- FEOA): यह कानून आर्थिक अपराधियों को भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहकर भारतीय कानूनी प्रक्रिया से बचने से रोकने के लिये बनाया गया था।
- प्रवर्तन निदेशालय निम्नलिखित कानून लागू करता है:
- संरचना:
- प्रवर्तन निदेशालय का नेतृत्व प्रवर्तन निदेशक द्वारा किया जाता है, इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलकाता और दिल्ली में स्थित पाँच क्षेत्रीय कार्यालय की अध्यक्षता विशेष प्रवर्तन निदेशक द्वारा की जाती है।