सर्वोच्च न्यायालय ने बलात्कार पीड़िता को दी गर्भपात की अनुमति | 25 Aug 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट, 1971, भारत में गर्भपात कानून, प्रजनन अधिकार, शांतिलाल शाह समिति

मेन्स के लिये:

भारत में गर्भपात से संबंधित कानूनी प्रावधान, महिलाओं से संबंधित प्रमुख मुद्दे

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

विवाहेतर गर्भावस्था, विशेष रूप से यौन उत्पीड़न के मामले को हानिकारक और तनाव का कारण मानते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात की एक बलात्कार पीड़िता को 27 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी।

भारत में गर्भपात से संबंधित कानूनी प्रावधान:

  • 1960 के दशक तक भारत में गर्भपात प्रतिबंधित था और इसका उल्लंघन करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के तहत कारावास की सज़ा या ज़ुर्माना लगाया जाता था।
    • 1960 के दशक के मध्य में गर्भपात नियमों की जाँच के लिये शांतिलाल शाह समिति की स्थापना की गई थी।
    • इसके निष्कर्षों के आधार पर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट, 1971 अधिनियमित किया गया, जिससे सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की अनुमति मिली, महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा की गई, इससे मातृ मृत्यु दर में भी कमी आई।
  • MTP अधिनियम, 1971 महिला की सहमति से और पंजीकृत चिकित्सक (RMP) की सलाह पर गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता है। हालाँकि वर्ष 2002 और 2021 में कानून को अद्यतन किया गया।
    • वर्ष 2021 का संशोधन बलात्कार जैसे विशिष्ट मामलों में दो चिकित्सकों की मंज़ूरी के साथ गर्भावस्था के 20 से 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता है।
      • यह राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड का गठन करता है जो यह तय करता है कि भ्रूण में पर्याप्त असामान्यताओं के मामलों में 24 सप्ताह के बाद गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है या नहीं।
    • यह गर्भनिरोधक प्रावधानों की विफलता को अविवाहित महिलाओं (शुरुआत में केवल विवाहित महिलाओं) तक बढ़ाता है, चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, उन्हें चयन के आधार पर गर्भपात सेवाएँ लेने की अनुमति देता है।
      • उम्र और मानसिक स्थिति के आधार पर सहमति की आवश्यकताएँ भिन्न हो सकती हैं, जिसे चिकित्सक की निगरानी में सुनिश्चित किया जाता है।

  • सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता की पुष्टि करते हैं। न्यायालयों ने बलात्कार के मामलों में गर्भपात के अधिकार को मान्यता दी और प्रजनन विकल्प को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के एक घटक के रूप में स्वीकार किया।

नोट: 

न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ और अन्य (2017) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में प्रजनन विकल्प चुनने के महिलाओं के संवैधानिक अधिकार को मान्यता दी, जो कि प्रजनन अधिकारों के संबंध में एक ठोस कानून का प्रावधान करता है, इसका आशय यह है कि डॉक्टरों को गर्भपात करने के अधिकार और महिलाओं को गर्भपात कराने के मौलिक अधिकार एक समान नहीं हैं, इसकी कुछ शर्ते भी हैं।