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भारत में गर्भपात कानून

  • 25 Jul 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गर्भपात कानून, गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम MTP (2021)।

मेन्स के लिये:

गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम MTP एक्ट (2021) और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह में गर्भपात की अनुमति दी थी, लेकिन हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम (MTP) अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए ऐसें मामले में गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया।

दिल्ली उच्च न्यायालय की स्थिति

  • गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम अधिनियम ने केवल विवाहित महिलाओं को 20 सप्ताह के बाद गर्भपात की अनुमति दी थी, इसलिये अविवाहित महिलाओं को गर्भपात कराने की अनुमति नहीं होगी।
    • इसमें गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति नियम, 2003 के नियम 3B का उल्लेख है, क्योंकि यह महिला की वैवाहिक स्थिति में बदलाव की बात करता है और इसमें लिव-इन रिलेशनशिप तथा अविवाहित महिलाएँ शामिल नहीं थी।

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

  • पीठ ने कहा कि वर्ष 2021 में संशोधित MTP अधिनियम के प्रावधानों की धारा 3 के स्पष्टीकरण में “पति” के बजाय “पार्टनर” शब्द शामिल है, जो संसद की मंशा को दर्शाता है कि यह केवल वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न स्थितियों को सीमित करने के लिये नहीं था।
  • इसने यह भी कहा कि याचिकाकर्त्ता को इस आधार पर कानून के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वह अविवाहित थी और ऐसा करना कानून के 'उद्देश्य एवं भावना' के विपरीत होगा।
  • इसके अलावा पीठ ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के निदेशक को महिला की जाँच करने के लिये दो डॉक्टरों का एक मेडिकल बोर्ड स्थापित करने का निर्देश दिया (MTP अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार) जिसका कार्य यह निर्धारित करना है कि यह सुरक्षित है या नहीं तथा यह भी सुनिश्चित करना है कि गर्भपात करने पर माँ की जान को खतरा न हो।
    • अगर उनकी राय है कि ऐसा करना सुरक्षित है, तो AIIMS उस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने  की अनुमति दे सकता है।

भारतीय संदर्भ में गर्भपात कानून:

  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • 1960 के दशक तक भारत में गर्भपात अवैध था और ऐसा करने पर एक महिला के लिये भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 312 के तहत तीन वर्ष की कैद और/अथवा ज़ुर्माने का प्रावधान किया गया था।
    • 1960 के दशक के मध्य में सरकार ने शांतिलाल शाह समिति का गठन किया और डॉ. शांतिलाल शाह की अध्यक्षता वाले समूह को गर्भपात के मामले की जाँच करने तथा यह तय करने के लिये कहा गया कि क्या भारत को इसके लिये एक कानून की आवश्यकता है अथवा नहीं।
    • शांतिलाल शाह समिति की रिपोर्ट के आधार पर लोकसभा और राज्यसभा में एक चिकित्‍सकीय समापन विधेयक पेश किया गया था और अगस्त 1971 में इसे संसद द्वारा पारित किया गया था।
    • 1 अप्रैल, 1972 को गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन (MPT) अधिनियम, 1971 लागू हुआ जो जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू हुआ।
    • इसके अलावा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312, गर्भवती महिला की सहमति से गर्भपात किये जाने पर भी स्वेच्छा से "गर्भपात का कारण" अपराध है, सिवाय इसके कि जब गर्भपात महिला के जीवन को बचाने के लिये किया जाता है।
      • इसका अर्थ यह है कि स्वयं महिला पर या चिकित्सक सहित किसी अन्य व्यक्ति पर गर्भपात का मुकदमा चलाया जा सकता है।
  • परिचय:
    • गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम (MTP) 1971, एक्ट ने दो चरणों में एक चिकित्सक द्वारा गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी:
      • गर्भधारण के 12 सप्ताह बाद तक के गर्भपात के लिये एक डॉक्टर की राय ज़रूरी थी।
      • इस कानून के अनुसार, कानूनी तौर पर गर्भपात केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, जैसे- जब महिला की जान को खतरा हो, महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो, बलात्कार के कारण गर्भधारण हुआ हो, पैदा होने वाले बच्चे का गर्भ में उचित विकास न हुआ हो और उसके विकलांग होने का डर हो। 12 से 20 सप्ताह के बीच के गर्भधारण के संदर्भ में इन सभी बातों का निर्धारण करने के लिये दो डॉक्टरों की राय आवश्यक होती थी।
  • हाल के संशोधन:
    • वर्ष 2021 में संसद ने 20 सप्ताह तक के गर्भधारण के लिये एक डॉक्टर की सलाह के आधार पर गर्भपात की अनुमति देने के लिये कानून में बदलाव किया।
      • संशोधित कानून के तहत 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भधारण के लिये दो डॉक्टरों की राय की आवश्यकता होती है।
      • इसके अलावा 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भधारण के लिये, नियम महिलाओं की सात श्रेणियों को निर्दिष्ट करते हैं जो MTP अधिनियम के तहत निर्धारित नियमों की धारा 3 बी के तहत समाप्ति की मांग करने के लिये पात्र होंगी।
        • यौन हमले या बलात्कार की स्थिति में
        • अवयस्क
        • विधवा और तलाक होने जैसी परिस्थितियों अर्थात् वैवाहिक स्थिति में बदलाव के समय की गर्भावस्था
        • शारीरिक रूप से विकलांग महिलाएँ (विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत निर्धारित मानदंडों के अनुसार प्रमुख विकलांगता)
        • मानसिक मंदता सहित मानसिक रूप से बीमार महिलाएँ
        • भ्रूण की विकृति जिसमें जीवन के साथ असंगत होने का पर्याप्त जोखिम होता है या यदि बच्चा पैदा होता है तो वह गंभीर रूप से विकलांग, शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं से पीड़ित हो सकता है,
        • मानवीय आधार या आपदाओं या आपात स्थितियों में गर्भावस्था वाली महिलाएँ।

MTP अधिनियम से संबंधित चुनौतियाँ:

  • जबकि कानून गर्भवती महिला की वैवाहिक स्थिति में उसके पति या पत्नी के साथ तलाक और विधवापन में बदलाव को मान्यता देता है, लेकिन यह अविवाहित महिलाओं की स्थिति को संबोधित नहीं करता है।
  • यह उच्च विनियमित प्रक्रिया है जिसके तहत कानून गर्भवती महिला की निर्णय लेने की शक्ति को मान्यता प्राप्त मेडिकल प्रैक्टिशनर (RMP) को हस्तांतरित करता है और यह RMP के विवेक पर निर्भर है कि गर्भपात किया जाना चाहिये या नहीं।

आगे की राह

  • गर्भपात पर भारत के कानूनी ढाँचे को काफी हद तक प्रगतिशील माना जाता है, खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों की तुलना में जहाँ गर्भपात गंभीर रूप से प्रतिबंधित हैं।
  • इसके अलावा सार्वजनिक नीति निर्माण पर गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, साथ ही सभी हितधारकों को महिलाओं और उनके प्रजनन अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये शामिल करने की आवश्यकता है, न कि उन चिकित्सकों पर नियंत्रण करना है जो गर्भपात की सेवा प्रदान करते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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