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भारतीय अर्थव्यवस्था

सुपर साइकिल ऑफ कमोडिटीज़

  • 12 May 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई है, जिसे एक नए ‘कमोडिटी सुपर साइकिल’ (Commodity Super Cycle) के रूप में पेश किया जा रहा है।

  • कमोडिटी, वाणिज्य में उपयोग किये जाने वाली एक बुनियादी वस्तु होती है, जो कि उसी प्रकार की अन्य वस्तुओं के साथ विनिमय योग्य होती है। प्रायः अन्य वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादन में इसका उपयोग इनपुट के रूप में किया जाता है।

On-The-Rise

प्रमुख बिंदु

सुपर साइकिल ऑफ कमोडिटीज़ के विषय में:

  • ‘कमोडिटी सुपर साइकिल’ का आशय मज़बूत मांग वृद्धि की स्थिर अवधि से है, जो एक वर्ष या कुछ मामलों में एक दशक या उससे भी अधिक हो सकती है।

वर्तमान स्थिति:

  • धातु:
    • इस्पात, जो कि निर्माण क्षेत्र और उद्योगों में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला इनपुट है, की मांग अपने सबसे उच्चतम स्तर पर हैं, क्योंकि पिछले एक वर्ष में अधिकांश धातुओं की कीमतों में वृद्धि हुई है।
  • कृषि उत्पाद:
    • चीनी, मक्का, कॉफी, सोयाबीन तेल, पाम ऑयल - अमेरिकी कमोडिटी बाज़ार में तेज़ी से बढ़े हैं, जिसका असर घरेलू बाज़ार में भी देखा जा रहा है।
  • कारण: नया ‘कमोडिटी सुपर साइकिल’ निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न हो सकता है:

    • वैश्विक मांग में रिकवरी (चीन और अमेरिका में रिकवरी के कारण)।

    • आपूर्ति पक्ष की कमी।
    • वैश्विक केंद्रीय बैंकों की विस्तारवादी मौद्रिक नीति
    • परिसंपत्ति निर्माण में निवेश: यह उस मुद्रा का भी परिणाम हो सकता है, जिसका उपयोग इस उम्मीद से परिसंपत्तियों में निवेश के लिये किया जाता है कि भविष्य में मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी होगी।
      • इस प्रकार यह मांग से प्रेरित नहीं होता, बल्कि मुद्रास्फीति का भय होता है जो कीमतों में बढ़ोतरी को प्रोत्साहन देता है।

चिंताएँ:

  • यह इनपुट लागतों को बढ़ावा देगा जो एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है, क्योंकि इससे न केवल भारत में बुनियादी अवसंरचना के विकास की लागत पर असर पड़ने की उम्मीद है, बल्कि समग्र मुद्रास्फीति, आर्थिक सुधार और नीति निर्माण पर भी प्रभाव पड़ेगा।
  • धातुओं की उच्च कीमतें उच्च थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) मुद्रास्फीति को जन्म देंगी और इसलिये कोर मुद्रास्फीति को कम करना मुश्किल होगा।

विस्तारवादी और तंग मौद्रिक नीतियाँ

  • ऐसी मौद्रिक नीति जो ब्याज़ दरों को कम करती हो और उधार को प्रोत्साहित करती हो, विस्तारवादी मौद्रिक नीति कहलाती है।
  • इसके विपरीत ऐसी मौद्रिक नीति जो ब्याज़ दरों को बढ़ाती है और अर्थव्यवस्था में उधार को कम करती है, तंग मौद्रिक नीति कहलाती है।

मुद्रास्फीति

  • मुद्रास्फीति का तात्पर्य दैनिक या आम उपयोग की अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं जैसे- भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, परिवहन आदि की कीमतों में वृद्धि से है।
  • मुद्रास्फीति के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं के औसत मूल्य परिवर्तन को मापा जाता है।
  • मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति में कमी का संकेत है। इससे अंततः आर्थिक विकास में मंदी आ सकती है।
  • हालाँकि अर्थव्यवस्था में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये मुद्रास्फीति के संतुलित स्तर की आवश्यकता होती है।
  • भारत में मुद्रास्फीति की गणना दो मूल्य सूचियों के आधार पर की जाती है- थोक मूल्य सूचकांक (WPI) एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)।, जो क्रमशः थोक और खुदरा मूल्य स्तर के परिवर्तनों को मापते हैं।

कोर मुद्रास्फीति

  • इसका आशय वस्तुओं और सेवाओं की लागत में बदलाव से है, लेकिन इसमें खाद्य और ऊर्जा क्षेत्र की वस्तुओं और सेवाओं की लागत को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि इनकी कीमतें अधिक अस्थिर होती हैं।
  • इसका उपयोग उपभोक्ता आय पर बढ़ती कीमतों के प्रभाव को निर्धारित करने के लिये किया जाता है।

आगे की राह

  • निर्णय निर्माताओं को आपूर्ति और मांग में असंतुलन को देखने की ज़रूरत है और उन्हें यह पता लगाना चाहिये कि इस स्थिति से निपटने के लिये स्वयं को तैयार करने हेतु उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (Production-Linked Incentive) योजना के माध्यम से कहाँ निवेश कर सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

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