सुंदरलाल बहुगुणा: चिपको आंदोलन | 24 May 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गांधीवादी सुंदरलाल बहुगुणा जो चिपको आंदोलन के प्रणेता थे, की कोविड -19 के कारण मृत्यु हो गई।
प्रमुख बिंदु:
चिपको आंदोलन:
- यह एक अहिंसक आंदोलन था जो वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली ज़िले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ था।
- इस आंदोलन का नाम 'चिपको' 'वृक्षों के आलिंगन' के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिये उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।
- जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिये इस आंदोलन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इसके अलावा इससे समाज में अपनी स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आया।
- इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कैसे ज़मीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
- इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।
सुंदरलाल बहुगुणा (1927-2021):
- इन्होंने हिमालय की ढलानों पर वृक्षों की रक्षा के लिये चिपको आंदोलन की शुरुआत की।
- इसके अलावा इन्हें चिपको का नारा 'पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है' गढ़ने के लिये जाना जाता है।
- 1970 के दशक में चिपको आंदोलन के बाद उन्होंने विश्व में यह संदेश दिया कि पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी तंत्र अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उनका विचार था कि पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को एक साथ चलना चाहिये।
- भागीरथी नदी पर टिहरी बाँध के खिलाफ अभियान चलाया, जो विनाशकारी परिणामों वाली एक मेगा परियोजना है। उन्होंने आज़ादी के बाद भारत में 56 दिनों से अधिक समय तक लंबा उपवास किया।
- पूरे हिमालयी क्षेत्र पर ध्यान आकर्षित करने के लिये 1980 के दशक की शुरुआत में 4,800 किलोमीटर की कश्मीर से कोहिमा तक की पदयात्रा (पैदल मार्च) की।
- उन्हें वर्ष 2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
भारत में प्रमुख पर्यावरण आंदोलन:
नाम |
वर्ष |
स्थान |
प्रमुख |
विवरण |
बिशनोई आंदोलन |
1700 |
राजस्थान का खेजड़ी, मारवाड़ क्षेत्र |
अमृता देवी |
|
चिपको आंदोलन |
1973 |
उत्तराखंड |
सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट |
खेजड़ी (जोधपुर) राजस्थान में 1730 के आस-पास अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में लोगों ने राजा के आदेश के विपरीत पेड़ों से चिपककर उनको बचाने के लिये आंदोलन चलाया था। इसी आंदोलन ने आज़ादी के बाद हुए चिपको आंदोलन को प्रेरित किया, जिसमें चमोली, उत्तराखंड में गौरा देवी सहित कई महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया था। |
साईलेंट वैली प्रोजेक्ट |
1978 |
केरल में कुंतीपुझा नदी |
केरल शास्त्र साहित्य परिषद सुगाथाकुमारी |
केरल में साइलेंट वैली मूवमेंट कुद्रेमुख परियोजना के तहत कुंतीपुझा नदी पर एक पनबिजली बांँध के निर्माण के विरुद्ध था। |
जंगल बचाओ आंदोलन |
1982 |
बिहार का सिंहभूम ज़िला |
सिंहभूम की जनजातियाँ |
यह आंदोलन प्राकृतिक साल वन को सागौन से बदलने के सरकार के फैसले के खिलाफ था। |
अप्पिको आंदोलन |
1983 |
कर्नाटक |
लक्ष्मी नरसिम्हा |
प्राकृतिक पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए। सागौन और नीलगिरि के पेड़ों के व्यावसायिक वानिकी के खिलाफ। |
टिहरी बाँध |
1980-90 |
उत्तराखंड में टिहरी पर भागीरथी और भिलंगना नदी |
टिहरी बांध विरोधी संघर्ष समिति, सुंदरलाल बहुगुणा और वीरा दत्त सकलानी |
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नर्मदा बचाओ आंदोलन |
1980 से वर्तमान तक |
गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र |
मेधा पाटकर, अरुंधती राय, सुंदरलाल बहुगुणा, बाबा आम्टे |
हाल के आंदोलन:
नाम |
वर्ष |
स्थान |
प्रमुख |
विवरण |
क्लाइमेट एक्सन स्ट्राइक |
2019 |
छात्रों द्वारा दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई आदि मेट्रो शहरों में |
ग्रेटा थनबर्ग, बिट्टू केआर |
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‘सांस लेने का अधिकार’ आंदोलन |
5 नवंबर, 2019 |
इंडिया गेट, नई दिल्ली |
लियोनार्डो डी कैपरियो |
नई दिल्ली पिछले दो वर्षों से सबसे प्रदूषित शहर बना है। इसका वायु गुणवत्ता इंडेक्स (AQI) 494 तक गिर गया है। |
देहिंग पटकाई बचाओ आंदोलन |
अप्रैल 2020 |
तिनसुकिया, असम |
रोहित चौधरी, आदिल हुसैन, रणदीप हुड्डा, जो बरुआ और जाधव पीयेंग को भारत के जंगल मैन के रूप में जाना जाता है। अखिल असम छात्र संघ (AASU) और अखिल असम मटक यूथ संघ |
देहिंग पटकाई बचाओ आंदोलन अप्रैल 2020 में नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (NBWL) द्वारा नार्थ-ईस्टर कोल फील्ड (NECF) को इस अभयारण्य में कोयला खनन की अनुमति देने के कारण शुरू हुआ। |
आरे बचाओ आंदोलन |
2019-20 |
आरे राष्ट्रीय उद्यान, मुंबई |
मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MMRLC) की मेट्रो 3 कार शेड के लिये आरे कॉलोनी में वृक्षों की कटाई के खिलाफ। |
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सुंदरबन बचाओ अभियान |
मई 2020 |
सुंदरबन विश्व में सबसे बड़े मैंग्रोव वन हैं, ये गंगा और ब्रह्मपुत्र के डेल्टा क्षेत्र में स्थित हैं। |
एक ऑनलाइन अभियान #savethesundarbans |
मई 2020 में आया चक्रवात अम्फान, वर्ष 1737 के बाद से सबसे भीषण चक्रवात था जो सुंदरबन में विनाश के चिह्न छोड़ गया। |