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भारतीय राजव्यवस्था

अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण

  • 30 Jan 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अनुसूचित जाति का उप-वर्गीकरण, मडिगा समुदाय, न्यायमूर्ति पी. रामचंद्र राजू आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामला

मेन्स के लिये:

अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण पर कानूनी संघर्ष, उप-वर्गीकरण से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने प्रमुख अनुसूचित जाति (SC) समुदायों द्वारा अन्य सबसे पिछड़े समुदायों की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त करने के मुद्दे का समाधान करने के लिये कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है।

  • यह निर्णय विशेष रूप से तेलंगाना के मडिगा समुदाय की मांगों के संबंध में किया गया है।

नवगठित समिति का अधिदेश क्या है?

  • समिति का प्राथमिक उद्देश्य संपूर्ण देश में विभिन्न अनुसूचित जाति समुदायों की शिकायतों के समाधान के लिये वैकल्पिक तरीकों का पता लगाना है।
    • हालाँकि इस समिति का गठन मडिगा समुदाय की चिंताओं के निवारण के लिये किया गया है किंतु इस समिति का दायरा एक समुदाय अथवा राज्य से अधिक है।
  • इसका उद्देश्य संपूर्ण देश की 1,200 से अधिक अनुसूचित जातियों के भीतर सबसे पिछड़े समुदायों को लाभ, योजनाओं और पहलों के समान वितरण के लिये एक विधि का मूल्यांकन कर उसकी प्राप्ति के लिये कार्य करना है जो अपेक्षाकृत समृद्ध तथा प्रभावशाली समुदायों से पिछड़ गए हैं।

भारत में SC के उप-वर्गीकरण से संबंधित प्रमुख पहलू क्या हैं? 

  • परिचय: उप-वर्गीकरण का आशय निर्धारित मानदंडों अथवा विशेषताओं के आधार पर एक बड़ी श्रेणी को छोटी, अधिक विशिष्ट उप-श्रेणियों में विभाजित अथवा वर्गीकृत करने से है। 
    • भारत में SC के संदर्भ में उप-वर्गीकरण में सामाजिक आर्थिक स्थिति अथवा विगत भेदभाव जैसे कारकों के आधार पर SC समूह के भीतर वर्गीकरण किया जा सकता है।
  • मडिगा समुदाय का संघर्ष: मडिगा समुदाय तेलंगाना में कुल SC आबादी का लगभग 50% है जिसे माला समुदाय के प्रभुत्व के कारण अनुसूचित जाति संबंधी सरकारी लाभों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
    • मडिगा समुदाय ने तर्क दिया कि अपनी पर्याप्त आबादी के बावजूद इसे SC-संबंधित पहलों में शामिल नहीं किया गया है।
    • वे अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के लिये वर्ष 1994 से संघर्ष कर रहे हैं तथा इसी मांग के संबंध में सबसे पहले वर्ष 1996 में न्यायमूर्ति पी. रामचंद्र राजू आयोग का एवं बाद में वर्ष 2007 में एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया था।
  • सभी राज्यों में समान मुद्दे: विभिन्न राज्यों में SC समुदायों ने समान चुनौतियों के समाधान हेतु आवाज़ उठाई जिसके परिणामस्वरूप राज्य तथा केंद्र दोनों सरकारों द्वारा आयोगों का गठन किया गया।
    • पंजाब, बिहार और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने राज्य स्तर पर उप-वर्गीकरण का प्रयास किया किंतु ये प्रयास वर्तमान में विधिक प्रक्रिया के अधीन हैं।
  • संवैधानिक अवस्थिति (Constitutional Stance):
    • अनुच्छेद 341 और 342: यह राष्ट्रपति को SC और ST सूचियों को अधिसूचित करने तथा संसद को ये सूचियाँ बनाने की शक्तियाँ प्रदान करता है।
      • हालाँकि इसके उप-वर्गीकरण के लिये कोई स्पष्ट निषेध नहीं है।
  • केंद्र सरकार का विगत दृष्टिकोण: केंद्र सरकार ने वर्ष 2005 में SC के उप-वर्गीकरण के लिये कानूनी विकल्पों पर विचार किया था।
    • उस समय, भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल ने राय दी थी कि यह संभव हो सकता है लेकिन केवल तभी जब "आवश्यकता को इंगित करने के लिये निर्विवाद साक्ष्य" हों।
    • इसके अलावा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति दोनों राष्ट्रीय आयोगों ने उस समय संविधान में संशोधन का विरोध किया था।
      • उन्होंने इन समुदायों को मौजूदा योजनाओं और लाभों के आवंटन को प्राथमिकता देने की तत्काल आवश्यकता पर बल देते हुए तर्क दिया कि मौजूदा कोटा के भीतर उप-कोटा बनाना पर्याप्त नहीं है।

SC के उपवर्गीकरण (पंजाब मामले) पर कानूनी विवाद क्या है?

  • वर्ष 1975: पंजाब सरकार ने अपने 25% SC आरक्षण को दो श्रेणियों में विभाजित करने की अधिसूचना जारी की। यह किसी राज्य द्वारा मौजूदा आरक्षण को 'उप-वर्गीकृत' किये जाने का पहला उदाहरण था।
    • हालाँकि यह अधिसूचना लगभग 30 वर्षों तक लागू रही, लेकिन वर्ष 2004 में इसमें कानूनी बाधाएँ आ गईं।
  • वर्ष 2004: सर्वोच्च न्यायालय ने ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में समानता के अधिकार के उल्लंघन का हवाला देते हुए आंध्र प्रदेश अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम, 2000 को रद्द कर दिया। 
    • इस बात पर बल दिया गया कि SC सूची को एक एकल, सजातीय समूह के रूप में माना जाना चाहिये।
    • राष्ट्रपति के पास SC सूची (अनुच्छेद 341) बनाने की शक्ति है और राज्य उप-वर्गीकरण सहित इसमें हस्तक्षेप या गड़बड़ी नहीं कर सकते हैं।
    • बाद में, डॉ. किशन पाल बनाम पंजाब राज्य मामले  में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने ई. वी. चिन्नैया मामले के निर्णय का समर्थन करते हुए वर्ष 1975 की अधिसूचना को रद्द कर दिया।
  • वर्ष 2006: पंजाब सरकार ने पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 के माध्यम से उप-वर्गीकरण को पुनः प्रारंभ करने का प्रयास किया, लेकिन वर्ष 2010 में इसे रद्द कर दिया गया।
  • वर्ष 2014: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2004 के ई. वी. चिन्नैया मामले के निर्णय की सत्यता पर सवाल उठाते हुए मामले को पाँच न्यायधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया।
  • वर्ष 2020: संविधान पीठ ने माना कि वर्ष 2004 के निर्णय पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, SC के एक सजातीय समूह होने के विचार को खारिज़ कर दिया और सूची के भीतर "असमान" के अस्तित्व को स्वीकार किया।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा SC और ST के लिये "क्रीमी लेयर" की अवधारणा की भी सिफारिश की गई थी।
  • वर्तमान: इस मामले की सुनवाई सात न्यायाधीशों वाली बड़ी पीठ कर रही है क्योंकि केवल इसका निर्णय ही छोटी पीठ के फैसले को खारिज कर सकता है।
    • उप-वर्गीकरण विभिन्न राज्यों में विभिन्न समुदायों को प्रभावित करेगा, जिनमें पंजाब में वाल्मीकि और मज़हबी सिख, आंध्र प्रदेश में मडिगा, बिहार में पासवान, यूपी में जाटव तथा तमिलनाडु में अरुंधतियार शामिल हैं।

  उपवर्गीकरण के लाभ

    उपवर्गीकरण की चुनौतियाँ

लक्षित नीतियाँ: लक्षित नीतियों और कार्यक्रमों के लिये विस्तृत उपलब्ध डेटा।

सामाजिक विभाजन: मौजूदा सामाजिक तनाव बढ़ने का खतरा

उचित प्रतिनिधित्व: विभिन्न उप-समूहों से राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि।

पहचान और सत्यापन: सटीक पहचान और दस्तावेज़ीकरण में जटिलताएँ।

सशक्तीकरण और मान्यता: उप-समूहों की सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डालना, पहचान और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देना।

राजनीतिकरण: विभिन्न समूहों द्वारा हेराफेरी की संभावना।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय की सात-न्यायाधीशों की पीठ का आगामी फैसला, एक समिति की अंतर्दृष्टि के साथ, अनुसूचित जातियों के उपवर्गीकरण के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा। कानूनी मानकों के अनुरूप व्यावहारिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित करके हम संबंधित जोखिमों को कम करते हुए उपवर्गीकरण के संभावित लाभों का उपयोग कर सकते हैं, एक ऐसे समाज को बढ़ावा दे सकते हैं जो समावेशी, सहायक, उत्तरदायी और लचीला हो।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत के निम्नलिखित संगठनों/निकायों पर विचार कीजिये: (2023)

  1. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग 
  2.  राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग 
  3.  राष्ट्रीय विधि आयोग 
  4.  राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग

उपर्युक्त में से कितने सांविधानिक निकाय हैं? 

(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) केवल तीन
(d) सभी चार 

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत के 'चांगपा' समुदाय के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. वे मुख्य रूप से उत्तराखंड राज्य में रहते हैं।
  2.  वे चांगथांगी (पश्मीना) बकरियों को पालते हैं, जो अच्छी ऊन प्रदान करती हैं।
  3.  उन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (ST) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (2017)

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