शासन व्यवस्था
भारत में बाँधों की स्थिति
- 05 Jan 2022
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प्रिलिम्स के लिये:गांधी सागर बाँध, चंबल नदी, बाँध सुरक्षा विधेयक (2019) के मुख्य प्रावधान मेन्स के लिये:भारत के पुराने बाँधों से संबंधित मुद्दे और इस संबंध में उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, चंबल नदी (मध्य प्रदेश) पर निर्मित गांधी सागर बाँध की तत्काल मरम्मत कराए जाने की आवश्यकता है।
- नियमित जाँच का अभाव, गैर-कार्यात्मक उपकरण और चोक नालियाँ वर्षों से बाँध को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख कारक हैं।
गांधी सागर बाँध
- यह राष्ट्रीय महत्त्व के पाँच जलाशयों में से एक है।
- गांधी सागर बाँध का निर्माण वर्ष 1960 में राजस्थान के कई ज़िलों को पेयजल उपलब्ध कराने और 115 मेगावाट बिजली पैदा करने हेतु किया गया था।
- हाल के वर्षों में यह कई बार टूट चुका है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ आ गई।
प्रमुख बिंदु
- परिचय
- बड़े बाँध बनाने के मामले में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर है।
- अब तक बनाए गए 5,200 से अधिक बड़े बाँधों में से लगभग 1,100 बड़े बाँध पहले ही 50 वर्ष की आयु तक पहुँच चुके हैं और कुछ तो 120 वर्ष से अधिक पुराने हैं।
- ऐसे बाँधों की संख्या वर्ष 2050 तक बढ़कर 4,400 हो जाएगी।
- इसका अर्थ है कि देश के बड़े बाँधों में से 80% के अप्रचलित होने की संभावना है, क्योंकि वे 50 वर्ष से 150 वर्ष पुराने हो जाएंगे।
- सैकड़ों-हज़ारों मध्यम एवं छोटे बाँधों की स्थिति और भी खतरनाक है क्योंकि उनका जीवन बड़े बाँधों की तुलना में कम होता है।
- उदाहरण: कृष्णा राजा सागर बाँध वर्ष 1931 में बनाया गया था और अब 90 वर्ष पुराना है। इसी तरह, मेट्टूर बाँध वर्ष 1934 में बनाया गया था और अब 87 वर्ष पुराना है। ये दोनों जलाशय पानी की कमी वाले कावेरी नदी बेसिन में स्थित हैं।
- भारत के पुराने बाँधों से संबंधित मुद्दे:
- वर्षा पैटर्न के अनुसार निर्मित:
- भारतीय बाँध बहुत पुराने हैं और पिछले दशकों के वर्षा पैटर्न के अनुसार बनाए गए हैं। हाल के वर्षों में बेमौसम वर्षा ने उन्हें असुरक्षित बना दिया है।
- लेकिन सरकार बाँधों को वर्षा, बाढ़ चेतावनी जैसी सूचना प्रणाली से लैस कर रही है और सभी प्रकार की दुर्घटनाओं से बचने के लिये आपातकालीन कार्य योजना तैयार कर रही है।
- भंडारण क्षमता में कमी:
- जैसे-जैसे बाँधों की आयु बढ़ती है, जलाशयों में मिट्टी पानी का स्थान ले लेती है। इसलिये भंडारण क्षमता के संबंध में किसी भी प्रकार का कोई दावा प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है, जैसा कि 1900 और 1950 के दशकों में देखा गया था।
- भारतीय बांँधों में जल भंडारण स्थान में अप्रत्याशित रूप से अधिक तेज़ी के साथ कमी आ रही है।
- त्रुटिपूर्ण डिज़ाइन:
- अध्ययन बताते हैं कि भारत के कई बाँधों का डिज़ाइन त्रुटिपूर्ण है।
- भारतीय बाँधों के डिज़ाइन में अवसादन विज्ञान (Sedimentation Science) को सही ढंग से व्यवस्थित नहीं किया गया है अर्थात् डिज़ाइन में इसका अभाव देखने को मिलता है। जिस कारण से बाँध की जल भंडारण क्षमता में कमी आती है।
- अवसाद/गाद की उच्च दर:
- यह निलंबित अवसादों की वृद्धि एवं तलछटों पर महीन अवसादों का जमाव (अस्थायी या स्थायी) जहाँ कि वे अवांछनीय हैं, दोनों को संदर्भित करता है।
- वर्षा पैटर्न के अनुसार निर्मित:
- परिणाम:
- खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: जलाशयों में जब मिट्टी जमा होने लगती है, तो उस स्थिति में जल की आपूर्ति ठप हो जाती है। ऐसे में समय बीतने के साथ-साथ फसल क्षेत्र को प्राप्त होने वाले जल की मात्रा में कमी आनी शुरू हो सकती है।
- इसके परिणामस्वरूप सकल सिंचित क्षेत्र का आकार सिकुड़ जाता है और यह क्षेत्र वर्षा अथवा भू-जल पर निर्भर हो जाता है जिसके कारण भू-जल के अनियंत्रित दोहन को बढ़ावा मिलता है।
- किसानों की आय पर प्रभाव: बाँधों की जल संग्रहण क्षमता में कमी के कारण सिंचाई की प्रक्रिया और फसल की पैदावार गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है, ऐसे में पर्याप्त आवश्यक हस्तक्षेप के अभाव में किसानों की आय में भी भारी कमी आएगी।
- इसके अलावा पानी फसल की उपज और ऋण, फसल बीमा और निवेश के लिये एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
- बाढ़ के मामलों में वृद्धि: बाँधों के जलाशयों में गाद जमा होने की उच्च दर इस तर्क को पुष्ट करती है कि देश में कई नदी बेसिनों के जलाशयों के लिये डिज़ाइन की गई बाढ़ नियंत्रण प्रणालियाँ पहले ही काफी हद तक नष्ट हो चुकी हैं, जिसके कारण बाँधों के अनुप्रवाह में बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।
- खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: जलाशयों में जब मिट्टी जमा होने लगती है, तो उस स्थिति में जल की आपूर्ति ठप हो जाती है। ऐसे में समय बीतने के साथ-साथ फसल क्षेत्र को प्राप्त होने वाले जल की मात्रा में कमी आनी शुरू हो सकती है।
- बाँध सुरक्षा की आवश्यकता:
- लोगों की जान बचाने के लिये:
- पुराने बाँध आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये चिंता का कारण बन सकते हैं।
- निवेश की सुरक्षा:
- इस महत्त्वपूर्ण भौतिक बुनियादी ढाँचे में भारी सार्वजनिक निवेश की सुरक्षा के साथ-साथ बाँध परियोजनाओं और राष्ट्रीय जल सुरक्षा से प्राप्त लाभों की निरंतरता सुनिश्चित करने हेतु बाँधों की सुरक्षा भी महत्त्वपूर्ण है।
- भारत में जल संकट का समाधान:
- भारत की बढ़ती आबादी के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से जुड़े भारत के जल संकट के उभरते परिदृश्य में भी बाँधों की सुरक्षा महत्त्वपूर्ण है।
- लोगों की जान बचाने के लिये:
- संबंधित पहलें:
- बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019: राज्यसभा ने हाल ही में बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019 पारित किया है।
- यह विधेयक बाँध की विफलता से संबंधित आपदा की रोकथाम हेतु निर्दिष्ट बाँध की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव का प्रावधान करता है और उनके सुरक्षित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत तंत्र को स्थापित करने का भी प्रावधान करता है।.
- बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डीआरआईपी चरण II): यह एक स्थायी तरीके से चयनित मौजूदा बाँधों और संबद्ध उपकरणों की सुरक्षा एवं प्रदर्शन में सुधार करने से संबंधित है।
- बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019: राज्यसभा ने हाल ही में बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019 पारित किया है।
आगे की राह
- बाँध सुरक्षा सुनिश्चित करने में सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू वास्तविक हितधारकों के विचारों को ध्यान में रखते हुए जवाबदेही और पारदर्शिता का अस्तित्त्व है।
- परिचालन सुरक्षा के संदर्भ में यह तय किया जाता है कि एक बाँध को कैसे संचालित किया जाना चाहिये तथा जब एक बाँध प्रस्तावित किया जाता है तो उसे पर्यावरणीय परिवर्तनों जैसे कि गाद तथा वर्षा पैटर्न के आधार पर नियमित अंतराल पर अपग्रेड करने की आवश्यकता होती है क्योंकि बाँध में आने वाली बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता के साथ-साथ स्पिलवे क्षमता बदल सकती है।
- नियम वक्र भी पब्लिक डोमेन में होना चाहिये ताकि लोग इसके सही कामकाज़ पर नजर रख सकें और इसकी अनुपस्थिति में सवाल उठा सकें।
- इसके अलावा भारत में हर नदी के रास्ते में कई बाँध आते हैं, इसलिये संचालन के संदर्भ में बाँध की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु प्रत्येक अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम बाँध का संचयी मूल्यांकन होना चाहिये।
स्रोत: डाउन टू अर्थ