राज्य वित्त: वर्ष 2022-23 के बजटों का अध्ययन | 18 Jan 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), सकल राजकोषीय घाटा (GFD), अनौपचारिक क्षेत्र, राज्य वित्त: वर्ष 2022-23 के बजटों का अध्ययन, राजकोषीय उत्तरदायित्त्व और बजट प्रबंधन (FRBM)।

मेन्स के लिये:

राज्य वित्त का महत्त्व: वर्ष 2022-23 के बजट में राज्यों के ऋण का अध्ययन।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2022-23 में राज्यों का सकल राजकोषीय घाटा (GFD) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3.4% रहने का अनुमान है, जो वर्ष 2020-21 में 4.1% था। 

  • इसका कारण व्यापक आर्थिक सुधार और राजस्व संग्रह में वृद्धि है। 

"राज्य वित्त: वर्ष 2022-23 के बजटों का अध्ययन" रिपोर्ट:

  • परिचय:  
    • "राज्य वित्त: 2022-23 के बजटों का अध्ययन" शीर्षक वाली रिपोर्ट भारतीय राज्य सरकारों के वित्त की जानकारी, विश्लेषण और मूल्यांकन प्रदान करने वाला एक वार्षिक प्रकाशन है, जिसमें उनके राजस्व और व्यय में रुझान एवं चुनौतियाँ शामिल हैं।
  • रिपोर्ट की मुख्य बातें:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों का ऋण वर्ष 2020-21 में जीडीपी के 31.1% की तुलना में वर्ष 2022-23 में 29.5% तक कम होने का अनुमान है, 
    • हालाँकि रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यह अभी भी राजकोषीय उत्तरदायित्त्व और बजट प्रबंधन (FRBM) समीक्षा समिति, 2018 द्वारा अनुशंसित 20% से अधिक है।
    • राज्यों को मिलने वाले गैर-कर राजस्व की राशि, जो कि शुल्क, ज़ुर्माना और रॉयल्टी जैसी चीज़ों से आती है, में वृद्धि होने की उम्मीद है। उद्योगों एवं सामान्य सेवाओं से प्राप्त होने वाला राजस्व शायद इस वृद्धि का मुख्य चालक होगा।  
    • रिपोर्ट में बताया गया है कि विभिन्न राज्य वित्तीय वर्ष 2022-2023 में राज्य GST, उत्पाद शुल्क और बिक्री कर जैसे विभिन्न स्रोतों से राजस्व में वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं।
  • रिपोर्ट में सुझाए गए उपाय:
    • ऋण समेकन (Debt Consolidation) राज्य सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिये। 
      • ऋण समेकन से तात्पर्य कई ऋणों को एक एकल, अधिक प्रबंधनीय ऋण में संयोजित करने की प्रक्रिया से है। यह समग्र ब्याज लागत को कम करने, भुगतान को आसान बनाने और कर्ज़ चुकाना आसान बना सकता है।
    • स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढाँचा और हरित ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों को अधिक संसाधन आवंटित करके राज्य आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • रिपोर्ट में प्रस्ताव किया गया है कि एक कोष स्थापित करना फायदेमंद होगा जिसका उपयोग मज़बूत राजस्व वृद्धि की अवधि के दौरान पूंजीगत व्यय को बफर करने के लिये किया जाएगा।  
      • इस कोष का उद्देश्य पूंजीगत परियोजनाओं पर खर्च का एक सुसंगत स्तर बनाए रखना होगा तथा यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक मंदी के दौरान इन परियोजनाओं पर खर्च में भारी कमी न हो। 
    • निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये राज्य सरकारों को निजी क्षेत्र के संचालन और विकास के लिये अनुकूल वातावरण बनाने पर ध्यान देना होगा।
      • यह उन नीतियों और विनियमों को लागू करके प्राप्त किया जा सकता है जो निजी कंपनियों के लिये व्यवसाय करना आसान बनाते हैं, साथ ही निजी निवेश के लिये प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करते हैं।
    • राज्यों को देश भर में राज्य पूंजीगत व्यय के स्पिलओवर (पश्चगामी) प्रभावों का पूरा लाभ प्राप्त करने के लिये उच्च अंतर-राज्य व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहित करने तथा सुविधाजनक बनाने की भी आवश्यकता है। 

सकल राजकोषीय घाटा (GFD):

  • GFD राज्य सरकार के समग्र वित्तीय स्वास्थ्य को मापता है और कुल व्यय से कुल राजस्व घटाकर इसकी गणना की जाती है।
  • GFD में कमी को आमतौर पर सकारात्मक संकेत माना जाता है क्योंकि यह इंगित करता है कि राज्य सरकार अपने राजस्व और व्यय को अधिक प्रभावी ढंग से संतुलित करने में सक्षम है। 

सरकारी घाटे के मापक:

  • राजस्व घाटा: यह राजस्व प्राप्तियों पर सरकार के राजस्व व्यय की अधिकता को संदर्भित करता है।
    • राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ
  • राजकोषीय घाटा: यह सरकार की व्यय आवश्यकताओं और उसकी प्राप्तियों के बीच का अंतर है। यह उस धन के बराबर है जिसे सरकार को वर्ष के दौरान उधार लेने की आवश्यकता है। यदि प्राप्तियाँ व्यय से अधिक हैं तो अधिशेष उत्पन्न होता है।
    • राजकोषीय घाटा = कुल व्यय- (राजस्व प्राप्तियाँ+ गैर-ऋण सृजित पूंजीगत प्राप्तियाँ)। 
  • प्राथमिक घाटा: प्राथमिक घाटा ब्याज भुगतान- राजकोषीय घाटे के बराबर होता है। यह सरकार की व्यय आवश्यकताओं और इसकी प्राप्तियों के बीच अंतर को इंगित करता है, यह पिछले वर्षों के दौरान लिये गए ऋणों पर ब्याज भुगतान पर किये गए व्यय को ध्यान में नहीं रखता है।
    • प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान
  • प्रभावी राजस्व घाटा: यह पूंजीगत संपत्ति के निर्माण के लिये राजस्व घाटे और अनुदान के बीच का अंतर है।
    • सार्वजनिक व्यय पर रंगराजन समिति द्वारा प्रभावी राजस्व घाटे की अवधारणा का सुझाव दिया गया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक के अपने प्रभाव में सबसे अधिक मुद्रास्फीतिकारी होने की संभावना है? (2021)

(a) सार्वजनिक ऋण का भुगतान
(b) बजट घाटे को वित्त प्रदान करने हेतु जनता से उधार लेना
(c) बजट घाटे को वित्त प्रदान करने हेतु बैंकों से उधार लेना
(d) बजट घाटे को वित्त प्रदान करने हेतु नवीन मुद्रा का निर्माण

उत्तर: (d)


प्र. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. राजकोषीय उत्तरदायित्त्व और बजट प्रबंधन (FRBM) समीक्षा समिति की रिपोर्ट ने 2023 तक सामान्य (संयुक्त) सरकार के लिये 60% के जीडीपी अनुपात के ऋण की सिफारिश की है, जिसमें केंद्र सरकार के लिये 40% और राज्य सरकारों के लिये 20% शामिल है।
  2. राज्य सरकारों के सकल घरेलू उत्पाद के 49% की तुलना में केंद्र सरकार की घरेलू देनदारियाँ सकल घरेलू उत्पाद के 21% हैं। 
  3. भारत के संविधान के अनुसार, किसी राज्य के लिये यह अनिवार्य है कि वह कोई भी ऋण लेने के लिये केंद्र सरकार की सहमति ले, यदि राज्य पर कोई बकाया देयता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के पूंजीगत बजट में शामिल है/हैं? (2016)

  1. सड़क, भवन, मशीनरी आदि जैसी संपत्तियों के अधिग्रहण पर व्यय
  2. विदेशी सरकारों से प्राप्त ऋण
  3. राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को प्रदान किये गए ऋण और अग्रिम

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस