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भारतीय अर्थव्यवस्था

कराधान का संप्रभु अधिकार

  • 13 Aug 2021
  • 4 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, 2021, अनुच्छेद 265

मेन्स के लिये:

कराधान के संप्रभु अधिकार की आवश्यकता एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने लोकसभा में कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया, जो भारतीय संपत्ति के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण पर कर लगाने हेतु वर्ष 2012 के पूर्वव्यापी कानून का उपयोग करके की गई कर मांगों को वापस लेने का प्रयास करता है।

  • सरकार ने कराधान के अपने संप्रभु अधिकार को स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया है।

प्रमुख बिंदु

संप्रभुता:

  • राजनीतिक सिद्धांत के आधार पर संप्रभुता की परिभाषा, राज्य की निर्णय लेने की प्रक्रिया और व्यवस्था के रखरखाव में अंतिम पर्यवेक्षक या अधिकार है।
  • फ्राँसीसी संप्रभुता के माध्यम से उत्पन्न, इस शब्द को मूल रूप से सर्वोच्च शक्ति के बराबर समझा गया था।
  • संवैधानिक संप्रभुता का तात्पर्य है कि संविधान संप्रभु और सर्वोच्च है।

भारत में कराधान का संप्रभु अधिकार:

  • भारत में संविधान सरकार को व्यक्तियों और संगठनों पर कर लगाने का अधिकार देता है, लेकिन यह स्पष्ट करता है कि कानून के अधिकार के अलावा किसी को भी कर लगाने या चार्ज करने का अधिकार नहीं है।
    • किसी भी कर को विधायिका या संसद द्वारा पारित कानून (अनुच्छेद 265) द्वारा समर्थित होना चाहिये।

भारत में कराधान:

  • कर सरकार का समर्थन करने हेतु व्यक्तियों या संपत्ति के मालिकों पर लगाया गया एक आर्थिक भार है, जो विधायी प्राधिकरण द्वारा भारित भुगतान है और यह कि एक स्वैच्छिक भुगतान या दान नहीं है, बल्कि योगदान है, जो विधायी प्राधिकरण के अनुसार सटीक है।
  • भारत में कर केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों के आधार पर त्रि-स्तरीय प्रणाली के अंतर्गत आते हैं व संविधान की सातवीं अनुसूची संघ एवं राज्य सूची के तहत कराधान के अलग-अलग प्रावधान करती है।
  • समवर्ती सूची के तहत कोई अलग प्रावधान नहीं है, जिसका अर्थ है कि संघ और राज्यों के पास कराधान की कोई समवर्ती शक्ति नहीं है।

राज्यों की संप्रभुता की सीमा:

  • राज्य के कराधान उपायों को चुनौती देने के लिये दो सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली द्विपक्षीय निवेश सधियों (BIT) का प्रावधान हैं- स्वामित्व, निष्पक्ष और न्यायसंगत उपचार प्रावधान।
  • कर भेदभावपूर्ण नहीं होना चाहिये।

आगे की राह:

  • भारत को अपने अंतर्राष्ट्रीय कानून के दायित्वों के प्रति सचेत रहते हुए सद्भावपूर्वक और आनुपातिक तरीके से कार्य करते हुए विनियमित करने के अपने अधिकार का प्रयोग करना चाहिये।
  • निवेशक-राज्य विवाद निपटान (ISDS) न्यायाधिकरण ऐसे नियामक उपायों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। संक्षेप में यह बहस कभी नहीं थी कि क्या भारत के पास कर का एक संप्रभु अधिकार है, लेकिन क्या यह संप्रभु अधिकार कुछ सीमाओं के अधीन है। इसका उत्तर 'हाँ' है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत कर का संप्रभु अधिकार पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं है।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस

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