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जैव विविधता और पर्यावरण

विषाक्त पदार्थों से संदूषित स्थल

  • 11 Mar 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

विषाक्त पदार्थ जनित संदूषण 

मेन्स के लिये:

 संदूषण का नियमन 

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (Central Pollution Control Board- CPCB) द्वारा जारी हाल ही के आँकड़ों के अनुसार, भारत में कुल 324 संभावित विषाक्त पदार्थ संदूषक स्थलों में से 128 को विषाक्त और खतरनाक पदार्थों से दूषित पाया गया, जबकि 196 स्थलों के परिणामों की अभी पुष्टि की जानी है। 

मुख्य बिंदु:

  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ऐसे स्थलों की निगरानी कर रहा है तथा जिन स्थलों को दूषित पाया जाता है उनकी सफाई की व्यवस्था करता है। 
  • इन संदूषित स्थलों की सफाई के लिये विस्तृत परियोजना रिपोर्ट का अनुपालन ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ (National Green Tribunal- NGT) के निर्देशों के अनुसार होता है।

खतरनाक रासायनिक संदूषक: वे होते हैं जो-

  • एक बड़ी आपदा का कारण बन सकते हैं
  • जो अत्यधिक विषाक्त तथा प्रदूषणकारी हैं
  • कचरा उत्पन्न करते हैं तथा जिनका सुरक्षित और पर्याप्त रूप से निपटान नहीं जा सकता है

खतरनाक संदूषकों का आयात, खरीद एवं बिक्री, भंडारण, परिवहन, लेबलिंग, रिकॉर्ड तथा बिक्री दस्तावेज़ों का रखरखाव के माध्यम से सुरक्षित रूप से निपटान किया जाता है

प्रमुख संदूषित स्थल:

  • ऐसे संदूषित स्थलों के मामलों में पश्चिम बंगाल (27 स्थल ) तथा ओडिशा (23 स्थल) शीर्ष पर हैं।
  • एजेंसियों ने 6 राज्यों- केरल, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल , मध्य प्रदेश में ऐसे 20 स्थलों की सफाई करने के लिये एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट या कार्ययोजना ( Plan of Action) तैयार की है।

संदूषण स्थल तथा कारक:

संदूषण स्थल 

संदूषण कारक एवं कारण 

तमिलनाडु 

  • भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड की भूमिगत तेल पाइपलाइनों के तेल रिसाव के कारण तेल संदूषण

एलोर (केरल)

  • कीटनाशक एवं भारी धातु के कारण खाड़ियों में संदूषण

रनिया (उत्तर प्रदेश)

  • क्रोमियम संदूषण

मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

  • रामगंगा नदी के तट पर इलेक्ट्रॉनिक कचरे का अनुचित तरीके से निपटान

कोडाइकनाल (तमिलनाडु), गंजम (ओडिशा)

  • मिट्टी में पारे का संदूषण

रानीपेट(तमिलनाड), लोहियानगर (उत्तर प्रदेश)

  • क्रोमियम संदूषण

खराब रिकॉर्ड:

  • स्वतंत्र संगठनों के अनुसार, रासायनिक दुर्घटनाओं से निपटने में भारत का खराब ट्रैक रिकॉर्ड रहा है।
  • ‘टाॅक्सिक लिंक’ (Toxics Link) संगठन जो कि खतरनाक अपशिष्ट निपटान की दिशा में कार्य करता है, के अनुसार, वर्ष 2016-2019 के बीच औसतन प्रतिमाह चार प्रमुख रासायनिक दुर्घटनाएँ दर्ज की गई हैं, जबकि अनेक दुर्घटनाओं को विधिवत दर्ज ही नहीं किया गया ।
  • NGT द्वारा गठित एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार, खतरनाक अपशिष्ट (Hazardous Waste- HW) प्रबंधन की दिशा में अब तक तैयार की गई इन्वेंट्री (पर्याप्त संसाधन) समग्र समाधान करने में कारगर नहीं है।

संदूषण के प्रमुख कारण:

  • नदी जल के भारी धातु से संदूषित होने का मुख्य कारण खनन, कबाड़ उद्योग तथा धातु सतह परिष्करण उद्योग हैं जो पर्यावरण में विभिन्न प्रकार की ज़हरीली धातुओं को मुक्त करते हैं।
  • पिछले कुछ दशकों में नदी के पानी और तलछटों में भी इन भारी धातुओं की सांद्रता तेज़ी से बढ़ी है। नदी जल संदूषण का प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ कृषि तथा औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि है।
  • भारत में मौसम के आधार पर भी संदूषण के स्तर में बदलाव देखा जाता है। उदाहरण के लिये मानसून के दौरान गंगा नदी में लोहे द्वारा संदूषण अधिक देखा जाता है लेकिन गैर-मानसून अवधि के दौरान इसमें काफी गिरावट देखी जाती है।

आगे की राह:

  • ऐसे उद्योग क्षेत्रों की पहचान करना जहाँ रसायन एवं अपशिष्ट पदार्थ चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं। 
  • संवाद शुरू करने हेतु संबंधित उद्योग क्षेत्रों, संगठनों और समूहों को संलग्न करना।
  • संकट एवं जोखिमों से निपटने हेतु संचार सुनिश्चित करना, सुरक्षित विकल्पों हेतु जोखिम प्रबंधन दृष्टिकोण एवं अवसरों की पहचान करने की दिशा में कार्य करना होगा।

स्रोत: द हिंदू

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