शिप एक्वीज़ीशन, फाइनेंसिंग एंड लीज़िंग: IFSCA रिपोर्ट | 04 Dec 2021
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण, शिप एक्वीज़ीशन, फाइनेंसिंग एंड लीज़िंग मेन्स के लिये:भारत के लिये नौवहन क्षेत्र का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘जहाज़ अधिग्रहण, वित्तपोषण और पट्टे हेतु एवेन्यू के विकास के लिये गठित समिति द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण‘ (IFSCA) को ‘शिप एक्वीज़ीशन, फाइनेंसिंग एंड लीज़िंग (SAFAL) शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है।
प्रमुख बिंदु
- समिति के विषय में:
- गठन: इसका गठन IFSCA द्वारा जून 2021 में भारत सरकार, गुजरात मैरीटाइम बोर्ड, उद्योग और वित्त विशेषज्ञों तथा शिक्षाविदों के प्रतिनिधियों के साथ किया गया था।
- उद्देश्य: यह मुख्य तौर पर IFSC से स्वामित्व और पट्टे पर लिये गए जहाज़ों की शिपिंग सेवाओं के लागत प्रभावी और प्रतिस्पर्द्धी डिलीवरी को सक्षम करने और उन्हें विदेशी प्रतिस्पर्द्धियों के बराबर लाने पर फोकस करता है।
- समिति के निष्कर्ष:
- शिपिंग सेवाओं का शुद्ध आयातक: एक व्यापक तटरेखा, बढ़ते घरेलू बाज़ार और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार, प्राचीन समुद्री परंपराओं तथा कुशल नाविकों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग क्षेत्र में भारत का हिस्सा काफी कम है, इस प्रकार यह शिपिंग का शुद्ध आयातक बन गया है।
- आवश्यक परिवर्तन: इसने ग्रीनफील्ड उद्यम को IFSC के दायरे में लाने के लिये महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक परिवर्तन किये हैं।
- इनमें कानूनी एवं नियामक डोमेन, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं पर आधारित ‘व्यापार सुगमता’ शामिल है।
- ब्रांड वैल्यू प्रदान करना: यह भारतीय ध्वज वाले जहाज़ों को ब्रांड वैल्यू प्रदान करने का उपयुक्त समय है।
- यह लक्ष्य वैश्विक क्रॉस ट्रेडों में हिस्सेदार बनाकर, भारत के बाज़ार के लिये लाभकारी लेन-देन हासिल कर नीले महासागरों में डीकार्बोनाइज़ेशन एवं हरियाली को बढ़ावा देने और मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 तथा उससे आगे के लिये भारत-आईएफएससी मैरीटाइम का लाभ उठाकर प्राप्त किया जा सकता है।
- मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 समुद्री क्षेत्र के लिये दस वर्ष का ब्लूप्रिंट है, जिसे नवंबर 2020 में मैरीटाइम इंडिया समिट में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा जारी किया गया था।
- यह ‘सागरमाला पहल’ का स्थान लेगा और इसका उद्देश्य जलमार्ग को बढ़ावा देना, जहाज़ निर्माण उद्योग के विस्तार तथा भारत में क्रूज़ पर्यटन को प्रोत्साहित करना है।
- यह लक्ष्य वैश्विक क्रॉस ट्रेडों में हिस्सेदार बनाकर, भारत के बाज़ार के लिये लाभकारी लेन-देन हासिल कर नीले महासागरों में डीकार्बोनाइज़ेशन एवं हरियाली को बढ़ावा देने और मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 तथा उससे आगे के लिये भारत-आईएफएससी मैरीटाइम का लाभ उठाकर प्राप्त किया जा सकता है।
- भारत के लिये नौवहन क्षेत्र का महत्त्व:
- भारत की लगभग आधी सीमा समुद्र से घिरी हुई है और देश की तटरेखा लगभग 7,517 किलोमीटर है, जिसमें 12 बड़े और 205 छोटे बंदरगाह शामिल हैं।
- भारत रणनीतिक रूप से दुनिया के नौवहन मार्गों पर स्थित है।
- यह अनुमान है कि भारत का लगभग 95% माल का व्यापार मात्रा के हिसाब से और 70% मूल्य के हिसाब से समुद्री परिवहन के माध्यम से किया जाता है।
- समुद्री माल भाड़ा दर में भी भारत महत्त्वपूर्ण जोखिम का सामना कर रहा है। भारत में समुद्री माल ढुलाई प्रतिवर्ष 85 अरब डॉलर अनुमानित है।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत के निर्यात-आयात कार्गो को ले जाने में भारतीय जहाज़ों की हिस्सेदारी लगभग 6.53% थी।
- अनुमान है कि भारत प्रतिवर्ष विदेशी शिपिंग कंपनियों को लगभग 75 बिलियन डॉलर समुद्री माल का भुगतान करता है।
- इस प्रकार भारत शिपिंग उद्योग में अपने निवेश को बढ़ाने के लिये बेहतर स्थिति में है।
- भारत की लगभग आधी सीमा समुद्र से घिरी हुई है और देश की तटरेखा लगभग 7,517 किलोमीटर है, जिसमें 12 बड़े और 205 छोटे बंदरगाह शामिल हैं।
- सरकार द्वारा किये गए संबंधित उपाय:
- पहले इनकार के अधिकार (ROFR) के मानदंडों में संशोधन: भारत में भारतीय ध्वजांकित और जहाज़ निर्माण के तहत टन भार को बढ़ावा देने के लिये निविदा प्रक्रिया के माध्यम से जहाज़ों को किराए पर लेने में पहले इनकार का अधिकार देने के मानदंड को संशोधित किया गया है, ताकि भारत में टन भार और जहाज़ निर्माण के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
- भारतीय नौवहन कंपनियों को सब्सिडी सहायता: मंत्रालयों और CPSE द्वारा जारी वैश्विक निविदाओं में भारतीय शिपिंग कंपनियों को सब्सिडी सहायता के रूप में पाँच वर्ष की अवधि में 1,624 करोड़ रुपए प्रदान करके भारतीय ध्वजांकित व्यापारिक जहाज़ों को बढ़ावा देने के लिये एक योजना को कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया है।
- जहाज़ निर्माण वित्तीय सहायता नीति (2016-2026): भारत सरकार ने भारतीय शिपयार्डों को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु दिसंबर 2015 में भारतीय शिपयार्ड के लिये वित्तीय सहायता नीति को मंज़ूरी दी।
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC):
- IFSC उन वित्तीय सेवाओं और निवेश को भारत में वापस लाने में सक्षम बनाते हैं जो वर्तमान में भारतीय कॉर्पोरेट संस्थाओं और विदेशी शाखाओं/वित्तीय संस्थानों की सहायक कंपनियों (जैसे बैंक, बीमा कंपनियाँ आदि) द्वारा भारत के अपतटीय वित्तीय केंद्रों में किये जाते हैं।
- ये केंद्र व्यावसायिक और विनियामक स्थिति प्रदान कर प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान की तुलना में विश्व के अन्य वित्तीय केंद्रों जैसे- लंदन और सिंगापुर में किये जाते हैं।
- IFSC का उद्देश्य भारतीय कॉरपोरेट्स को वैश्विक वित्तीय बाज़ारों तक आसान पहुँच प्रदान करना और भारत में वित्तीय बाज़ारों के विकास को बढ़ावा देना है।
- भारत में पहला IFSC गांधीनगर में गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (GIFT City) में स्थापित किया गया है।
- केंद्र सरकार ने गांधीनगर (गुजरात) में मुख्यालय के साथ अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (IFSCs) में सभी वित्तीय सेवाओं को विनियमित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण की स्थापना की है।