स्वयं सहायता समूह | 01 Jul 2022
प्रिलिम्स के लिये:एसएचजी, माइक्रोफाइनेंस, ग्रामीण बैंक, नाबार्ड, आरबीआई. मेन्स के लिये:एसएचजी का महत्त्व तथा संबंधित मुद्दे, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विकास |
चर्चा में क्यों?
सरकार स्वयं सहायता समूहों (Self-Help Groups- SHGs) में प्रत्येक महिला की वार्षिक आय को वर्ष 2024 तक 1 लाख रुपए तक बढ़ाने का लक्ष्य लेकर चल रही है।
SHGs के बारे में:
- परिचय:
- स्वयं सहायता समूह (SHG) कुछ ऐसे लोगों का एक अनौपचारिक संघ होता है जो अपने रहन-सहन की परिस्थितियों में सुधार करने के लिये स्वेछा से एक साथ आते हैं।
- सामान्यतः एक ही सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों का ऐसा स्वैच्छिक संगठन स्वयं सहायता समूह (SHG) कहलाता है, जिसके सदस्य एक-दूसरे के सहयोग के माध्यम से अपनी साझा समस्याओं का समाधान करते हैं।
- SHG स्वरोज़गार और गरीबी उन्मूलन को प्रोत्साहित करने के लिये "स्वयं सहायता" (Self-Employment) की धारणा पर भरोसा करता है।
- उद्देश्य:
- रोज़गार और आय सृजन गतिविधियों के क्षेत्र में गरीबों तथा हाशिए पर पड़े लोगों की कार्यात्मक क्षमता का निर्माण करना।
- सामूहिक नेतृत्व और आपसी चर्चा के माध्यम से संघर्षों को हल करना।
- बाज़ार संचालित दरों पर समूह द्वारा तय की गई शर्तों के साथ संपार्श्विक मुक्त ऋण (Collateral Free Loans) प्रदान करना।
- संगठित स्रोतों से उधार लेने का प्रस्ताव रखने वाले सदस्यों के लिये सामूहिक गारंटी प्रणाली के रूप में कार्य करना।
- गरीब लोग अपनी बचत जमा कर उसे बैंकों में जमा करते हैं। बदले में उन्हें अपनी सूक्ष्म इकाई उद्यम शुरू करने हेतु कम ब्याज दर के साथ ऋण तक आसान पहुंँच प्राप्त होती है।
SHGs की आवश्यकता:
- हमारे देश में ग्रामीण निर्धनता का एक कारण ऋण और वित्तीय सेवाओं तक उचित पहुँच का अभाव है।
- 'देश में वित्तीय समावेशन' पर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करने हेतु डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने वित्तीय समावेशन की कमी के चार प्रमुख कारणों की पहचान की, जो इस प्रकार हैं:
- संपार्श्विक सुरक्षा प्रदान करने में असमर्थता
- खराब ऋण शोधन क्षमता
- संस्थानों की अपर्याप्त पहुंँच
- कमज़ोर सामुदायिक नेटवर्क
- ग्रामीण क्षेत्रों में मज़बूत सामुदायिक नेटवर्क के अस्तित्व को क्रेडिट लिंकेज के सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वों में से एक के रूप में तेज़ी से पहचान मिली है।
- वे गरीबों को ऋण प्राप्त करने में मदद करते हैं, इस प्रकार गरीबी उन्मूलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- वे गरीबों, विशेषकर महिलाओं के बीच सामाजिक पूंजी के निर्माण में भी मदद करते हैं। यह महिलाओं को सशक्त बनाता है।
- स्वरोज़गार के माध्यम से वित्तीय स्वतंत्रता में कई बाहरी पहलू भी शामिल हैं जैसे कि साक्षरता स्तर में सुधार, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और यहांँ तक कि बेहतर परिवार नियोजन।
SHGs का महत्त्व:
- सामाजिक समग्रता:
- SHGs दहेज, शराब आदि जैसी प्रथाओं का मुकाबला करने के लिये सामूहिक प्रयासों को प्रोत्साहित करते हैं।
- लिंग समानता:
- SHGs महिलाओं को सशक्त बनाते हैं और उनमें नेतृत्व कौशल विकसित करते हैं। अधिकार प्राप्त महिलाएंँ ग्राम सभा व अन्य चुनावों में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेती हैं।
- इस देश के साथ-साथ अन्यत्र भी इस बात के प्रमाण हैं कि स्वयं सहायता समूहों के गठन से समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के साथ परिवार में उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और उनके आत्म-सम्मान में भी वृद्धि होती है।
- हाशिये पर पड़े वर्ग के लिये आवाज़:
- सरकारी योजनाओं के अधिकांश लाभार्थी कमज़ोर और हाशिए पर स्थित समुदायों से हैं, इसलिये SHGs के माध्यम से उनकी भागीदारी सामाजिक न्याय सुनिश्चित करती है।
- वित्तीय समावेशन:
- प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के मानदंड और रिटर्न का आश्वासन बैंकों को SHGs को ऋण देने के लिये प्रोत्साहित करता है। नाबार्ड द्वारा अग्रणी SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम ने ऋण तक पहुंँच को आसान बना दिया है तथा पारंपरिक साहूकारों एवं अन्य गैर-संस्थागत स्रोतों पर निर्भरता कम कर दी है।
- रोज़गार के वैकल्पिक स्रोत:
- यह सूक्ष्म-उद्यमों की स्थापना में सहायता प्रदान करके कृषि पर निर्भरता को आसान बनाता है, उदाहरण के लिये व्यक्तिगत व्यावसायिक उद्यम जैसे- सिलाई, किराना और उपकरण मरम्मत की दुकानें आदि।
संबंधित मुद्दे:
- कौशल के उन्नयन का अभाव:
- अधिकांश SHGs नए तकनीकी नवाचारों और कौशल का उपयोग करने में असमर्थ हैं। क्योंकि नई प्रौद्योगिकियों से संबंधित सीमित ज़ागरूकता है, साथ ही उनके पास इसका उपयोग करने के लिये आवश्यक कौशल नहीं हैं। इसके अलावा प्रभावी तंत्र की कमी भी है।
- कमज़ोर वित्तीय प्रबंधन:
- यह भी पाया गया है कि कतिपय इकाइयों में व्यवसाय से प्राप्त होने वाले प्रतिफल को इकाइयों में उचित रूप से निवेश नहीं किया जाता है, बल्कि धन को अन्य व्यक्तिगत और घरेलू उद्देश्यों जैसे विवाह, घर के निर्माण आदि के लिये उपयोग कर लिया जाता है।
- अपर्याप्त प्रशिक्षण सुविधाएँ:
- उत्पाद चयन, उत्पादों की गुणवत्ता, उत्पादन तकनीक, प्रबंधकीय क्षमता, पैकिंग, अन्य तकनीकी ज्ञान के विशिष्ट क्षेत्रों में एसएचजी के सदस्यों को दी गई प्रशिक्षण सुविधाएँ मज़बूत इकाइयों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
- विशेष रूप से महिला SHGs के बीच स्थिरता और एकता की कमी:
- महिलाओं के वर्चस्व वाले SHGs के मामले में यह पाया गया है कि इकाइयों में कोई स्थिरता नहीं है क्योंकि कई विवाहित महिलाएँ अपने निवास स्थान में बदलाव के कारण समूह के साथ जुड़ने की स्थिति में नहीं हैं।
- इसके अलावा व्यक्तिगत कारणों से महिला सदस्यों के बीच कोई एकता नहीं है।
- अपर्याप्त वित्तीय सहायता:
- यह पाया गया है कि अधिकांश स्वयं सहायता समूहों में संबंधित एजेंसियों द्वारा उन्हें प्रदान की गई वित्तीय सहायता उनकी वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। वित्तीय अधिकारी श्रम लागत की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये भी पर्याप्त सब्सिडी नहीं दे रहे हैं।
महिला सशक्तीकरण में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका:
- स्वयं सहायता समूह (SHG) आंदोलन ग्रामीण क्षेत्रों में महिला लचीलापन और उद्यमिता के सबसे शक्तिशाली इन्क्यूबेटरों में से एक है। यह गांँवों में लैंगिक सामाजिक निर्माण को बदलने के लिये एक शक्तिशाली चैनल है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएंँ अब आय के स्वतंत्र स्रोत बनाने में सक्षम हैं, जबकि कई युवा अर्द्ध-साक्षर महिलाएंँ थीं जिनके पास घरेलू कौशल है, पूंजी और प्रतिगामी सामाजिक मानदंडों की अनुपस्थिति उन्हें किसी भी निर्णय लेने की भूमिका में पूरी तरह से शामिल होने तथा अपना स्वतंत्र व्यवसाय स्थापित करने से रोकती है।
- महिलाएंँ कई क्षेत्रों में बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट (BC), बैंक सखियों, किसान सखियों और पाशु सखियों के रूप में काम कर रही हैं।
आगे की राह
- उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के इस युग में महिलाएंँ अपनी स्वाधीनता, अधिकारों और स्वतंत्रता, सुरक्षा, सामाजिक स्थिति आदि के लिये अधिक जागरूक हैं, लेकिन आज तक वे इससे वंचित हैं, इसलिये उन्हें सम्मान के साथ उनके योग्य अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिये।
- SHG समाज के ग्रामीण तबके की महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- इसके अलावा सरकारी कार्यक्रमों को विभिन्न SHG के माध्यम से लागू किया जा सकता है। यह न केवल पारदर्शिता और दक्षता में सुधार करेगा बल्कि हमारे समाज को महात्मा गांधी की कल्पना के अनुसार 'स्व-शासन' के करीब लाएगा।