वन संरक्षण अधिनियम 2023 पर सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश | 27 Feb 2024
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, 1996 टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद मामला, वन संरक्षण अधिनियम 2023, भारतीय वन अधिनियम, 1927, डीम्ड वन, वन भूमि में अनुमत गतिविधियाँ, भारत राज्य वन रिपोर्ट 2021 मेन्स के लिये:वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के प्रमुख प्रावधान, भारत में वनों की अलग-अलग परिभाषाओं के संबंध में चिंता। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को संशोधित वन संरक्षण अधिनियम 2023 को चुनौती देने वाली याचिका पर अंतिम निर्णय आने तक वर्ष 1996 टी. एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद मामले के अनुसार "वन" की व्यापक व्याख्या को बनाए रखने का निर्देश दिया है।
वन संरक्षण अधिनियम, 1980 क्या है?
- परिचय: 1980 का वन संरक्षण अधिनियम वन-संबंधी कानूनों को सुव्यवस्थित करने, वनों की कटाई को विनियमित करने, वन उत्पादों के परिवहन की निगरानी करने और लकड़ी तथा अन्य वन उपज पर शुल्क लगाने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत, गैर-वन उद्देश्यों के लिये वन भूमि के डायवर्ज़न हेतु केंद्र सरकार की पूर्व मंज़ूरी आवश्यक है।
- यह मुख्य रूप से भारतीय वन अधिनियम, 1927 या 1980 से राज्य रिकॉर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त वन भूमि पर लागू होता है।
- इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत, गैर-वन उद्देश्यों के लिये वन भूमि के डायवर्ज़न हेतु केंद्र सरकार की पूर्व मंज़ूरी आवश्यक है।
- सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्टीकरण: सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1996 के गोदावर्मन फैसले में वर्गीकरण या स्वामित्व की परवाह किये बिना वनों की सुरक्षा अनिवार्य कर दी गई।
- इसने वनों या वन जैसे इलाकों की अवधारणा पेश की, जो वनों से मिलते-जुलते क्षेत्रों का ज़िक्र करते हैं, लेकिन सरकारी या राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर वर्गीकृत नहीं हैं।
- वनों की भिन्न-भिन्न परिभाषाओं के संबंध में चिंता: भारत में राज्य सर्वेक्षणों एवं विशेषज्ञ, रिपोर्टों के आधार पर 'वनों' की अलग-अलग व्याख्या करते हैं, जिससे विविध परिभाषाएँ सामने आती हैं।
- उदाहरण के लिये, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश अपनी परिभाषाएँ आकार, वृक्षों के घनत्व एवं प्राकृतिक वृद्धि पर आधारित होते हैं, जबकि गोवा वन प्रजातियों के आच्छादन पर निर्भर करता है।
- अलग-अलग परिभाषाओं के कारण डीम्ड वन का अनुमान भारत के आधिकारिक वन क्षेत्र के 1% से 28% तक भिन्न है।
- वन संरक्षण अधिनियम में हालिया संशोधन:
- हाल ही में जुलाई-अगस्त 2023 में पारित वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 का उद्देश्य स्पष्टता लाना और डीम्ड वनों से जुड़ी चिंताओं का समाधान करना है।
- इस अधिनियम में वन भूमि के क्षेत्र को परिभाषित करने, कुछ श्रेणियों की भूमि को इसके प्रावधानों से छूट देने पर ध्यान केंद्रित किया।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम निर्देश केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लागू किये गए संशोधन से अप्रभावित, वन प्रशासन के लिये पारंपरिक दृष्टिकोण को बनाए रखता है।
- साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि किसी भी सरकार या प्राधिकरण द्वारा चिड़ियाघर अथवा सफारी के निर्माण हेतु न्यायालय से अंतिम मंज़ूरी लेनी होगी।
- हाल ही में जुलाई-अगस्त 2023 में पारित वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 का उद्देश्य स्पष्टता लाना और डीम्ड वनों से जुड़ी चिंताओं का समाधान करना है।
वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- अधिनियम के क्षेत्र में भूमि: यह अपने अधिकार क्षेत्र में भूमि की दो श्रेणियों को परिभाषित करता है:
- भूमि को भारतीय वन अधिनियम अथवा किसी अन्य कानून के तहत वन घोषित किया गया या 25 अक्टूबर 1980 के बाद वन के रूप में अधिसूचित किया गया।
- 12 दिसंबर 1996 से पूर्व की भूमि को वन से गैर-वन उपयोग में परिवर्तित किया गया।
- अधिनियम से प्राप्त छूट: इसमें सड़कों एवं रेलवे के साथ संपर्क करने के उद्देश्यों के लिये 0.10 हेक्टेयर तक वन भूमि तथा सुरक्षा से संबंधित बुनियादी ढाँचे के लिये 10 हेक्टेयर तक वन भूमि और साथ ही सार्वजनिक उपयोगिता परियोजनाओं हेतु वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों में 5 हेक्टेयर तक वन भूमि की अनुमति शामिल है।
- इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, वास्तविक नियंत्रण रेखा और नियंत्रण रेखा के 100 किलोमीटर के भीतर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित रणनीतिक परियोजनाओं को भी छूट प्रदान की गई है।
- वन भूमि में अनुमत गतिविधियाँ: इसमें संरक्षण, प्रबंधन और विकास के प्रयास शामिल हैं, जिसमें चिड़ियाघर, इकोटूरिज्म सुविधाएँ, सिल्वीकल्चरल संचालन तथा निर्दिष्ट सर्वेक्षण जैसी अतिरिक्त गतिविधियों को गैर-वन उद्देश्यों के रूप में वर्गीकृत करने से छूट प्रदान की गई है।
- वन भूमि का समनुदेशन/पट्टा: यह किसी भी इकाई को वन भूमि के समनुदेशन अथवा आवंटन के लिये केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने की शर्त में विस्तार करता है जिससे निजी संस्थाओं की भागीदारी बढ़ सकती है।
- इसके अतिरिक्त यह केंद्र सरकार को उक्त कार्यों को नियंत्रित करने वाले नियम और शर्तें निर्धारित करने का अधिकार देता है।
भारत में वन क्षेत्रफल की वर्तमान स्थिति क्या है?
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2021 के अनुसार भारत में कुल वन और वृक्ष आवरण का देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में 24.62% का योगदान है।
- विशेष रूप से, कुल वनावरण देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है, जबकि वृक्ष आवरण 2.91% है।
- मध्य प्रदेश में देश में सबसे बड़ा वन क्षेत्र (क्षेत्रफल के संदर्भ में) है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं।
- कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वनावरण के मामले में, शीर्ष पाँच राज्य मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर और नगालैंड हैं।
- वन क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, कर्नाटक और झारखंड शामिल हैं।
- नकारात्मक परिवर्तन वाले राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नगालैंड, मिज़ोरम और मेघालय शामिल हैं।
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन 2020 रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 और वर्ष 2020 के दौरान औसत वार्षिक वन क्षेत्र में निवल लाभ के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है।
- इसके अलावा, विश्व के आधे से अधिक (54%) वन केवल पाँच देशों में हैं: रूसी संघ, ब्राज़ील, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:"भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022) |