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दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका

  • 14 Feb 2025
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय (SC), लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RP अधिनियम, 1951), निर्वाचन आयोग (EC), संसद, प्रशासनिक सुधार आयोग, विधि आयोग  

मेन्स के लिये:

राजनीति के अपराधीकरण के उपाय

 स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (SC) राजनीति को अपराधमुक्त करने के क्रम में दोषी व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।

  • इन याचिकाओं में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RP अधिनियम, 1951) में संशोधन की मांग की गई है, जिसमें दोषी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने हेतु विधिक प्रावधान हैं।

दोषी व्यक्तियों द्वारा चुनाव लड़ने से संबंधित विधिक प्रावधान और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय क्या हैं?

विधिक प्रावधान:

  • धारा 8(3): इसके तहत सज़ा की अवधि के आधार पर अयोग्यता का निर्धारण किया गया है। 
    • यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध का दोषी पाया जाता है और दो वर्ष या उससे अधिक के कारावास की सज़ा सुनाई जाती है तो वह कारावास की अवधि के दौरान और रिहाई के बाद छह वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य हो जाता है।
  • धारा 8(1): इसके तहत विशिष्ट अपराधों हेतु अयोग्यता का निर्धारण किया गया है, जिसके कारण सजा की अवधि और रिहाई के छह साल बाद भी तत्काल अयोग्यता हो सकती है।
    • इन अपराधों में बलात्कार और अन्य जघन्य अपराध, अस्पृश्यता, आतंकवाद और भ्रष्टाचार से संबंधित अपराध शामिल हैं।
  • धारा 11: निर्वाचन आयोग (EC) किसी दोषी व्यक्ति की अयोग्यता अवधि को समाप्त कर सकता है या कम कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में निर्वाचन आयोग ने विवादास्पद रूप से प्रेम सिंह तमांग (सिक्किम के सीएम) की अयोग्यता अवधि को 6 साल से घटाकर 13 माह कर दिया, जिससे भ्रष्टाचार के दोषी होने के बावजूद उनका चुनाव लड़ना संभव हो गया।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:

  • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) मामला, 2002: इसके तहत चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के लिये अपने आपराधिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक करना अनिवार्य कर दिया गया।
  • CEC बनाम जन चौकीदार मामला, 2013: सर्वोच्च न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय के इस दृष्टिकोण को बरकरार रखा कि कारागार में बंद व्यक्ति लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के तहत अपना 'निर्वाचक' दर्जा खो देते हैं, जिसके आधार पर विचाराधीन कैदी चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य हो गए।
    • हालाँकि, संसद ने वर्ष 2013 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन कर इस निर्णय को पलट दिया, जिससे विचाराधीन कैदियों को चुनाव लड़ने की अनुमति मिल गई।
  • लिली थॉमस केस, 2013: सर्वोच्च न्यायालय ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को रद्द कर दिया, जो पहले दोषी विधायकों को अपील दायर करने पर पद पर बने रहने की अनुमति देता था।
    • इस निर्णय के बाद, किसी भी वर्तमान सांसद/विधायक को दोषसिद्धि होने पर तत्काल अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
  • पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन केस, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड अपनी वेबसाइटों, सोशल मीडिया और समाचार पत्रों पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया।

भारत में राजनीति के अपराधीकरण की स्थिति

  • ADR की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2024 में निर्वाचित 543 सांसदों में से 251 (46%) के खिलाफ आपराधिक मामले हैं, और 171 (31%) पर बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास और अपहरण सहित गंभीर आपराधिक आरोप हैं।
  • आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार की जीत की संभावना 15.4 % थी, जबकि स्वच्छ पृष्ठभूमि  वाले उम्मीदवार की जीत की संभावना मात्र 4.4% थी।

दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क हैं?

पक्ष में तर्क

विपक्ष में तर्क

  • वोहरा समिति (वर्ष 1993) ने पृष्ठभूमि की सख्त जाँच की सिफारिश की तथा गंभीर आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश की।
  • राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी न्यायिक प्रक्रिया का फायदा उठाकर विरोधियों को अयोग्य ठहराने के लिये झूठे मामले दायर कर सकते हैं।
  • जिस तरह सरकारी कर्मचारियों को दोषी पाए जाने पर बर्खास्त कर दिया जाता है, उसी तरह राजनेताओं को भी अयोग्य घोषित किया जाना चाहिये।
  • सांसदों और विधायकों को सरकारी कर्मचारियों जैसी 'सेवा शर्तें' नहीं मिलतीं। सजा के बाद छह वर्ष की अयोग्यता पर्याप्त है।
  • निर्वाचित प्रतिनिधि सरकारी कर्मचारियों से भिन्न होते हैं क्योंकि उन्हें सेवा नियमों के माध्यम से नियुक्त नहीं किया जाता बल्कि जनता द्वारा चुना जाता है।
  • नौकरशाहों के विपरीत, सांसदों और विधायकों का कार्यकाल 5 वर्ष का निश्चित होता है और उन्हें पुनः चुनाव लड़ना पड़ता है, जिससे वे मतदाताओं के प्रति सीधे जवाबदेह हो जाते हैं।

 

  • सुधार की संभावना की अनदेखी करता है और व्यक्तियों को सेवा का दूसरा मौका देने से इनकार करता है। राजनेताओं के विरुद्ध मामलों की त्वरित सुनवाई जैसे उपाय अधिक प्रभावी हो सकते हैं।

आगे की राह

  • निरर्हता संबंधी मानदंड का सुदृढ़ीकरण: भ्रष्टाचार, आतंकवाद और लैंगिक अपराध जैसे गंभीर अपराधों के लिये निरर्हता की अवधि को छह वर्ष से अधिक बढ़ाया जाना चाहिये
  • चुनाव आयोग का सशक्तीकरण: उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड और वित्तीय खुलासों को सत्यापित करने के लिये निर्वाचन आयोग को अधिक सुदृढ़ विनियामक शक्तियाँ प्रदान कर इसका सशक्तीकरण करने की आवश्यकता है।
    • निर्वाचन आयोग ने सिफारिश की है कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसे अपराध के लिये आरोप तय किये गए हों, जिसके लिये पाँच वर्ष से अधिक की सज़ा का प्रावधान हो, उन्हें भी चुनाव में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
  • न्यायिक सुधार: समयबद्ध न्याय सुनिश्चित करने हेतु सांसदों/विधायकों के मामलों की विशेष अदालतों में त्वरित सुनवाई की जानी चाहिये और लंबी विधिक कार्रवाई का परिवर्जन करने की आवश्यकता है जिसके कारण अपराधियों को चुनाव में भाग लेने का अवसर मिल जाता है।
  • राजनेताओं हेतु आचार संहिता का क्रियान्वन: सार्वजनिक जीवन में नैतिक व्यवहार, उत्तरदायित् और अनुशासन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राजनीतिक नेताओं के लिये एक अनिवार्य आचार संहिता लागू करने की आवश्यकता है। 
    • नैतिक मानकों के उल्लंघन की निगरानी के लिये निर्वाचन आयोग के अधीन एक राजनीतिक नैतिकता समिति की स्थापना की जानी चाहिये। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. दोषारोपित राजनेताओं की निरर्हता पर बल देते हुए भारत में राजनीति के अपराधीकरण की समस्या का समाधान करने में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

  

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021)

  1. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है। 
  2. 1991 में लोकसभा चुनाव में श्री देवी लाल ने तीन लोकसभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था।  
  3. वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निवार्चन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन-क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिये, जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1      
(b)  केवल 2
(c) 1 और 3      
(d) 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022)

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