भारतीय राजव्यवस्था
महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट के आह्वान पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- 13 May 2023
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, राज्यपाल, फ्लोर टेस्ट, संविधान की 10वीं अनुसूची, दल-बदल विरोधी कानून, व्हिप मेन्स के लिये:फ्लोर टेस्ट बुलाने की राज्यपाल की शक्ति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल द्वारा सदन में बहुमत साबित करने हेतु तत्कालीन मुख्यमंत्री को फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाने का निर्णय उचित नहीं था। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय पूर्व सरकार को बहाल नहीं कर सकता क्योंकि उसने फ्लोर टेस्ट में भाग नही लिया था।
फ्लोर टेस्ट:
- यह बहुमत के परीक्षण के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। यदि किसी राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ संदेह है, तो उसे सदन में बहुमत साबित करने के लिये कहा जा सकता है।
- गठबंधन सरकार के मामले में मुख्यमंत्री को विश्वास मत पेश करने और बहुमत हासिल करने के लिये कहा जा सकता है।
- स्पष्ट बहुमत के अभाव में जब सरकार बनाने के लिये एक से अधिक व्यक्तिगत हिस्सेदारी की आवशयकता होती है, तो राज्यपाल यह जानने के लिये एक विशेष सत्र बुला सकता है कि सरकार बनाने के लिये किसके पास बहुमत है।
- कुछ विधायक अनुपस्थित हो सकते हैं या मतदान करने से इनकार कर सकते हैं। अर्थात् आँकड़ों की गणना केवल उन विधायकों के आधार पर की जाती है जो मतदान में उपस्थित हों।
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2022 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को गिरा दिया गया और उसकी जगह दूसरी सरकार ने ले ली, जिसमें शिवसेना का एक गुट शामिल था। शिवसेना से अलग हुए गुट के नेता एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री बने।
- इसके बाद ठाकरे समूह द्वारा तत्कालीन महाराष्ट्र के राज्यपाल के इस्तीफे से पहले विश्वास मत के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
- फ्लोर टेस्ट पर:
- राजनीतिक दल के भीतर समस्याओं को हल करने के लिये फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये और पार्टी की असहमति को पार्टी के संविधान या अन्य तरीकों के अनुसार हल किया जाना चाहिये।
- सचेतक (Whip) की नियुक्ति:
- अध्यक्ष को केवल पार्टी संविधान के प्रावधानों के संदर्भ में राजनीतिक दल को सचेतक (Whip) के रूप में मान्यता देनी चाहिये। सचेतक (Whip) और सदन में दल का नेता दोनों की नियुक्ति केवल राजनीतिक दल द्वारा की जानी चाहिये, न कि विधायक दल द्वारा।
- संसदीय बोलचाल की भाषा में सचेतक (Whip) सदन में एक पार्टी के सदस्यों को एक निश्चित अनुदेशों का पालन करने हेतु एक लिखित आदेश और पार्टी के एक नामित अधिकारी को संदर्भित कर सकता है जो इस तरह के निर्देश जारी करने का अधिकार रखता है।
- सचेतक (Whip) की अवधारणा औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन से विरासत में मिली थी।
- संसदीय बोलचाल की भाषा में सचेतक (Whip) सदन में एक पार्टी के सदस्यों को एक निश्चित अनुदेशों का पालन करने हेतु एक लिखित आदेश और पार्टी के एक नामित अधिकारी को संदर्भित कर सकता है जो इस तरह के निर्देश जारी करने का अधिकार रखता है।
- अध्यक्ष को केवल पार्टी संविधान के प्रावधानों के संदर्भ में राजनीतिक दल को सचेतक (Whip) के रूप में मान्यता देनी चाहिये। सचेतक (Whip) और सदन में दल का नेता दोनों की नियुक्ति केवल राजनीतिक दल द्वारा की जानी चाहिये, न कि विधायक दल द्वारा।
- दल-बदल के आधार पर अयोग्यता:
- संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार अध्यक्ष को अयोग्यता संबंधित याचिकाओं पर निर्णय लेने का अधिकार है।
- सामान्यतः न्यायालय 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता संबंधित याचिकाओं पर निर्णय नहीं दे सकता है।
- महाराष्ट्र विधानसभा के तत्कालीन उपाध्यक्ष द्वारा 10वीं अनुसूची के अंतर्गत 40 बागी विधायकों के विरुद्ध नोटिस जारी किये गए थे, जो कि दल-बदल के आधार पर अयोग्यता से संबंधित थे।
संविधान की 10वीं अनुसूची:
- दलबदल विरोधी कानून: दसवीं अनुसूची को आमतौर पर ‘दलबदल विरोधी कानून’ (Anti-Defection Law) के रूप में जाना जाता है। संसद ने इसे वर्ष 1985 में 52वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से दसवीं अनुसूची के रूप में संविधान में शामिल किया था।
- यह दल-बदल के आधार पर संसद सदस्यों (सांसदों) और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की निरर्हता/अयोग्यता से संबंधित प्रावधान करता है।
- यह निर्वाचित सदस्यों को निर्वाचन के बाद दल परिवर्तन से रोककर राजनीतिक दलों के बीच राजनीतिक स्थिरता और अनुशासन को बढ़ावा देना चाहता है।
- निरर्हता: इसके अनुसार, संसद या राज्य विधानमंडल का एक सदस्य तब अयोग्य हो जाता/जाती है यदि वह स्वेच्छा से उस राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है जिसके टिकट पर वह निर्वाचित हुआ था/हुई थी, अथवा यदि वह राजनीतिक दल के निर्देशों के खिलाफ सदन में मतदान करता है या मतदान से दूर रहता/रहती है।
- हाँलाकि एक सदस्य को अयोग्य नहीं माना जाएगा यदि वह दो या दो से अधिक राजनीतिक दलों के विलय के कारण दल छोड़ देता/देती है या यदि दल स्वयं किसी अन्य दल में विलय कर लेता है।
- 52वें संशोधन के अनुसार, एक राजनीतिक दल के निर्वाचित सदस्यों के एक-तिहाई सदस्यों द्वारा 'दलबदल' को 'विलय' माना जाता था।
- लेकिन 91वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2003 ने इसे बदल दिया और अब किसी पार्टी के कम-से-कम 2/3 सदस्यों को "विलय" के पक्ष में होना चाहिये ताकि कानून की नज़र में इसकी वैधता हो।
- 52 वें संशोधन के अनुसार, एक राजनीतिक दल के निर्वाचित सदस्यों के एक- तिहाई को 'दल बदल' को 'विलय' माना जाता था।
- लेकिन 91 संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2003 ने इसे बदल दिया और अब किसी पार्टी के कम-से-कम 2/3 सदस्य "विलय" के पक्ष में होने चाहिये ताकि कानून की नज़र में वैध हो।
फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाने की राज्यपाल की शक्तियाँ:
- परिचय:
- संविधान का अनुच्छेद 174 राज्यपाल को राज्य विधानसभा बुलाने, भंग करने और सत्रावसान करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 175(2) के अनुसार, सरकार के पास संख्या बल है या नहीं यह साबित करने के लिये राज्यपाल सदन को फ्लोर टेस्ट के लिये बुला सकता है।
- हालाँकि राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार उपरोक्त का प्रयोग कर सकता है जो कहता है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करता है (जब विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा हो)।
- हालाँकि जब सदन सत्र में होता है तो विधानसभा अध्यक्ष फ्लोर टेस्ट के लिये बुला सकता है।
- राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति:
- अनुच्छेद 163 (1) के अनुसार, मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रियों का एक समूह होगा जो राज्यपाल को उसके कार्यों को करने में सहायता और सलाह देगा। हालाँकि राज्यपाल का निर्णय किसी भी मामले में अंतिम होगा जहाँ उसे संविधान के अनुसार अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करना आवश्यक है।
- संविधान यह स्पष्ट करता है कि यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई मामला राज्यपाल के विवेकाधिकार के अंतर्गत आता है अथवा नहीं, तो राज्यपाल का निर्णय अंतिम होता है और उसकी किसी भी बात की वैधता पर इस आधार पर सवाल नहीं उठाया जा सकता कि उसे अपने विवेकाधिकार से काम करना चाहिये था अथवा नहीं।
- राज्यपाल अनुच्छेद 174 के तहत अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग कर सकता है, जब मुख्यमंत्री ने सदन का समर्थन खो दिया हो और उसकी शक्ति चर्चा योग्य हो।
- विपक्ष और राज्यपाल अक्सर तब फ्लोर टेस्ट की एक साथ मांग कर सकते हैं जब उन्हें इस बात का संदेह हो कि मुख्यमंत्री ने बहुमत खो दिया है।
- अनुच्छेद 163 (1) के अनुसार, मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रियों का एक समूह होगा जो राज्यपाल को उसके कार्यों को करने में सहायता और सलाह देगा। हालाँकि राज्यपाल का निर्णय किसी भी मामले में अंतिम होगा जहाँ उसे संविधान के अनुसार अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करना आवश्यक है।
राज्यपाल द्वारा फ्लोर टेस्ट की मांग संबंधी पूर्ववर्ती फैसले:
- नबाम रेबिया और बमांग फेलिक्स बनाम उपाध्यक्ष मामला (2016): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सदन को बुलाने की शक्ति पूरी तरह से राज्यपाल में निहित नहीं है और इसका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से किया जाना चाहिये, न कि स्वयं।
- शिवराज सिंह चौहान और अन्य बनाम अध्यक्ष (2020): इस प्रकार के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाने की स्पीकर की शक्ति को बरकरार रखा, यदि प्रथम दृष्टया यह प्रतीत हो कि सरकार ने अपना बहुमत खो दिया है।