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सामाजिक न्याय

लैंगिक रूढ़िवादिता पर SC हैंडबुक

  • 18 Aug 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लैंगिक रूढ़िवादिता पर SC हैंडबुक, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, भारत का मुख्य न्यायाधीश, लैंगिक रूढ़िवादिता

मेन्स के लिये:

लैंगिक रूढ़िवादिता पर SC हैंडबुक, लैंगिक रूढ़िवादिता का मुद्दा और भारतीय समाज में महिलाओं पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) ने एक हैंडबुक जारी की, जिसमें लैंगिक रूढ़िवादिता (Gender Stereotypes) का मुकाबला करने तथा न्यायिक आदेशों और फैसलों में महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी और गलत सोच दर्शाने वाली भाषा का इस्तेमाल न करने के बारे में विस्तार से बताया गया है।

हैंडबुक:

  • परिचय:
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) ने कानूनी भाषा तथा निर्णयों में निहित लैंगिक रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने और समाप्त करने में न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की सहायता करने के उद्देश्य के साथ लैंगिक रूढ़िवादिता पर हैंडबुक जारी की है।
    • यह सामान्य रूढ़िवादी शब्दों और वाक्यांशों पर प्रकाश डालती है जिनका उपयोग प्राय: कानूनी दस्तावेज़ों में महिलाओं का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • यह उन उदाहरणों की ओर ध्यान आकर्षित करती है जहाँ ऐसी भाषा महिलाओं की भूमिकाओं और व्यवहार के बारे में पुरानी या गलत धारणाओं को कायम रखती है।
    • यह भाषा के विशिष्ट उदाहरण भी प्रदान करती है जिन्हें अधिक तटस्थ और सटीक शब्दों से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये।
      • उदाहरण के लिये इसमें "कैरियर महिला" के बजाय "महिला", "छेड़छाड़" के बजाय "सड़क पर यौन उत्पीड़न" और "ज़बरन बलात्कार" के बजाय "बलात्कार" का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है।

  • उद्देश्य:
    • हैंडबुक का उद्देश्य न्यायिक चर्चा में अधिक न्यायसंगत और निष्पक्ष भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना है।
    • हैंडबुक का लक्ष्य भाषा में बदलाव को प्रोत्साहित करना है ताकि लैंगिकता को लेकर आधुनिक और सम्मानजनक समझ को प्रदर्शित करने के साथ ही सभी व्यक्तियों के लिये चाहे उनका लिंग कुछ भी हो, समान अधिकारों को बढ़ावा दिया जा सके।

न्यायाधीशों के लिये सही शब्दों का प्रयोग करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • हैंडबुक में तर्क दिया गया है कि न्यायाधीश जिस भाषा का उपयोग करते हैं, वह न केवल कानून की उनकी व्याख्या को दर्शाती है, बल्कि समाज के बारे में उनकी धारणा को भी दर्शाती है।
  • यहाँ तक ​​कि जब रूढ़िबद्ध भाषा का उपयोग किसी मामले के नतीजे को नहीं बदलता है, तब भी रूढ़िबद्ध भाषा हमारे संवैधानिक लोकाचार के विपरीत विचारों को मज़बूत कर सकती है।
  • जीवन के नियम के लिये भाषा महत्त्वपूर्ण है। शब्द वह साधन हैं जिनके माध्यम से मान्यताओं के नियमों का संचार किया जाता है।
  • शब्द कानून निर्माता या न्यायाधीश के अंतिम उद्देश्य को राष्ट्र तक पहुँचाते हैं।

अन्य देशों द्वारा किये गए प्रयास:

  • अन्य देशों में शिक्षाविदों एवं अभ्यासकर्त्ताओं दोनों द्वारा संचालित परियोजनाएँ रही हैं, जो न्यायालय की प्रथाओं के लिये दर्पण के रूप में हैं।
  • उदाहरण के लिये कनाडा का महिला न्यायालय, महिला वकीलों, शिक्षाविदों और कार्यकर्त्ताओं का एक समूह, समानता कानून पर "सैडो डिसीज़न" प्रस्तुत करता है।
  • भारत में भारतीय नारीवादी निर्णय परियोजना पर भी नारीवादी आलोचना के साथ 'पुनर्लिखित' निर्णयों को प्रस्तुत करती है।

लैंगिक रूढ़िवादिता:

  • परिचय:
    • लैंगिक रूढ़िवादिता का तात्पर्य व्यक्तियों को केवल उनके लिंग के आधार पर विशिष्ट गुण, विशेषताएँ या भूमिकाएँ सौंपने की प्रथा से है।
    • यह रूढ़िवादिता समाजों में व्यापक रूप से प्रभावित कर सकती है कि लोग लिंग के आधार पर एक-दूसरे के लिये किस प्रकार की समझ रखते हैं और उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
      • उदाहरण के लिये महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे पोषित रहे और प्रभुत्व से बचें, जबकि पुरुषों से अपेक्षा की जाती है कि वे अभिकर्मक बनें और कमज़ोरियों से बचें।
  • महिलाओं पर लैंगिक रूढ़िवादिता का प्रभाव:
    • लैंगिक रूढ़िवादिता लड़कियों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में बाधा के रूप में कार्य करती है।
      • उदाहरण के लिये घरेलू और पारिवारिक क्षेत्र तक ही सीमित महिलाओं की भूमिका के बारे में रूढ़िवादिता लड़कियों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच में सभी बाधाओं को रेखांकित करती है।
  • महिलाओं को प्राय: समाज में उच्च पदों से वंचित रखा जाता है।
  • शिक्षा, रोज़गार और वेतन में लगातार अंतर कुछ हद तक लैंगिक रूढ़िवादिता का कारण है।
  • अनैतिक लैंगिक रूढ़िवादिता, स्त्रीत्व और पुरुषत्व की कठोर संरचनाएँ एवं लैंगिक रूढ़िवादिता महिलाओं के खिलाफ लिंग आधारित हिंसा के मूल कारण हैं।

स्रोत: द हिंदू

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