सर्वोच्च न्यायालय द्वारा AFSPA के तहत आपराधिक मामलों पर रोक लगाना | 27 Sep 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958, अशांत क्षेत्र, सर्वोच्च न्यायालय (SC), संसद, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 मुख्य परीक्षा के लिये:AFSPA की निरंतरता, मानवाधिकार संबंधी निहितार्थ, अन्य विकल्प, पक्ष और विपक्ष में तर्क तथा AFSPA के दीर्घकालिक परिणाम। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने नागालैंड में नागरिकों की कथित हत्या के आरोपियों (विशेष बल के 30 सैन्य कर्मियों) के खिलाफ FIR को रद्द करने के साथ सभी को कार्यवाही से मुक्त कर दिया है।
- केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने इन कर्मियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की स्वीकृति देने से मना कर दिया।
नोट:
- AFSPA अधिनियम के क्रियान्वयन को मणिपुर के पहाड़ी ज़िलों, नगालैंड के आठ ज़िलों और अरुणाचल प्रदेश के तीन ज़िलों में छह महीने (1 अक्टूबर 2024 से) के लिये बढ़ा दिया गया है।
- यह विस्तार इन राज्यों में कानून और व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा के बाद किया गया है ताकि व्यवस्था बनाए रखने के साथ "अशांत" क्षेत्रों में सशस्त्र बलों की कार्रवाइयों को सुविधाजनक बनाया जा सके।
- गृह मंत्रालय के अनुसार पूर्वोत्तर के 70% राज्यों से AFSPA हटा लिया गया है लेकिन जम्मू-कश्मीर में यह अभी भी लागू है तथा जम्मू-कश्मीर में भी इसे हटाने पर विचार किया जा रहा है।
इस मामले के मुख्य तथ्य और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय?
- पृष्ठभूमि:
- इस घटना में सेना के जवानों द्वारा सही पहचान न कर पाने के कारण वर्ष 2021 में नागालैंड में नागरिकों की मौत हुई थी।
- सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार (गृह मंत्रालय) की मंज़ूरी के अभाव के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने आगे की कानूनी कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।
- इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने घटना में शामिल सैन्यकर्मियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रोक दिया तथा सरकार द्वारा आवश्यक मंज़ूरी दिये जाने पर कार्यवाही को पुनः शुरू करने की संभावना पर सहमति जताई।
- विधिक प्रावधान:
- AFSPA की धारा 6: इसके द्वारा अधिनियम के तहत की गई कार्रवाइयों के संबंध में सुरक्षा प्रदान की गई है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना अधिनियम के तहत की गई या की जाने वाली कार्रवाइयों के लिये किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई अभियोजन, मुकदमा या अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है।
सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA), 1958 क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को शांत करने के लिये 15 अगस्त, 1942 को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अध्यादेश लागू किया था।
- इसके परिणामस्वरूप कई अध्यादेश पारित हुए, जिसमें विभाजन-प्रेरित आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये वर्ष 1947 में लागू किये गए "असम अशांत क्षेत्रों" के लिये एक अध्यादेश भी शामिल था।
- नागा हिल्स में अशांति को दूर करने के लिये असम अशांत क्षेत्र अधिनियम, 1955 के बाद सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेषाधिकार अधिनियम, 1958 को लागू किया गया।
- व्यापक अनुप्रयोग हेतु अधिनियम को AFSPA द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
- ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को शांत करने के लिये 15 अगस्त, 1942 को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अध्यादेश लागू किया था।
- परिचय:
- पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ती हिंसा की प्रतिक्रया में AFSPA को संसद द्वारा 11 सितम्बर 1958 को पारित किया गया था।
- इसके द्वारा "अशांत क्षेत्रों" में सशस्त्र बलों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को व्यापक अधिकार प्रदान किये गए हैं।
- AFSPA के तहत सशस्त्र बलों और "अशांत क्षेत्रों" में तैनात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को कानून के उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने, गिरफ्तारी करने और वॉरंट के बिना किसी भी परिसर की तलाशी लेने के लिये काफी शक्तियाँ प्रदान की गई हैं और इसमें केंद्र सरकार की स्वीकृति के बिना अभियोजन तथा कानूनी मुकदमों से सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।
- राज्य और केंद्र सरकार, AFSPA के संबंध में अधिसूचना जारी कर सकते हैं।
- अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड राज्यों के लिये गृह मंत्रालय समय-समय पर "अशांत क्षेत्र" की अधिसूचना जारी करता है।
- पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ती हिंसा की प्रतिक्रया में AFSPA को संसद द्वारा 11 सितम्बर 1958 को पारित किया गया था।
AFSPA के अंर्तगत वर्णित अशांत क्षेत्र क्या हैं?
- AFSPA की धारा 3 के तहत अधिसूचना द्वारा अशांत क्षेत्र घोषित किया जाता है। इसे उन स्थानों पर लागू किया जा सकता है जहाँ नागरिक शांति के लिये सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक है।
- इस अधिनियम में वर्ष 1972 में संशोधन किया गया और किसी क्षेत्र को "अशांत" घोषित करने की शक्तियाँ राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी प्रदान की गईं।
- विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषायी या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के सदस्यों के बीच मतभेद या विवादों के कारण कोई क्षेत्र अशांत हो सकता है।
- केंद्र सरकार, या राज्य के राज्यपाल या केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासक पूरे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं।
- अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 के अनुसार, एक बार 'अशांत' घोषित होने के बाद किसी क्षेत्र को लगातार तीन महीने की अवधि के लिये अशांत बनाए रखा जाता है।
- राज्य सरकार यह सिफारिश कर सकती है कि राज्य में इस अधिनियम की आवश्यकता है या नहीं।
AFSPA पर समितियाँ और उनकी सिफारिशें क्या हैं?
- जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशें: नवंबर 2004 में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में इस अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा के लिये न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति गठित की। इस समिति की प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार थीं:
- AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिये और इस संदर्भ में उचित प्रावधानों को गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में शामिल किया जाना चाहिये।
- सशस्त्र बलों और अर्द्धसैनिक बलों की शक्तियों को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने हेतु गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम को संशोधित किया जाना चाहिये।
- प्रत्येक ज़िले में (जहांँ सशस्त्र बल तैनात हैं) शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित किये जाने चाहिये।
- द्वितीय ARC की सिफारिशें: लोक व्यवस्था पर द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की 5वीं रिपोर्ट में भी AFSPA को निरस्त करने की सिफारिश की गई है। हालांँकि इन सिफारिशों को लागू नहीं किया गया है।
- संतोष हेगड़े आयोग की सिफारिशें:
- AFSPA की अनिवार्यता सुनिश्चित करने तथा इसके मानवीय पहलुओं को विस्तारित करने के लिये प्रत्येक 6 माह में इसकी समीक्षा की जानी चाहिये।
- आतंकवाद से निपटने के लिये केवल AFSPA पर निर्भर रहने के बजाय UAPA अधिनियम में संशोधन करना चाहिये।
- सशस्त्र बलों द्वारा अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन के दौरान की गई ज्यादतियों की जाँच की अनुमति (यहाँ तक कि "अशांत क्षेत्रों" में भी) देना चाहिये।
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा के क्या कारण हैं?
- बहु-जातीय विविधता: यह भारत का सर्वाधिक जातीय विविधता वाला क्षेत्र है जहाँ लगभग 40 मिलियन लोगों के साथ 635 जनजातीय समूहों में से 213 रहते हैं।
- प्रत्येक जनजाति की एक अलग संस्कृति होने के कारण आम समाज के साथ इनके एकीकरण में प्रतिरोध होने से सांस्कृतिक पहचान के नष्ट होने की चिंता रहती है।
- आर्थिक विकास का अभाव: सरकारी नीतियों से इस क्षेत्र में आर्थिक विकास सीमित होने के परिणामस्वरूप रोज़गार के अवसर सीमित रहे हैं।
- इस आर्थिक विपन्नता से कई युवा बेहतर संभावनाओं की तलाश में विद्रोही समूहों में शामिल होने के लिये प्रेरित होते हैं।
- जनसांख्यिकीय परिवर्तन: बांग्लादेश से शरणार्थियों के आगमन के कारण इस क्षेत्र के जनसांख्यिकीय परिदृश्य में बदलाव आया है, जिससे असंतोष पैदा होने एवं उग्रवाद को बढ़ावा मिलने के साथ इस क्षेत्र में यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जिसका गठन आप्रवासी विरोधी भावनाओं की प्रतिक्रया में किया गया) जैसे समूहों का गठन हुआ।
- सेना की कथित ज्यादतियाँ: AFSPA के कार्यान्वयन की आलोचना होने के साथ इससे स्थानीय लोगों में अलगाव पैदा हुआ है और विद्रोही समूहों द्वारा इसका दुष्प्रचार किया जाता है।
- मणिपुर की इरोम शर्मिला चानू ने पूर्वोत्तर में AFSPA के प्रयोग का विरोध करने तथा इसे हटाने की मांग को लेकर 16 वर्षों तक अनशन किया।
- पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता: बांग्लादेश और म्यांमार की अस्थिरता से उत्तर-पूर्व में सुरक्षा गतिशीलता और अधिक जटिल होने के कारण उग्रवाद की समस्या को बढ़ावा मिला है।
- बाह्य समर्थन: ऐतिहासिक रूप से पूर्वोत्तर में विद्रोही समूहों को पड़ोसी देशों से समर्थन प्राप्त होता रहा है।
- पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) ने 1950 और 1960 के दशक में इस क्षेत्र के उग्रवादी समूहों को प्रशिक्षण और हथियार उपलब्ध कराए, जबकि चीन ने अपनी कूटनीतिक विदेश नीति के तहत वर्ष 1967 से 1975 तक ऐसे समूहों को सहायता प्रदान की।
आगे की राह
- आपसी समन्वय और आत्मविश्वास का निर्माण: स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने और सरकार तथा लोगों के बीच समन्वय के अंतराल को कम करने के क्रम में बॉटम टू टॉप एप्रोच का शासन मॉडल अपनाना चाहिये।
- शांति समझौतों को प्राथमिकता देना: AFSPA को निरस्त करने के क्रम में पूर्व शर्त के रूप में विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौते किये जाने की आवश्यकता है, जिसमें उचित पुनर्वास और सहायता तंत्र भी शामिल होना चाहिये।
- बेहतर कनेक्टिविटी: पूर्वोत्तर में बुनियादी ढाँचे के विकास और कनेक्टिविटी में सुधार करने के क्रम में इस क्षेत्र की सुरक्षा और शांति को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- मानवाधिकारों का पालन: इस क्षेत्र में मानवाधिकारों का पालन सुनिश्चित करने के साथ आतंकवाद विरोधी अभियानों को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, जिससे सुरक्षा उपायों की प्रभावशीलता और वैधता को बढ़ावा मिल सकेगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में AFSPA के निहितार्थों का विश्लेषण करते हुए सुरक्षा, मानवाधिकार एवं शासन के संदर्भ में इसके प्रभावों पर प्रकाश डालिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. मानवाधिकार सक्रियतावादी लगातार इस विचार को उजागर करते हैं कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSP) एक क्रूर अधिनियम है, जिससे सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकार के दुरुपयोगों के मामले उत्पन्न होते हैं। इस अधिनियम की कौन-सी धाराओं का सक्रियतावादी विरोध करते हैं? उच्चतम न्यायालय द्वारा व्यक्त विचार के संदर्भ में इसकी आवश्यकता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015) |