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COVID-19 के दौरान परीक्षा अनिवार्यता उच्चतम न्यायलय का निर्णय

  • 29 Aug 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये: 

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, आपदा प्रबंधन अधिनियम,

मेन्स के लिये:

परीक्षा आयोजन के संदर्भ में विश्वविद्यालय और UGC के अधिकार

चर्चा में क्यों?

हाल ही सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया है कि विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा से जुड़े अन्य संस्थान आतंरिक या अन्य मानदंडों के आधार पर अंतिम वर्ष के छात्रों को डिग्री नहीं दे सकते तथा इसके लिये संस्थानों द्वारा अंतिम वर्ष की परीक्षाओं का आयोजन अनिवार्य होगा।

प्रमुख बिंदु:

  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ (Disaster Management Act, 2005) के तहत राज्यों को यह अधिकार है कि वे COVID-19 महामारी के बीच मानव जीवन की रक्षा हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) द्वारा जारी परीक्षा दिशा-निर्देशों की अवहेलना कर सकते हैं।
  • हालाँकि उच्चतम न्यायालय ने यह भी माना कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत राज्यों को बिना परीक्षा आयोजित किये आतंरिक मूल्यांकन के आधार पर ही छात्रों को प्रोन्नति (Promote) प्रदान करने का अधिकार नहीं है।
  • न्यायालय ने निर्देश दिया है कि यदि भविष्य में राज्यों को लगता है कि 30 सितंबर तक परीक्षाओं को आयोजित करना संभव नहीं होगा और वे परीक्षाओं को विलंबित करना चाहते हैं, तो वे इस संदर्भ में UGC से संपर्क कर सकते हैं।  

पृष्ठभूमि:

  • ध्यातव्य है कि UGC द्वारा 6 जुलाई, 2020 को जारी एक दिशा-निर्देश में देश के सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ आयोजित करने का निर्देश दिया गया था। 
  • UGC के इस फैसले के विरूद्ध 30 से अधिक छात्रों ने उच्चतम न्यायलय में याचिका दायर की थी। 
  • याचिकाकर्त्ताओं ने उच्चतम न्यायलय के समक्ष COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं के साथ ऑनलाइन परीक्षाओं हेतु  इंटरनेट तथा अन्य आवश्यक संसाधनों की चुनौती का मुद्दा उठाया था। 
  • इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्त्व वाली तीन सदस्यीय न्यायाधीश पीठ द्वारा की गई।  

UGC के फैसले का समर्थन: 

  • उच्चतम न्यायलय ने इस आरोप को स्वीकार नहीं किया कि UGC द्वारा जारी संशोधित दिशा निर्देश  में COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों की ध्यान में नहीं रखा गया या यह संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत  छात्रों और परीक्षकों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन था। 
  • इसके लिये न्यायलय ने कई तर्क भी दिये जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं -
    • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, 6 जुलाई को जारी दिशा निर्देशों को छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए आर.सी कुहड़ विशेषज्ञ समिति (R.C. Kuhad Expert Committee) की सिफारिशों  के आधार पर तैयार किया गया था।
    • UGC द्वारा जारी दिशा निर्देशों में तीन तरीकों की स्वीकृति दी गई थी- कलम और कागज (Pen and Paper), ऑनलाइन (Online) तथा मिश्रित (भौतिक एवं ऑनलाइन दोनों)। साथ ही परीक्षा देने में असमर्थ छात्रों को एक "विशेष मौका" भी दिया गया था।
    • विश्वविद्यालयों को परीक्षाओं की तैयारी के लिये 31 जुलाई से 30 सितंबर तक का समय भी  दिया गया था।
    • UGC द्वारा जारी दिशा निर्देशों के तहत खंड-6 में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि परीक्षाओं का आयोजन विश्वविद्यालय सुरक्षा प्रोटोकॉल के पालन के बाद ही किया जा सकता है। 
    • उच्चतम न्यायलय ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि COVID-19 महामारी और विश्वविद्यालयों की चुनौतियों को देखते हुए ही पूर्व में निर्धारित 31 जुलाई की तिथि को बढ़ाकर 30 सितंबर कर दिया गया था  

शैक्षणिक कैलेण्डर में एकरूपता :   

  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, कुछ राज्यों में COVID-19 के कारण खराब स्थिति होने के बावजूद भी परीक्षाओं की एक सामान तिथि के निर्धारण का निर्णय UGC के अधिकार क्षेत्र का हिस्सा है और यह उच्च शिक्षा के संस्थानों में मानकों का निर्धारण तथा उनके समन्वय के लिये आवश्यक है।  
  • उच्चतम न्यायालय ने UGC द्वारा पूरे देश शैक्षणिक कैलेंडर में एकरूपता बनाए रखने हेतु अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के आयोजन हेतु समान तिथि के निर्धारण को सही बताया।  
  • याचिकाकर्ताओं ने कहा कि संशोधित दिशा निर्देश दो मामलों में संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करते हैं- 
  • देश के अलग-अलग हिस्सों की परिस्थितियों को ध्यान में रखे बिना पूरे देश में परीक्षाओं के लिये एक तिथि का निर्धारण। 
  • 2- अंतिम वर्ष के छात्रों को परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्यता, अंतिम वर्ष और अन्य (प्रथम/द्वितीय वर्ष) छात्रों के बीच भेदभाव है।   
  • उच्चतम न्यायलय के अनुसार, UGC ने 6 जुलाई के दिशा निर्देशों में अंतिम वर्ष के छात्रों को परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्यता निर्धारित कर उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया है क्योंकि अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ छात्रों को अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने का अवसर प्रदान करती हैं और यह शिक्षा अथवा रोज़गार के क्षेत्र में उसके भविष्य का निर्धारण करती हैं।

परीक्षा तिथि निर्धारण के संबंध में UGC के अधिकार:   

  • उच्चतम न्यायलय के अनुसार, UGC 6 जुलाई के दिशा निर्देशों को जारी करने से पहले राज्यों अथवा विश्वविद्यालयों से परामर्श करने के लिये बाध्य नहीं था।
  • राज्य और विश्वविद्यालय UGC के दिशा निर्देशों को मात्र सुझाव बताकर इसे खारिज नहीं कर सकते हैं।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के ‘औपचारिक शिक्षा के माध्यम से परास्नातक उपाधि प्रदान करने संबंधी निर्देशों के न्यूनतम मानक विनियम, 2003’ के तहत विश्वविद्यालयों द्वारा UGC के दिशा निर्देशों को अपनाना अनिवार्य है।  
  • गौरतलब है कि 31 जुलाई को उच्चतम न्यायालय में UGC द्वारा प्रस्तुत शपथ-पत्र के अनुसार,  देश के 818 विश्वविद्यालयों में से 603 में या तो अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ आयोजित की जा चुकी थीं या वे अगस्त-सितंबर में इन्हें आयोजित करने की तैयारी कर रहे थे। 

निष्कर्ष:

COVID-19 महामारी के कारण अन्य क्षेत्रों के साथ शिक्षा के क्षेत्र पर भी गंभीर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। इस महामारी के दौरान परीक्षाओं का आयोजन छात्रों के साथ-साथ शिक्षा संस्थानों के लिये भी एक बड़ी चुनौती है। हालाँकि देश भर में शिक्षित कैलेण्डर में एकरूपता बनाए रखने और छात्रों के भविष्य को देखते हुए परीक्षाओं का आयोजन आवश्यक है परंतु सरकार को वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सभी हितधारकों के सहयोग से इस समस्या के समाधान विशेष विकल्पों पर पुनः विचार चाहिये।      

स्त्रोत: द हिंदू 

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