शासन व्यवस्था
राज्य बनाम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
- 11 Aug 2020
- 6 min read
प्रिलिम्स के लियेविश्वविद्यालय अनुदान आयोग मेन्स के लियेराज्य बनाम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विवाद, ऑनलाइन परीक्षाएँ आयोजित करने संबंधी चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि परीक्षाओं का संचालन पूरी तरह से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) के क्षेत्राधिकार के भीतर आता है और राज्य किसी भी स्थिति में परीक्षाओं को रद्द नहीं कर सकते हैं।
प्रमुख बिंदु
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य अपने स्तर पर इस तरह परीक्षाएँ रद्द नहीं कर सकते हैं और उनके लिये आयोग द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में COVID-19 महामारी के बीच राज्य के विश्वविद्यालयों की अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को रद्द करने के दिल्ली और महाराष्ट्र सरकारों के निर्णय पर सवाल उठाते हुए कहा कि ये निर्णय नियमों के विरुद्ध है।
विश्वविद्यालय परीक्षाओं की वर्तमान स्थिति
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ को सूचित किया था कि देश के 800 से अधिक विश्वविद्यालयों में से 209 ने परीक्षाएँ सफलतापूर्वक संपन्न कर ली हैं, जबकि लगभग 390 विश्वविद्यालय परीक्षा आयोजित करने की प्रक्रिया में हैं।
विवाद
- गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ देश भर के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के लिये 6 जुलाई, 2020 को UGC द्वारा जारी निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें COVID-19 महामारी के बीच 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ आयोजित करने का निर्देश दिया गया था।
- ध्यातव्य है कि 31 जुलाई, 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।
- बीते दिनों विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने इस संबंध में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ विश्वविद्यालयों और संस्थानों द्वारा सितंबर 2020 तक ऑफलाइन अथवा ऑनलाइन या मिश्रित (ऑनलाइन और ऑफलाइन) मोड में आयोजित की जानी चाहिये।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का पक्ष
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष UGC का पक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि राज्य, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों में बदलाव नहीं कर सकते क्योंकि डिग्री प्रदान करने संबंधित नियमों को निर्धारित करने का अधिकार केवल UGC के पास है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने तर्क दिया कि परीक्षा का आयोजन न करना छात्रों के हित में नहीं होगा और यदि राज्य सरकारें एकतरफा कार्रवाई करेंगी तो UGC राज्य विशिष्ट के छात्रों की डिग्री को मान्यता नहीं देगा।
याचिकाकर्त्ताओं का पक्ष
- इस संबंध में याचिकाकर्त्ताओं ने दावा किया है कि परीक्षाएँ आयोजित करने को लेकर 6 जुलाई, 2020 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा जारी दिशा-निर्देश न तो कानूनी है और न ही संवैधानिक रूप से मान्य हैं।
- इसके अलावा छात्रों के बीच ऑनलाइन परीक्षा को आयोजित कराने को लेकर भी भय की स्थिति है।
- ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी अभी भी एक बड़ी समस्या है। वर्तमान में इंटरनेट कनेक्टिविटी ऑनलाइन परीक्षा के संचालन की एक बड़ी चुनौती है।
- देश भर के कई छात्र इस विषय को लेकर भी ऑनलाइन परीक्षाओं का विरोध का रहे हैं, क्योंकि परीक्षाओं में शामिल होने लेने के लिये उनके पास आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं है।
आगे की राह
- ऑनलाइन परीक्षाओं को लेकर छात्रों की चिंताएँ पूरी तरह से न्यायसंगत हैं, भारत आज भी इंटरनेट कनेक्टिविटी के मामले में तमाम तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- हालाँकि इस संबंध में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का तर्क भी सही है कि राज्य सरकारों को विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के संबंध में किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से पूर्व UGC के साथ विचार-विमर्श करना चाहिये, क्योंकि इस विषय को लेकर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार UGC के पास ही है।
- आवश्यक है कि राज्य सरकारें विद्यार्थियों की चिंताओं को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के समक्ष प्रस्तुत करें, और UGC इस विषय संबंधी कोई निर्णय लेने से पूर्व छात्रों की समस्याओं को भी संबोधित करने का प्रयास करे।