सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने की अनुमति देना | 26 Oct 2024

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, महत्त्वपूर्ण निर्णय, संवैधानिक पीठ, केंद्र-राज्य संबंध, औद्योगिक अल्कोहल, 7वीं अनुसूची, उत्पाद शुल्क, वस्तु और सेवा कर (GST) 

मेन्स के लिये:

भारत में संघवाद, सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय, सहकारी संघवाद, संघवाद के लिये चुनौतियाँ, केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंध।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने का अधिकार है, इस फैसले में वर्ष 1990 के फैसले (सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 1989) को खारिज कर दिया गया, जिसमें केंद्र सरकार के नियंत्रण का समर्थन किया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ क्या है?

  • परिचय: 
    • सर्वोच्च न्यायालय में संविधान पीठ में पाँच या उससे अधिक न्यायाधीश होते हैं, जिन्हें केवल विशिष्ट कानूनी मामलों के लिये ही आमंत्रित किया जाता है। ये पीठें कोई नियमित प्रक्रिया नहीं हैं
  • गठन के लिये परिस्थितियाँ:
    • अनुच्छेद 145(3): अनुच्छेद 143 के तहत महत्त्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्नों या संदर्भों से जुड़े मामलों पर निर्णय लेने के लिये आवश्यक न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पाँच है।
    • विवादित निर्णय: जब विभिन्न तीन न्यायाधीशों की पीठों से परस्पर विवादित निर्णय सामने आते हैं, तो मुद्दे को हल करने के लिये एक विशेष संविधान पीठ का गठन किया जाता है।

औद्योगिक अल्कोहल:

  • औद्योगिक अल्कोहल मूलतः अशुद्ध अल्कोहल है जिसका उपयोग औद्योगिक विलायक के रूप में किया जाता है। 
  • इथेनॉल में बेंज़ीन, पिरिडीन, गैसोलीन आदि जैसे रसायनों को मिलाने से (इस प्रक्रिया को विकृतीकरण कहा जाता है) यह औद्योगिक अल्कोहल में बदल जाता है, जिससे इसकी कीमत काफी कम हो जाती है जो यह मानव उपभोग के लिये अनुपयुक्त हो जाता है। 
  • अनुप्रयोग: फार्मास्यूटिकल्स, इत्र, सौंदर्य प्रसाधन और सफाई संबंधी तरल पदार्थों में उपयोग किया जाता है।
    • कभी-कभी इसका उपयोग अवैध शराब, सस्ते और खतरनाक नशीले पदार्थ के निर्माण में भी किया जाता है, जिनके सेवन से अंधापन और मृत्यु सहित गंभीर खतरे उत्पन्न होते हैं।

औद्योगिक अल्कोहल पर सर्वोच्च न्यायालय पीठ ने क्या फैसला दिया है? 

  • परिभाषा का विस्तार: बहुमत वाली पीठ ने सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में वर्ष 1990 के फैसले को पलट दिया है, जिसमें "मादक शराब" की परिभाषा को पीने योग्य शराब तक सीमित कर दिया गया था तथा राज्यों को औद्योगिक शराब पर कर लगाने से रोक दिया गया था।
  • बहुमत की राय: खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि "नशीली शराब" में सिर्फ मादक पेय या पीने योग्य शराब ही शामिल नहीं है। सभी प्रकार की शराब जो सार्वजनिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, इस परिभाषा के अंतर्गत आती है।
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि शराब, अफीम और नशीली दवाओं जैसे पदार्थों का दुरुपयोग किया जा सकता है तथा फैसला सुनाया कि संसद मादक शराबों पर राज्य की शक्तियों को खत्म नहीं कर सकती है, और कहा कि "नशीली" का अर्थ "जहरीला" भी हो सकता है, जिससे व्यापक वर्गीकरण की अनुमति मिलती है।
  • असहमतिपूर्ण राय: न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने औद्योगिक अल्कोहल के विनियमन के संबंध में बहुमत के फैसले से असहमति व्यक्त की और तर्क दिया कि केवल इसलिये कि "औद्योगिक अल्कोहल" का संभावित दुरुपयोग हो सकता है, प्रविष्टि 8 - सूची II को ऐसे "औद्योगिक अल्कोहल" को शामिल करने के लिये नहीं बढ़ाया जा सकता है।
    • राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने की अनुमति देने से अल्कोहल विनियमन के पीछे विधायी मंशा की गलत व्याख्या हो सकती है।

औद्योगिक अल्कोहल विनियमन पर केंद्र बनाम राज्यों के तर्क:

  • केंद्र सरकार का तर्क:
    • औद्योगिक अल्कोहल को संघ सूची की प्रविष्टि 52 के अंतर्गत "उद्योग" के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिससे केंद्र को सार्वजनिक हित में समझे जाने वाले उद्योगों को विनियमित करने की अनुमति मिल गई है।
    • इसमें कहा गया है कि औद्योगिक शराब का व्यापार, वाणिज्य, आपूर्ति और वितरण समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33(A) के अंतर्गत आते हैं, जो केंद्रीय निगरानी की अनुमति देता है।
    • केंद्र का कहना है कि औद्योगिक शराब उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1961 के अधिकार क्षेत्र में आती है, तथा दावा किया कि यह विनियमन के लिये “क्षेत्र पर कब्जा कर लेती है”। इसलिये, राज्य इस विषय पर अपने नियमन लागू नहीं कर सकते।
    • केंद्र का तर्क है कि औद्योगिक अल्कोहल ने विनियमन के "क्षेत्र पर अधिकार कर लिया है" जो उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1961 के अधीन है। इसलिये राज्य इस विषय पर अपने कानूनों को लागू करने में असमर्थ हैं।
  • राज्यों का तर्क:
    • राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के अंतर्गत विनियमन के लिये तर्क देने के साथ मदिरा पर कर लगाने के अधिकार पर बल दिया गया, जिसमें औद्योगिक मदिरा भी शामिल है।
    • राज्यों द्वारा अवैध उपभोग से निपटने और राजस्व उत्पन्न करने के लिये प्राधिकार बनाए रखने की आवश्यकता (विशेष रूप से GST के कार्यान्वयन के बाद) है।

राज्यों के लिये शराब पर कर लगाने का महत्त्व

  • राजस्व सृजन: शराब पर कर लगाना राज्यों के लिये राजस्व का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। उदाहरण के लिये वर्ष 2023 में कर्नाटक ने भारत निर्मित शराब (IML) पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (AED) 20% तक बढ़ा दिया।
  • वित्तीय निर्भरता: महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्य अपने राजस्व का एक प्रमुख हिस्सा शराब करों से प्राप्त करते हैं, जो उनके कुल उत्पाद शुल्क राजस्व का लगभग 30-40% है।
  • लोक सेवाओं का वित्तपोषण: शराब पर कर का उपयोग स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सहित आवश्यक लोक सेवाओं के वित्तपोषण के लिये किया जाता है।

उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951

  • उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 भारत में औद्योगिक विकास और विनियमन के लिये विधिक और वैचारिक ढाँचा प्रदान करता है। 
  • इस अधिनियम के मुख्य उद्देश्य: 
    • देश में उद्योगों के विकास को नियंत्रित और निर्देशित करना, 
    • निष्पक्ष संसाधन वितरण को बढ़ावा देना, 
    • आर्थिक शक्ति संकेन्द्रण से बचना,
    • संतुलित एवं नियंत्रित औद्योगिक विस्तार को महत्त्व देना। 
  • यह अधिनियम केन्द्र सरकार को निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान करता है: 
    • कुछ उद्योगों के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को विनियमित करना 
    • नये उद्योगों की स्थापना पर प्रतिबंध लगाना 
    • उद्योगों को संचालन हेतु लाइसेंस प्रदान करना 
    • आम लोगों के सर्वोत्तम हित में उद्योग निर्माण और संचालन
    • आर्थिक शक्ति को कुछ ही हाथों में केंद्रित होने से रोकने के लिये कदम उठाना

इसी तरह के अन्य मामले कौन से हैं? 

  • चौधरी टीका रामजी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 1956: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 (IDRA) की धारा 18-G के तहत विशेष केंद्रीय अधिकार क्षेत्र का दावा करने वाली चुनौती के खिलाफ गन्ना उद्योग को विनियमित करने वाले उत्तर प्रदेश के कानून को बरकरार रखा।
      • इस निर्णय से केंद्र सरकार के कानूनों की उपस्थिति में भी उद्योगों के संबंध में कानून बनाने के राज्यों के अधिकार की पुष्टि होने के साथ संघीय शासन के लिये मिसाल कायम हुई।
  • सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 1989: 
    • इसमें सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना कि राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के अनुसार राज्यों की शक्तियाँ "मादक शराब" को विनियमित करने तक सीमित हैं, जो औद्योगिक शराब से अलग हैं।
      • मूलतः सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि केवल केंद्र ही औद्योगिक अल्कोहल (जो मानव उपभोग के लिये नहीं है) पर शुल्क या कर लगा सकता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय वर्ष 1956 में चौधरी टीका रामजी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में अपनी ही पूर्व संविधान पीठ के निर्णय पर विचार करने में विफल रहा।

इस निर्णय का क्या प्रभाव होगा? 

  • लंबित मुकदमे: इस निर्णय से राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए सुरक्षात्मक करों या विशेष शुल्कों से संबंधित चल रहे मुकदमें प्रभावित होंगे क्योंकि पूर्व के निर्णयों में ऐसे शुल्कों पर रोक लगा दी गई थी।
  • राज्यों की नियामक शक्ति: अब राज्यों के पास औद्योगिक अल्कोहल के विनियमन और कराधान का अधिकार है, जिससे राज्यों में विभिन्न कर व्यवस्थाएँ लागू होने की संभावना है।
  • राजस्व सृजन: राजस्व स्रोतों को बढ़ाने के लिये राज्य इस निर्णय का लाभ (विशेष रूप से GST के बाद) उठा सकते हैं, क्योंकि पहले उन्हें औद्योगिक अल्कोहल पर कर लगाने से प्रतिबंधित किया गया था।
  • उद्योग जगत का दृष्टिकोण: उद्योग इस फैसले को सकारात्मक रूप से देख रहे हैं और उनका सुझाव है कि इससे भारत में निर्मित विदेशी शराब (IMFL) क्षेत्र के लिये विनियामक नियंत्रण और कराधान स्पष्ट होने से निर्माताओं के लिये अस्पष्टता कम हो गई है।
  • परिचालन लागत: संभवतः राज्य औद्योगिक अल्कोहल पर कर बढ़ा सकते हैं, जिससे इस पर निर्भर उद्योगों की परिचालन लागत प्रभावित होगी, जिससे मूल्य निर्धारण में असमानता पैदा हो सकती है।

निष्कर्ष 

  • सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले से राज्यों को औद्योगिक शराब को विनियमित करने का अधिकार मिलने से उन्हें कर लगाने तथा उत्पादन और वितरण पर स्थानीय नियंत्रण बढ़ाने की अनुमति मिल गई है। 
  • यह निर्णय GST के बाद राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को मज़बूत करता है, अवैध उपभोग को रोकने के लिये सख्त विनियमन को सक्षम बनाता है तथा इससे स्थानीय लोक स्वास्थ्य प्रभावों के प्रबंधन में राज्यों के विधायी अधिकारों पर प्रकाश पड़ता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न 

प्रश्न: भारत में राज्यों के राजस्व सृजन एवं लोक स्वास्थ्य प्रबंधन के आलोक में औद्योगिक अल्कोहल के विनियमन से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।